सद्गुरु: आपने अपनी जिंदगी में अब तक हर चीज बस एक चीज की तलाश में की है। चाहे आपने बेहतर करियर खोजा हो, कारोबार शुरू किया हो, पैसे कमाए हों, या फिर परिवार को पाला-पोसा हो, यह सब आपने इसलिए किया क्योंकि आप बस एक साधारण सी चीज चाहते थेः खुशी।

लेकिन रास्ते में कहीं न कहीं जीवन उलझ गया। 

किसी तरह, एक इंसान के लिए जीवन, बस जीवन-संरक्षण पर खत्म होता नहीं लगता है; जीवन-संरक्षण से जीवन शुरू होता है।

अगर आप इस धरती पर किसी दूसरे जीव के रूप में पैदा हुए होते, तो वह बहुत सरल होता। आपकी जरूरतें सिर्फ शारीरिक होतीं। पेट भर खाना मिल जाए तो वह एक बहुत शानदार दिन कहलाता। अपने कुत्ते या अपनी बिल्ली पर गौर कीजिएः जिस पल उनका पेट भर जाता है, वे काफी शांतिमय होते हैं। 

लेकिन जब आप इस दुनिया में एक इंसान के रूप में आते हैं, तो चीजें बदल जाती हैं। खाली पेट की एक ही समस्या हैः भूख। लेकिन अगर पेट भरा हुआ हो तो? सैकड़ों समस्याएं हैं! जब सवाल हमारे जीवन-संरक्षण का होता है, तो वह हमारे जीवन का एक बड़ा मुद्दा होता है। लेकिन जिस पल इस मुद्दे का ख्याल रख लिया जाए, तो उसके कोई मायने नहीं लगते। किसी कारण से, एक इंसान के लिए जीवन, बस जीवन-संरक्षण पर खत्म नहीं होता है; जीवन-संरक्षण से जीवन शुरू होता है। 

आज, लोगों की एक पीढ़ी के रूप में, हमारी जीवन-संरक्षण प्रक्रिया पहले से कहीं बेहतर नियोजित है। आप एक सुपरमार्केट जाकर अपनी पूरे साल की जरूरतों की चीजें खरीद सकते हैं। आप घर से निकले बिना भी यह काम कर सकते हैं! मानव इतिहास में इससे पहले यह कभी संभव नहीं था। सौ साल पहले जो चीजें राजा-महाराजा भी नहीं कर सकते थे, आज आम नागरिक की पहुंच में हैं। हम इस धरती पर रहने वाली अब तक की सबसे आरामदेह पीढ़ी हैं। हमने बाहरी माहौल को ठीक करने के लिए अपनी ओर से बेहतरीन कोशिश की है। अगर हम इसे और ज्यादा ठीक करते हैं, तो धरती ही नहीं बचेगी! लेकिन हम निश्चित रूप से यह नहीं कह सकते कि हम अपने पुरखों से ज्यादा खुश, ज्यादा प्रेममय या ज्यादा शांत हैं। 

ऐसा क्यों है? अगर यह काम नहीं कर रहा है, तो क्या यह देखने का समय नहीं है कि क्या गलत है? हम कोई ऐसी चीज करते रहना कैसे जारी रख सकते हैं जिसने हजार साल से काम नहीं किया है? हम उन योजनाओं के साथ और कितने समय तक जीने वाले हैं, जिन्होंने साफ तौर पर अपना वादा पूरा नहीं किया है?

नजरिया बदलने के लिए यही समय है। 

खुशहाली क्या है?

एक ही सवाल से शुरू करते हैं: हम खुशहाली किसे मानते हैं? 

