क्या आत्म-ज्ञानी हो जाने से बदलेगा देश?
एक साथ कई लोगों को अगर आत्म-ज्ञान हासिल हो जाए तो क्या देश की हालत रातों रात बदल जाएगी? अगर नहीं तो फिर क्यों की जाए आत्म-ज्ञान की कोशिश?
प्रश्न: सद्गुरु, अगर इस हॉल में बैठे सभी लोगों को आत्मज्ञान की प्राप्ति हो जाए, तो भारत को इस अव्यवस्था से निकालने में कितना समय लगेगा, जिसमें यह अभी है?
सद्गुरु: बड़ा सवाल यह है कि क्या एक आत्मज्ञानी व्यक्ति, देश में चुना जा सकता है? फिलहाल यहाँ बैठे सभी लोगों को आत्मज्ञान मिलना बहुत दूर की बात है। मैं इसे पूरी तरह नकार नहीं रहा हूं, लेकिन यह बहुत दूर की बात है। क्योंकि यहाँ लोगों के दिमाग में चल रहा है कि ‘डिनर का समय हो गया है और सद्गुरु अब भी बोल रहे हैं। क्या करें?’ जीवन में उनके लिए दूसरी चीज़ें ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं। अगर आत्मज्ञान आपके जीवन का इकलौता फ़ोकस बिंदु और आपकी प्राथमिकता बन जाए, तो संभव है कि इस हॉल से निकलने से पहले आप आत्मज्ञान पा लें। लेकिन ऐसा है नहीं। आपकी प्राथमिकताएं कई सारी हैं। आप एक ही साथ पांच दिशाओं में जाना चाहते हैं। अगर आप पांच दिशाओं की ओर खिंचे जा रहे हैं, तो सबसे बेहतर है, एक ही जगह पर रहना। और वही हो रहा है, कोई रूपांतरण नहीं हो रहा।
आत्मज्ञान पा लेने पर अधिकांश लोग उसे संभाल नहीं सकते। अगर आप अभी आत्मज्ञान पा लें तो आपके आत्मज्ञान का पल ही आपके शरीर छोड़ने का पल बन जाएगा। आप शरीर को संभालकर रख पाने में सफल नहीं होंगे। अगर आप शरीर को थामकर रखना चाहते हैं, तो आपको शरीर की सारी प्रक्रियाओं और तरकीबों का ज्ञान होना चाहिए। वरना, जैसे ही आपकी अपने शरीर से पहचान टूटेगी, आपसे शरीर छूट जाएगा।
अगर शरीर को बनाए रखना है, तो उसे थामे रखने के लिए आपको ढेर सारी बाजीगरी करनी होगी। उस बाजीगरी को सीखने में समय लगेगा। आत्मज्ञान फौरन हो सकता है, मगर मन और शरीर की बाजीगरी एक अलग खेल है। आपको उस में महारत हासिल करनी होगी। जैसे मैं आत्मज्ञानी हूं, इसका मतलब यह नहीं है कि मैं साइकिल भी चला सकता हूं। मुझे वह सीखना होगा।
सही दिशा में धक्का देना
देखिए, देश को बदलने के लिए आपको ऐसी चमत्कारी स्थिति का इंतजार करने की जरूरत नहीं है, जहां हजारों लोग एक साथ आत्मज्ञान पा लें। इसके लिए बस थोड़ी सी समझदारी और अपने आस-पास रहने वाले हर किसी के लिए दिल में एक खास प्रेम रखने की जरूरत है। फिलहाल, हम एक राष्ट्र के रूप में इसलिए जाने जाते हैं, क्योंकि हमारा एक खास मकसद है। हम सभी को एक दिशा में आगे बढ़ना सीखना चाहिए और हमें मजबूत इरादों वाले नेतृत्व की जरूरत है, जिसमें देश के लिए थोड़ा जोश और भागीदारी की भावना हो। अगर ऐसा हो, तो देश आगे बढ़ेगा।
भारत जैसे आकार वाला कोई देश रातो रात यूं ही नहीं बदल सकता। इसकी अपनी समस्याएं होंगी लेकिन अगर यह अधिक समस्या की ओर बढ़ने की बजाय समाधान की ओर बढ़ना शुरू कर देता है, तो यह भी काफी है। अगर वह सही दिशा में बढ़ रहा हो, तो हम सब उसे धक्का देकर उसकी रफ्तार तेज कर सकते हैं। अगर वह गलत दिशा में बढ़ रहा हो और आप उसे धक्का देंगे तो आप पूरी तरह गलत जगह पहुंच जाएंगे।
इसलिए आत्मज्ञान और शासन व्यवस्था को आपस में जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है, मगर आपको अपनी खुशहाली और मानव जाति की खुशहाली के लिए अपने आत्मज्ञान के लिए ज़रूर कोशिश करनी चाहिए।
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