अगस्त्य मुनि कौन थे?
यहाँ पढिये, क्यों अगस्त्य मुनि को दक्षिण भारतीय योगविद्या/रहस्यवाद का जनक माना जाता है और उनके आध्यात्मिक प्रक्रिया के प्रचार, प्रसार के प्रयासों के साथ सद्गुरु का क्या संबंध है?
अगस्त्य मुनि को दक्षिण भारतीय योगविद्या/रहस्यवाद के जनक के रूप में जाना जाता है। वे एक असाधारण रूप से लंबा जीवन जिये। सारे भारतीय उपमहाद्वीप में इतनी ऊर्जा के साथ और इतने शक्तिशाली ढंग से आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रचार, प्रसार उन्होंने किया कि उनके महान कार्यों की कहानियाँ आज भी लोगों के दिलो दिमाग पर छायी हुई हैं।
#1. अगस्त्य मुनि कौन थे ?
सदगुरु : कांति सरोवर का मतलब है 'कृपा की झील'। इसे कांति सरोवर नाम इसलिये दिया गया क्योंकि इस झील के किनारे पहली बार योग विद्या पढ़ायी गयी थी। 15000 साल से भी पहले, जब हिमालय के ऊपरी इलाकों में आदियोगी पहली बार दिखे, तो हज़ारों की संख्या में लोग इकट्ठा हो गये। उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि लोग उनसे आकर्षित हो गये पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। वे बस बिना हिले डुले, ऐसे ही, महीनों तक बैठे रहे। अगर किसी को इस तरह लंबे समय तक बैठे रहना हो तो उसे अपने शारीरिक स्वभाव से परे होना चाहिये। सिर्फ 7 लोग ये बात समझ सके और वे वहीं बैठे रहे।आज इन 7 लोगों को हम सप्तर्षि कहते हैं, यानि ब्रह्मांडीय (पृथ्वी से बाहर के लोकों में रहने वाले) ऋषि। एक दिन, आदियोगी का ध्यान उनकी ओर गया और उन्होंने उन 7 लोगों को कुछ तैयारी करने की क्रियायें बताईं और कहा, "तुम लोग तैयारी करो, फिर हम देखेंगे"। जब उन्होंने देखा कि सालों की तैयारी के बाद वे 7 लोग चमकदार दृश्यों जैसे हो गये थे । तो वे कांति सरोवर के तट पर बैठ गये और उनको योग का विज्ञान समझाना शुरू किया। वे लोग लंबे समय तक समाधि की अवस्था में रहे और उन्होंने इस विज्ञान को जानने की क्रिया और इसे मनुष्य के शरीर के साथ मिलाने की प्रक्रिया को ग्रहण किया। उन 7 में सबसे प्रमुख ऋषि अगस्त्य थे।
कथा कहती है कि उन्होंने अपनी साधना जमीन के अंदर, किसी गुप्त स्थान में की और वे लंबे समय तक निष्क्रिय दशा की अवस्था में रहे। जब वे बाहर आये तब तक सारा ज्ञान उन्होंने अपने ही एक भाग के रूप में अपने में समा लिया था, वे उस ज्ञान के साथ एकरूप हो गये थे। इस ज्ञान को उन्होंने अपने पास इस तरह नहीं रखा जैसे कि वो कोई बुद्धिमत्ता की संपत्ति हो बल्कि ये उनके मानवीय तंत्र की एक धड़कती हुई, जीवित, सक्रिय प्रक्रिया जैसा। उन्होंने दक्षिण की ओर जाने के अपने लक्ष्य को पूरा करने का निर्णय लिया और आदियोगी के सात शिष्यों में वे सबसे ज्यादा विख्यात हुए। जिस ऊर्जा और शक्ति के साथ भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में अगस्त्य मुनि ने इस विद्या का प्रचार, प्रसार किया, उसी की वजह से वे सबसे प्रमुख रहे।
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#2. अगस्त्य मुनि : एक असाधारण जीव जो ;एक असामान्य जीवन जिये
