संजीव कपूर: नमस्कार सद्‌गुरु। मेरा प्रश्न यह है कि जब हम खाना पकाते हैं तो अगर हमें खाना बनाने का आनंद लेना है, जो आंतरिक होता है, तो मुझे अपनी खुशी के लिए खाना बनाना होगा। मगर जब आप दूसरों के लिए खाना बनाते हैं, फिर आप उन्हें खुश करना चाहते हैं। कई बार इन दोनों में टकराव होता है। इस टकराव में किसे जीतना चाहिए?

सद्‌गुरु: आध्यात्मिक प्रक्रिया के बारे में सबसे बुनियादी बात यही है कि आप यहां इस तरह रहते हैं मानो सिर्फ आपका ही अस्तित्व है, किसी और का नहीं। चूँकि आप हर किसी को खुद के ही रूप में देखते हैं, इसलिए कोई समस्या नहीं होती। लोग मुझसे पूछते हैं, ‘सद्‌गुरु, आप जहां भी जाते हैं, चाहे दस हज़ार लोग हों या एक लाख लोग, आप कैसे बोलते हैं?’ मैं उनसे ऐसे बात करता हूं, जैसे मैं खुद से करता - अगर मुझे ऐसी आदत होती।

आस-पास के लोगों में खुद को देखना होगा

यहां कोई ‘तुम’ नहीं है।

आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब है कि किसी रूप में अपने अनुभव में आप सभी को खुद में शामिल करने वाले हो जाते हैं। 
मैं जो कर रहा हूं, वह किसी तरह का भाषण या प्रवचन नहीं है, मैं बस इस तरह बात कर रहा हूं, जैसे मैं खुद से बात करता क्योंकि जब मैं अपने आस-पास देखता हों, तो किसी और को नहीं, बल्कि खुद को ही देखता हूं। आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब है कि किसी रूप में अपने अनुभव में आप सभी को खुद में शामिल करने वाले हो जाते हैं। आपके जीवन से तुलना और कॉम्पटिशन गायब हो जाते हैं। वरना तुलना के साथ शुरू होने वाली चीज कॉम्पटिशन में बदल जाती है और फिर बदसूरत रूप ले लेती है। जहां तुलना और कॉम्पटिशन हो, वहां खुशी जैसी जीवंत और सुंदर चीज भी बदसूरत हो जाती है। खुशी आपके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। खुशी का मतलब है कि आप अपने अस्तित्व को शानदार तरीके से अनुभव कर रहे हैं।
 जाने-माने फिल्मकार और आर्टिस्ट मुजफ्फर अली ने सद्‌गुरु के साथ धर्म परम्परा और भीतरी अनुभव से जुड़े मुद्दों पर लंबी बातचीत की। पेश है इस बातचीत के प्रमुख अंश:… धर्म और परम्परा की शुरुआत भीतरी अनुभव से हुई 

आपका भीतरी अनुभव सिर्फ आपको तय करना चाहिए

जब आप समावेशी होते हैं, यानी सबको शामिल करके चलते हैं, तो आप अपने अस्तित्व को शानदार तरीके से अनुभव करते हैं, इसलिए आप आनंदित होते हैं। मैं इसलिए आनंदित नहीं हूं क्योंकि मैं सबसे अच्छा डोसा बनाता हूं या आपसे बेहतर डोसा बनाता हूं, न ही मैं इसलिए अधिक आनंदित होऊंगा क्योंकि मैंने आपके पकाए हुए बेहतरीन व्यंजन खाए हैं। मैं आपके रेस्तरां में आने से पहले भी जबरदस्त रूप से आनंदित रहूंगा। अगर आप कोई अच्छी चीज बनाएंगे, तो मैं आनंदित होकर खाऊंगा। अगर आप कुछ बुरा बनाएंगे, तो मैं आनंदित होकर उसे एक ओर सरका दूंगा। आप अपने अच्छे या खराब भोजन से मुझे खुशी नहीं दे सकते, न ही मेरी खुशी छीन सकते हैं। मैं चाहता हूं कि आप और दुनिया में हर कोई ऐसा ही बन जाए, जिससे आपके भीतर घटित होने वाली चीज को कोई और तय न कर सके।

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