आपके भीतरी अनुभव को क्या कोई दूसरा तय कर सकता है?
सेलिब्रिटी शेफ संजीव कपूर ने सद्गुरु से जानना चाहा कि खुशी बांटने के लिए कोई काम करने, और खुशी हासिल करने के लिए कुछ करने में अधिक महत्वपूर्ण क्या है? और हमें किस चीज़ का चयन करना चाहिए?
संजीव कपूर: नमस्कार सद्गुरु। मेरा प्रश्न यह है कि जब हम खाना पकाते हैं तो अगर हमें खाना बनाने का आनंद लेना है, जो आंतरिक होता है, तो मुझे अपनी खुशी के लिए खाना बनाना होगा। मगर जब आप दूसरों के लिए खाना बनाते हैं, फिर आप उन्हें खुश करना चाहते हैं। कई बार इन दोनों में टकराव होता है। इस टकराव में किसे जीतना चाहिए?
सद्गुरु: आध्यात्मिक प्रक्रिया के बारे में सबसे बुनियादी बात यही है कि आप यहां इस तरह रहते हैं मानो सिर्फ आपका ही अस्तित्व है, किसी और का नहीं। चूँकि आप हर किसी को खुद के ही रूप में देखते हैं, इसलिए कोई समस्या नहीं होती। लोग मुझसे पूछते हैं, ‘सद्गुरु, आप जहां भी जाते हैं, चाहे दस हज़ार लोग हों या एक लाख लोग, आप कैसे बोलते हैं?’ मैं उनसे ऐसे बात करता हूं, जैसे मैं खुद से करता - अगर मुझे ऐसी आदत होती।
आस-पास के लोगों में खुद को देखना होगा
यहां कोई ‘तुम’ नहीं है।
आपका भीतरी अनुभव सिर्फ आपको तय करना चाहिए
जब आप समावेशी होते हैं, यानी सबको शामिल करके चलते हैं, तो आप अपने अस्तित्व को शानदार तरीके से अनुभव करते हैं, इसलिए आप आनंदित होते हैं। मैं इसलिए आनंदित नहीं हूं क्योंकि मैं सबसे अच्छा डोसा बनाता हूं या आपसे बेहतर डोसा बनाता हूं, न ही मैं इसलिए अधिक आनंदित होऊंगा क्योंकि मैंने आपके पकाए हुए बेहतरीन व्यंजन खाए हैं। मैं आपके रेस्तरां में आने से पहले भी जबरदस्त रूप से आनंदित रहूंगा। अगर आप कोई अच्छी चीज बनाएंगे, तो मैं आनंदित होकर खाऊंगा। अगर आप कुछ बुरा बनाएंगे, तो मैं आनंदित होकर उसे एक ओर सरका दूंगा। आप अपने अच्छे या खराब भोजन से मुझे खुशी नहीं दे सकते, न ही मेरी खुशी छीन सकते हैं। मैं चाहता हूं कि आप और दुनिया में हर कोई ऐसा ही बन जाए, जिससे आपके भीतर घटित होने वाली चीज को कोई और तय न कर सके।
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