आत्म ज्ञान पाना है तो चलें किस राह?
आध्यात्म की राह के हर राही की एक ही चाह होती है - आत्म ज्ञान की प्राप्ति। इसके लिए लोग अलग-अलग तरीके से काम करते हैं, कोई ज्ञान के स्तर पर, कोई चेतनता के स्तर पर तो कोई ऊर्जा के स्तर पर। किस राह पर क्या मुश्किलें हैं और कौन सी राह आसान है?
मन का काम करने का तरीका कर्मों से निर्धारित होता है
सदगुरु: अगर कभी आप अपनी जिंदगी को और उसको जीने के तरीके को गौर से देखें तो आप पाएंगे कि आप कुछ बाध्यकारी भावनाओं के वश में हैं। एक तरह से कह सकते हैं कि कुछ भावनाएं आपके ऊपर शासन करती हैं। उदाहरण के तौर पर, किसी खास दिन या किसी विशेष अवसर पर आप चाहते हैं कि आप शांत रहें, लेकिन उस दिन क्रोध आपके ऊपर हावी हो जाता है। आपको उस दिन बिना किसी कारण बात-बात पर गुस्सा आता है। गुस्से का लेना देना न किसी चीज से होता है न किसी व्यक्ति से होता है। यह एक भावना है जिसने आपको विवश कर दिया है। अब जो भी आपके आस-पास होता है वह इसका शिकार हो जाता है। दरअसल आपकी इस भावना को किसी की जरूरत नहीं होती। पेड़ों पर भी आप गुस्सा कर सकते हैं।
लोग पूरी जिंदगी इन चीजों को काबू करने की कोशिश करते हैं, लेकिन कुछ भी नहीं बदलता है। मन का जो काम करने का तरीका है, वह कार्मिक तत्वों से निर्धारित होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि मन बस एक ढेर है, एक संग्रह है। जिस भी तरह का संग्रह आपके पास होगा मन उसी तरह से काम करेगा।
मन को रूपांतरित करना भ्रमकारी हो सकता है
जिस तरह का संग्रह हमारे भीतर मौजूद है, उसकी वजह से हमारे अंदर कुछ बाध्यताएं बन जाती हैं। अगर कोई इन बाध्यताओं से परे जाना चाहता है तो उसे चेतनता के एक अलग स्तर तक उठना पड़ेगा जहां वो इन बाध्यताओं से मुक्ति पा लेगा। या दूसरा तरीका यह है कि उसे अपनी ऊर्जा को रुपांतरित करना पड़ेगा। चेतनता को ऊंचे स्तरों तक उठना सामान्यतः बहुत भ्रमकारी होता है। सभी लोग यह सोचते हैं कि उनकी चेतनता का स्तर बहुत ऊंचा है। लेकिन अगर उनकी जांच की जाए तो नतीजों से वे बुरी तरह निराश हो जाएंगे।
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चेतन होने का अर्थ है, बाहरी परिस्तिथियों का असर न हो
अपनी चेतनता के स्तर को उठाना असंभव नहीं है, लेकिन इसमें बहुत धोखा है, बहुत भ्रम है। लोग सोचते हैं कि उन्होंने अपने आप को बहुत बार बदला है। दरअसल उनकी परिस्थितियां बदली होती हैं, उन्हें सहायक परिस्थितियां मिल जाती हैं, इसलिए वे ऐसा सोचने लगते हैं। लेकिन परिस्थितियां अगर फिर से बुरी तरह से बिगड़ जाएं तो वे दुबारा उसी जगह आ जाते हैं। क्या आपने इस पर ध्यान दिया है? कोई व्यक्ति किसी खास हालात में काम कर रहा है और वह उसे पसंद नहीं कर रहा, वह लगातार गुस्सा करता है और अशांत रहता है। तब वह किसी दूसरी जगह काम करने चला जाता है और वह सोचने लगता है, ‘अब मैं ठीक हूं।
ऊर्जा के स्तर पर आत्मज्ञान
