ध्यानलिंग प्राण प्रतिष्ठा से पहली हुई कर्म यात्रा
ध्यानलिंग की प्राण प्रतिष्ठा के एक अंग के रूप में, प्रक्रिया में शामिल अन्य लोगों के कर्म बंधन को तोड़ने के लिए कुछ खास कदम उठाए गए।
सदगुरु: यह संपूर्ण प्रक्रिया उन दो लोगों के लिए थी जो ध्यानलिंग प्रतिष्ठा में सक्रिय रूप से शामिल थे। प्रक्रिया के दौरान यह पाया गया कि कुछ खास कार्मिक बंधन, कुछ खास बाधाएं हैं, जो उन्हें एक सीमा के आगे नहीं बढ़ने दे रही हैं। इसीलिए हम इस यात्रा पर गए, जिसमें पिछले जीवन से जुड़ी कई जगहें शामिल थीं - जैसे उड़ीसा, कडप्पा, वगैरह। इस जीवन में, हम इन जगहों पर इसके पहले न कभी गए थे और न ही कभी देखा था, आप यह चीज़ समझें। मैं बस इतना कहता था कि वहाँ एक जगह है - कुछ खास मंदिर, पुराने घर - उनके बारे में इस तरह बताता था और उन दोनों से कहता, ”चलो वहाँ चलते हैं।” मध्यप्रदेश के रायगढ़ में ठीक ऐसा ही हुआ। आखिर तक मुझे उस शहर का नाम तक पता नहीं था। हम गाड़ी में जा रहे थे और अचानक मैंने कहा, ”जिस जगह की हम तलाश कर रहे हैं वह रायगढ़ में ही होगी।” फिर हमने नक्शे में रायगढ़ को ढूँढ़ा और वहाँ गए । जैसे ही हम वहाँ पहुँचे, कुछ मिनट के अंदर ही हम उस जगह पर थे, जिसका मैंने कुछ देर पहले वर्णन किया था। वह एक बहुत शक्तिशाली अनुभव था। ये दोनों लोग जीवन से बहुत तीव्र गति से गुजरे, एक के बाद एक घटनाएँ फटाफट होती चली गई; उनके पिछले जीवन की तमाम घटनाएँ बस सामने आती गईं। ये घटनाएँ तीन सौ सत्तर साल पहले हुई थीं। अब, अगर आप वहाँ जाकर लोगों से पूछताछ करेंगे तो कई तथ्यों की, जिनके बारे में हम अपने अधिकतर साधकों से पहले ही जिक्र कर चुके हैं, वहाँ के रहने वाले लोगों ने पुष्टि की। इस जीवन में, हम वहाँ इसके पहले कभी नहीं गए थे, लेकिन हम जानते थे। वे सभी दूसरी जगहें, जैसे कि कडप्पा, संबलपुर भी वैसे ही थे। हमें यह ठीक-ठीक पता होता था कि कहाँ जाना है, क्योंकि हम जैसे ही उस जगह के नजदीक पहुँचने लगते थे, कंपन कुछ ऐसे होते थे कि हमारे पिछले संपर्क हमें बस वहाँ खींच ले जाते थे। छह दिनों में हमने पाँच हजार दो सौ किलोमीटर गाड़ी चलाई। शहर में घुसने से पहले, मैं उस जगह का बिल्कुल ठीक-ठीक वर्णन करता था, जिससे कि इन दो लोगों के मन में भी शंका पैदा न हो। उनको यह नहीं सोचना चाहिए कि वे सिर्फ उन चीजों की कल्पना कर रही हैं। मैं उन्हें बताता था कि जब तुम लोग उस जगह पर जाओगी तो वहाँ का स्पंदन कैसा होगा, कौन सा चक्र जागृत होगा, मैं उन्हें हर चीज बता देता था, और उनके अनुभव में वह ठीक वैसा ही होता था; वह जरा भी अलग नहीं हो सकता था।
जैसा कि मैंने उस दिन कहा था, मेरी बस यही कामना थी कि हर कोई प्रक्रिया में इस तरह से भाग ले सके। हर बार जब हम एक चरण पूरा करते, हम हमेशा यह महसूस करते थे, ”अगर हम सभी ब्रह्मचारियों को शामिल कर सकते तो यह कितना शानदार होता,” लेकिन इतने सारे लोगों को उस स्तर की समझ और भागीदारी में लाना मुश्किल होता है। यह आसान नहीं है। तो इस तरह से चीजें हो रही थीं और जब हम कर्म यात्रा पर निकले, यह उन दोनों के लिए एक जीवंत अनुभव बन गया। हम जहाँ कहीं भी गए, वो जगहें असल में उनमें से एक के ही पिछले जीवन से जुड़ी हुईं थीं, दूसरे के साथ नहीं, लेकिन हमने उन जगहों को चुना क्योंकि वे आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण थीं। हम तमामों दूसरी जगहों को भी चुन सकते थे, जिनसे दोनों का अतीत जुड़ा हो, या जहाँ पर दोनों का अतीत अलग-अलग जुड़ा हो, लेकिन हम उन जगहों पर जाना चाहते थे जो आध्यात्मिक महत्व के थे। हमारे वहाँ जाने के बाद उन दोनों के लिए आध्यात्मिक आयाम एक जीवंत अनुभव बन गया। तो वे दोनों जब इस तरह की प्रक्रियाओं से होकर गुजरीं, वे सभी संरचनाएँ जो उन्हें रोके हुए थीं, हिलकर ढीली पड़ गईं। फिर प्रतिष्ठा बहुत आसान हो गई। कार्मिक बंधन को तोड़ने की इच्छा इससे पहले भी थी और उसके लिए साधना की जा रही थी; लेकिन इस कर्म यात्रा ने एक ‘बूस्टर’ का काम किया।