पेड़ों पर आधारित खेती (Agroforestry) की पूरी जानकारी - क्या, क्यों और कैसे?
कृषि वानिकी, किसानों के लिये नई संभावनाओं के दरवाजे खोल देती है। इसमें किसान ज्यादा पैसा कमाने के साथ साथ पर्यावरण को सुधारने और ख़राब होने से बचाने में भी मदद कर सकता है। जानते हैं कि कृषि वानिकी कैसे किसानों की आमदनी को बढ़ा सकती है, और कैसे इसके सकारात्मक प्रभाव से हर किसी को फायदा मिल सकता है।
कृषि वानिकी क्या है ?
कृषि वानिकी यानि पेड़ों पर आधारित खेती, एक ऐसी पद्धति है जिसमें खेतों में परंपरागत फसलों के साथ-साथ पेड़ लगाए जाते हैं। किसानों के लिए आमदनी के रूप में फायदेमंद होने के साथ-साथ इसके और भी बहुत से फायदे हैं। यह खेतों में पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने में, मिट्टी के कटाव और पानी के बहाव को रोकने में, किसानों को आय का वैकल्पिक स्रोत देने के साथ-साथ मौसम को चरम (गर्मी में अधिक गर्मी सर्दी में अधिक सर्दी) तक जाने से रोकने का काम करती है।
जहां भी इसे सही तरीके से अमल में लाया गया है, वहां इसका परिणाम बहुत ही प्रभावशाली है। ऐसे किसानों का मिलना कोई आश्चर्य की बात नहीं है, जिनको इन योजनाओं का लाभ मिला है और जिन्होंने अपने पूरे खेत को एग्रोफॉरेस्ट में बदल दिया है। ऐसे खेत प्रायः कई स्तर की फसलों के मिश्रण होते हैं, इसमें ऊंचे ऊंचे पेड़, टेढ़ी-मेढ़ी लताएं, मध्यम स्तर की झाड़ियां और जमीन पर जड़ी बूटियां, यह सब साथ-साथ में पाई जाती हैं।
Agroforestry: Money Does Grow on Trees!
एग्रोफोरेस्ट्री: पैसे वाकई पेड़ पर उगते हैं!
जब खेतों में पेड़ होते हैं तो इससे किसानों को कई तरह के लाभ मिलते हैं जिसमें से एक लाभ यह है कि वह अधिक पैसे कमा सकता है। परंपरागत खेती करने के तरीके से किसान अक्सर कर्ज में डूब जाते हैं। उदाहरण के लिए किसान ने बीज, खाद और कीटनाशक के लिए कर्ज लिया लेकिन मानसून नहीं आया और सूखा पड़ गया या बाढ़ ने फसल खराब कर दी। तो ऐसी परिस्थिति में उसके पास ना तो कुछ खाने को बचेगा और न ही कर्ज़ अदा करने को। कभी-कभी अच्छी फसल होने के बाद भी ऐसा होता है कि बाजार में भरमार हो जाती है, जिसकी वजह से दाम गिर जाते हैं और फिर किसान को परेशान होना पड़ता है।
भारत के गांव में रहने वाली 70% आबादी खेतों में काम करती है। उन्हें ऐसी परिस्थितियों का सामना आये दिन करना पड़ता है। तो इन हालातों में ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पिछले 20 सालों में 3,00,000 किसानों ने आत्महत्या कर ली।
लेकिन एग्रोफोरेस्ट्री (पेड़ों पर आधारित खेती) आर्थिक रूप से किसानों के लिए बहुत मददगार है। इसका कारण भारत और विदेशों में लकड़ी की मांग है। लकड़ी का इस्तेमाल ईंधन, फर्नीचर, मचान, लुगदी, पेपर, केबिन, वाद्ययंत्र, फर्श का सामान, खेल के सामान आदि सब जगह होता है।
