साधनापद का जीवन -- क्या आध्यात्मिक लोग मज़े करते हैं ?
ईशा योग केंद्र में उत्सव मनाना जीवन का एक प्रमुख भाग है। पढ़ते हैं कि कैसे साधनापादा के प्रतिभागियों ने जन्माष्टमी, सद्गुरु जयंती, नवरात्री, गरबा एवं खेलों के माध्यम से आध्यात्मिक जीवन के इस भाग का अनुभव पाया।
32 देशों के 800 से भी ज्यादा प्रतिभागी अपने भीतरी विकास के लिये ईशा योग केंद्र के प्राण-प्रतिष्ठित स्थान में साथ-साथ आ कर 7 महीनों का समय बिता रहे हैं।
साधना और मस्ती(आनंद) एक ही वाक्य में साथ-साथ प्रयोग हो सकने वाले शब्द नहीं लगते। 'आध्यात्मिक साधना', ये शब्द अक्सर ऐसी छवि उभारते है जिसमें हमें सिर्फ कम वस्त्र पहने हुए साधु और शरीर को तोड़ने, मरोड़ने वाले आसन करने वाले दिखते हैं, जो अपने आसपास की दुनिया में न तो कोई रुचि रखते हैं न ही उसमें किसी प्रकार से शामिल होते हैं। पर साधनापादा में दो महीनों से भी ज्यादा समय बिताने के बाद, हम ये विश्वास के साथ कह सकते हैं, कि प्रतिभागियों के सामने इस झूठी सोच का पर्दाफाश हो गया है।
साधना इसलिये है कि आप जीवन से गहराई से जुड़ें। ये कई सारे तरीकों से किया जा सकता है पर उत्सव एवं खेल सबसे बढ़िया तरीके हैं।
उत्सवों में शामिल होना इतना सरल है
"आश्रम में शुरुआत के कुछ सप्ताह तक मेरे कपड़े धूल मिट्टी से खराब होते रहे और मेरा गुस्सा बढ़ रहा था क्योंकि जब भी मैं उन्हें धोता, दो घंटों में वे फिर वैसे ही गंदे हो जाते। फिर एक बार हम किसी उत्सव को मनाने मैदान में गये और मेरे शरीर और कपड़ों पर काफी मिट्टी लग गई। मुझे बहुत मजा आया क्योंकि हर कोई बहुत ही खुशी से, मस्ती के साथ उसमें भाग ले रहा था और उसमें पूरी तरह से शामिल होना, मग्न हो जाना बहुत आसान था। आज मैंने अपना शर्ट अच्छी तरह से धोने की बहुत कोशिश की, पर जब मैंने उसे देखा तो उस पर फिर भी मिट्टी के दाग थे। मैं हँस पड़ा और बोल उठा, ' ओह हो, अब कोई कर भी क्या सकता है' !!" ...... बारन, 35, मेलबोर्न, ऑस्ट्रेलिया
नवरात्री -- एक सांस्कृतिक दावत
सद्गुरु द्वारा 2010 में प्राण-प्रतिष्ठित की गई लिंग भैरवी देवी एक शक्तिशाली एवं उग्र स्त्री रूप हैं। वे उत्साह, उमंग और खुशहाली का स्रोत हैं और उनकी उपस्थिति ने आश्रम में एक अलग ही प्रकार के रंग की छटा भर दी है। नवरात्री के आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण एवं शुभ, मंगलमय अवसर पर लिंग भैरवी मंदिर में नवरात्री साधना, भैरवी की कृपा पाने के लिये ग्रहणशील बनने की एक खास प्रक्रिया के रूप में बनायी गयी है। साधनापादा के अधिकांश लोगों के लिये ये नौ दिन आश्रम के बहुत बड़े स्तर पर मनाये जाने वाले उत्सवों का पहला अनुभव था। बहुत से लोगों ने जीवन जीने का ये जबरदस्त अनुभव साझा किया है.....
