ईशा योग सेंटर के प्राण प्रतिष्ठित स्थान में अपने आंतरिक विकास के लिये 32 देशों से 800 प्रतिभागी एक साथ आते हैं।

Life in Sadhanapada - All Articles

मौन कार्यक्रम, सम्यमा, के बारे में विचार:

यह अवश्य ही एक रोलर कोस्टर यात्रा थी। जब ये कार्यक्रम शुरू हुआ तो मैं सोच रही थी, "हे भगवान, ये आठ दिन मौन रहना एक त्रासदी होगी!" पर जब ये समाप्त हो गया तो मुझे दुःख हो रहा था, "अरे, ये इतनी जल्दी पूरा हो गया!" इस बीच में, मुझमें एक जबरदस्त स्थिरता आ गयी थी। – .......नव्यता, 31, बैंगलोर

मैं इतनी ज्यादा स्थिरता महसूस कर रही थी कि मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मेरी साँस चल रही है या नहीं! पर मैं जानती थी कि मेरा जीवन धड़क रहा है - इतनी ज्यादा स्थिरता थी। तो, आज जब मैं कई लोगों से मिली तो वे कह रहे थे, "तुम्हारी त्वचा इतनी चमक रही है। वो क्या है जो इसे इतना चमका रहा है? और मैं कह रही थी, "सदगुरु!" – ......तिनाली, 31, मुम्बई

हर दिन एक पूर्ण जीवनकाल की तरह था, जो लगता था कि एक सेकंड में समाप्त हो गया है। ये एक अत्यंत समृद्ध, तीव्र, वन्य जीवन जैसा स्वच्छंद, पर कई तरह से अत्यन्त कोमल, सूक्ष्म अनुभव था। सम्यमा के कुछ पहले मैंने अपने मित्रों से कहा था, "अब सम्यमा पूर्ण होने तक मैं किसी से सम्पर्क नहीं करूंगी।" मैं अपने आप को मौन में रखकर तैयारी करना चाहती थी। कल मैंने उनको अपनी आँसुओं भरी आँखों के साथ ओठों पर मुस्कान वाली फोटो भेजी और कहा, "तुम लोगों के धीरज के लिये धन्यवाद! मैं इसे किसी भी और तरह से नहीं कर सकती थी।" – ....... जोवाना, 31, न्यूज़ीलैंड

"मैं सदगुरु की ओर देख रहा था और सोच रहा था, "मैं यहाँ कैसे आ गया?" सदगुरु के साथ उस स्थान में इतना समय बिताने का अनुभव मुझे बहुत ही अभिभूत कर रहा था। मैं इससे अभी भी अभिभूत हूँ और ये अभी समाप्त नहीं हुआ है। स्पष्टता और आनंद के इतने गहरे भाव अभी भी चल ही रहे हैं। –  ........ गैरी, 27, आयरलैंड

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

साधनापद और सम्यमा का मार्ग

सम्यमा की तैयारी कोई मजाक नहीं है। साधनापद के बिना मुझमें इतना अनुशासन नहीं आ पाता कि मैं इसे कर सकता। सामान्य दिनचर्या से लेकर, साधना का समय, मार्गदर्शन, सहारा, भोजन, इसके पहले बिताया हुआ साधनापद का सारा समय - एक तरह से ये सब वो कदम थे जिन्हें उठाकर मैं अपने आप को सम्यमा का लाभ पाने के लिये तैयार कर सका। – ...... इन्द्रदीप, 36, यूएसए

मैंने पिछले साल भी सम्यमा किया था जो इससे कहीं ज्यादा मुश्किल था। तब मैं आराम से बैठ नहीं पाता था और मेरा ध्यान भटक जाता था पर इन सात महीनों की तैयारी के बाद इस बार मैं बहुत आराम में था। शरीर कोई मुद्दा नहीं रह गया था। मैं पूरी तरह से सदगुरु और प्रक्रियाओं के साथ था। –  ...... रवि, 32, दिल्ली

साधनापद, हम यहाँ तक आ गये हैं, अब हम कहाँ जायेंगे?

सात महीनों के बाद, अब विदा लेने का क्षण अंत में आ ही गया है। हमारे प्रतिभागी जो इस बात से सराबोर हैं कि वे इतने आगे तक तक आ गये हैं, हमने उनसे पूछा कि अब वे कहाँ जायेंगे? हमने उनको उनके घोंसले की कगार पर खड़ा छोड़ दिया, जहाँ से वे उड़ान भर सकें......

