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वैसे तो, जीवन में कोई सही निर्णय नहीं होता। अगर आप कोई निर्णय लेते हैं और उसमें अपना सब कुछ लगा देते हैं, तो वो शानदार बन जाएगा।
इरादा रखना एक चीज है, पर उस पर अमल करना अलग चीज है। अपने जीवन में, क्या आप अपने इरादों को अमल में लाएंगे, या आप अपने साथ चीजों को बस संयोगवश होने देंगे, यही बड़ा सवाल है।
अस्तित्व एक संपूर्ण प्रक्रिया है। आप कोई अलग इकाई नहीं हैं।
अपने भाग्य के रचयिता आप खुद हैं। पर जब तक आप इसकी रचना अनजाने में करते हैं, आपको ऐसा लगता है कि यह सब कुछ किसी बाहरी शक्ति के द्वारा किया जा रहा है।
कभी किसी को ऊंची दृष्टि से न देखें, कभी किसी को हेय दृष्टि से न देखें, जब आप हरेक को वैसा ही देखते हैं जैसे वो हैं, तो आप जीवन से अच्छी तरह से गुजरेंगे।
ब्रह्मांडीय स्तर पर, अगर आप यह समझते हैं कि आप कौन हैं, तो आप नम्रता से जिएंगे। वह सब जिसे आप स्पर्श करें, वो एक आशीर्वाद बन जाए।
अनासक्ति का मतलब भागीदारी का न होना नहीं है। आप बहुत गहराई में जुड़ सकते हैं, पर उलझते नहीं हैं।
जिन लोगों ने योग संस्कृति को बनाया, वे विचारों और भावनाओं से संचालित नहीं थे। जागरूकता और बोध ने उनका मार्गदर्शन किया था।
अगर प्रेम, आनंद, और परमानंद के आंसुओं ने आपके गालों को नहीं धोया है, तो आपने अभी जीवन का स्वाद नहीं चखा है।
ध्यानलिंग दिव्य की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है। ध्यानलिंग के आभामंडल में जो भी व्यक्ति आता है, उसके अंदर मुक्ति का आध्यात्मिक बीज रोपित हो जाता है। वो इससे अछूता नहीं रह सकता।
योग-विज्ञान आपको अपना जीवन और एक जागरुक धरती बनाने की आजादी देता है, जिससे हर इंसान और धरती के सभी जीवों के कल्याण का द्वार खुलता है।
अस्तित्व में हर चीज गतिशील है। आप या तो इसके साथ चलें, या इससे ऊपर उठ जाएं।