जोइता सिसको में प्रोजेक्ट मैनेजर हैं। उन्होंने दो बार अपने जबड़ों की सर्जरी कराई, और दोनों बार के उनके अनुभवों में जमीन-आसमान का अंतर था। पहली सर्जरी उन्होंने तब कराई जब वह ईशा योग नहीं करती थीं, और दूसरी ईशा योग करने के बाद। ईशा योग से आपकी जीवन-ऊर्जा में आने वाले बदलावों का यह एक सटीक उदाहरण है। खुद जोइता से सुनिए उनकी कहानी:

डॉक्टर ने जैसे ही छेद करने वाली मशीन, कैंची, रेती और ऐसे ही दूसरे यंत्रों को इस्तेमाल के लिए उठाया, मैं घबरा गई। विश्वास करना मुश्किल था कि इन सभी यंत्रों का इस्तेमाल मेरे चेहरे पर होगा। यह जबड़े और चेहरे से जुडी सर्जरी थी। इस सर्जरी में 11 टांके आने वाले थे, और डॉक्टर एक नस को नष्ट करने वाले थे। ऐसी सर्जरी कराना मेरे लिए डरावना था।

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जोइता सर्जरी  के एक सप्ताह बाद  
 हर गहरी सांस के साथ मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मैं उस स्थिति को पार करती जा रही हूं। यह पल मेरे लिए यह देखने का अवसर था कि—“मैं कौन हूं- एक शरीर, मन या कुछ और? ।
वैसे, यह पूरी कवायद मेरे लिए नई नहीं थी- क्योंकि एक तरफ के जबड़े की सर्जरी मैं पहले करा चुकी थी। अब उसके ठीक होने के कई महीनों बाद, मैं दूसरी तरफ के जबड़े की सर्जरी कराने जा रही थी। पिछली बार तो मुझे जैसे सदमा लग गया था, मेरा चेहरा सूज गया था, और जबड़े के आसपास के हिस्सों में तेज दर्द हो रहा था। मुझे इंफेक्शन का भी सामना करना पड़ा था, और दो हफ्ते तक तरल चीज़ें खानी पड़ीं थीं । डेढ़ महीने का वह समय मेरे लिए एक  दुखद स्वप्न की तरह था। लेकिन डॉक्टर के अनुसार यह सर्जरी तीन गुना ज्यादा जटिल थी। उन्होंने कहा कि- “हो सकता है, आपकी दाहिनी तरफ की संवेदना हमेशा के लिए ख़त्म हो जाये”।

मैंने महाशिवरात्रि के अगले दिन तक के लिए सर्जरी टाल दी, क्योंकि मैं शिवरात्रि के त्योहार को यूं ही नहीं जाने देना चाहती थी। जैसे ही सर्जरी का दिन आया, पिछली सर्जरी की कड़वी यादें मेरे दिमाग में तैरने लगीं। मेरी धड़कन तेज हो गई। अगर ऐसा हुआ तो क्या होगा, अगर वैसा हुआ तो क्या होगा, ऐसी बातें मुझे परेशान कर रही थीं। सर्जरी से पहले मेरे ऊपर जो लाइट डाली गई, उसी से मेरे पसीने छूटने लगे।

अचानक  डॉक्टर और उनके सहायक ने मेरे मुंह में सुइयां डालनी शुरू कर दीं। मुझे याद था कि मुझे अपनी सांसों पर ध्यान लगाना है। हर गहरी सांस के साथ मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मैं उस स्थिति को पार करती जा रही हूं। यह पल मेरे लिए यह देखने का अवसर था कि—“मैं कौन हूं- एक शरीर, मन या कुछ और? क्या मैंने यह नहीं सीखा कि अतीत में जीना एक भ्रम है? फिर मैं इस सर्जरी को लेकर इतनी परेशान क्यों हूं? जब हर पल नया होता है, तो इस पल में मैं अपने बीते कष्टों के अनुभव को क्यों हावी होने दूं?"

