ईशा योग कार्यक्रम में भाग लेने के लिए चीन से जिज्ञासुओं का एक दल आश्रम आया था। उस दल के प्रतिभागियों  के अनुभव जानने के लिए आश्रम के एक स्वामी ने उनसे बातचीत की। पेश है उस संवाद के अंश-

 

प्रश्‍न:

आपको ईशा और इस कार्यक्रम के बारे में कहां से पता चला?

 

यूफान:

 

सद्‌गुरु से मेरा पहला परिचय मिडल स्कूल के पहले साल में हुआ जब अमेजन में सर्च करते हुए मुझे ‘मिडनाइट्स विद द मिस्टिक’ पुस्तक के बारे में पता चला। यह चीनी अनुवाद के साथ ईशा की एकमात्र पुस्तक थी, मेरी अंग्रेजी तब तक बहुत अच्छी नहीं थी। इसलिए मैंने इस पुस्तक को बार-बार पढ़ा। हाई स्कूल में जब मेरी अंग्रेजी बेहतर हुई तो मैंने दूसरी ई-बुक्स खरीदीं और फिर ऑनलाइन इनर इंजीनियरिंग की। जब मेरी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी भी नहीं हुई थी, तभी मैं चीन में ईशा हठ योग कक्षाओं (स्थानीय शिक्षक के साथ) में शामिल हुई और फिर रिट्रीट कार्यक्रम के लिए यहां आ पाई।

 

प्रश्‍न:

आप यहां साथ-साथ आए हैं (मतलब हू के साथ)?

 

यूफान:

हम चीन में ईशा के कार्यक्रमों में मिले। (ऐसा लगता है कि हू को भी ऑनलाइन ईशा के बारे में पता चला।)

 

यि लियू:

बीजिंग में मेरे योग शिक्षक ने मुझे ईशा से जुड़ने का सुझाव दिया और कहा कि यह जगह अच्छी है। मैंने पहले ईशा या सद्‌गुरु के बारे में नहीं सुना था मगर मैंने एक ब्रोशर देखा था जिसमें ध्यानलिंग की तस्वीर थी। मुझे लगा कि यही वह चीज है जिसकी खोज में मैं हूं।’ जब मैं अपने पहले कार्यक्रम (इनर वे) के लिए आई, तो अपने साथ और लोगों को भी लेकर आई।

 

हू:

(भारत में पहली बार) जब हम पहुंचे, तो हम स्पंदा हॉल में गए। मुझे महसूस हुआ कि यह जगह ऊर्जा से भरपूर है। वैसे तो मुझे बातें करना बहुत पसंद है मगर उस सुबह जब हम वहां पहुंचे, मेरा बोलने का मन नहीं हो रहा था। मैं अपने साथ और हर चीज के साथ होना चाहती थी। यह मेरे लिए एक नया अनुभव था और मैं हर चीज से अभिभूत थी।

 

प्रश्‍न:

क्या आप पहली बार भारत आए हैं? भारत और आश्रम के बारे में आपके क्या विचार हैं?

 

यूफान:

मैं दूसरी बार भारत आई हूं मगर पहली बार मैं दक्षिण नहीं आई थी। मैं इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन डिजाइन के लिए एक इंजीनियरिंग कंपीटिशन में हिस्सा लेने आई थी। उस दौरे के समय, दिल्ली हवाईअड्डे पर मुझे ईशान शॉप दिखी। मैंने वहां काम करने वालों से एक घंटे तक ईशा के बारे में बात की। यह जगह बहुत जानी-पहचानी सी लगती है। यह मुझे कविता की एक पंक्ति की याद दिलाती है, ‘दुनिया में जीवन कितना नाजुक है।’ लगभग सभी भाषाएं यहां मौन हो जाती हैं।

 

यि लियू:

मैं पिछले साल इनर वे कार्यक्रम के लिए भारत आई थी। मैं तीसरी बार ईशा आई हूं मगर इस दफा पहली बार स्वयंसेवा कर रही हूं। मैं अभी और स्वयंसेवा करना चाहूंगी। 21 दिनों का हठ कार्यक्रम (जिसमें इन्होंने हिस्सा लिया था) बहुत तीव्र और शारीरिक रूप से बहुत कठोर था, मगर भक्ति साधना के दौरान मैं हर दिन भक्ति में लीन हो रही थी और मैं हर चीज के लिए कृतज्ञता महसूस कर रही थी। स्वयंसेवा मेरे लिए इस कृतज्ञता को व्यक्त करने का एक तरीका है। पहले मुझे लगता था कि मैं बहुत सारी चीजें कर सकती हूं – मैं खुद को बहुत महत्वपूर्ण मानती थी और हमेशा अपने बारे में ही सोचती थी। भक्त बनने के लिए मैंने खुद को बहुत छोटे रूप में देखा। जीवन बस पानी की तरह है: शांत, स्थिर, अपने आस-पास की चीजों को लेकर निष्पक्ष – मैं उसी तरह होना चाहती हूं।

 

प्रश्‍न:

क्या आपको ऐसे लोग मिले हैं, जो यह बात नहीं समझते, यानि जो आपसे आगे निकलना चाहते हैं, आपको हराना चाहते हैं?

