सद्गुरुसद्‌गुरु और पूर्व मिस इंडिया तथा बॉडीवुड अभिनेत्री जूही चावला चर्चा कर रहे हैं कि ‘बेशर्त प्यार’ और भक्ति के क्या गुण होते हैं, और क्या ऐसी स्थिति में कोई किसी और का पायदान बन कर रह सकता है।

जूही चावला:

सद्‌गुरु, हम ‘बेशर्त प्यार’ और ‘दूसरों का पायदान’ बनने के बीच कहां और कैसे अंतर कर सकते हैं?

 

सद्‌गुरु :

हमें समझने की ज़रूरत है कि जिसे प्यार कहा जाता है, वह आम तौर पर एक आपसी फायदे के लिए बनाई गई योजना होती है। ‘तुम मुझे यह दो – मैं तुम्हें वह दूंगा, अगर तुम मुझे यह नहीं दोगे, तो मैं तुम्हें वह नहीं दूंगा।’ ऐसा कहा नहीं जाता, मगर यही किया जाता है।

इंसानों की शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक, आर्थिक, सामाजिक और कई दूसरी तरह की जरूरतें होती हैं। ‘तुम मुझे यह दो – मैं तुम्हें वह दूंगा’ जैसी भद्दी बातें करने की बजाय, हम उसे भावनाओं की एक खास मिठास से लपेटते हुए उसमें थोड़ी सुरुचि और सुंदरता ले आते हैं। इसे हम प्रेम प्रसंग कहते हैं। इंसानों के रूप में एक बुनियादी तरीके से लेन-देन करना हमें भद्दा महसूस कराता है। अगर आप दोनों हाथों से खाना लेकर खाते हैं, तो यह बहुत भद्दा लगता है, है न? हम एक सभ्य तरीके से खाना चाहते हैं।

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इसी तरह हमने अपनी शारीरिक, भावनात्मक और आर्थिक जरूरतों को एक अधिक सुन्दर तरीके से पूरा करने की व्यवस्था की है। घरेलू उद्देश्यों के लिए – दो लोगों के साथ रहने के लिए, उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए, बच्चे पैदा करने के लिए, उन्हें पालने, बड़ा करने के लिए, प्यार का एक घरेलू स्तर काफी है। बहुत कम लोग ऐसे प्रेम प्रसंग के लिए तैयार होते हैं, जो दो जिंदगियों को एक कर दे और उन्हें परम-तत्व से मिलन की अवस्था तक पहुंचा दे।

 

बेशर्त प्यार – परम मिलन का रास्ता

दो लोगों का अनुभव में एक होने के लिए, एक अलग तरह की तैयारी की जरुरत है। ज्यादातर लोग प्यार को घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। वे उससे आगे नहीं जाना चाहते। घरेलु जरूरतों से आगे जाने के लिए दोनों को तैयार होना होगा। अगर एक तैयार है और दूसरा नहीं, या एक कोशिश कर रहा है और दूसरा नहीं, तो ऐसा लग सकता है कि एक व्यक्ति पायदान बन रहा है, या एक का शोषण हो रहा है। मगर जो परम मिलन के लिए खुद ही प्यार बन जाना चाहता है, उसे पायदान या कुछ और बनने की परवाह नहीं होनी चाहिए।

 

ऐसा प्यार जिसमें पायदान बनना मंजूर हो

भारत में हमारे यहां एक ऐसी संस्कृति है, जहां लोग अपनी मर्जी से खुद को दास बना लेते हैं। आप तुलसीदास, कृष्णदास, या किसी और तरह के ‘दास’ को जानते हैं? वे खुलेआम कहते हैं, ‘मैं एक दास हूं।’ वे पायदान के रूप में इस्तेमाल किए जाने से डरते नहीं हैं। वे तो खुद पायदान बनना चाहते हैं। इस तरह का प्यार परम मिलन के लिए होता है, सिर्फ घरेलू मकसद के लिए नहीं। अगर आप परम मिलन की खोज में हैं, तो प्यार अलग ही तरीके से होना चाहिए। अगर आप प्यार से सिर्फ घरेलू कामकाज चलाने का रास्ता खोज रहे हैं, तो फिर जरूर आपको शिष्ट तरीके से यह देखना होगा - कि ‘इस प्यार से किसको क्या मिलता है।’ अगर कोई जरूरत से ज्यादा दूसरे का इस्तेमाल करता है, तो नतीजा यह होगा - कि ‘अगर तुम मुझे यह नहीं दोगे, तो मैं तुम्हें वह नहीं दूंगा’। यह एक सामाजिक चीज है। वरना, अगर आप परम मिलन चाहते हैं, तो आपको इन सब चीजों के बारे में नहीं सोचना चाहिए। या दूसरे शब्दों में, अगर प्यार एक खास स्तर से आगे चला जाता है, तो आप हमेशा सुरक्षित रहने की मानसिकता छोड़ देते हैं, और अपने-आप एक तरह से आघात-योग्य बन जाते हैं। हमेशा सुरक्षित रहने की मानसिकता छोड़े बिना, कोई प्रेम संबंध नहीं हो सकता। सच्चे प्रेम के लिए, आपको प्रेम में गिरना होता है। जब आप गिरते हैं, तो कोई आपको उठा सकता है, या कोई आपको कुचल कर भी जा सकता है।

 

प्रेम के अनुभव का स्त्रोत

यह अनुभव सुंदर होता है क्योंकि आप गिरते हैं - या फिर हमेशा सुरक्षित रहने की मानसिकता छोड़ कर खुद को आघात-योग्य - बना लेते हैं। यह सुन्दर इसलिए नहीं होता क्योंकि आपको उठाया गया, इसलिए भी नहीं कि आपको कुचला गया। इसमें सुन्दरता इसलिए आती है, क्योंकि प्यार में गिरने के लिए आपने अपने अंदर त्याग की भावना पैदा कर ली। अंग्रेजी का मुहावरा, ‘प्यार मे गिरना’ वाकई सही और बहुत खूबसूरत है। वहां हमेशा प्यार में गिरने की बात की गई। किसी ने कभी प्यार में खड़े होने या प्यार में चढ़ने या प्यार में उड़ने की बात नहीं की। क्योंकि आपके ‘अहम्’ के गिरने पर ही आपके अंदर प्यार का एक गहरा अनुभव हो सकता है। आपके प्रेम की सुंदरता उसमें नहीं थी जो उन्होंने आपको दिया या जो उन्होंने आपके लिए किया। आप अकेले बैठे और सोचा कि वाकई आप इस इंसान को इतना प्रेम करते हैं, कि उसके लिए आप मरने के लिए तैयार हैं – वह पल सबसे खूबसूरत पल होता है। वह पल नहीं, जब उन्होंने आपको एक बड़ा तोहफा दिया, वह पल नहीं, जब उन्होंने आपको हीरे की अंगूठी दी, वह पल नहीं जब उन्होंने आपके बारे में ऐसी-वैसी चीजें कहीं – नहीं। एक ऐसा पल था - जब आप दूसरे व्यक्ति के लिए मरने को तैयार थे – वही सच्चे प्यार का पल था। आप न सिर्फ पायदान बनने को, बल्कि उनके पैरों की धूल बनने को तैयार थे।

 

भक्ति का पागलपन

मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आपको खुद को वैसा बना लेना चाहिए – मैं यह कह रहा हूं कि जब प्रेम भक्ति में बदल जाता है, तो आप ऐसे ही बन जाते हैं। अगर आप प्यार में गिरते हैं, तो आप असुरक्षा को अपनाने और आघात-योग्य बनने को तैयार हो जाते हैं। मगर फिर भी प्रेम प्रसंगों में थोड़ी-बहुत ‘समझदारी’ काम करती है – आप उस स्थिति को छोड़ कर बाहर आ सकते हैं। लेकिन अगर आप भक्त बन जाते हैं, तो आपके अंदर कोई ‘समझदारी’ नहीं बचती और आप उससे उबर नहीं सकते।

आप सिर्फ इसलिए भक्त नहीं बनते क्योंकि आपने खुद को किसी एक धर्म, पंथ या किसी और चीज से जोड़ लिया है। एक भक्त खुद को किसी चीज से नहीं जोड़ सकता, वह बस भक्ति की ओर खिंचता है। इसलिए इससे पहले कि आप भक्ति के क्षेत्र में कदम रखें, आपको देख लेना चाहिए कि आप उसके लिए तैयार हैं या नहीं।

सबसे पहले तो आपके लक्ष्य क्या हैं? अगर आपका लक्ष्य बस दूसरे जीवन को अपना एक हिस्सा बनाना हैं, तो आपके लिए एक संतुलित प्रेम संबंध अच्छा है। लेकिन अगर आप बस एक अच्छा जीवन जीना नहीं चाहते, बल्कि आप खुद को जीवन की प्रक्रिया में विलीन कर देना चाहते हैं - अगर आप एक विस्फोटक-जीवन जीना चाहते हैं, अगर आप परवाह नहीं करते कि आपको क्या मिला और क्या नहीं मिला, तो आप एक भक्त बन जाते हैं।

एक भक्त ‘किसी’ का भक्त नहीं होता। भक्ति एक गुण है। भक्त का मतलब एक खास एकाग्रता होता है, आप लगातार एक ही चीज पर ध्यान लगाते हैं। जब कोई इंसान इस तरह बन जाता है, कि उसके विचार, उसकी भावनाएं और सब कुछ एक दिशा में केंद्रित हो जाते हैं, तो उस इंसान को कुदरती रूप से कृपा मिल जाती है। वह ग्रहणशील बन जाता है। भक्ति का मतलब है कि आप अपने भक्ति के केंद्र में खो जाने का इरादा रखते हैं। एक भक्त के रूप में आप यह नहीं सोचते कि आप एक पायदान बनते हैं, या किसी के सिर के ताज। आप जो भी बनते हैं, उससे आपको कोई आपत्ति नहीं होती, जब तक कि आप उस एक के पैरों या सिर या और कुछ को स्पर्श कर सकें। यह अस्तित्व की एक अलग अवस्था है। मुझे नहीं लगता कि घरेलू किस्म के प्रेम संबंध की तलाश में रहने वाले किसी इंसान को यह सवाल पूछना भी चाहिए।