मैं आंखें बंद करके गहरी सांसें लेने लगी। इससे मानो राहत की एक चादर  मेरे ऊपर फैल सी गई। घबराहट कम होने लगी और कंपकंपी तो जैसे उसी पल खत्म हो गई। अपनेआप को टेस्ट करने का मेरे लिए यह सबसे अच्छा मौका था। लोकल एनेस्थिसिया, छेद करने की मशीन, कैंची – अब इनसे मुझे कोई समस्या नहीं थीं।

जैसे ही छेद करने वाली मशीन की आवाज मेरे कानों में पड़नी शुरू हुई, मैंने अपना इयरफोन लगा लिया और उसमें सदगुरु की आवाज सुनने लगी।
दरअसल, सर्जरी वाले दिन मैंने योग क्रिया एक बार अधिक की थी, और इसने मेरी पूरी मदद की। जैसे ही छेद करने वाली मशीन की आवाज मेरे कानों में पड़नी शुरू हुई, मैंने अपना इयरफोन लगा लिया और उसमें सदगुरु की आवाज सुनने लगी। मैंने डॉक्टर से आईपॉड सुनने की इजाजत ले ली थी। जैसे-जैसे मशीन छेड़ करती गयी, मेरा दर्द बढ़ता गया, और साथ ही सद्गुरु की आवाज़ का असर भी बढ़ता गया। मैं ब्रह्मानंद स्वरूपा और ओम नम: शिवाय में खो गई। तब मुझे महसूस हुआ कि अपने शरीर से पूरी दूरी बनाए रखना संभव है।

अपने कुत्ते के साथ
बाद में डॉक्टर ने मुझे अपनी सांसों को नियंत्रित रखने और धैर्य बनाए रखने के लिए बधाई दी। उन्होंने बताया कि शांत लोगों का शरीर सर्जरी के दौरान बेहतर तरीके से सहयोग करता है। पूरी सर्जरी बड़े ही अच्छे तरीके से खत्म हुई, और इसमें पिछली बार की तुलना में महज एक तिहाई वक्त लगा। सर्जरी के बाद का स्वास्थ्य लाभ बड़ा ही चमत्कारिक था। मेरे घाव की सूजन डॉक्टर की उम्मीद से बहुत कम थी। डॉक्टर इतनी कम सूजन पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने मेरे शरीर की घाव भरने की गति को बहुत तेज़ बताया। वे मेरे खानपान और जीवन-शैली को लेकर उत्सुक थे। वे जानना चाहते थे कि – ऐसा क्या है जिसकी वजह से मेरे जख्म इतनी तेजी से भर गए? इतने दर्द के बावजूद में इतनी शांत और खुश कैसे रही? आखिर किस चीज ने मुझे इतना बहादुर बना दिया?

पांच दिनों के भीतर मैं पूरी तरह ठीक हो गई। पहले कराई गई सर्जरी के मुकाबले यह अनुभव पूरी तरह अलग था। आखिर अंतर क्या था? अंतर था- ईशा, सदगुरु और उनका आशीर्वाद जो इस बार मेरे साथ था। सदगुरु की मदद से मैं संभव और असंभव में फर्क जान पाई! मैं इसके लिए उनका तहेदिल से शुक्रिया करती हूं। मेरा जख्म चमत्कारिक ढंग से इतनी जल्दी कैसे भर गया, यह मुझे अब भी समझ नहीं आता। सांसों को स्थिर रखते हुए मैं इतने दर्द को खुशी-खुशी कैसे सह गई? अगले ही दिन सूजे हुए चेहरे के साथ मैं एक पार्टी में कैसे जा पाई? मुझे तो लगता है मेरी क्रिया और योगासनों ने यह सब करने में मेरी मदद की। इस छोटे से अनुभव की वजह से इन सबमें मेरा भरोसा और मजबूत हो गया है।

डॉक्टर ने मुझसे पूछा कि क्या किसी अभ्यास ने मुझे शांत रहने और तेजी से ठीक होने में मदद की है ? जब मैंने उन्हें बताया कि मैं ईशा योग का अभ्यास करती हूं, तो उनकी जिज्ञासा और बढ़ गई। इससे यह साबित होता है कि – मैं इस शरीर से कहीं ज्यादा हूँ। शरीर भी वही है, सर्जरी भी वही है, लेकिन नतीजा पिछली सर्जरी से बिलकुल अलग है। ऐसा हुआ तो बस ईशा योग की वजह से। मुझे तो लगता है, मैंने खुद अपनी केस स्टडी तैयार कर ली।