साधनापदा में जीवन : पसंद और नापसंद के परे जाना
ईशा योग केंद्र, कोयंबतूर के प्राण-प्रतिष्ठित स्थान में 32 देशों के 800 से भी ज़्यादा प्रतिभागी, अपने भीतरी विकास के लिये सात महीनें बिताने के लिये इकट्ठा हुए हैं।
ईशा योग केंद्र, कोयंबतूर के प्राण-प्रतिष्ठित स्थान में 32 देशों से, 800 से भी ज़्यादा प्रतिभागी, अपने भीतरी विकास के लिये सात महीनें बिताने के लिये इकट्ठा हुए हैं, जिससे वे साधना पर आधारित तनावमुक्त और आनंदपूर्ण जीवन की रचना कर सकें। सभी प्रतिभागी साधना के तीव्र एवं अनुशासित कार्यक्रम का नियमबद्ध पालन करते हैं। अपनी कुशलता के हिसाब से वे ईशा के कार्यों में अपना योगदान देते हैं, और आश्रम में होने वाले ईशा के अनेक उत्सवों तथा आयोजनों में अपने आप को डुबो देते हैं। इस ब्लॉग सीरीज में हम आपको उनकी यात्रा में आने वाले उतार चढ़ावों की परदे के पीछे की कहानी दिखायेंगे।
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एक आठ दिवसीय, तीव्र ओरिएंटेशन (उन्मुखीकरण/अनुस्थापन) कार्यक्रम में प्रतिभागियों को हठयोग अभ्यास सिखाए गए तथा इनर इंजीनियरिंग की मूल बातों पर फिर से गौर किया गया, जिसके बाद वे सब आश्रम के जीवन की तीव्रता में कूद पड़े। खुद को सेवा में समर्पित करना और उसमें पूरी निष्ठा के साथ जुड़ जाना - विशेष रूप से ईशा योग केंद्र के शक्तिशाली रूप से प्राण-प्रतिष्ठित स्थान में - अपने आप में एक ज़बरदस्त रूपांतरण लाने वाली प्रक्रिया हो सकती है।
योगिक अभ्यासों के अलावा, सेवा साधनापादा कार्यक्रम का एक मुख्य/अनिवार्य पहलू है। कुछ प्रतिभागी ध्यानलिंग तथा लिंग भैरवी मंदिरों में सहयोग देते हैं, अन्य ईशा के रसोईघर 'अक्षय' में मदद करते हैं जब कि बाकी के लोग प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग, सामाजिक कार्यों, ग्राफिक डिज़ाइन, रचनात्मक लेखन, अनुवाद, वीडियो संपादन, सोशल मीडिया, आई.टी. आदि कार्य में हाथ बढ़ाते हैं। वे अपने आप को महत्व न देते हुए, खुद को अलग रख कर, जो ज़रूरी है वही करते हैं।
साधनापादा में दैनिक कार्यक्रम सुबह 4.30 बजे उठने से शुरू होता है और रात को 9.30 पर समाप्त होता है। प्रतिभागियों को निर्देशित साधना सत्रों/सेशन, तीर्थकुंड में डुबकी, ध्यानलिंग, लिंग भैरवी मंदिर, आदियोगी परिक्रमा और नियमित योग अभ्यास/क्रिया-सुधार सत्रों के लिये उचित समय दिया जाता है।
सबकुछ अपेक्षाओं के अनुसार नहीं होता। कभी-कभी अपेक्षाओं और वास्तविकताओं में टकराव हो जाता है। बूम!
"मुझे लगा था कि हम झोपड़ी में रहेंगे और फल खायेंगे"
मुझे लगा था कि आश्रम में मुझे झोपड़ी में रहना होगा और खाने के लिये बस फल मिलेंगे और नदी से ला कर पानी पीना होगा। मुझे ये भी लगता था कि ये सदगुरु का आश्रम है, तो पानी शुद्ध न भी हो तब भी वह उर्जावान अवश्य होगा। मैं सोच रहा था कि ये कोई छोटा सा आश्रम होगा पर ये जगह तो विशाल और बहुत सुंदर है। मैं जब पहली बार वेलकम पॉइंट पर बैठा था तो हर चीज़ को बस देखते ही रहने से अपने आप को रोक नहीं पा रहा था। जिन कमरों में हम सो रहे हैं वे बहुत अच्छे से रखे गये हैं और हम यहाँ निःशुल्क रहते हैं। भोजन बहुत ही स्वादिष्ट है! मैंने शाकाहारी खाने के इतने प्रकार कभी नहीं देखे थे और इतनी अच्छी तरह रहने की आशा नहीं की थी। सब इतनी सावधानी से बनाया गया है जो हमारी साधना के लिये सहायक है। मुझे इस जगह से प्यार है!..... भीम, 18, झारखंड.