देवी ने नशा चढ़ा दिया
"नवरात्री के पहले दिन ऐसा लग रहा था जैसे सारा आश्रम देवी की लाल शॉल से ढक गया है। ईशा के किसी भी कार्यक्रम की तरह, हर तरफ उत्साह का जबर्दस्त विद्युतीय वातावरण था। जैसे ही शाम होने को आयी, सूर्य कुंड में एक लंबी डुबकी लेने के बाद हम लिंग भैरवी मन्दिर की ओर भागे। वहाँ, सारा स्थान बहुत ही उत्साहपूर्ण, ऊर्जामय ढंग से चावल, हल्दी, कुंकुम, नारियल और बहुत सारी ऐसी भेंट की वस्तुओं से सजाया गया था, जिन्हें मैं पहचान न सका। शाम के संगीत की तैयारी कर रहे कलाकार एक दूसरे के साथ, इशारों से और दबी हुई आवाज़ से बातें कर रहे थे। हम सब चारों ओर बैठ गये। तभी घुंघरुओं की आवाज़ ने नृत्य कलाकारों के आने की आहट दी।
आखिर में पर्दे उठे और हम देखते ही रह गये। अपने दैवी स्थल पर उत्सव की गतिविधियों को देखती हुई अंतिम छोर पर अत्यंत प्रभावशाली और अद्भुत देवी भैरवी विराजमान थीं। देवी के दसों हाथ चूड़ियों से सजे थे और उनकी हमेशा गहरी काली दिखने वाली मूर्ति कुंकुम के गहरे लाल रंग से रंगी थी। ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने अपने असली रूप को उजागर किया हो। नवरात्री साधना लगातार बढ़ती हुई तीव्रता के साथ आगे चलती रही और देवी आरती के साथ संपन्न हुयी। मैं जब वहाँ से जाने के लिये उठा तो मैं पूरी तरह नशे की अवस्था में था। ...... सौरक, 22, महाराष्ट्र, भारत
नवरात्री में गरबा नृत्य
पारंपरिक गुजराती नृत्य 'गरबा' नवरात्री की रातों में पूरे जोश, उत्साह से किया जाता है और साधनापादा के प्रतिभागियों ने उसमें शामिल होने में एक मिनट की भी देर नहीं की। 4 अक्टूबर को वे सभी वहाँ चमकीली, रंगीन पोशाकों में, गरबा नृत्य की ताल, लय और तरीके को सीखने के लिये एकत्रित थे, जिससे वे सारी रात नृत्य कर सकें।
आश्रम में रहने का एक महत्वपूर्ण पहलू ये है कि आप खुद को हर चीज़ में आनंदमय ढंग से, पूरी तरह से झोंक देते हैं और गरबा नृत्य करना भी कोई अपवाद नहीं था। नृत्य से हम तरलता और पूरी तरह से भाग लेना सीखते हैं, जिससे हम खुद को आध्यात्मिक प्रक्रिया में भी पूरी तरह से और तन्मयता के साथ शामिल करना सीख जाते हैं।
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उत्सवों का मेरा सबसे पसंदीदा भाग
"यहाँ पर जब स्वामी ड्रम बजाते हैं तो मैं जैसे तुरंत ही अपने घर पर पहुँच जाता हूँ। ये लगभग अफ्रीकन लय की तरह ही है। वास्तव में सभी उत्सवों का ये भाग मेरा सबसे पसंदीदा भाग है। जब लोग ड्रम बीट पर थिरकना शुरू करते हैं तो मैं झूम उठता हूँ और मुझे बस ऐसे लगता है, "यही है, यही है, मैं इसी के बारे में बात कर रहा था, दोस्त"। मुझे इस भाग से बहुत प्यार है"। ... सिबुसिसो, 24, दक्षिणी अफ्रीका
मैं नाचना जानती ही नहीं
