280 साल की उम्र में योगी ने जाना योग का मर्म
भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तक संतों की एक लंबी परंपरा रही है। दक्षिण भारत के एक महान संत हुए अल्लामा महाप्रभु जिनसे जुड़ी हुई एक बेहद मजेदार कहानी है। एक बार उनसे एक ऐसे योगी मिलने आए जो कायाकल्प के मार्ग पर थे...
भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तक संतों की एक लंबी परंपरा रही है। दक्षिण भारत के एक महान संत हुए अल्लामा महाप्रभु जिनसे जुड़ी हुई एक बेहद मजेदार कहानी है। एक बार उनसे एक ऐसे योगी मिलने आए जो कायाकल्प के मार्ग पर थे...
कर्नाटक की योगिक परंपरा में एक बड़ी ही खूबसूरती कहानी है। भारत के दक्षिणी हिस्से दक्कन के पठारी क्षेत्र में कर्नाटक और आंध्र प्रदेश इलाके में एक सिद्धलिंग नाम के एक योगी थे।
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योग से कायाकल्प करने का मार्ग
मूल तत्वों पर अधिकार की वजह से उन्होंने अपने शरीर को इतना स्थिर बना लिया था कि वे सामान्य जीवनकाल से भी ज्यादा जीवित रह पाते थे। कहा जाता है कि इस कहानी के वक्त सिद्धलिंग की उम्र 280 साल से भी ज्यादा थी और उन्होंने अपने शरीर को हीरे जैसा कठोर बना लिया था। उन दिनों में सभी हथियार स्टील, पीतल, तांबे या ऐसे ही दूसरे पदार्थों से बने होते थे। उस समय जो भी हथियार उपलब्ध थे, उनसे उनके शरीर को काटा नहीं जा सकता था और यही उनके लिए गर्व की बात थी। वह जहां भी जाते, हमेेशा लोगों के सामने यही चुनौती रखते कि वही उस क्षेत्र के सबसे बड़े और महान योगी हैं।
सिद्धलिंग ने एक और योगी अल्लामा के बारे में सुना, जो योगियों की तरह नहीं रहते थे। अल्लामा को लेाग अल्लामा महाप्रभु के नाम से पुकारते थे। वह बड़े ही खूबसूरत संत थे और शिव भक्त थे।
दरअसल, अल्लामा एक राजा थे। उनके सांसारिक कर्तव्य भी थे, इसलिए वह राजा की तरह वस्त्र पहनते थे, लेकिन वह मूल रूप से योगी ही थे। दूसरी ओर सिद्धलिंग योगी की तरह ही वस्त्र पहनते थे और योगी की तरह ही रहते थे। उन्हें अल्लामा पसंद नहीं थे, क्योंकि वह अच्छे वस्त्र पहनते, अच्छा भोजन करते और महल में रहते और फिर भी खुद को योगी कहते। वह अल्लामा के पास गए और उन्हें चुनौती दी- ‘तुम खुद को योगी कहते हो? तुम खुद को शिव का भक्त कहते हो? जरा मुझे भी दिखाओ क्या है तुम्हारे पास?’
कायाकल्प से बने चट्टान की तरह सख्त
अल्लामा महाप्रभु ने कहा, ‘आप एक सर्वश्रेष्ठ योगी हैं। बेहतर होगा कि आप दिखाएं कि आप क्या कर सकते हैं?’
सिद्धलिंग ने एक तलवार निकाली, जिसके सिरे पर हीरा जड़ा हुआ था। उस तलवार को अल्लामा को देते हुए वह बोले, ‘यह लो तलवार और पूरी ताकत के साथ इसे मेरे सिर पर मारो। मुझे कुछ नहीं होगा।’
अल्लामा को हंसी आ गई। उन्होंने तलवार ले ली और दोनों हाथों और पूरी ताकत से सिद्धलिंग के सिर पर वार कर दिया। तलवार सिद्धलिंग के सिर से टकराकर लौट आई, क्योंकि उनका शरीर था ही इतना कठोर। सिद्धलिंग किसी चट्टान की भांति वहीं खड़े थे। वह हंसने लगे - ‘देखा, तुम मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सके। तुमने इस तलवार से मुझ पर वार किया अब इसी तलवार से मैं तुम पर वार करूंगा।’
कठोरता का योग और रिक्तता का योग
अल्लामा ने कहा, ‘ठीक है। सिद्धलिंग ने तलवार से अल्लामा पर वार कर दिया। तलवार अल्लामा के शरीर से ऐसे निकल गई, जैसे हवा से निकल जाती है। सिद्धलिंग तलवार को ऐसे वैसे हिलाने लगे, लेकिन हर बार तलवार अल्लामा के शरीर को छुए बिना ऐसे निकल जाती, जैसे हवा में चल रही हो। यह देखकर सिद्धलिंग ने अल्लामा के सामने सिर झुका दिया और बोले, ‘मुझे शक्ति के योग के बारे में तो पता है, लेकिन मैं सज्जनता के योग के बारे में नहीं जानता।’ इसके बाद वह अल्लामा के शिष्य बन गए।
अल्लामा ने संतों के नए पंथ की नींव डाली, जिसे वीरशैव कहा जाता है। वीरशैव योद्धा भक्त होते हैं। वे शिव भक्त होते हैं, लेकिन हथियार धारण किए रहते हैं। अल्लामा बड़े ही सज्जन थे। उन्होंने हजारों ऐसे दोहे लिखे हैं, जिनमें आपको एक गहराई नजर आएगी। मैं स्पष्ट तौर पर कह सकता हूं कि मानवता के इतिहास का वह एक ऐसा नाम हैं, जो अपने आप में असाधारण है।