मैं पूर्ण रूप से नहीं जानती कि साधनापद के बाद अब मैं क्या करूँगी? ये मेरा अपना चुनाव होगा कि मैं उसे आनन्दपूर्वक और जिम्मेदारी के साथ करूँ। कार्यक्रम के दौरान मुझे यह समझ प्राप्त हुई है। लगातार साधना करने का खुद के ऊपर प्रभाव भी मेरे अनुभव में आया कि कैसे इसने मेरी योग्यताओं को बढ़ाया? मैं सदगुरु एवं सभी स्वयंसेवकों के प्रति अत्यंत कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने हमारे लिये यह सब किया। – ....... कविता, 47, कोचीन 

ये सात माह मेरे लिये पूरी तरह से जीवन को बदलने वाले थे। मुझे कभी पता नहीं था कि ये मुझे इस तरह से बदल देगा। मुझे अभी कुछ पता नहीं है कि आगे क्या करना है? जो बदलाव मैंने अपने आप में देखे हैं, वैसे पहले कभी नहीं हुए थे और जिनके बारे में मैं सोच भी नहीं सकता था। ये सब बहुत अच्छी तरह से हुआ। अब तक मेरे जीवन में कुछ भी इतनी अच्छी तरह से नहीं हुआ है, चाहे मैंने कितने भी प्रयत्न किये हों। मैं जितनी भी कभी आशा कर सकता था, उससे ये बहुत ज्यादा है। अब मैं अपने आप को अत्यंत सहज अनुभव करता हूँ। अब आगे क्या करना है, यह सोचकर पहले की तरह मुझे घबराहट नहीं होती, न ही किसी काम को करने के पीछे मैं दौड़ता हूँ। देखते हैं, क्या होगा? – ...... शुभम, 19, इंदौर

साधनापद ने मुझे खुद का प्रबंधन करने की इतनी शक्ति और योग्यता दी है कि अब मैं कुछ भी आसानी से, बिना प्रयत्न किये हुए, कर सकती हूँ। मेरे पास बहुत सारे विचार हैं। मैं आई टी इंजीनयर हूँ और मैंने ऐकसेन्श्योर के साथ 7 वर्षों तक काम किया है। अपने पेशे में मैं बहुत सफल रही हूँ पर कुछ समय के बाद मैं एक ठहराव सा महसूस कर रही थी। तो अब मैं एक नये क्षेत्र मे नया कारोबार शुरू करने के बारे में सोच रही हूँ, जो न केवल मुझे आर्थिक लाभ देगा बल्कि समाज के लिये भी बहुत लाभदायक होगा। मैं जानती हूँ कि इसमें खतरा है पर जो होने वाला है, उसके लिये मुझे कोई डर नहीं।" – ...... तिनाली, 31, मुम्बई

कई सालों से मुझमें एक इच्छा रही है, जागरूकता पूर्वक जानने की जिज्ञासा रही है। अपने पेशे में, मैं सफलतापूर्वक आगे बढ़ रही थी और ऐसे मुकाम पर पहुँच गयी थी जहाँ मैं ऐश्वर्य भरा जीवन जी रही थी।आर्थिक रूप से अब मेरी बेटी भी स्वतंत्र है और उसका शिक्षण ऋण भी चुकता हो गया है। तो मैं उन प्रश्नों की ओर मुड़ी, जिनके उत्तर मैं कुछ दिनों से ढूंढ़ रही थी। कई बार लगता था कि मुझे मेरे प्रश्नों के उत्तर का स्रोत मिल गया है पर बाद में समझ में आता था कि ऐसा नहीं है। मैं अपने आप को दूसरों पर आश्रित एक जीव की तरह महसूस कर रही थी जो इस दुनिया में किसी को ढूंढ़ रहा हो - कोई ऐसा जो इस पर कुछ प्रकाश डाल सके - एक गुरु की तरह। मेरी खोज में गुरु शब्द नहीं था, पर फिर भी मैं ढूंढ़ रही थी। फिर, दो साल पहले, मेरे हाथ में सदगुरु के बारे में एक पुस्तक आयी। और... मैंने उन्हें ढूंढ़ लिया।