"हर परिस्थिति मेरे लिये आगे बढ़ने की सीढ़ी है”
साधनापादा से पहले, मेरे लिये साधना का मतलब सिर्फ हठ योग और क्रियायें करना ही था। मेरी क्रियाओं के अलावा कोई साधना नहीं थी। अब हर चीज़ साधना हो गयी है और मेरे विकास का साधन बन गयी है, चाहे वह अपने कमरे की सफाई करना हो, किसी की मदद करना, कठिन परिस्थितियों में से गुजरना या फिर चाहे भोजन करना और सोना। मैं हर परिस्थिति को अपने विकास के लिये आगे बढ़ने का मार्ग ही समझता हूँ। इसने न सिर्फ मेरे जीवन के अनुभवों और काबिलियतों में सुधर हुआ है, बल्कि इसने मुझे यह भी सिखाया है कि कैसे हर परिस्थिति को सब के लिये लाभदायक बनाया जा सके। - मानसन, 21, कैनेडा।
"यह कोई आध्यत्मिक छुट्टी नहीं है"
किसी छुट्टी से विपरीत, जहाँ मनोरंजन या आराम के लिए लोग जाते हैं, साधनापादा विकास की एक तीव्र प्रक्रिया है जिसे सावधानी से तैयार किया गया है जो हमें हर दिन विकसित होने के लिये लगातार चुनौती देती रहती है। प्रतिभागियों को अक्सर वो करने के लिए नहीं मिलता जो वे करना चाहते हैं। वास्तव में कई लोगों को यह महसूस हुआ है कि उन्हें 'जादुई ढंग से' ऐसी परिस्थितियों में रखा गया जहाँ उनका सामना अपनी सीमाओं और अनिच्छाओं से हुआ। आत्म परिवर्तन की इस यात्रा के लिये आप में दृढ़ - निश्चयता, धैर्य और साहसी काम करने की सक्रीय भावना आवश्यक है।
"मैंने अपनी एक बहुत बड़ी नापसंद पर विजय पा ली"।
मुझे याद है जब मैंने पहली बार करेला चखा तो मुझे विश्वास नहीं हुआ कि कोई चीज़ इतनी कड़वी कैसे हो सकती है, और मैंने इसे खाने से मना कर दिया। लेकिन अगली बार जब थाली में करेला आया तो मुझे याद आया कि भोजन का मेनू सदगुरु ने तैयार किया है। तो मैंने तय किया कि मुझे उनके फैसले पर भरोसा रखना चाहिये। न केवल मैंने करेले के सभी टुकड़े खा लिये बल्कि मैंने उन्हें धीरे धीरे, चबाते हुए जागरुकतापूर्वक खाया। मुझे यह बहुत अच्छा लगा कि मैंने अपने ऊपर नियंत्रण पा लिया था और अपनी एक बड़ी नापसंद पर विजय पा ली थी।
ता. क. : बाद में मैंने गूगल पर करेले के बारे में पढ़ा तो मुझे यह देख कर बहुत ज्यादा आश्चर्य हुआ कि करेले में इतने ज्यादा पोषक तत्व तथा स्वास्थ्य संबंधी गुण हैं।
- ...... समांता, 27, हैती।
"पसंद और नापसंद से ऊपर जाने की शुरुआत"
मुझे साधनापादा की दिनचर्या बेहद पसंद है। इससे मैं दिन भर के लिये योजनायें बनाने और उन पर अमल करने की बेकार की गतिविधि से बच जाती हूँ। मुझे पता है कि मुझे सुबह कब उठना है, रात को कब सोना है, दिन में किसी भी समय पर कहाँ और कब पहुंचना है। मुझे इस बात की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है कि मैं खाने के लिये क्या बनाऊँ। मुझे यह भी पता है कि मुझे मौन कब रहना है। इससे मेरा सारा दिन बहुत आसान और कुशल बन जाता है। मेरा दिन 16 - 17 घंटे का होता है और मुझे इसके लिये कोई योजना भी नहीं बनानी पड़ती, बस दी गई दिनचर्या के अनुसार चलना होता है।