अपनी ऊर्जा को रुंपातरित करना एक निश्चित और ठोस तरीका है। क्योंकि इस तरह आप अपने आप को बेवकूफ नहीं बना सकते या कोरी कल्पनाएं नहीं कर सकते। आप इस बात की कल्पना तो कर सकते हैं कि मैं स्वर्ग में हूं। लेकिन आपकी ऊर्जा तब तक हिल नहीं सकती जब तक आप इसके साथ सही चीजें नहीं करते और जब तक सही मायने में इसके साथ कुछ घटित नहीं होता। तो यह मार्ग ज्यादा भरोसेमंद है। इस मार्ग पर चलने का मतलब है ठोस धरातल पर चलना। इसके लिए सिर्फ जरुरत है आपके समर्पण की और अभ्यास में संलग्नता की। अगर कोई अपनी ऊर्जा के ऊपर सही समझ और उचित मार्गदर्शन के साथ पर्याप्त तरीके से काम करता है तो वह ऊर्जा के स्तर पर बहुत आसानी से चरम तक पहुंच सकता है।
हमने ऐसे कई लोग तैयार किए हैं जिनकी ऊर्जा चरम को छू रही है, लेकिन उनकी चेतनता का स्तर अभी तक ऊपर नहीं उठा है। हम एक खास तरीके से उन पर काम कर रहे हैं, जिससे उनका मन धीरे-धीरे परिपक्व हो रहा है। इसलिए वे अभी भी मूर्खतापूर्ण चीज़ें कर सकते हैं लेकिन ये मूखर्तापूर्ण काम उनकी जिंदगी को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे क्योंकि अब उनकी ऊर्जा एक खास ऊंचाई तक पहुंच गई है। मूर्खतापूर्ण चीजें उनकी जिंदगी पर अब और नहीं राज करेंगी।
जेन कहानी - आत्मज्ञानी रसोइया
एक बहुत सुंदर जेन कहानी है। आपने एक जेन गुरु के बारे में सुना होगा जिनका नाम इनो था और वो लोगों के बीच बहुत प्रसिद्ध थे। जब वो पहली बार मठ में गये तो गुरु ने उनको देखकर कहा, ‘इनो आत्मज्ञानी है।’ अगले दिन से इनो को रसोईघर में खाना बनाने के काम में लगा दिया गया और वो अगले बारह साल तक रसोई में काम करते रहे। इनो को रसोइया बनाया गया क्योंकि उनकी ऊर्जा तो चरम तक पहुंच चुकी थी लेकिन उनकी चेतनता अभी नहीं उठी थी। हमारे आस पास सैकड़ों ऐसे लोग हैं जो ऊर्जा के आधार पर आत्मज्ञानी हैं, लेकिन उनकी चेतनता उठी हुई नहीं है। हम उसे उठाने की जल्दी में भी नहीं हैं। वह तो उठेगी ही। यह धीरे-धीरे परिपक्व होगी।
सुषुम्ना के स्तर पर रूपांतरण
शिव कहते हैं, ‘जब मेरुदंड को छुआ जाता है तो आपके भीतर और आपके आस-पास एक प्रकाश पैदा होने लगता है।’ अगर आप अपना सारा ध्यान सुषुम्ना नाड़ी पर केन्द्रित कर देते हैं और अगर इसे ठीक तरीके से छुआ जाता है तो ये सक्रिय हो जाती है और दिप्तमान हो जाती है। एक बार जब ये दिप्तमान हो जाती है तो ऊर्जा बहुत कम समय में परिपक्व होकर चरम को छू लेती है। यही वो चीज है, जिसे हम लंबे समय से लोगों के साथ कर रहे हैं। ऐसा होने पर, आपके पास आत्मज्ञानी व्यक्ति का तेज होता है लेकिन आपके पास आत्मज्ञानी व्यक्ति जैसी चेतनता नहीं होती। अगर आप चुपचाप बैठ जाते हैं तो आप बहुत शक्तिशाली इंसान लगते हैं। अगर आप अपना मुंह खोलते हैं तो आपकी मूर्खता सामने आ जाती है - सिर्फ ऊर्जा रूपांतरित होने पर आप ऐसे बन जाएंगे!
इसे पाना आसान है। बस समर्पण की जरूरत है। खास तौर पर जब गुरु आपके पास हैं, तब ऐसा करना और आसान हो जाता है।
संपादक की टिप्पणी:
*कुछ योग प्रक्रियाएं जो आप कार्यक्रम में भाग ले कर सीख सकते हैं:
21 मिनट की शांभवी या सूर्य क्रिया
*सरल और असरदार ध्यान की प्रक्रियाएं जो आप घर बैठे सीख सकते हैं। ये प्रक्रियाएं निर्देशों सहित उपलब्ध है: