मैं आदियोगी शिव का आह्वान(नाम लेना) बार-बार क्यों करता हूं? यह प्रश्न मुझसे अक्सर पूछा जाता है। इसका उत्तर बहुत सरल है। इसकी वजह यह नहीं है कि मैं ईश्वर का मानवीकरण करना चाहता हूं, या मूर्तिपूजा की कोई घुमावदार विधि लाना चाहता हूं, या फिर पूर्व के किसी पंथ की ओर बढ़ना चाहता हूं।

जैसा मैंने कहा बुद्धि अकेले काम करे तो वो चीज़ों को बांटती है, यहाँ तक कि वह आत्म को भी अलग-अलग टुकड़ों में बांटने की क्षमता रखती है! 
मैं उनका आह्वान(नाम लेना) सिर्फ इसलिए करता हूं, क्योंकि वह हमारे समय के लिए महत्वपूर्ण हैं। वह महत्वपूर्ण इसलिए हैं क्योंकि अभी मानव चेतना को बढ़ाने से अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है। हमारे हाथों में ऐसे साधन और तकनीकें हैं, जिनसे हम या तो इस दुनिया को स्वर्ग बना सकते हैं या उसे नर्क में बदल सकते हैं, या फिर अपनी ही क्षमताओं से उसे पूरी तरह समाप्त कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, हम ऐसे मुक़ाम पर पहुंच गए हैं, जहां अगर हम मानव चेतनता को नहीं बढ़ाएंगे, तो हमारी बुद्धि और क्षमता हमारे ही खिलाफ काम करने लगेंगे। हम तेजी से आत्म-विध्वंस(खुद के नाश) की तरफ बढ़ रहे हैं। हम इस दलदल में कैसे धंस गए? ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हमने अपने भीतरी हालत की क़ीमत पर अपनी बुद्धि को विकसित किया। https://www.youtube.com/embed/1_h3pzZpux4

अगर अकेले काम करे, तो तर्क-बुद्धि चाक़ू की तरह है

फिलहाल हम अपनी तर्क-बुद्धि की एकमात्र योग्यता का इस्तेमाल करते हैं और उसे सब कुछ समझने की गलती करते हैं। हम भूल जाते हैं कि मन की क्षमता इससे कहीं अधिक है। तर्क-बुद्धि एक जबर्दस्त साधन है। मगर सिर्फ तर्क-बुद्धि का ही इस्तेमाल किया जाए तो वह एक मुसीबत है। क्योंकि मन के बाकी आयाम जोड़ते हैं, जबकि तर्क-बुद्धि सिर्फ बांट सकती है। यह आपको किसी चीज के साथ पूरी तरह रहने नहीं देती। चेतना की प्रकृति है सबको समाहित(शामिल) करना। चेतना इस ब्रह्मांड का एक बड़ा आलिंगन(गले लगाना) है। अगर एक शक्तिशाली तर्क-बुद्धि को यह अनुभव प्राप्त नहीं होता, तो वह तर्क-बुद्धि दुनिया को नष्ट कर डालेगी। पूर्व में ऐसी कई कहावतें हैं कि जब लोगों में बहुत ज्यादा व्यस्त रहने वाली तर्क-बुद्धि के लक्षण दिखते हैं, तो वे पूर्ण विनाश की ओर बढ़ रहे होते हैं। जैसा मैंने कहा बुद्धि अकेले काम करे तो वो चीज़ों को बांटती है, यहाँ तक कि वह आत्म को भी अलग-अलग टुकड़ों में बांटने की क्षमता रखती है! आज की दुनिया में एकता के लिए बहुत कोशिशें हो रही हैं। मगर हम तर्क-बुद्धि से हर चीज को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। यह ऐसा ही है, मानो आप दुनिया को एक चाकू से सिलना चाहते हैं, मगर इससे सिर्फ यह होगा कि सब कुछ तार-तार हो जाएगा।

आदियोगी शिव के योगदान की बराबरी कोई नहीं कर सकता

आज दुनिया से एक महत्वपूर्ण तत्व गायब है, जिसे योग में चित्त कहा जाता है। चित्त मन का सबसे भीतरी आयाम है। यह स्मृति(यादों) से मुक्त बुद्धि होती है, जो आपको सृष्टि के आधार से जोड़ती है। चित्त जागरूकता है, अस्तित्व की अपनी बुद्धि है – ये पूरा ब्रह्माण्ड खुद एक जीता-जागता मन है। योगिक परंपरा में कहा जाता है कि जब आप खुद को अपने आनुवांशिक(माता-पिता से मिले) और कार्मिक सॉफ्टवेयर की विवशताओं, और साथ ही अपनी बुद्धि तथा पहचानों से दूर कर लेते हैं, तो आप चित्त के संपर्क में आ जाते हैं - जो एक बेदाग चेतना है। फिर आपका जीवन वापस उस रूप में आ जाता है, जैसा उसे हमेशा होने के लिए बनाया गया था – आनंदित व जीवंत, ताजा और शुद्ध। फिर चैतन्य के पास भी आपकी मदद करने के सिवा कोई चारा नहीं होगा। इस संदर्भ में प्रथम योगी, आदियोगी अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि इस धरती पर कोई दूसरा नहीं है जिसने इतनी खोज की और लोगों के सामने अपना ज्ञान प्रकट किया। उन्होंने इंसान द्वारा खुद को समझने के लिए सबसे लंबा-चौड़ा और परिष्कृत (रिफाइंड) सिस्टम बनाया - 112 तरीके जिनसे इंसान आत्मखोज करके अपनी पूर्ण क्षमता को प्राप्त कर सकता है। दुनिया में किसी और इंसान का योगदान इसकी बराबरी नहीं कर सकता।

आदियोगी शिव – ज्ञान नहीं, बोध या अनुभूति के प्रतीक हैं

आदियोगी ने जीवन के साथ पूरी तरह जुड़कर जीवन को जाना, उन्होंने बुद्धि से नहीं, अनुभव से जीवन को जाना। योगी वह है जिसने पूरे अस्तित्व के साथ एकाकार का अनुभव कर लिया हो। आदियोगी बोध या अनुभूति के प्रतीक हैं, ज्ञान के नहीं। ज्ञान एक बौद्धिक संचय है। दूसरी ओर बोध न तो बौद्धिक है और न ही उसे जमा किया जा सकता है। अगर आप फूलों से लदे किसी पौधे के पास से गुजरते हैं और आप उसकी सुगंध के रसायन को जानते हैं, तो यह ज्ञान का एक आयाम है। अगर आप उस सुगंध के अनुभव और परमानंद को जानते हैं, तो यह ज्ञान का दूसरा आयाम है। लेकिन अगर जब आप खुद सुगंध बन जाते हैं, तो यह बोध है। यह बोध सौ फीसदी अनुभव से पैदा हुआ है, और सौ फीसदी जीवंत है। आदियोगी इसी के प्रतीक हैं। यही वजह है कि उन्हें समझाने के प्रयासों के बावजूद, कोई भी ग्रंथ, मत या सिद्धांत उन्हें पूरी तरह समझा नहीं पाया। प्रकृति ने इंसानों के लिए कुछ नियम तय किए हैं। भौतिक प्रकृति के चक्रीय नियमों को तोड़ना ही उस आध्यात्मिक प्रक्रिया का आधार है, जिसकी खोज आदियोगी ने की। इस अर्थ में नियम को तोड़ने वाले लोगों के लिए योग एक विज्ञान है। आदियोगी इसी के प्रतीक हैं – वे नियमों को तोड़ने में सर्वश्रेष्ठ हैं, वे परम विध्वंसक(नाश करने वाले) हैं।

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