लेकिन भारत में लकड़ी का उत्पादन पर्याप्त नहीं है और 2020 तक इसमें भारी गिरावट की संभावना है। भारत में इस्तेमाल की जाने वाली कुल लकड़ी जिसकी कीमत 70000 करोंड़ रुपए है का लगभग 25 प्रतिशत आयात होता है, जबकि निर्यात केवल उसका 10% है। इस वजह से देश और विदेश में लकड़ी का एक बहुत बड़ा मार्केट तैयार हो गया है। भारत में बढ़ते जीवन स्तर की वजह से लकड़ी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। कुछ किसान लकड़ी की इस बढ़ती मांग का पहले से ही लाभ ले रहे हैं।
तमिलनाडु के गोबीचेट्टिपलयम के एक किसान सेंथिलकुमार ऐसे ही एक एग्रोफोरेस्ट्री के अग्रदूत हैं। “मैंने अपने खेत की परिधि पर मालाबार किनो लगाया है। जब मुझे कुछ धन की आवश्यकता होती है तो मैं 10 पेड़ काट देता हूं और उनसे मुझे 50,000 रुपये मिल जाते हैं। वे बताते हैं कि “अब मुझे बैंकरों के चक्कर लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है और न ही सरकारी माफी की उम्मीद के साथ मुझे लोन लेने की जरुरत पड़ती है।” आज से कुछ समय बाद, मान लिजिये 30 साल बाद, अपने पोते की शिक्षा के लिये, मैं दस लाल चंदन के पेड़ बेच कर 300,000 रूपए इकट्ठा कर सकता हूँ।
एग्रोफोरेस्ट्री : एक सफल माडल
खेती की आय को स्थिर और साल भर लगभग एकसमान रखने के लिए, दीर्घकालिक(ज्यादा समय लेने वाले) और अल्पकालिक(कम समय लेने वाले) पेड़ साथ साथ एक वैकल्पिक पैटर्न में लगाए जाते हैं। मालाबार किनो, मेलिया दुबिया जैसे लघु अवधि के पेड़ों को पांच वर्षों में काटा जाता है। जब कि दीर्घ कालिक पेड़ों की कटाई दसवें वर्ष से शुरू की जा सकती है। इनमें सागौन, महोगनी और लाल चंदन जैसे मूल्यवान पेड़ शामिल हैं। इन लंबी अवधि के पेड़ों को बीमा पॉलिसी के रूप में या सेवानिवृत्ति योजना (भुगतान करने के लिए प्रीमियम के बिना) के रूप में देखा जा सकता है।
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मुझे किसी से पैसे माँगने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, मैं एग्रोफोरेस्ट्री की वजह से आत्मनिर्भर हूँ। तमिलनाडु के तंजावुर में एक किसान, कनकराज बताते हैं कि उनकी बेटी के लिए उनके पेड़ कैसे बीमा की तरह हैं। “मेरी बेटी अब पाँच साल की है। बीस साल में उसकी शादी हो जाएगी। तो उस समय तक मेरे पेड़ भी परिपक्व और बीस साल के हो जायेंगे। फिर मैं शादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पेड़ों को बेच सकता हूं। मुझे किसी से पैसे मांगने की ज़रूरत नहीं है। मैं एग्रोफोरेस्ट्री की वजह से स्वतंत्र हूँ।”
ये दीर्घकालिक पेड़, लता की खेती के जरिये अप्रत्यक्ष रूप से भी बहुत अधिक आय उत्पन्न कर सकते हैं। काली मिर्च की बेल एक ऐसी प्रजाति है। एक बार जब पेड़ कम से कम तीन साल पुराने हो जाते हैं, तो उनके आसपास काली मिर्च की बेलें उगाई जा सकती हैं। ये बेलें दो साल बाद फसल योग्य होती हैं। बेल की परिपक्वता बढ़ने के साथ साथ आय भी बढ़ती रहती है। शुरुआत के दिनों में, जब पेड़ फसल के लिए बहुत छोटे होते हैं, तो केले, पपीता आदि जैसे साल भर की फसलों या काले चने और मूंगफली जैसी मौसमी फसलों का इस्तेमाल करते हुए फसलें बदलकर आमदनी अर्जित की जा सकती है।
