ज्ञान का बोध कराने के लिए योगिक प्रक्रिया में हजारों मार्ग हैं। न जाने कितने ज्ञानी गुरु हुए हैं। अपने शिष्यों को उनकी परम प्रकृति की ओर ले जाने लिए के इनमें से हरेक के अपने अपने-तरीके रहे हैं। अपने इर्द गिर्द के लोगों के लिए खासतौर से बनाए गए ये तरीके कई बार अजीब सा रूप भी ले लेते हैं, जैसा कि निदघ के मामले में हुआ, जो कि रिभु का एक गुमराह शिष्य था।

 

रिभु महर्षि एक महान संत थे। उनका एक हठी शिष्य था, जिसका नाम निदघ था। रिभु के मन में निदघ के लिए बहुत प्रेम था, लेकिन निदघ उतना एकाग्र नहीं था जितने उनके बाकी शिष्य थे। इस वजह से शिष्यों के बीच थोड़ी समस्या थी। दूसरे शिष्यों के मन में आता था कि निदघ बिल्कुल ध्यान नहीं देता, फिर भी गुरुजी उसे हमसे ज्यादा चाहते हैं। इस तरह की बातें हमेशा होती हैं, क्योंकि गुरु वो नहीं देखता, जो आप आज हैं, वह आपमें कल की संभावनाओं को देखता है, वो वह देखता है जिसे कर पाने की क्षमता आपके भीतर है। अभी तक आपने क्या किया, गुरु के लिए इसका कोई महत्व नहीं है। आप आज क्या हैं, यह उसके लिए थोड़ा-बहुत महत्व रखता है, लेकिन कल आप क्या हो सकते हैं, उसके लिए यह बात सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।

कुछ समय के बाद निदघ ने रिभु महर्षि को छोड़ दिया। रिभु अपने शिष्य को देखने के लिए वहां आते-जाते रहते, लेकिन चूंकि निदघ उतना ग्रहणशील नहीं था, इसलिए रिभु हमेशा भेष बदल कर अपने शिष्य से मिलने, उसे आशीर्वाद देने और उसका मार्गदर्शन करने चले जाया करते थे।

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गुरु वो नहीं देखता, जो आप आज हैं, वह आपमें कल की संभावनाओं को देखता है, वो वह देखता है जिसे कर पाने की क्षमता आपके भीतर है। अभी तक आपने क्या किया, गुरु के लिए इसका कोई महत्व नहीं है।
एक दिन रिभु महर्षि ने एक ग्रामीण जैसे कपड़े पहने और निदघ के पास पहुंच गए। गलियों में से राजा की सवारी निकल रही थी और निदघ चुपचाप उस सवारी को देख रहा था। एक ग्रामीण के भेष में रिभु निदघ के पास जाकर खड़े हो गए और उससे पूछा - तुम क्या देख रहे हो? निदघ ने उनकी ओर तिरस्कार के भाव से देखा और मन ही मन सोचा - हर कोई सवारी देख रहा है। यह मूर्ख यह भी नहीं जानता कि हम क्या देख रहे हैं। फिर भी उसने जवाब दिया - राजा का जुलूस देख रहा हूं।

रिभु ने पूछा - राजा कहां है?

निदघ बोला - देखते नहीं, हाथी पर बैठा है।

रिभु ने कहा - ओह, लेकिन राजा कौन सा है?

निदघ को गुस्सा आ गया और उसने कहा - बेवकूफ, देखते नहीं हो। जो इंसान ऊपर बैठा है, वह राजा है और उसके नीचे जो जानवर है वह हाथी है।

रिभु बोले - ओह ये ऊपर नीचे क्या है, मुझे समझ नहीं आता।

अब तो निदघ मानो भडक़ ही गया - अरे बड़े बेवकूफ हो! तुम्हें नहीं पता कि ऊपर और नीचे क्या है? लगता है जो तुम्हें दिख रहा है और जो तुम सुन रहे हो, वह तुम्हारी अक्ल में नहीं घुस रहा है।

अचानक निदघ के मन में वही मूल प्रश्न कौंध गया – मैं कौन हूँ, तुम कौन हो? वह रिभु के चरणों में गिर गया, क्योंकि उसे इस बात का अनुभव हो चुका था, कि यह कोई और नहीं उसके गुरु ही हैं।
तुम्हें कुछ करके समझाना पड़ेगा। उसने रिभु को जबर्दस्ती नीचे झुकाया और उनके कंधों पर चढ़ गया। क्या अब तुम्हें समझ आ रहा है कि मैं ऊपर हूं और तुम नीचे? मैं राजा हूं और तुम जानवर। अब समझ आया?

रिभु ने कहा - ठीक तौर पर तो नहीं। हां, अब मैं ये समझ सकता हूं कि इंसान क्या है और हाथी क्या है। मैं ये भी समझ सकता हूं कि ऊपर क्या है और नीचे क्या है। लेकिन यह तुम और मैं क्या है जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं?

अचानक निदघ के मन में वही मूल प्रश्न कौंध गया – मैं कौन हूँ, तुम कौन हो? वह रिभु के चरणों में गिर गया, क्योंकि उसे इस बात का अनुभव हो चुका था, कि यह कोई और नहीं उसके गुरु ही हैं। उसी पल उसे आत्मज्ञान हो गया।

हर गुरु अपने ही तौर-तरीके अपनाता है। इनमें से कुछ तरीके सूक्ष्म होते हैं, तो कुछ नाटकीय हालात पैदा करने वाले। कोई भी तरीका तभी काम करता है जब उसे आप पर अचानक आजमाया जाए। अगर इसके बारे में आपको बता दिया जाएगा, तो यह काम नहीं करेगा।