गरमी की छुट्टियां खत्‍म होने को हैं, फिर से स्कूल जाने का समय आने वाला है। माता-पिता नई पुस्तकों और स्टेशनरी के साथ अपने बच्चों के आने वाले शैक्षिक साल के लिए तैयारी कर रहे हैं। यही मौका है कि इस बारे में भी सोचा जाए और तय किया जाए कि आने वाला साल बच्चों के लिए न केवल सीखने का साल हो, बल्कि चहुंमुखी विकास का साल हो। सद्‌गुरु इस बारे में कुछ सुझाव दे रहे हैं। 

 

सद्‌गुरु :

#1. पढ़ने की आदत को बढ़ावा देना

अगर लोगों का फोकस पढ़ने में अधिक होता, तो वे अधिक शांत, अधिक विचारशील होते और जीवन को थोड़ी और गहराई से देखते।
पढ़ने की आदत को एक संस्कृति के तौर पर विकसित करना होगा । पढ़ने का असर वीडियो देखने या कंप्यूटर गेम खेलने से बिल्कुल अलग होता है। इससे आपके दिमाग की और आपके सोच या कहें अंतर्दृष्टि की बिल्कुल अलग तरीके से कसरत होती है। उम्मीद है कि युवा पीढ़ी को वीडियो देखने से अधिक पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। हां, ऑडियो-विजुअल माध्यम काफी शिक्षाप्रद हो सकते हैं, वह अपने तरीके से असरदार भी हैं, लेकिन पठन या अध्ययन में इनसे अधिक गूढ़ता और गहराई है। सिनेमा देखने की तुलना में पढ़ने में अधिक गंभीरता है। अगर ज्यादा से ज्यादा लोग अभी जितना पढ़ते हैं, उससे अधिक पढ़ते,अगर उनका फोकस पढ़ने में अधिक होता, तो वे अधिक शांत, अधिक विचारशील होते और जीवन को थोड़ी और गहराई से देखते।

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#2. बुद्धि और महत्वाकांक्षा को विकसित करना

आपके बच्चे को कोई ऐसी चीज करनी चाहिए जिसके बारे में आपने अपने जीवन में सोचने तक की हिम्मत नहीं की।
हर बच्चे में अपने जीवन को भरपूर जीने के लिए जरूरी समझ होती है। माता-पिता के रूप में आपको बस ऐसा माहौल तैयार करना है, जिसमें उसकी बुद्धि विकसित हो, बस उसे बुद्धिमान और जागरूक बनने के लिए प्रोत्साहित कीजिए। समस्या तब आती है जब माता-पिता अपने बच्चे को अपने तरीके से बुद्धिमान बनाना चाहते हैं, बच्चे के तरीके से नहीं। माता-पिता की राय में बच्चा बुद्धिमान तब है जब वह डॉक्टर बन जाए। हो सकता है कि वह एक लाजवाब बढ़ई बनता, लेकिन आप उसे डॉक्टर बनाना चाहते हैं। इसलिए नहीं कि आप अपने बच्चे को एक डॉक्टर के रूप में सेवा करते देखना चाहते हैं, बल्कि सिर्फ इसलिए क्योंकि आपके दिमाग में यह बात है कि एक डॉक्टर या इंजीनियर होना समाज में एक तरह की प्रतिष्ठा की बात है। अपने बच्चों के जरिये अपना जीवन जीने की कोशिश न करें। यह बच्चों को बर्बाद करने का निश्चित तरीका है।

जरूरी नहीं कि आपका बच्चा वही करे जो आपने अपने जीवन में किया। आपके बच्चे को कोई ऐसी चीज करनी चाहिए जिसके बारे में आपने अपने जीवन में सोचने तक की हिम्मत नहीं की। तभी यह दुनिया आगे बढ़ेगी।

#3. अनुशासन की भावना लाना

योगाभ्यास जीवन में अनुशासन लाता है क्योंकि आपको कुछ खास चीजें एक खास तरीके से करनी पड़ती हैं।
अंग्रेजी में ‘डिसिप्लिन’ शब्द यानी अनुशासन का मतलब होता है ‘एक सीख’ या ‘सीखना’। जब आप कहते हैं कि मैं अनुशासित हूं, तो इसका अर्थ है कि आप सीखने के लिए हमेशा तैयार हैं। आप किसी रीति में बंधे हुए नहीं है। अनुशासन सिर्फ किसी काम को एक खास तरीके से करना नहीं है। अगर आप लगातार कोशिश करते हैं और सीखना चाहते हैं कि हर काम को बेहतर तरीके से कैसे किया जाए, तो आप अनुशासित हैं।

अगर आप बच्चे के जीवन को योगाभ्यास से जोड़ पाएं तो हो ही नहीं सकता कि वे अनुशासित न हों। उनके जीवन में अनुशासन आ जाएगा। योगाभ्यास जीवन में अनुशासन लाता है क्योंकि आपको कुछ खास चीजें एक खास तरीके से करनी पड़ती हैं। वरना वह फायदेमंद नहीं होता। योग बहुत सावधानी और सतर्कता से सिखाया जाता है। एक बार जब आप उसे उसी सावधानी के साथ करने लगते हैं, तो कोई वजह नहीं है कि आप अनुशासित न हों।

 

संपादक की टिप्पणी: पालन-पोषण पर सद्‌गुरु के ज्ञान का अधिक लाभ उठाने के लिए नि:शुल्क ई-बुक Inspire Your Child, Inspire the World   को डाउनलोड करें