विशेषज्ञता के साथ साथ अनुभव भी
ईशा के पास किसानों के साथ काम करने और उन्हें एग्रोफोरेस्ट्री में ले जाने का बहुत अनुभव है। अब तक, लगभग 70,000 किसानों ने ईशा की मदद से यह कदम उठाया है। किसान परिवर्तन के लिए जल्दी तैयार नहीं होते, और इसके कई कारण भी मौजूद हैं। इस तरह का विचार अपनाने से पहले, उन्हें यह दिखना चाहिए कि ये वाकई में काम करेगा। ईशा ने ध्यानपूर्वक विकास करते हुए, पिछले पंद्रह वर्षों के दौरान, एग्रोफोरस्ट्री की वजह से संपन्न हुये किसानों का एक नेटवर्क बनाया है। इन खेतों में से कुछ मॉडल फार्म काफ़ी जाने पहचाने हैं, और एक परिपक्व कृषि व्यवसाय मॉडल हैं, जो नए किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
एग्रोफोरेस्ट्री में इस तरह के अनुभव और विशेषज्ञता के साथ, विभिन्न क्षेत्रों में इसके होने की सम्भावना और सफलता के बारे में एक विस्तृत अध्ययन किया गया है। इस व्यापक अध्ययन में पेड़ों की प्रजातियां, जिसमें अल्पकालिक और दीर्घकालिक रूप से लगाये जाने वाले पेड़, वर्तमान और भविष्य में उनकी अनुमानित कीमतें, पेड़ों के बीच पैदा होने वाली फसलें, पेड़ों के साथ लगायी जा सकने वाले लताएं आदि शामिल हैं। विभिन्न एग्रोफोरेस्ट्री मॉडल (विभिन्न प्रजातियों के समूहों के साथ) विभिन्न मिट्टी के प्रकारों, जलवायु परिस्थितियों और पानी की उपलब्धता के आधार पर मौजूद हैं।
बीस वर्षों में अनुमानित कीमतों, लागत और जीवन यापन की दरों के अनुमान के साथ, एक अध्ययन में निष्कर्ष निकला है कि किसान पांच से सात वर्षों में अपनी आय 300 से 800 प्रतिशत के बीच में, बढ़ा सकते हैं। यह अनुमान शुरुआती किसानों के अनुभव से मेल खाता है, जिन्होंने अपनी खेती को एग्रोफोरेस्ट्री में परिवर्तित कर लिया है। किसानों को एग्रोफोरेस्ट्री के वैज्ञानिक तरीकों में मुफ्त शिक्षा, पौधे उपलब्ध कराना, सलाह देना और उनके फार्म का मुफ्त में दौरा करना, इन सब रूपों में ईशा द्वारा दी जाने वाली मदद से, यह सपना कई किसानों के लिए आज वास्तविकता बन गया है।
बाढ़, सूखे और किसान संकट को अलविदा
देश के कई हिस्सों में एक आम समस्या है कि गर्मी के दौरान सूखा पड़ता है और कुछ महीनों बाद मानसून के दौरान बाढ़ आ जाती है। उदाहरण के लिए, मई 2016 में, उत्तर प्रदेश के प्रयाग में गंगा इतनी सूखी थी कि लोग नदी के तलहटी में घूम रहे थे। ठीक तीन महीने बाद, बिहार और उत्तर प्रदेश में मानसून के दौरान नदी ने बाढ़ के रिकॉर्ड स्तर को छू लिया, जिससे 4 मिलियन लोग प्रभावित हुए और 650,000 लोगों को अपने घरों से जाना पड़ा। 2015 में, तमिलनाडु ने दिसंबर में सबसे खतरनाक बाढ़ का सामना किया। पांच सौ लोगों ने अपनी जान गंवाई। क्षति का अनुमान INR 20,000-160,000 करोड़ से लगाया गया। एक साल बाद 2017 की गर्मियों में, तमिलनाडु ने सूखे का सामना किया, जो 140 वर्षों में वहाँ का सबसे खराब सूखा था।