बिलकुल सीधे तौर पर, खुशहाली बस अपने भीतर प्रसन्नता की एक गहरी भावना है। अगर आपका शरीर सुखद महसूस करता है तो हम उसे स्वास्थ्य कहते हैं। अगर वह बहुत सुखद बन जाता है तो हम उसे सुख कहते हैं। अगर आपका मन सुखद बनता है तो हम उसे शांति कहते हैं। अगर वह बहुत सुखद बन जाता है तो हम उसे ख़ुशी कहते हैं। अगर आपकी भावना सुखद बनती है तो हम उसे प्रेम कहते हैं, अगर वह बहुत सुखद बन जाती है तो हम उसे करुणा कहते हैं। अगर आपकी जीवन ऊर्जाएं सुखद बनती हैं, तो हम उसे आनंद कहते हैं। अगर वे बहुत सुखद बन जाती हैं ता हम उसे परमानंद कहते हैं। आप पूरा बस यही खोज रहे हैं: भीतर और बाहर की प्रसन्नता। जब प्रसन्नता भीतर होती है तो उसे शांति, आनंद या खुशी कहते हैं। जब आपके चारों ओर का माहौल सुखद बन जाता है तो उसे सफलता का नाम दिया जाता है। अगर आपकी इनमें से किसी में भी रुचि नहीं है और आप स्वर्ग जाना चाहते हैं, तो आप क्या खोज रहे हैं? बस दूसरी दुनिया की सफलता! तो, मुख्य रूप से, सारे मानव अनुभव बदलते स्तरों की प्रसन्नता और अप्रसन्नता से आते हैं। 

एक शांत समाज और एक आनंदमय दुनिया बनाने के लिए आंतरिक प्रसन्नता एक अचूक बीमा है।

लेकिन अपने जीवन में आप कितनी बार पूरे दिन भर आनंदमय रहे हैं - बिना एक पल की भी चिंता, बेचैनी, चिढ़, या तनाव के? कितनी बार आप चौबीस घंटे के लिए निरी प्रसन्नता और पूरे आनंद में रहे हैं? पिछली बार आपके साथ ऐसा कब हुआ था? 

हैरानी की बात यह है कि इस धरती पर ज्यादातर लोगों के लिए, एक दिन भी ठीक वैसा नहीं बीता है जैसा वे चाहते हैं! यकीनन, ऐसा कोई भी नहीं है जिसने खुशी, शांति, या आनंद अनुभव नहीं किया हो, लेकिन वह हमेशा अस्थाई होता है। वे उसे कायम नहीं रख पाते। वे वहां पहुंच तो जाते हैं, लेकिन फिर गिरते रहते है। और उसके गिरने के लिए कोई भीषण चीज होने की जरूरत नहीं है। सबसे साधारण चीजें लोगों को संतुलन से बाहर फेंक देती हैं और बेतरतीब कर देती हैं। 

यह कुछ ऐसा है। आज आप बाहर जाते हैं और कोई आपसे कहता है कि आप दुनिया के सबसे सुंदर व्यक्ति हैं: आप सातवें आसमान पर तैरने लगते हैं। लेकिन जब आप घर लौटते हैं, और घर के लोग आपको बताते हैं कि आप वाकई कौन हैं: हर चीज चकनाचूर हो जाती है!

क्या यह जाना-पहचाना लगता है?

आपको अपने भीतर प्रसन्न रहने की जरूरत क्यों है? जब आप प्रसन्नता की एक आंतरिक अवस्था में होते हैं, तब आप स्वाभाविक रूप से अपने आस-पास हर किसी के साथ और हर चीज के साथ मधुर होते हैं। दूसरों के साथ अच्छे होने का निर्देश देने के लिए किसी धर्मग्रंथ या दर्शन की जरूरत नहीं है। जब आप अपने भीतर अच्छा महसूस कर रहे हों, तो वह उसका स्वाभाविक परिणाम है। एक शांत समाज और एक आनंदमय दुनिया बनाने के लिए आंतरिक प्रसन्नता एक अचूक बीमा है। 

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सिर्फ एक चीज जो आपके और आपकी खुशहाली के बीच खड़ी है, वह एक साधारण सच्चाई है: आपने अपने विचारों और भावनाओं को, भीतर के बजाय, बाहर से निर्देश लेने देते हैं।

इसके अलावा, दुनिया में आपकी सफलता मुख्य रूप से इस पर निर्भर करती है कि आपने शरीर और मन के कौशल का कितने अच्छे से उपयोग किया है। तो, सफलता हासिल करने के लिए, प्रसन्नता को आपके भीतर एक बुनियादी गुण होना होगा। 

