अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर यानी ध्यान भटकता हो तो क्या करें?
‘अटेंशन डेफिसिट’ (एडीडी) से पीड़ित बच्चों की संख्या पिछले एक दशक में लगातार बढ़ रही है। यहां तक कि बड़े भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। आख़िर क्या करे इससे निबटने के लिए?
प्रश्न - सद्गुरु, क्या आप बता सकते हैं कि मैं ध्यान नहीं लगा पाने की समस्या से छुटकारा कैसे पाऊं? सद्गुरु: जहां तक भौतिक शरीर और मन का संबंध है, तो दो इंसानों में इनकी क्षमताएं बराबर नहीं होतीं। एक इंसान शारीरिक या मानसिक तौर पर जो चीजें कर सकता है, हो सकता है कि दूसरा इंसान वह न कर सके। इसके लिए आपको कोई नाम देने की ज़रूरत नहीं है - जैसे अटेंशन डेफिसिट डिसॉर्डर - ADD या कोई दूसरा नाम। आपको बस यह देखना है कि आप जो हैं, उसकी सीमा को कैसे बढ़ाएँ। आपको ध्यान की कमी की समस्या है, मुझे बचपन में दूसरी समस्या थी। मैं जरूरत से ज़्यादा ध्यान देता था। अगर मेरा ध्यान एक चीज पर टिक जाता था, तो मैं अपने ध्यान को हटा ही नहीं पाता था। मैं बस घंटों एक चीज को देखता रहता था। लोगों को यह भी एक समस्या लगती थी कि मैं हर समय एक ही चीज को देखता रहता हूं।
ध्यान के लिए कोई एक पैमाना नहीं है
मुझे यह बात अच्छी तरह याद है। मेरे पिता पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज थे, मगर दुर्भाग्य से उन्होंने मेरे जैसा पुत्र पैदा किया, जिसे किसी तरह की पढ़ाई-लिखाई की कोई चिंता नहीं थी।
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एक कण में पूरी दुनिया है। लोगों ने कोई माइक्रस्कोप से एक परमाणु या अणु को देखने में अपना पूरा जीवन बिता दिया। ऐसा धब्बा तो किसी अणु से काफ़ी अधिक बड़ा होता था। लोगों को लगता था कि मैं पागल हो रहा हूं क्योंकि मैं जरूरत से अधिक ध्यान देता था। इसलिए अपने आप पर कोई लेबल मत लगाइए। कौन तय करता है कि आपको ‘अटेंशन डेफिसिट’ की समस्या है? क्या इसका कोई पैमाना है कि आपके अंदर कितना ध्यान होना चाहिए या आपको कितना ध्यान मिलना चाहिए? ऐसा कोई पैमाना नहीं है – यह सब इंसान की बनाई हुई बातें हैं।
लेबल ढोना
समस्या यह है कि बचपन से इंसानों पर लेबल लगा दिया जाता है और उनसे बाकी के पूरे जीवन इस लेबल को ढोने की उम्मीद की जाती है।
क्या हर किसी में ध्यान का स्तर एक जैसा होता है? निश्चित रूप से नहीं। कक्षा में हो रही चीजों पर मेरा बिल्कुल भी ध्यान नहीं होता था क्योंकि मुझे उसमें दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन हर दूसरी चीज पर मेरा पूरा ध्यान था। क्या इसका मतलब है कि मुझे अटेंशन डेफ़िसिट की समस्या थी? नहीं। बस मुझे इसमें दिलचस्पी नहीं थी कि ब्लैकबोर्ड पर क्या लिखा जा रहा है।
ध्यान धुन से आता है
क्या आपने ध्यान दिया है कि जब आप युवा हैं, या जब युवा थे, एक खास उम्र में अगर आप किसी के प्रति आकर्षित होते थे तो आपको उस पर ध्यान नहीं लगाना पड़ता था। वे बस आपके मन पर छा जाते थे। मैं यह उदाहरण इसलिए दे रहा हूं क्योंकि इस मामले में आपके शरीर की केमिस्ट्री आपके ध्यान को बढ़ाती है। दूसरी चीजों पर ध्यान देने के लिए थोड़ी कोशिश करनी होती है। जिस चीज को आप महत्वपूर्ण मानते हैं, उसके लिए आपके भीतर एक तेज़ जोश या धुन पैदा होनी चाहिए। जब आपकी किसी चीज में अधिक दिलचस्पी होगी, तो आप उस पर ध्यान देंगे ही। कोई ऐसी चीज खोजें, जिसे लेकर आपके अंदर जोश हो, फिर ध्यान अपने आप आ जाएगा।
फिलहाल आपके मन की जो स्थिति है, जरूरी नहीं है कि वह पूरे जीवन वैसी ही रहे। अपने मन की रूपरेखा को बदलना सबसे आसान काम है क्योंकि यह कुदरती रूप से आपका सबसे लचीला पहलू है। अपने शरीर की रूपरेखा को बदलना बहुत कठिन है। मगर बहुत से लोग अपने मन को एक ठोस रूप में बदल लेते हैं। आप अपने सिर को किस काम में लाना चाहते हैं? बस सिर से दूसरों को मारने के लिए? एक ठोस पत्थर के रूप में मन का इस्तेमाल बहुत ही सीमित है। आपको अपने मन को जहां तक संभव हो, लचीला रखना चाहिए। आपका मन जितना लचीला होगा, आप उससे उतना अधिक काम ले पाएंगे। इसलिए यह कोई मायने नहीं रखता कि लोग आपके ऊपर किस चीज का लेबल लगाते हैं। अगर आप चाहें, तो अभी अपने मन के रूप को बदल सकते हैं।