शायद कोई ऐसा सोच सकता है कि ऐसा ही होता है - बारिश के दिनों में बाढ़ और गर्मी के दिनों में सुखा। पर ये सच नहीं है। ये मौसमी बाढ़ और मौसमी सूखे का कारण यह है कि ज्यादातर नदी घाटियों से पेड़ काट दिए गए हैं। उदाहरण के लिए, कावेरी घाटी में 87% पेड़ काट दिए गए हैं।
नदी के जलग्रहण क्षेत्र में मौजूद पेड़ नदी के बहाव को कम करते हैं और मौसमी बाढ़ को रोकतें हैं। वे मिट्टी को वर्षा के जल को सोखने करने में मदद करते हैं जिससे कि भूजल का स्तर फिर से बढ़ने लगता है। यही जल, फिर साल भर धीरे-धीरे मिट्टी से नदियों में जाता है। यह बाढ़ और गर्मी के दिनों में पानी की कमी को रोकने के साथ साथ नदियों को पुनर्जीवित करने में भी मदद करता है। इस तरह से मानसून में बाढ़ से खेत तबाह नहीं होते और गर्मी के दिनों में पानी भी उपलब्ध होता है, जिससे किसान की पानी की समस्या कम हो जाती है।
जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने का तरीका
मिट्टी सिर्फ धूल नहीं है। उपजाऊ मिट्टी एक जटिल जीवित, संपन्न पारिस्थितिकी तंत्र (पर्यावरण) है जिसे हजारों वर्षों में बनाया गया है। वास्तव में, विज्ञान मिट्टी के बारे में बहुत कम जानता है। सदियों पहले, लियोनार्डो दा विंची ने कहा था: "हम मिट्टी की तुलना में आकाशीय पिंडों की गति के बारे में अधिक जानते हैं।" यह आज भी उतना ही सही है। एक चम्मच मिट्टी से कम में 10,000 से 50,000 प्रजातियां हो सकती हैं। उसी मिट्टी के एक चम्मच में, पृथ्वी पर जितने लोग मौजूद हैं उससे ज्यादा माइक्रोब्स (सूक्ष्म जीव) होते हैं। मुट्ठी भर स्वस्थ मिट्टी में, सिर्फ बैक्टीरिया समुदाय में जैव विविधता उस विविधता से अधिक है, जो कि पूरे अमेज़ॅन घाटी के सभी जानवरों में पाई जाती है।
पेड़ से गिरी हुई पत्तियां, तने, छाल, फूल आदि के रूप में जैविक पदार्थ और जानवरों से प्राप्त गोबर, दोनों मिट्टी का पोषण करते हैं। जब बहुत सारे पेड़ होते हैं, तो मिट्टी में जैविक सामग्री बढ़ जाती है, जो जमीन की नमी बनाए रखने की क्षमता को बढ़ाती है, और मिट्टी की उर्वरता में सुधार करती है जिससे फसल की बेहतर पैदावार होती है।
जलवायु परिवर्तन
स्थानीय और तात्कालिक लाभों की लंबी सूची के साथ-साथ, एग्रोफोरेस्ट्री का प्रभाव वैश्विक स्तर तक है। ग्रीन कवर (हरियाली) बढ़ने से ग्रीनहाउस गैसों को कम करने में मदद मिलती है। इससे ग्लोबल वार्मिंग और समुद्र के स्तर में वृद्धि को रोकने में भी मदद मिलती है। यह कार्बन डाइऑक्साइड और प्रदूषकों को सोखकर हवा को शुद्ध करता है। इससे सदियों,हजार सालों के दौरान ज़मीन के नीचे बहुत गहराई तक पानी पहुंचता है। एग्रोफोरेस्ट्री के साथ, किसान संगीत की तरह ही प्रकृति के साथ पूर्ण रूप से ताल मेल में रहता है।
"एग्रोफॉरेस्टर" कैसे बनें?
