आध्यात्मिक विकास के लिए कैसी संगत की जरुरत होती है?
कहा जाता है ‘संगत से गुण होत है, संगत से गुण जात’। क्या यह वाक़ई सही है कि हमारे जीवन पर हमारी संगत का बहुत असर पड़ता है? क्या एक आध्यात्मिक साधक, जो विवशता से चेतनता के पथ पर बढ़ रहा है, के लिए बाध्यकारी(विवशता से भरे) बर्ताव वाले लोगों के साथ समय बिताना हानिकारक हो सकता है? सद्गुरु संघ या संगत की अहमियत और सही संगत बनाने के बारे में बता रहे हैं।
प्रश्न: सद्गुरु, मेरे अपार्टमेंट में कई और लोग रहते हैं। जब भी मैं अधिक समय के लिए बाहर जाता हूं, तो अपने कमरे को किराये पर दे देता हूं। वहां हर तरह के लोग रहते हैं, जैसे एक बार एक लड़की जो उसमें रह रही थी, जो ड्रग एडिक्ट हो गई। कई अलग-अलग तरह के कपल्स भी रहते हैं। ये चीजें किस हद तक मुझे प्रभावित कर सकती हैं। आपका इस बारे में क्या कहना है?
सद्गुरु: आप जिस संगत में रहते हैं, उसके असर को कम करके मत आंकिए। चाहे आप शराब नहीं पीते या ड्रग्स नहीं लेते, फिर भी ऐसा करने वाले लोगों की संगत में रहना एक बिल्कुल अलग स्तर पर आपके ऊपर असर डालता है। गौतम बुद्ध ने समझाया था कि ‘चरम सत्य’, वह इंसान जो सत्य आप तक पहुँचाता है और संघ, यानी आप जिस तरह की संगत में रहते हैं, ये तीनों बराबर महत्वपूर्ण हैं। सामाजिक रूप से वह सही थे मगर अस्तित्व के स्तर पर गलत थे। असल में पहली प्राथमिकता संघ या आपकी संगत होनी चाहिए, फिर बुद्ध या जो सत्य का संप्रेषण करता है(आप तक पहुंचाता है), फिर धम्म यानी चरम सत्य।
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संगत ही हमें गढ़ती है
ज्यादातर लोगों को जाने-अनजाने उनकी संगत ही गढ़ती है। हो सकता है कि उन्हें यह पता न चलता हो कि उन पर यह असर किस हद तक है। आपके ऊपर सिर्फ आपके परिवार और दोस्तों का ही नहीं, बल्कि सामान्य सामाजिक दायरे का भी असर पड़ता है।
इसीलिए बनाए जाते हैं आश्रम
आपकी पूरी कोशिश विवशता से चेतनता की ओर बढ़ना है। बहुत बाध्यकारी(विवशता से भरे) स्वभाव वाले लोगों के साथ रहना इसमें मददगार नहीं होता। आप अभी तक उस स्थिति तक नहीं पहुंचे हैं, जहां आप बहुत बाध्यकारी लोगों के बीच रहते हुए भी अपने सिस्टम के स्तर पर पूरी तरह चेतन और अप्रभावित रह सकें। आप खुद एडिक्ट हो भी सकते हैं और नहीं भी हो सकते। मुझे आशा है कि आप नहीं होंगे, लेकिन निश्चित रूप से यह कई रूपों में आप पर असर डालेगा। अगर बाहरी प्रभावों का कोई असर नहीं होता, तो कोई आश्रम बनाने की कोशिश क्यों करता? एक आध्यात्मिक स्थान का रखरखाव एक बहुत बड़ा सिरदर्द है, जो एक उफनते समुद्र में एक मीठे पानी का स्थान हो। एक ऐसे द्वीप की तरह उसे रखना, जो आस-पास घटित हो रही चीजों के असर से बचा रहे, बहुत मेहनत का काम है।