अगस्त्य मुनि एक असामान्य जीवन जिये। ऐसा माना जाता है कि उनका जीवनकाल असाधारण रूप से लंबा था। कथा कहती है कि वे 4000 साल तक जीवित थे। हमें नहीं मालूम कि वे 4000 साल तक जिये या नहीं पर एक सामान्य मानवीय जीवनकाल की तुलना में उनका जीवनकाल बहुत ज्यादा लंबा था। अगर आप उनके जीवन में उनके द्वारा किये गये कार्यों को देखें तो ऐसा नहीं लगता कि वे 100 साल में ही मर गये होंगे। वे कम से कम 400 साल तक तो जीवित रहे ही होंगे क्योंकि उन्होंने जितना काम किया वो किसी सामान्य मानवीय जीवन में संभव नहीं था। आजकल हम गाड़ियों में, हवाई जहाज में घूमते हैं तो छोटे जीवनकाल में भी हम बहुत सारा काम कर लेते है पर अगस्त्य जितना पैदल घूमे उतना एक सामान्य मानवीय जीवनकाल में किसी भी मनुष्य के लिये असंभव है। जरूर ही वे काफी लंबा जीवन जिये होंगे।
#3. अगस्त्य मुनि : दक्षिण भारतीय योगविद्या/रहस्यवाद के जनक
अगस्त्य के माध्यम से योग विज्ञान एक खास रूप में दक्षिण भारत में आया। कई तरह से अगस्त्य मुनि दक्षिण भारतीय योगविद्या/रहस्यवाद के जनक हैं। दक्षिणी भारत के सभी सिद्ध अगस्त्य मुनि की परंपरा के ही हैं और दक्षिणी भारत की योगविद्या का एक अलग ही रंग ढंग है और ये अगस्त्य के कारण है। मैं जो कुछ भी करता हूँ वो अगस्त्य के काम को ही थोड़ा आगे बढ़ाता है। उन्होंने एक बहुत बड़ा स्थान बनाया था। हम उसमें बस एक कमरे जितनी जगह ही उसमें जोड़ रहे हैं। आध्यात्मिकता का थोड़ा बहुत समावेश हरेक के जीवन में हो, ऐसा उन्होंने सुनिश्चित किया था। आज हमें ऐसा लग सकता है कि ये सब हमसे छूट रहा है पर अगर आप पिछली पीढ़ी को देखें तो ये आज भी मौजूद है।
दक्षिणी भारत के मामूली किसान के जीवन में भी आध्यात्मिकता का कुछ अंश तो जरूर मिलता है। ये अगस्त्य का काम है। विंध्याचल के दक्षिण में, दक्षिण भारत में कहीं भी अगर आप जाते हैं तो लगभग हरेक गाँव में लोगों को ऐसा कुछ कहते सुनेंगे, अगस्त्य मुनि ने यहाँ ध्यान किया था यहाँ इस गुफा में अगस्त्य मुनि रहे थे, इस जगह अगस्त्य मुनि ने ये पेड़ लगाया था आदि आदि... ऐसी अंतहीन कहानियाँ हैं क्योंकि वे हिमालय के दक्षिण में घूम घूम कर, हर बस्ती में आध्यात्मिक प्रक्रिया ले गये थे और ये किसी शिक्षा, धर्म या किसी किस्म की फिलोसॉफी के रूप में नहीं पर जीवन के एक भाग की तरह था!
जैसे आपकी माँ ने आपको सुबह उठना और दाँत साफ करना सिखाया, उसी तरह अगस्त्य मुनि ने हर जगह जा कर लोगों को आध्यात्मिक प्रक्रिया सिखायी। आज भी, आप देखेंगे कि साधारण लोग भी कुछ न कुछ ऐसा करते हैं जो उन प्रक्रियाओं के बाकी बचे अवशेषों की तरह हैं और वे यह भी नहीं जानते कि ये कोई आध्यात्मिक प्रक्रिया है। आप जिस तरह बैठते, खड़े होते, चीजें करते हैं, हरेक का कोई आध्यात्मिक आधार है। हालाँकि हमारी पिछली 10 - 12 पीढ़ियाँ बहुत गरीबी में रहीं हैं तो भी आप देखेंगे कि आज भी, हमारे यहाँ, लोगों में, कुछ मात्रा में, एक खास संतुलन, आनंद और संतोष देखने को मिलता है जो आपको दुनिया के दूसरे भागों में शायद ही मिलेगा।
#4. अगस्त्य मुनि की अतुल्य विरासत - कैलाश पर्वत का दक्षिणी मुख