जब भी कोई किसान कावेरी कॉलिंग अभियान से एग्रोफोरेस्ट्री (पेड़ों पर आधारित खेती) के बारे में सुनता है, तो वह अधिक जानकारी के लिए 80009 80009 पर कॉल कर सकता है। एक स्वयंसेवक उसे अभियान डेटाबेस में पंजीकृत करता है, और फिर इच्छुक किसानों को जिला-स्तरीय बैठक में आमंत्रित किया जाता है।
इस बैठक में, किसानों को विस्तार से एग्रोफोरेस्ट्री(पेड़ों पर आधारित खेती) से परिचित कराया जाता है। इस मीटिंग में वन विभाग के प्रतिनिधि अधिकारी और लकड़ी व्यापारियों सहित कई प्रमुख लोग होते हैं। इसमें किसान लकड़ी उगाने और बेचने के बारे में मूलभूत चीज़ें सीधे जान सकता है।
एक बार जब कोई किसान अपने खेत के एक हिस्से को एग्रोफोरेस्ट्री में बदलने का फैसला करता है तो एक फील्ड वालंटियर(स्वयंसेवक) उसकी जमीन पे जाकर मिट्टी और पानी का परीक्षण करता है। और फिर यह निर्णय लेता है कि उसकी जमीन के मुताबिक कौन सी प्रजाति अच्छी है। एक बार जब किसान गड्ढों को खोद लेता है, तो उसे कावेरी कॉलिंग के समर्थक स्वयंसेवकों से पौधे और एक साल की खाद मिल जाती है। इसके लिए लागत औसतन 42 रूपए हैं, जो कि लोगों द्वारा कावेरी कॉलिंग(कावेरी पुकारे) अभियान में दिये गये डोनेशन से आते हैं।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि एग्रोफोरेस्ट्री में किसान का रूपांतरण सफल हो, कावेरी कॉलिंग में पहले साल जमीन का दौरा किया जाता है। नष्ट हो गये पौधों की मूल संख्या के 10% तक पौधों को नि: शुल्क बदल दिया जाता है।
इसके अतिरिक्त, किसान के लिए एग्रोफोरेस्ट्री में रूपांतरण को आसान बनाने के लिए, कावेरी कॉलिंग राज्य सरकारों को भी प्रस्ताव दे रही है कि वे एग्रोफोरेस्ट्री में जाने के पहले कुछ वर्षों के दौरान किसान को प्रोत्साहित करें। चूँकि कुछ वर्षों के बाद ही लकड़ी की
पैदावार होगी इसलिये किसानों को एग्रोफोरेस्ट्री में शिफ्टिंग की शुरुआती अवधि के दौरान कुछ समर्थन की आवश्यकता होती है। यदि वह इस अवधि में सरकार से प्रोत्साहन पता है और उसे कुछ वित्तीय सहायता मिल जाती है तो इससे उसकी वित्तीय स्थिति अच्छी और आरामदायक स्थिति में बनी रहेगी।
Our plan is to convert at least one third of farmland in Cauvery Basin into agroforestry in next 12 years. This will revitalize the agriculture & river dramatically. An economic plan with significant ecological impact. -Sg @gssjodhpur @PrakashJavdekar @kiranshaw #CauveryCalling pic.twitter.com/G9pSPe4wwJ
— Sadhguru (@SadhguruJV) July 15, 2019
Deeply appreciate the support & commitment of Chief Minister and Government of Karnataka for their support to #CauveryCalling. Their decision to incentivize Agroforestry in the state will go a long way in ensuring wellbeing of farmers & Mother Cauvery. -Sg @CMofKarnataka @BSYBJP pic.twitter.com/LBHk2uDIEz
— Sadhguru (@SadhguruJV) August 28, 2019
Our plan is to convert at least one third of farmland in Cauvery Basin into agroforestry in next 12 years. This will revitalize the agriculture & river dramatically. An economic plan with significant ecological impact. -Sg @gssjodhpur @PrakashJavdekar @kiranshaw #CauveryCalling pic.twitter.com/G9pSPe4wwJ
— Sadhguru (@SadhguruJV) July 15, 2019