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यि लियू:

मैं जब एक बार झुकती हूं, तो मेरे अंदर ही ऐसा होने लगता है। मैं बस यह देखती हूं, यह मेरा काम है, वह उनका काम है। मैं ज्यादा शांत महसूस करती हूं। मैं हल तलाश करती हूं। मैं देखने की कोशिश करती हूं कि क्या हो सकता है, मैं क्या कर सकती हूं। कार्यक्रम में स्वयंसेवा के दौरान मैं सुबह 4 बजे उठती थी। 10 दिनों तक सिर्फ 4 घंटे सोई। मैं जो कर सकती हूं, वह करती हूं, जिस चीज को करने की जरूरत हो, वह करती हूं। मैंने पाया कि मुझे उसमें वाकई आनंद आया – सद्‌गुरु के दर्शन के ठीक बाद मुझे भोजन के लिए भिक्षा हॉल जाना पड़ता था, इसलिए मैं लगभग दौड़ते हुए वहां पहुंचती थी। मुझे लगता था कि मुझे वहां जरूर जाना चाहिए। मेरे अंदर ऊर्जा आ जाती थी।

(उन्होंने यह भी जिक्र किया कि ट्रेनिंग पा रहे शिक्षकों से और कार्यक्रम के दूसरे स्वयंसेवकों से यह सीखने का भी मौका मिला कि स्वयंसेवा कैसे की जानी चाहिए। वह उनसे प्रेरित होती थी।)

 

प्रश्‍न:

कार्यक्रम के दौरान आपको अंदर से कैसा अनुभव हुआ?

 

यूफान:

हमारी उड़ान देर से पहुंची। हम बहुत देर से पहुंचे और जल्दबाजी में थे। मगर स्वयंसेवक बहुत संगठित थे, सब कुछ बहुत बढ़िया था, उन्होंने तेजी से सब कुछ संभाल लिया। बहुत से लोग तो बहुत देरी से पहुंचे, एक बड़ा दल, टाईफून के कारण विमानों के देर से पहुंचने के कारण, बहुत ही देर से आया मगर सारी व्यवस्था तेजी से हो गई।

 

प्रश्‍न:

और कार्यक्रम के दौरान?

 

यूफान:

मुझे लगा कि मैं कुछ ज्यादा ही गंभीर हूं। मैं आईईओ कर चुकी हूं मगर इस बार ज्यादा मुश्किल था। यह बहुत जबर्दस्त था। मगर दीक्षा के बाद, सब कुछ ठीक हो गया। मुझे लगता है कि सद्‌गुरु की कृपा से यह सब हुआ।

 

प्रश्‍न:

शांभवी का आपका अनुभव कैसा रहा?

 

यूफान:

हठ योग के मुकाबले यह सरल लगता है, ऐसा लगता है कि सिर्फ कुछ कदम चलना है। मगर इसे लागू करना कठिन है। अपने शरीर को खिसकाना आसान है, मगर अपने मन को बदलना मुश्किल है।

 

प्रश्‍न:

आईईओ के मुकाबले लाइव कार्यक्रम में होना कितना अलग था?

 

यूफान:

मुझे लगा कि वीडियो में भी मुझे ऐसा ही अनुभव हुआ था। (बाद में उन्होंने बताया कि वह वीडियो को देखते समय ज्यादा आरामदेह और जुड़ी हुई महसूस कर रही थी और लाइव कार्यक्रम के दौरान उन्हें ज्यादा संघर्ष करना पड़ा।).

 

प्रश्‍न:

मंदिरों/प्रतिष्ठित जगहों का आपका अनुभव क्या था?

 

यूफान:

यह इतना सूक्ष्म है कि इसका वर्णन नहीं किया जा सकता।

 

प्रश्‍न (हू से):

कार्यक्रम का आपका अनुभव कैसा था?

