बीमारियों के उत्तराधिकारी बच्चे क्यों बनें?
आम तौर पर कुछ लोगों को यह गलतफहमी रहती है कि वंशानुगत बीमारियों से बचना नामुमकिन है। लोगो को अकसर कहते सुना है कि “ओह! हाइ ब्लड प्रेशर? मेरे पिताजी को था इसलिए मुझे भी जरूर होगा।”
आम तौर पर कुछ लोगों को यह गलतफहमी रहती है कि वंशानुगत बीमारियों से बचना नामुमकिन है। लोगो को अकसर कहते सुना है कि “ओह! हाइ ब्लड प्रेशर? मेरे पिताजी को था इसलिए मुझे भी जरूर होगा।”
लेकिन अनगिनत वजहों से होने वाली बीमारियों जैसे हृदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, दमा, कैंसर, मोटापा, मंदबुद्धि आदि के बारे में विज्ञान कुछ और ही कहता है। आधुनिक विज्ञान का मानता है कि इन बीमारियों को विरासत में पाने का खतरा तो होता है, पर यह इस पर भी निर्भर करता है कि इंसान का रहन-सहन कैसा है और वह किस तरह के माहौल में रहता है।
नीचे सद्गुरु के संवाद के कुछ अंश दिये जा रहे हैं। दिल्ली में आयोजित एक गोष्ठी के दौरान डॉ संजीव.के.चौधरी जो सुपर रेलिगेयर लैबोरेटरीज के सी.ई.ओ. हैं, के साथ सद्गुरु की हुई वार्ता मे सद्गुरु ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि योग परंपरा में आनुवंशिक बीमारियों को किस रूप में देखा जाता है। उनका पूरा संवाद यू ट्यूब पर देखा जा सकता है।
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सद्गुरु:
इंसान का शरीर सेहत को संजोये रखने के लिए बना है। हो सकता है कि आपके डॉक्टर आनुवांशिक या कुछ अन्य कारणों की बात करें पर आपको यह समझना होगा कि आनुवंशिकी यानी जेनेटिक्स और कुछ नहीं सिर्फ एक जानकारी की पोटली है। अब आप इस जानकारी का इस्तेमाल बिमारी को ठीक करने के लिए करते हैं या फिर उसी बिमारी में दोबारा फंसने के लिए यह आपके हाथ में है। कोई भी जानकारी आपको सबल बनायेगी या दुर्बल यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप उसका इस्तेमाल किस तरह से करते हैं।
इस शरीर के भीतर की जानकारी उलझाने वाली नहीं है। अगर ऐसा होता तो ये जिंदगी एक नयी संभावना के रूप में नहीं उभरती। शरीर के पास ऐसी तमाम जानकारी है– “मेरे पड़दादा के दादा को ये बीमारी थी।” शरीर अपने भीतर इस तरह की जानकारियाँ संजोये रखता है, पर इसका मतलब यह नहीं कि यह बीमारी मुझे भी होगी। हां, अगर मैं भी वही गलतियां करूंगा जो उन्होंने कीं तो जरूर होगी। हाँ मेरे लिए ये तमाम जानकारियाँ उपयोगी होंगी कि अमुक-अमुक चीजें हो चुकी हैं, इसलिए मुझे अपना ख्याल इस तरह से रखना होगा।
अगर मैं लोगों की एक खास तरह से जांच करूं तो उनको तत्काल बता सकता हूं कि अगले पंद्रह सालों में उनको कौन-कौन सी बीमारियां घेरने वाली हैं। लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा क्योंकि मेरे पास करने के लिए और भी महत्वपूर्ण काम हैं। अगले पंद्रह साल बाद आपकी सेहत कैसी होगी मेरे लिए इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि इन पंद्रह सालों में आप क्या करने वाले हैं। आपकी देह-दशा तो अभी ही आपकी पोल खोल रही है। अगर आपको पचास की उम्र में दिल का दौरा पड़ने वाला है, तो तीस-पैंतीस के होते ही आपका शरीर उसकी ओर इशारा करने लगता है। सवाल यह है कि आप उस इशारे को समझना चाहते हैं या नहीं।
आज मेडिकल साइंस दिल का दौरा पड़ने के साल भर से भी ज्यादा पहले आपको आगाह कर सकता है; जबकि बीस साल पहले ऐसा संभव नहीं था। इतना ही नहीं वो जितने अधिक पैमानों पर आपका निरीक्षण करेंगे उतनी ही जल्दी आपको आगाह कर पायेंगे। लेकिन अभी ये सारे निरीक्षण यंत्रों से होते हैं आप खुद नहीं करते। हम यह भूल जाते हैं कि इन तमाम यंत्रों-उपकरणों को बनाने वाला यही देह-यंत्र है। अगर आप इस देह-यंत्र की शक्ति ही बढ़ा लें तो यही एक खास तरीके से आपको सारी जानकारी देने में सक्षम होगा। इसके लिए एक विशेष स्तर पर काम के साथ ध्यान और समर्पण - जो अब प्रायः दुर्लभ वस्तु हो गई है, की जरूरत होती है। अगर आप अपना आत्मबोध बढ़ा लें तो आपके मन में बीमारी का ख्याल भी नहीं आएगा। आपके लिए बीमारी नाम की कोई चीज होगी ही नहीं।