" ये पहली बार है कि मैं नवरात्री के नौ दिनों का उत्सव मना रही हूँ और मैं इस उत्सव के हर भाग में पूरी तरह से मस्त हो रही हूँ। पहले ही दिन लोक गीतों की धुन पर नृत्य करने से मैं अपने आप को रोक नहीं पायी। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मैं कभी शास्त्रीय संगीत और नृत्य का ऐसा मजा पाऊंगी। मैं नृत्य करना भी नहीं जानती, पर हर रात को मैं गरबा करने के लिये आदियोगी आलयम में जाती हूँ"। ....... एलिज़ा, 28, ओडिशा, भारत
अपनी सुबह की साधना के साथ कोई समझौता नहीं
"मैं इन सभी प्रक्रियाओं में पूरी तरह से शामिल हुयी, हर रात मैंने गरबा किया। इसका अनुभव बहुत ही सुखद, आनंददायक था और साथ ही थका देने वाला, तनावपूर्ण भी था और मैंने इस प्रक्रिया से बहुत सी नई चीज़ें सीखीं। मैंने अपने आप को इस सब में पूरी तरह से झोंक दिया था, लेकिन, साथ ही, सारी थकान के बावजूद भी अपनी सुबह की साधना के साथ कोई समझौता नहीं किया, वह पूर्ण रूप से होती रही है। यह सब एक जीत की तरह लगता है"। ..... शीतल, 42, उत्तर प्रदेश, भारत
सद्गुरु जयंती
"सद्गुरु जयंती के दिन मैं भिक्षा हॉल में सेवा कर रही थी और यह सुन कर बहुत उत्साहित थी कि उस दिन खाने के लिये 3000 लोगों के आने की उम्मीद थी। शुरुआत में मुझे थोड़ी भूख लगी थी और उस दिन परोसे जाने वाले मैसूर पाक तथा कई अन्य प्रकार के पदार्थों को देख कर मेरी भूख और भी ज्यादा बढ़ रही थी। लेकिन जब मैंने लोगों को आते देखा और जब मैं उन्हें खाना परोसा रही थी तो उनकी भूख मेरे लिये ज्यादा बड़ी प्राथमिकता बन गयी और मैं खुशी खुशी परोसती रही। मुझे ऐसा ही लग रहा था जैसे मैं अपने परिवार वालों और मित्रों को खाना परोस रही थी। मैंने जब उन महिलाओं को देखा जिनके साथ मैंने वृक्ष अभियान में काम किया था - और वे अच्छे वस्त्रों में तैयार हो कर आयीं थीं और बहुत खुश थीं - तो उन्हें खाना परोसने में मुझे जो खुशी मिली वो मेरे लिये ज़िंदगी भर की यादगार बन गयी"। .......... चैत्रा, 24, कर्नाटका, भारत
मस्ती के साथ योग
जैसे जैसे हम जीवन को एक खेल की भावना के साथ जीते हैं तो अपनी स्वयं की बनायी हुयी दीवारें स्वाभाविक ढंग से टूटने लगती हैं। कृष्ण एक ऐसे महान आत्मा थे, जिनका जीवन हर चीज़ में मस्ती के साथ पूर्ण रूप से शामिल होने का सर्वोत्तम उदाहरण है। तो ये स्वाभाविक ही था कि हमने उनका जन्म दिवस भी उसी पूर्ण आनंद की भावना और खूब गतिशीलता के साथ मनाया।
कृष्ण की मधुरता
"मेरे लिये जन्माष्टमी का दिन बहुत खास था क्योंकि मैं जब भी 'कृष्ण', ये ध्वनि सुनती हूँ तो मुझे ऐसा लगता है कि कोई ठंडी और सुवासित हवा का झोंका मुझे छू गया हो। मैने यह देखा है कि मुझमें खास तौर पर जिन चीजों के लिये सर्वाधिक प्रतिरोध है, जिन्हें करना मुझे ज्यादा चुनौतीपूर्ण लगता है, वही चीजें मुझे ज्यादा मजे के साथ, खेल खेलने की मस्ती के साथ करनी चाहियें"। ...... मिकुस, 32, रिगा, लैटविया
मैं पूरी तन्मयता से नाची
"कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव बहुत ही सुंदर था। खेलों ने मुझे इतना खुलने दिया कि मैं वहाँ पर बस उन्हीं क्षणों में थी और पेट पकड़ कर ऐसे हँस रही थी जैसे बच्चे हँसते हैं। उत्सव के उस समय में, जब ये खेल चल रहे थे, तब मैं अपने अंदर पूरी निर्दोषता का अनुभव कर रही थी। मैं उस दिन पूरी तरह से तल्लीन हो कर, तन्मयता से जैसा नृत्य कर रही थी, वैसा मैं पहले कभी नहीं नाची थी। उस दिन मैं खुद में बच्चों जैसी खेलने की ललक ला पायी थी"। ........ तिनाली, 31, महाराष्ट्र, भारत
खेल -- ईशा का एक अभिन्न अंग
सद्गुरु ने जब अपना पहला योग कार्यक्रम आयोजित किया था, तब से आज तक, खेल ईशा के एक अभिन्न अंग की तरह रहे हैं। अपने बंधनों को तोड़ने का ये सबसे अच्छा तरीका है जिससे लोग एकदम खुशी खुशी साथ आते हैं। एक सरल सा, साधारण सा खेल भी लोगों को ऊर्जामय एवं उत्साहित बना देता है। पूरी तरह तल्लीनता से शामिल हुए बिना खेलना असंभव है!
पूर्ण रूप से शामिल होने की बात ने मेरे मन को शांत कर दिया
"नालंदा मैदान पर खेलते समय मुझे याद आया कि जब हम बच्चे थे तो कैसे खेलते थे और कैसे बिल्कुल बेपरवाह होते थे ! मुझे खो - खो और चेन - चेन जैसे दौड़ने के खेलों में बहुत मजा आया। इन खेलों ने मुझे ज्यादा सावधान, ज्यादा सचेत और अगले काम के लिये ज्यादा तरोताज़ा बना दिया। मैं पूरी तरह से तल्लीन हो कर खेलों में शामिल थी और उन खास क्षणों में, जब मैं खेल रही थी, तब मेरे दिमाग में और कुछ नहीं था। मुझे नहीं लगता कि उस समय, वहाँ कोई भी ऐसा था जो पूरी तरह से भाग न ले रहा हो। वे कुछ लोग जो नहीं खेल रहे थे, वे सब भी उत्साहित थे, हमें भी उत्साहित कर रहे थे और खेल का पूरा मजा ले रहे थे"। .......... पूर्णिमा, 30, कर्नाटका, भारत
डमरू सेवा
लोग आश्रम में अपनी आध्यात्मिक यात्रा को आगे बढ़ाने के लिये आते हैं और यहाँ उन्हें मिलकर काम करने का एक अलग ही ढंग का आनंददायक वातावरण मिलता है। ये कारोबारी कामकाज के स्थान जैसा, किसी कॉरपोरेट कार्यालय जैसा नहीं है जहाँ किसी की कीमत बस इस आधार पर आँकी जाये कि उसने क्या दिया है, कितना दिया है ? आश्रम में सभी को चेतनामय होने के लिये और खुद को सेवा के माध्यम से समर्पित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
पर जब आप सेवा करते करते कुछ दब से जाते हैं या अपने आप को कहीं कुछ फँसा हुआ सा महसूस करते हैं तो आप के दिमाग को तरोताज़ा करने के लिये, आप के मूड को जीवंत बनाने के लिये, संगीतकारों का एक दल आता है, जिनके पास ड्रम और वाद्यों से निकलती मधुर ध्वनियाँ होती हैं। ये लोग डमरू सेवा करते हैं।
ये कोई कामकाज की सामान्य जगह नहीं है
"मैंने जब अपने सेवा स्थान के आसपास लोगों को ड्रम बजाते सुना, तो एकदम रोमांचित हो गई। वे दिन में बिल्कुल सही समय पर आते हैं, और मैं तरोताज़ा हो जाती हूँ, दोपहर की सुस्ती भाग जाती है। ये मुझे याद दिलाता है कि हर चीज़ को बहुत ज्यादा गंभीरता से नहीं लेना चाहिये। मैंने ये भी देखा कि मेरी पूरी टीम एकदम सरलता से जीवंत हो उठती थी। हर कामकाज की जगह पर ऐसा होना चाहिये।" ...... हरलवलीन, 28, ओंटेरियो, कनाडा