सबसे बढ़कर, आज इसके पर्याप्त मेडिकल और वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि आपका शरीर और मन अपने बेहतरीन स्तर पर तब काम करते हैं जब आप प्रसन्न हों। ऐसा कहा गया है कि अगर आप चौबीस घंटे आनंदमय रह सकते हैं तो आपकी बौद्धिक क्षमताएं लगभग दुगनी हो सकती हैं। बस आंतरिक झमेले को ठिकाने लगाने और स्पष्टता को उजागर होने देने से इसे हासिल किया जा सकता है। 

अब, वह जीवन ऊर्जा जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं, वह कभी बहुत प्रसन्न रहती है, कभी दुखी, कभी शांत, और कभी बेचैन रहती है। वही जीवन ऊर्जा उन सब अवस्थाओं में हो सकती है। तो, अगर आपके पास एक विकल्प होता कि आपकी जीवन ऊर्जा किस तरह की अभिव्यक्ति पाए, तो आप क्या चुनते? आनंद या क्लेश? प्रसन्नता या अप्रसन्नता? 

इसका उत्तर स्पष्ट है। इंसान-इंसान के बीच तरीके बदल सकते हैं, लेकिन चाहे आप पैसा कमाने की कोशिश कर रहे हों, शराब पी रहे हों, या स्वर्ग जाने की कोशिश कर रहे हों, खुशी ही एकमात्र लक्ष्य है। तो, कुछ लोग सोचते हैं कि यह शराब में है, जबकि दूसरे सोचते हैं कि यह ईश्वर में है, लेकिन हर कोई खुशी ही खोज रहा है। 

सिर्फ एक चीज जो आपके और आपकी खुशहाली के बीच खड़ी है, वह एक साधारण सच्चाई है: आपने अपने विचारों और भावनाओं को, भीतर के बजाय, बाहर से निर्देश लेने दिया है।

अपने सपने को वैसा बनाइए जैसा आप चाहते हैं। 

किसी दिन, एक महिला सोने गई। नींद में, उसे एक सपना आया। उसने एक बहुत हृष्ट-पुष्ट आदमी को अपनी ओर घूरते पाया। फिर वह पास आने लगा - और पास आया, और पास। 

वह इतना पास था कि वह उसकी सांसों को महसूस कर सकती थी। वह सिहर उठी - डर से नहीं। 

फिर उसने पूछा, ‘तुम मेरे साथ क्या करोगे?’ आदमी बोला, ‘वैसे मैडम, यह आपका सपना है!’

हमें यह समझने की जरूरत है कि जब तक हम सही चीजें नहीं करते, तब तक हमारे साथ सही चीजें नहीं होंगी: यह सिर्फ बाहरी दुनिया के साथ सच नहीं है, बल्कि भीतरी दुनिया के साथ भी सच है।

आपके दिमाग में जो चल रहा है वह आपका सपना है। कम से कम आपके सपने को तो आपके मन मुताबिक होना चाहिए, क्या नहीं होना चाहिए? अगर दुनिया आपके मन मुताबिक नहीं भी चलती है, तो कम से कम आपके विचारों और भावनाओं को तो वैसे चलना चाहिए जैसे आप चाहते हैं। अभी, ये आपसे निर्देश नहीं ले रहे हैं क्योंकि आप पूरी मानवीय प्रणाली को संयोग से संभाल रहे हैं। 

मानवीय प्रणाली धरती पर सबसे परिष्कृत भौतिक रूप है। आप टेक्नॉलजी की सबसे शानदार मिसाल हैं, लेकिन समस्या यह है कि आप नहीं जानते कि की-बोर्ड कहां है। परिणाम स्वरूप, एक सरल जीवन प्रक्रिया मानवता को परेशान कर रही है। बस आजीविका कमाना, बच्चे पैदा करना, परिवार को चलाना, और फिर एक दिन मर जाना - कितनी बड़ी चुनौती है! यह कितने अचरज की बात है कि जो चीज हर कीड़ा, कीट, पशु, पक्षी बड़ी सहजता से करता है, बस उसे करने में इंसान कितना संघर्ष करते हैं। 