उस क्षण से, मेरे जीवन का उद्देश्य ही, किसी भी कीमत पर आश्रम में आना हो गया। अंत में मैं आश्रम में आ ही गयी। ये इतना सुंदर था। फिर साधनापद। फिर सम्यमा। अगर गुरु ही मेरी मंज़िल हैं तो मैं अपने आप को पूरी तरह से लगा दूँगी कि उनकी दूरदृष्टि के अनुसार, जैसे भी मैं कर सकूँ, अवश्य करूँ। – .......सोफ़िया, 42, दुबई

मैं और मेरी पत्नी आश्रम में पूर्णकालिक आना चाहते हैं। हम आश्रम के सिवाय कहीं और रहना नहीं चाहते। हमारे गुरु यहाँ हैं। हम बस उनके चरणों में रहना चाहते हैं। बस यही एक चीज़ है। मेरे अंदर कुछ बड़ा हो रहा है। मुझे इस प्रक्रिया को तेज करना है। मुझे अब बस यहीं रहना चाहिये। – ...... रवि, 32, दिल्ली

मेरे उद्देश्यों में, अब मेरी कोई इच्छा नहीं है सिवाय इसके कि मैं बस आश्रम का हिस्सा बन जाऊँ, ईशा का एक भाग हो जाऊँ। बस, ध्यानलिंग में, वो जो कुछ भी है, वो जैसा भी स्थान है, उसके ही निकट मुझे रहना है। मुझे वहाँ रोज रहने का अवसर मिले। बस यही बड़ी बात है। सदगुरु ने कहा है कि स्थानों को प्राण-प्रतिष्ठित करने के लिये उन्हें सहयोग देने के अवसर उपलब्ध हैं। यह स्थान मेरे लिये जो कुछ कर रहा है, मैं उसके साथ पूरी तरह से शामिल होना चाहता हूँ। मैं अपने लिये ब्रह्मचर्य के मार्ग के बारे में भी निश्चित रूप से सोचना चाहूँगा। पर उन उद्देश्यों पर मैं बहुत अधिक जोर नहीं दे रहा। अगर वे होते हैं तो हो जायेंगे, मैं उस दिशा में प्रयत्न करूंगा। – ......गैरी कावान्ध, 27, आयरलैंड

मैं जब यहाँ आया तो आई टी में 15 साल से काम कर रहा था। मैं अपने काम से बहुत खुश नहीं था। तब मैंने निश्चय किया, "मैं आश्रम में आऊंगा और वे मुझे जो कुछ भी कहेंगे, वो मैं करूंगा - बर्तन धोना, टॉयलेट साफ करना, कुछ भी, कोई फर्क नहीं पड़ता पर अब मैं आई टी नहीं करूंगा। लेकिन यहाँ जब सेवा का काम बाँटा गया तो मुझे आई टी ही मिला। मैं सोच रहा था, "अरे मैं इसके लिये यहाँ नहीं आया था।" निराशा से लटके चेहरे के साथ मैं अपनी पहली सेवा के लिये गया था। पर अब मुझे ये स्वीकार करना होगा कि पिछले कुछ महीनों में मुझे इस काम से प्यार हो गया है। साधनापद में मैंने जो सीखा है, उसके अनुसार मैं एक मनुष्य के रूप में जितना विकसित हुआ हूँ, उसने पूरी तरह से मेरी समझ को बदल दिया है कि मैं क्या कर रहा हूँ और मैं कैसा हूँ?

साधनापद ने जो किया है, कम से कम पिछले कुछ महीनों में, मुझे किसी भी नयी परिस्थिति को अच्छी तरह से संभालने के लिये तैयार कर दिया है। यहाँ एक सही मात्रा में संगठन है और बाकी सब कुछ ज़रूरी करने की स्वतंत्रता मिलती है जिससे रचनात्मक रूप से समस्या का समाधान ढूंढ़ा जाये, लोग पूरी तरह से शरीक हों और वो करें जो आवश्यक है। हम इस प्राण-प्रतिष्ठित स्थान की ऊर्जा से चारों तरफ से भरे हुए हैं और हाँ, यह हमें पूरी तरह से वापस खींचती है। तो, मैं वापस आऊँगा। – ....... इन्द्रदीप, 26, यूएसए

हम साधनापद के प्रतिभागियों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं कि उन्होंने अपने विकास के लिये, अपने सात महीनों का समय यहाँ लगाया। स्वयं के विकास के लिये काम करते हुए उन्होंने अपने आनंद से, अपने प्रयत्नों से, अपनी भागीदारी से और अपने शांत, आनंदपूर्ण मौन से ईशा योग केंद्र को समृद्ध किया है।

Editor’s Note: Registration are now open for Sadhanapada here.