मेरे लिये, कैलाश पर्वत एक जबर्दस्त आध्यात्मिक ग्रंथालय है, ज्ञान का भंडार है। जब लोग इसे शिव का घर कहते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि वे वहाँ आज भी बर्फ पर नृत्य कर रहे हैं। वास्तव में इसका मतलब ये है कि जो कुछ भी उनके पास था, उसे उन्होंने इस जगह पर जमा कर रखा है। सिर्फ वे ही नहीं, जो कोई भी कैलाश आया, उसने अपनी ऊर्जाओं का निवेश कैलाश में किया। सबसे महत्वपूर्ण बात मेरे लिये ये है कि अगस्त्य मुनि ने अपनी ऊर्जाओं का निवेश कैलाश में किया। दक्षिण भारतीय योगविद्या/रहस्यवाद में जो कुछ भी है, उसके स्रोत अगस्त्य ही हैं। और, अगस्त्य उस सब के स्रोत हैं, जो कुछ भी मैं हूँ। उनके पास जो कुछ भी था, उसका निवेश उन्होंने कैलाश पर्वत के दक्षिणी मुख पर किया। कैलाश की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन करने के लिये कोई शब्द नहीं हैं पर अगर शक्ति और ऊर्जा की बात करें तो कैलाश अतुल्य है, उसकी किसी से कोई तुलना हो ही नहीं सकती।
#5. अगस्त्य मुनि : सबसे पुरानी युद्ध कला 'कलारीपयट्टू' के रचनाकार
अगस्त्य मुनि : सबसे पुरानी युद्ध कला - कलारीपयट्टू के रचनाकार। दुनिया में कलारीपयट्टू शायद सबसे पुरानी युद्ध कला है। शुरुआत में, मूल रूप से, ये अगस्त्य मुनि ने ही सिखायी। युद्ध कला का मतलब सिर्फ लात या मुक्के मारना या हथियार से घाव करना ही नहीं है। अपने शरीर को हर संभव तरीके से किस तरह उपयोग में लाया जाता है, ये सीखना ही युद्ध कला है। इसमें सिर्फ व्यायाम और सतर्कता के दूसरे पहलू ही नहीं बल्कि ऊर्जा प्रणाली को समझना भी शामिल है। कलारी चिकित्सा और कलारी मर्म भी इसके भाग हैं और ये शरीर के रहस्यों को जानने के लिये है कि कैसे शरीर खुद को जल्दी ठीक करे और हमेशा सुधार की प्रक्रिया में रहे। आजकल के समय में शायद ऐसे बहुत कम कलारी साधक हैं जो इस कला में पर्याप्त समय, ऊर्जा और ध्यान लगायें।
अगर आप इसमें गहरे उतरें तो स्वाभाविक रूप से आप योग की तरफ मुड़ेंगे - क्योंकि अगस्त्य मुनि से हमें जो कुछ मिला है, वो आध्यात्मिकता के सिवा कुछ और नहीं हो सकता, ये भी खोज करने का एक और तरीका है। शरीर के ऐसे भी आयाम हैं जिन्हें अब तक खोजा नहीं गया है। युद्ध कला में कुछ ऐसे निष्णात (मार्शल आर्ट्स मास्टर) भी हैं जो आपको बस एक छोटे से स्पर्श से खत्म कर सकते हैं। पर, सिर्फ छू कर किसी को मार डालना कोई बड़ी बात नहीं है। अगर आप किसी मरे हुए इंसान को छू कर जीवित कर सकें तो वो एक बड़ी बात होगी। एक आसान से स्पर्श से सारे तंत्र को जागृत किया जा सकता है। अगर आप इस मानवीय तंत्र को समझें तो ये अपने आप में पूरा ब्रह्मांड है। यहाँ बैठे हुए ये जबर्दस्त चीजें कर सकता है। कलारी इसका ज्यादा सक्रिय रूप है।
#6. अगस्त्य मुनि : सिद्ध वैद्य परंपरा के संस्थापक
अगस्त्य मुनि : सिद्ध वैद्य परंपरा के संस्थापक यौगिक विज्ञान से क्रमिक विकास करते हुए ही अगस्त्य मुनि ने औषधीय विज्ञान की ये प्रणाली बनाई। कहा जाता है कि खुद आदियोगी इसका इस्तेमाल करते थे और अगस्त्य इस प्रणाली को दक्षिणी भारत में ले आये। ये स्वभाव से तात्विक यानि तत्वों की समझ पर आधारित है। इस प्रणाली में काम करने के लिये पढ़ाई से ज्यादा ज़रूरी है तत्वों पर अंदरूनी अधिकार पाना। मूल रूप से इसका स्वभाव तात्विक होने की वजह यह है कि ये ज्यादातर यौगिक विज्ञान से आयी है, क्योंकि यौगिक विज्ञान का आधार भूत शुद्धि है, यानि अपने तत्वों की सफाई।
#7. अगस्त्य मुनि के अद्भुत जीवन से हम क्या सीख सकते हैं