सीधे-सीधे कहें, तो हमारा आंतरिक पर्यावरण एक झमेला है। किसी तरह हम सोचते हैं कि बाहरी हालात को ठीक करने से भीतर की हर चीज ठीक हो जाएगी। लेकिन ये पिछले 150 साल प्रमाण हैं कि टेक्नॉलजी हमारे लिए सिर्फ आराम और सुविधाएं लाएगी, खुशहाली नहीं। हमें यह समझने की जरूरत है कि जब तक हम सही चीजें नहीं करते, तब तक हमारे साथ सही चीजें नहीं होंगी: यह सिर्फ बाहरी दुनिया के साथ सच नहीं है, बल्कि भीतरी दुनिया के साथ भी है।

खुद को मूर्ख मत बनाएं। 

किसी दिन, एक बैल और एक तीतर खेत में थे। बैल घास चर रहा था और तीतर बैल के शरीर पर चिपकी किलनी खा रहा था - एक बढ़िया साझेदारी। खेत के किनारे पर एक बड़े पेड़ को देखकर तीतर ने कहा, ‘आह, एक समय था जब मैं उस पेड़ की सबसे ऊंची डाल तक उड़ सकता था। अब मेरे पंख में इतनी ताकत भी नहीं है कि मैं पहली डाल तक पहुंच सकूं।’

बैल ने निर्लिप्त भाव से कहा, ‘हर दिन बस मेरा थोड़ा गोबर खाओ और फिर देखो कि क्या होता है। दो सप्ताह में ही, तुम सबसे ऊपर पहुंच जाओगे।’

तीतर ने कहा, ‘अरे छोड़ो भी, यह कैसी बकवास है। ये बेकार की बात है?’

बैल ने कहा, ‘आजमाकर देखो। पूरी मानवता इसी के बल पर है।’ 

बहुत हिचकते हुए, तीतर ने गोबर खाना शुरू किया। और, पहले ही दिन वह पहली डाल तक पहुंच गया। एक पखवाड़े में, वह सबसे ऊंची डाल तक पहुंच गया था। वह वहां बैठकर बस दृष्य का आनंद लेने लगा। 

एक बूढ़ा किसान, अपनी झूलने वाली कुर्सी पर झूल रहा था, उसने इस मोटे बूढ़े तीतर को देखा, अपनी बंदूक निकाली और तीतर को मारकर गिरा दिया। 

कहानी की सीख: मूर्खतापूर्ण चीज़ें (बुलशिट) आपको ऊंचाई पर ले जा तो सकती है, लेकिन वे कभी आपको वहां टिकने नहीं देतीं! 

आप खुद को हर किस्म की व्यर्थ की भावनात्मक अवस्थाओं में ले जा सकते हैं, आप खुद के लिए किसी तरह कुछ खुशहाली जुटा सकते हैं, लेकिन समस्या यह है कि यह टिकती नहीं है। मौसम इसे नीचे ला सकता है। स्टॉक मार्केट इसे चकनाचूर कर सकता है। और अगर यह ढेर नहीं भी होती, तो इस अपेक्षा में जीना कि ऐसा हो सकता है, काफी बुरा है! जब तक आपका आंतरिक जीवन बाहरी स्थितियों का गुलाम है, वह अनिश्चित हालत में रहेगा। होने का कोई दूसरा तरीका नहीं है। 

फिर बाहर निकलने का रास्ता क्या है? 

एक मूलभूत परिवर्तन  

दिशा में एक बहुत सरल बदलाव ही बाहर निकलने का रास्ता है। आपको बस यह देखने की जरूरत है कि आपके अनुभव का स्रोत और आधार आपके भीतर है। मानव अनुभव को बाहरी स्थितियों से उकसाया या प्रेरित किया जा सकता है, लेकिन स्रोत भीतर ही है। पीड़ा या सुख, आनंद या क्लेश, वेदना या परमानंद, सिर्फ आपके भीतर होते हैं। इंसान की नादानी यह है कि लोग हमेशा आनंद को बाहर से हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। आप बाहर को एक उत्प्रेरक या उकसाव के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन असली चीज हमेशा भीतर से आती है। 

अभी, आप इसे पढ़ रहे हैं। आप इस लिखावट को कहां देखते हैं? अपनी उंगली से इशारा कीजिए कि आप उसे कहां देख रहे हैं? क्या आपको लगता है कि प्रतिबिंब आपके बाहर है? 