एक अलग प्रकार का उत्सव
"आश्रम में उत्सव मनाने का ढंग हमारे देश के उत्सवों से बिल्कुल अलग है। मैंने देखा है कि सांस्कृतिक अंतर बहुत बड़ा है। पश्चिमी जगत में पार्टी में हर कोई, एक व्यक्ति के रूप में होता है और हर समय खाना और शराब तो होते ही हैं। वहाँ हर कोई छोटे छोटे समूहों में होता है -- मैं इन्हें जानता हूँ, इन्हीं के साथ रहूँगा, दूसरों के साथ नहीं बोलूंगा -- यहाँ आश्रम में ऐसा नहीं है। सभी लोग आ कर एक हो जाते हैं और वहाँ जैसे कोई खुशी का बहाव ही बन जाता है"।...... बारन
पूर्णिमा रात्रि का संगीत सत्र
हर पूर्णिमा की रात को, आश्रम में सभी बत्तियाँ बुझा दी जाती हैं जिससे लोग बाहर आ कर पूर्णिमा के चन्द्रमा के शीतल प्रकाश का आनन्द लें। इस बीच ध्यानलिंग के सामने लिंग भैरवी की शानदार महा आरती होती है और फिर साउंड्स ऑफ ईशा द्वारा संगीत सत्र यहाँ की उत्सवप्रियता को बढ़ा देता है। 2018 के साधनापादा के प्रतिभागी स्टेवन ने इस मासिक उत्सव के अनुभव को कुछ इस तरह साझा किया......
"साधनापादा के दौरान मैंने पूर्णिमा के दिनों का बहुत आनंद लिया। रात के समय हम लोग बाहर चंद्रमा के प्रकाश में खाना खाते थे और बड़ा सा जुलूस निकलता था जिसमें अत्यंत भव्य अग्नि नृत्य होता था। ये सब बहुत ही सुहावना था"। ... स्टेवन, 22 जर्मनी
जीवन के प्रति बहुत ज्यादा गंभीर नहीं होना सीखना
सद्गुरु:आप अगर हर चीज़ के प्रति उत्सव मनाने जैसा दृष्टिकोण रखते हैं, तो आप जीवन में पूर्ण रूप से शामिल होने पर भी गंभीर नहीं बने रहते। अधिकतर लोगों के साथ अभी समस्या ये है कि वे अगर सोचते हैं कि कोई चीज़ बहुत महत्वपूर्ण है तो वे उसके बारे में बहुत ज्यादा गंभीर हो जाते हैं। अगर वे किसी चीज़ को महत्वपूर्ण नहीं मानते तो उसके बारे में वे लापरवाह हो जाते हैं - वे आवश्यक भागीदारी नहीं रखते। क्या आप को मालूम है, जब भारत में कोई कहता है, "वो बहुत गंभीर हालत में है" तो उसका अर्थ है कि वह बस कुछ ही पल का मेहमान है। बहुत सारे लोग गंभीर हालत में हैं। उनके साथ कोई महत्वपूर्ण बात अगर होनी है तो वो एक ही है, बाकी सब चीजें हो जायेंगी और उन्हें पता भी नहीं चलेगा क्योंकि वह जो उनके लिये गंभीर नहीं है, उसके साथ वे कोई भागीदारी नहीं दिखाते, कोई समर्पण नहीं रखते। सारी समस्या बस यही है"।
अगले अंक में....
अब, जब कि साधना का असर होना शुरू हो रहा है और हम देख रहे हैं कि साधनापादा में लोग स्थिर और संतुलित हो रहे हैं तो समय आ गया है कि साधना की तीव्रता बढ़ायी जाये!
संपादकीय टिप्पणी:साधनापादा के बारे में अधिक जानकारी के लिये और अगले दल में शामिल होने के लिये यहाँ रजिस्टर करें।here.