अगस्त्य मुनि के अद्भुत जीवन से हम क्या सीख सकते हैं? जब हम अगस्त्य और दूसरे सप्तर्षियों की ओर देखते हैं तो आश्चर्य से हमारा मुँह खुला का खुला रह जाता है क्योंकि ये मनुष्य नहीं लगते। वे हमें कुछ खास लग सकते हैं पर मूल रूप से उन्होंने खुद को अच्छी तरह बनाया है, बढ़ाया है। उनकी आकांक्षा, उनका दृढ़ निश्चय, उनका कभी न टूटने वाला फोकस, जिसके लिये उनके पास कोई साथ, सहयोग या सहारा भी नहीं था, उनका लंबे समय तक काम करते रहना - तब भी जब उन्हें अनदेखा किया गया, उनकी परवाह नहीं की गयी - ये सारी बातें उनका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण पहलू है। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता अगर ये तैयारी करते करते उन्हें 84 जन्म भी लग जाते। वे इसके लिये भी तैयार थे।
सप्तर्षि कोई आकाश से नहीं गिरे थे। कोई नहीं जानता कि भारतीय उपमहाद्वीप में वे लोग कहाँ जन्मे थे। साधारण सी किन्हीं जगहों पर किन्हीं साधारण स्त्रियों ने उन्हें जन्म दिया होगा। वे कोई स्वर्ग से उतर कर नहीं आये थे। उन्होंने खुद को तैयार किया, बनाया, बढ़ाया। उनकी जीवन गाथाओं के बारे में यही बात महत्वपूर्ण है। योग और साधना भी ऐसे ही महत्वपूर्ण हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं, आपके माता पिता कौन थे, आपका जन्म कैसे हुआ था, या फिर आपके काम किस तरह के हैं, आदि!
अगर आप तैयार हैं तो आप खुद को बना सकते हैं। हम कह सकते हैं कि अगस्त्य मुनि यहाँ के किसी गाँव के थे और एक दिन अचानक गायब हो गये। आदियोगी के साथ रहने के लिये वे हिमालय चले गये। क्या आप सोच सकते हैं कि फिर गाँव वाले अगस्त्य के बारे में क्या बातें करते होंगे? क्या आपको ऐसा लगता है कि वे उनके माता पिता के पास तारीफ कर रहे होंगे, अरे वाह, आपका बेटा तो एक महान ऋषि बनने जा रहा है नहीं, वे उनके माता पिता का मजाक उड़ा रहे थे, वो, आपका पागल लड़का, वो कहाँ है अगस्त्य चाहे कितने भी सालों बाद वापस आये हों, क्या आपको लगता है कि उन्हें देख कर लोग खुश हुए होंगे, इस बात पर उत्साहित होंगे कि अगस्त्य हिमालय में आदियोगी से मिले होंगे और अब वापस आये हैं? नहीं, वे जब कमर पर एक छोटा कपड़ा लपेटे और किसी जंगली प्राणी जैसे दिखने वाले हाल में वापस आये होंगे तो उनको देख कर लोग सिर्फ हँस ही रहे होंगे!
आज हम उस अद्भुत व्यक्ति पर आश्चर्यचकित और खुश हो कर कह रहे हैं कि वे कितने महान थे पर उनके समय में उन्हें कोई नहीं मानता था, कोई उनकी तारीफ नहीं करता था, उनके लिये किसी ने ताली नहीं बजायी। सभी यही सोचते थे कि ये लड़का पागल था, गैर जिम्मेदार था जो अपने माता पिता को छोड़ कर भाग गया था। ऐसी परिस्थितियों में वे बिना कभी विचलित हुए, अपने रास्ते पर चलते रहे - ऐसे थे अगस्त्य मुनि! अपनी आगे बढ़ने की दिशा उन्होंने तय कर ली थी और चाहे जो हो वे हमेशा शालीनता से रहे और जो कुछ कर रहे थे उससे हटे नहीं, डगमगाये नहीं। तो, अगर आप अगस्त्य मुनि बनना चाहते हैं और उनकी तरह रहते हैं, तो क्यों नहीं? ( आप भी वैसे बन सकते हैं अगर आप उनकी तरह जीएं तो।
संपादकीय टिप्पणी : अब सद्गुरु एक और महान व्यक्ति के बारे में बात कर रहे हैं - आदि शंकर। वे बताते हैं कि आदि शंकर का मूल रूप, इस देश का मूल स्वभाव और शक्ति का प्रतीक है। जो चीज़ें उन्होंने सिखाई, वो आज की दुनिया के लिये बहुत सार्थक और महत्वपूर्ण हैं। सद्गुरु आगे बता रहे हैं कि शंकराचार्य ने 1200 साल पहले जो कुछ कहा वही चीज़ें आज का विज्ञान भी कह रहा है!