फिर से सोचिए।

क्या आपको याद है कि यह कैसे काम करता है? वस्तु पर प्रकाश गिर रहा है, परावर्तित हो रहा है, आपकी आंखों के लेंस से अंदर जा रहा है, और आपकी रेटिना पर एक उल्टी छवि बना रहा है - आप पूरी कहानी जानते हैं। तो, असल में आप वस्तु को अपने भीतर देख रहे हैं। 

आप पूरी दुनिया कहां देखते हैं? 

फिर से, अपने ही भीतर। 

हर चीज जो आपके साथ कभी हुई है, आपने उसे ठीक अपने भीतर अनुभव किया है। रोशनी या अंधेरा, पीड़ा या सुख, वेदना या परमानंद - ये सभी आपके भीतर हुए हैं। अगर कोई अभी आपका हाथ छूता है, आपको लग सकता है कि आप उसके हाथ को अनुभव कर रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि आप अपने ही हाथ में उस संवेदना को अनुभव कर रहे हैं। पूरा अनुभव भीतर सीमित है। सारे इंसानी अनुभव सौ प्रतिशत स्व-निर्मित होते हैं। 

अगर आपके विचार और भावनाएं आपकी बनाई हुई हों, तो आप उन्हें मनचाहे तरीके से गढ़ सकते हैं। आज इस बात का वैज्ञानिक प्रमाण है कि अल्कोहल की एक बूंद का सेवन किए बिना भी, आप स्वयं से पूरी तरह मदहोश बन सकते हैं। एक इज़रायल के वैज्ञानिक राफेल मैकोलम और उसके शोध दल ने एक परियोजना शुरु की, जिसमें आखिरकार मानव सिस्टम में एक ‘आनंद अणु’ को प्रथक किया गया। साधारण शब्दों में, उन्होंने खोजा कि मानव मस्तिष्क में भांग की स्वाभाविक ग्राही कोशिकाएं होती हैं। ऐसा क्यों है? उन्होंने पाया कि ऐसा इसलिए है क्योंकि शरीर स्वयं का मादक पदार्थ बनाने में सक्षम है। बिना किसी बाहरी उत्प्रेरक के यह अपना ही आनंद पैदा कर सकता है - और वह भी बिना किसी खुमारी के!

संस्कृत शब्द आनंद के आधार पर, इस विशेष केमिकल को ‘आनंदामाइड’ नाम दिया गया है। इससे हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि खुशी बस एक खास तरह की केमेस्ट्री (रासायनिकता) है। शांति एक दूसरे तरह की केमेस्ट्री है। असल में, हमारे द्वारा अनुभव की गई हर किस्म की प्रसन्नता के लिए - चाहे वह शांति या आनंद या परमानंद हो - एक खास किस्म की केमेस्ट्री है। योग प्रणाली को यह हमेशा से पता था। 

आंतरिक खुशहाली के लिए - आनंदमय अस्तित्व के लिए एक केमिकल आधार पैदा करने के लिए - एक टेक्नॉलजी मौजूद है। मैं जिसे ‘इनर इंजीनरिंग’ कहता हूँ, यह उसका एक आयाम है। अगर आप जागरूक हैं तो आप अपने सिस्टम को इस तरह सक्रिय कर सकते हैं कि साधारण सांस लेना ही जबरदस्त सुख होता है। इसके लिए बस आंतरिक प्रणाली पर थोड़ा ध्यान देने का इच्छुक होना होगा। 

समझ में इस बुनियादी बदलाव को लाना होगा। क्लेश से बाहर आने का तरीका मत खोजिए। पीड़ा से बाहर निकलने का रास्ता मत खोजिए। सिर्फ एक ही रास्ता है - और वह भीतर है।