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मुझे शुरुआत में मौन समय बनाय रखने में थोड़ी कठिनाई हुई पर जब एक बार मैंने उसे स्वीकार कर लिया तो यह सही हो गया। मैंने अपने आप से कहा कि मैं यहाँ इसीलिये तो आयी हूँ और मुझे याद है, सदगुरु के साथ हमारे पहले ही सत्र में, उन्होंने हमसे पूछा था कि क्या हम वे सब कुछ स्वीकार करने के लिये तैयार हैं जो हमसे करने के लिये कहा जाये, फिर भले ही वह बात तार्किक रूप से सही न लगे? तब मैंने उन्हें हाँ कहा था और अब पीछे मुड़ने का कोई सवाल ही नहीं है। धीरे-धीरे, पर निश्चित रूप से मैं अपनी पसंद और नापसंद से ऊपर जाने की शुरुआत कर रही हूँ।
- इंदु पेरुरी, 34, कैलिफोर्निया
विकल्पों से निर्विकल्पता की ओर
अपनी सुविधा के क्षेत्र से परे बिताया गया प्रत्येक क्षण विकास के लिये एक अवसर होता है, और यह कोई संयोग की बात नहीं है कि साधनापादा ऐसी संभावनाओं से भरपूर है, समृद्ध है। साधनापादा की आनंदपूर्ण निर्विकल्पता, जिसमें कुछ भी पसंद-नापसंद नहीं है, एक ऐसा भीतरी माहौल गढ़ने का काम करती है जो आध्यात्मिक प्रक्रिया को शुरू करने और सफल बनाने में मददगार है। यह झटके दे कर चलने वाली प्रक्रिया हो सकती है, जैसे कि कोई रोलर कोस्टर राइड हो। इसमें प्रतिभागियों को बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे परिवार से सात महीनें दूर रहना, दिन में केवल दो बार खाना, पहले के मुकाबले कम सोना और अलग-अलग तरह के लोगों के समूह में रहते हुए, सामाजिक विचार - विनिमय, बातचीत करना।
"मैं अपने स्मार्टफोन की लत पर जीत पाने का प्रयास कर रहा हूँ"।
आश्रम में आने के बाद मुझे अपनी एक मजबूरी का पता चला वह है स्मार्टफोन की लत। मुझे कभी नहीं लगा था कि मुझे इसकी लत लग सकती है क्योंकि मैं फोन का उपयोग बहुत कम करता हूँ, और मैं उनमें से नहीं हूँ जो हमेशा सोशल मीडिया पर व्यस्त रहते हैं, लेकिन अब मुझे लगता है कि फोन का एकदम कम प्रयोग करना बहुत कठिन है। सेवा करने के संदर्भ में जब मैं व्हाट्सअप खोलता हूँ तब अन्य ग्रुप्स के संदेशों को देखता हूँ तथा अन्य लोगों के संदेशों के जवाब देता हूँ। मैं यू ट्यूब पर सदगुरु के वीडियो भी देखता रहता हूँ, भले ही यह मेरी सेवा का हिस्सा नहीं है।
मैं अपनी इस मजबूरी पर विजय पाने का प्रयास कर रहा हूँ। हर समय जब मैं स्मार्टफोन का उपयोग करता हूँ तो अपनी जागरुकता बनाये रखता हूँ और इसके बारे में मानसिक रूप से सचेत रहता हूँ कि मैं क्या कर रहा हूँ और मुझे क्या करना चाहिये।
- .......कीर्तन गज्जर, 23, गुजरात।
"मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी है पर सेवा के रूप में मैं वही काम कर रही हूँ"