औसतन लगभग सात हजार लोग रोज ईशा योग केंद्र आते हैं। उनका स्वागत करना, उन्हें आश्रम का हिस्सा बनने देना और उनकी तरह न बनना एक बड़ी चुनौती है। हमें ठोस और मजबूत लोगों की जरूरत है। वरना हर कोई अपने घर, अपनी गली, अपने शहर का थोड़ा सा हिस्सा लाने और उसे आश्रम का हिस्सा बनाने की कोशिश करता है। लोग अपनी सनक और कल्पनाओं, अपनी पसंद-नापसंद को लेकर आने की कोशिश करते हैं। यहां आने वाला लगभग हर कोई आश्रम पर थोड़ा प्रभाव डालने की कोशिश करता है। कोई व्यक्ति चीजों को एक खास तरह से करने के बारे में पूछता है, कुछ लोग कर ही डालते हैं। उनके प्रभाव को विनम्रता से या कई बार जबरन टालना आसान काम नहीं है। एक आश्रम का मकसद ऐसी जगह बनाए रखना है, जो किसी खास मक़सद के लिए समर्पित हो। आप चाहे जहां भी रहें, आपको अपना घर इस तरह बनाए रखना चाहिए कि वह आपके जीवन के मक़सद के लिए समर्पित हो। आपके निजी स्थान को यह दर्शाना चाहिए कि आप किस दिशा में जाना चाहते हैं – इसमें किसी और के विवशता से भरे तौर-तरीके शामिल नहीं होने चाहिए। यह तब तक बहुत महत्वपूर्ण है, जब तक कि आप उस स्थिति तक नहीं पहुंच जाते हैं, जहां नर्क में जाने पर भी आप बिना उससे प्रभावित हुए बाहर आ सकें। फिलहाल आपकी प्रवृत्ति प्रभावित होने वाली है। खुद को बढ़ा-चढ़ा कर मत आंकिए। सही तरह की संगत बनाना
सही तरह का स्पेस तैयार करना और जरूरत पड़ने पर नकारात्मक(बुरे) प्रभावों से दूर चले जाना आपके विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसका अर्थ सिर्फ नशे की लत वाले लोगों से ही नहीं, बल्कि किसी भी तरह के बाध्यकारी(विवशता से भरे) स्वभाव वाले लोगों से बचना है। लोग अपनी बाध्यताओं के वश में होते हैं। अगर आप कई तथाकथित(सिर्फ सामान्य कहे जाने वाले) ‘सामान्य’ परिवार की जीवनशैली को देखें तो आप पाएँगे कि बच्चों को किसी ड्रग्स की लत नहीं है, पति को किसी शराब की लत नहीं है, पत्नी को खरीदारी की लत नहीं है, लेकिन फिर भी उनके अस्तित्व का तरीका चेतना के खिलाफ होता है। अगर आप उन्हें रूपांतरित कर सकते हैं, तो यह बहुत अच्छी बात होगी, लेकिन अगर आप उन्हें रूपांतरित नहीं कर सकते, तो बेहतर है कि उनसे दूर रहें। लगभग सभी इंसानों के लिए यह सच है कि वे जैसी संगत में रहते हैं, वह उनके जीवन को आकार देता है। किस सीमा तक, यह व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है, मगर निश्चित रूप से यह बहुत सारी चीजों को तय करता है।
हो सकता है कि अभी मैं जिस तरह की संगत में हूं, उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़े। लेकिन शुरु में मैंने जैसी संगत रखी, उसने निश्चित रूप से मेरे मौजूदा अस्तित्व को आकार दिया। अगर उस समय मैं गलत संगत में होता, तो अब मेरे लिए स्थितियां बहुत अलग होतीं। जो उस समय मेरे लिए महत्वपूर्ण था, वही आपके लिए आज महत्वपूर्ण है। यह आपके विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि या तो आप सही तरह की संगत बनाएं या गलत संगत में होने से बचें।