 

हू:

शुरुआत में यह बहुत अच्छा नहीं लग रहा था – सद्‌गुरु ने कहा कि महत्वपूर्ण यह है कि आप चीजों को ग्रहण कैसे करते हैं। दूसरों को अच्छे-खासे अनुभव हुए, मगर मुझे नहीं हुए। मैं चिंतित थी कि कुछ गड़बड़ तो नहीं है। फिर मैंने शांभवी का अभ्यास शुरू किया। वाह... पहली बार मैंने महसूस किया कि आंतरिक रूपांतरण कितना जबर्दस्त और शक्तिशाली होता है। (उन्होंने जिक्र किया कि उन्होंने पहले किए हठ योग कार्यक्रमों के दौरान अपने भीतर कुछ बदलाव महसूस किए)। इस बार, शांभवी वाकई जबर्दस्त है – इसकी शक्ति का वर्णन करना मुश्किल है। मैं वाकई हर चीज के लिए आभारी हूं। यहां से मुझे जो मिला है, उसका बदला चुकाना असंभव है। सद्‌गुरु को किसी बदले की जरूरत भी नहीं है। मगर मैं पूरी तरह खुद को समर्पित कर देना चाहती हूं। मैं उनकी कृपा को आगे बढ़ाने के लिए जो कुछ भी कर सकती हूं, वह करना चाहती हूं। (यह कहते हुए वह रोने लगी थीं।)

 

(यह पूछने पर कि वे यहां और कितने दिन रहेंगी, पता चला कि हू और यूफान हठ योग शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए रुक रही हैं। यू लियू 6 महीने तक स्वयंसेवक के रूप में रुकने का प्रयास कर रही हैं।)

 

विकी भी बातचीत में सम्मिलत हो जाती हैं। जब उनसे पूछा गया कि कि उन्होंने इस कार्यक्रम के बारे में कैसे सुना, तो उनका जवाब था -

 

विकी:

मैं सिंगापुर में रहती हूं। मैं एक अलग सी क्लिप के लिए यूट्यूब देख रही थी। तभी सद्‌गुरु का एक वीडियो सामने आया। मैंने उसे देखा। उनकी दाढ़ी ने मुझे आकर्षित किया। मैंने हर क्लिप देखा। सब कुछ बहुत तर्कसम्मत लग रहा था। एक क्लिप में इनर इंजीनियरिंग का जिक्र देखा। मुझे यह जानने की उत्सुकता थी कि इनर इंजीनियरिंग क्या है? इसलिए पिछले साल सिंगापुर में मैंने इनर इंजीनियरिंग की और फिर मलेशिया में बीएसपी किया

 

प्रश्‍न:

तो आप यहां स्वयंसेवक के रूप में हैं, मगर आप पहली बार आश्रम आई हैं। आपको यहां आकर कैसा लगा?

 

विकी:

हां। यह अनुभव बहुत विशाल और वास्तविक है। सिंगापुर में सब कुछ हाई-टेक है। यहां थोड़े पश्चिमी रंग के साथ सब कुछ कुदरती है।

 

प्रश्‍न:

आप सब के लिए, क्या इस कार्यक्रम में कुछ आश्चर्यजनक या खास तौर पर चुनौतीपूर्ण था?

 

यूफान:

जब मैंने आईईओ किया, तो उस कमरे में सिर्फ मैं थी। मैं उसे आराम से अपने बिस्तर पर बैठकर कर सकती थी। वह एक सहज और आसान प्रक्रिया थी। इसलिए 200 लोगों के दल में होना ज्यादा मुश्किल लगा। बहुत से लोगों को योग की कोई जानकारी नहीं थी। उन्हें इन नियमों की उम्मीद नहीं थी। मैं उस माहौल से थोड़ा परेशान हो गई, मगर अंत में सब कुछ ठीक हो गया।

 

यि लियू:

(वह उस दल के बारे में बताती है, जिसका यूफान ने जिक्र किया था)। 137 लोगों का एक दल साथ आया था, उनका अपना एक गुरु था जो इनर वे में आए थे। वह एक बौद्ध भिक्षु हैं। उन्होंने उन लोगों को सुझाव दिया कि यहां आना चाहिए। बहुत से लोग घूमने आए थे, उन्हें इस कक्षा के बारे में पता भी नहीं था। कुछ को मालूम था, कुछ को नहीं। मगर जो लोग इसके बारे में नहीं जानते थे, वे भी कक्षा में दिलचस्पी लेने लगे। अंत में हर किसी को अच्छा अनुभव हुआ। उस दल की एक महिला ने कक्षा के दौरान मुझसे कहा कि वह पहले सद्‌गुरु के बारे में बिल्कुल भी नहीं जानती थी, मगर अगली बार वह अपने 3 बच्चों को साथ लेकर आएगी।