साधनापादा में आने के लिये मैंने अपनी डॉक्टर की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया, लेकिन मुझे बहुत ही आश्चर्य हुआ जब सेवा के रूप में मुझे वही काम करने को कहा गया। सेवा में स्थिर होने में मुझे संघर्ष और भीतरी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा क्योंकि मैं कुछ बदलाव की आशा कर रही थी। लेकिन, अब धीरे धीरे स्थिति बदल रही है। सेवा और दिन के अन्य कार्यों में जब बाहरी परिस्थिति अनुकूल नहीं होती तब मैं बस इनर इंजीनिरिंग के साधनों का उपयोग करती हूँ।
जैसे जैसे मैं सेवा को साधना के रूप में देख रही हूँ, मेरे अंदर का प्रतिरोध कम होता जा रहा है। पहले जब लोग कहीं भी और किसी भी समय अंतहीन प्रश्न पूछने लगते थे, तो मुझे बहुत परेशानी होती थी, पर अब मैं उनके प्रश्नों का जवाब धैर्यपूर्वक और चेहरे पर मुस्कान के साथ दे पा रही हूँ।
-डॉ. सिमी दास, 29, आसाम।
"सरल दिशानिर्देशों से मुझे विकसित होने में मदद मिल रही है"
मेरे मन में सदगुरु और यहाँ के सारे व्यक्तियों के लिये अपार कृतज्ञता का भाव है कि वे मुझे इस जगह में रहने दे रहे हैं, मुझे पोषित कर रहे हैं और बहुत से तरीकों से विकसित होने का मौका दे रहे हैं। जब मैं चारों ओर देखती हूँ और उन लोगों को देखती हूँ जो न सिर्फ अपनी, बल्कि प्रत्येक की खुशहाली के लिये प्रतिबद्ध हैं तब मेरी आँखों में बस आँसू आ जाते हैं।
आश्रम के हरेक भाग में बस साधना ही है, सिर्फ सुबह शाम की क्रियाओं में ही नहीं बल्कि हमारे द्वारा की जाने वाली हरेक गतिविधि में भी और हर उस परिस्थिति में जिसमें हम पहुँच जाते हैं। पालन करने के लिये हमें जो सरल दिशानिर्देश दिये गये हैं वे मेरे भीतरी विकास के लिए, एक बड़े रूप में योगदान दे रहे हैं।
मैं तो यह सोचने की शुरुआत भी नहीं कर पा रही हूँ कि इस तरह का बड़ा स्थान बनाने और उसे बनाये रखने के लिये किस तरह के लोग ज़रूरी हैं?
-वैष्णवी, 26, तेलंगाना
"ये मुझे किस तरह से बदलेगा"?
साधनापादा का पहला महीना समाप्त होने वाला है और प्रतिभागी ऐसी परिस्थिति में हैं जहाँ वे अनजाने भीतरी क्षेत्र और अपरिचित बाहरी परिस्थितियों की खोज कर रहे हैं। कभी कभी उन्हें संदेह, उलझन और वास्तविकताओं का सामना कराने और विनम्र बनाने वाली प्रक्रियाएं भी मिलती हैं। कुछ लोगों के लिये यह जानकारी ही काफी है कि यह कार्यक्रम सदगुरु ने स्वयं तैयार किया है। फिर, यहाँ ऐसे लोग भी हैं जो हर समय ज्यादा स्पष्ट, तीव्र और संतुलित रहने की अपेक्षा कर रहे हैं ( और हमें आशा है कि वे इसके लिये प्रयत्न भी कर रहे हैं)। कुछ लोग इस साधनापादा की यात्रा का आनंद ले रहे हैं।
जब उनके सामने नयी चुनौतियाँ आती हैं, अपनी ही मजबूरियाँ और सीमायें दिखती हैं तथा मन की चालाकियों से सामना होता है तब कभी-कभी ऐसे विचार भी आते हैं जो अहानिकर प्रतीत होते हैं, "यह सब... कैसे मुझमें बदलाव लायेगा"? आईये, हम एक ऐसे व्यक्ति से सुनें जो 2018 के साधनापादा में, इन सब से गुज़र चुका है.....
साधनापादा के एक पूर्व प्रतिभागी के अनुभव
मैंने जब साधनापादा के लिये आवेदन किया था तो मुझे कुछ पता नहीं था कि मैं क्या करने जा रहा हूँ। मैं उत्साहित और घबराया हुआ था पर मेरा निश्चय दृढ़ था कि मैं यह सुनिश्चित करूँगा कि अपने शेष/बाकी के जीवन में मैं अपने शरीर और मन पर पूरा नियंत्रण रखूँगा।
कार्यक्रम के दौरान मेरी भावनाएं और मेरे विचार हज़ारों तरह की बातें करते थे और यहाँ आने और रोज़ सेवा एवं यौगिक क्रिया करने के मकसद पर सवाल उठाते थे। मुझे यह समझने में कठिनाई हो रही थी कि सिर्फ नियमों और निर्देशों का पालन करने से मुझमें बदलाव कैसे आ जायेगा। अब, जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो समझ में आता है कि वे सात महीनें का समय मेरे जीवन का सबसे अधिक फलदायक/लाभदायक समय था और यह लाभ मुझे घर, कॉलेज या काम से नहीं मिल सकता था। आश्रम में जो सहयोगी व्यवस्था है वह अनमोल है। अन्य आध्यात्मिक जिज्ञासुओं के साथ खुशी-खुशी काम करने से आध्यात्मिक प्रक्रिया के बारे में मेरी समझ पूर्ण रूप से उलटी-पुलटी हो गयी।
जब मैं घर वापस आया तभी समझ पाया कि साधनापादा में होने से मुझे एक ठोस/दृढ़ आधार मिल गया है जिससे बाहरी परिस्थिति चाहे जैसी हो, यह मैं तय करूँगा कि मुझे कैसे रहना है।
-गौरव, 29, राजस्थान
सदगुरु का पसंद और नापसंद के बारे में स्पष्टीकरण
सदगुरु:आप की पसंद और नापसंद, आपके व्यक्तित्व की निर्माण सामग्री है। आप जिसे अपना व्यक्तित्व कहते हैं वह आप की पसंद और नापसंद की एक जटिल व्यवस्था/प्रणाली है। आप में और किसी दूसरे व्यक्ति में क्या अंतर है ? बस, आप की और उनकी पसंद और नापसंद अलग अलग है। योग का आधार आप को आपकी पसंद और नापसंद के परे जाने में सहायता करना है। हम यहाँ जो कर रहे हैं वह मूल रूप से पसंद और नापसंद करने की प्रक्रिया को नष्ट करना है। तर्क करने वाला मन कहता है, "मुझे जो पसंद है मैं वह करूँगा, ये मेरी स्वतंत्रता है"। आप के बंधनों का आधार ही आप की पसंद और नापसंद में है, लेकिन आप का मन आप को यह विश्वास दिलाता है कि जो पसंद हो वो करने में आप की स्वतंत्रता है।लोगों के स्वतंत्रता के बारे में यही बचकाने विचार हैं। "मैं वही करूँगा जो मैं करना चाहता हूँ"। लेकिन यह स्वतंत्रता नहीं है, यह मजबूरी है। स्वतंत्रता का वास्तव में क्या अर्थ है ? स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि आप के अंदर कोई मजबूरियाँ नहीं हैं। इसका अर्थ यह है कि जो भी करना आवश्यक है वह आप आनंदपूर्वक कर सकते हैं।
साधनापादा के कुछ प्रतिभागी अपने सेवाकार्य को एक चुनौती के रूप में देख रहे हैं और इसकी विभिन्नताओं को, इसके अलग अलग प्रकारों को पसंद कर रहे हैं, जबकि कुछ अन्य लोगों को यह पता चल रहा है कि वे अपने भूत काल की छाया में जी रहे हैं। ईशा योग सेंटर में वॉलिंटियरिंग/स्वयंसेवक गतिविधियाँ सरल चीजों से ले कर अत्यंत जटिल प्रक्रियाओं तक की होती हैं और यह सब आश्रम के अंदर और उसके बाहर भी लोगों पर असर करती हैं।
इसके बाद.......
इस श्रृंखला के अगले भाग में वॉलिंटियरिंग/स्वयंसेवा तथा कावेरी कॉलिंग अभियान के माध्यम से पूरे विश्व के पर्यावरण की बेहतरी के कार्य में जुड़ने के बारे में साधनापादा के प्रतिभागियों के अनुभव पढ़िये।
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