चांद के साथ चलो...
चांद केवल हमारी कवितार्ओं और कहानियों से ही नहीं जुड़ा है, बल्कि यह जीवन के कुछ गहरे आयामों को भी छूता है। आइए जानते हैं क्या संबंध है चांद का हमारे जीवन से -
चंद्रमा की अलग-अलग स्थितियों का मानव के शरीर और मन पर अलग-अलग तरह का असर पड़ता है। अलग-अलग स्थितियों का अलग-अलग मकसद के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
हम आधुनिक समय में जी रहे हैं, जहां दिन हो या रात, हमारी आंखों के सामने रोशनी चमकती रहती है। मेरे ख्याल से आज शहरों में रहने वाले अधिकतर लोगों का ध्यान पूर्णिमा की चांद की तरफ भी नहीं जाता। आश्चर्य है कि आखिर आप पूर्णिमा के चांद को अनदेखा कैसे कर सकते हैं?
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चंद्रमा की हर स्थिति को आप या तो आसमान में सर उठा कर देख कर जान सकते हैं या अगर आप अपने शरीर में जागरूकता और समझ का एक खास स्तर ले आएं, तो आपको पता चलेगा कि हर स्थिति में शरीर थोड़ा अलग तरीके से व्यवहार करता है। यह पुरुष और स्त्री दोनों शरीरों में होता है, लेकिन स्त्री शरीर में अधिक साफ प्रकट होता है। इंसान के भीतर के जो चक्र हैं- जिन पर मानव जन्म, या कहें इस शरीर का सृजन निर्भर करता है, वह चंद्रमा के समय-चक्र से गहरे जुड़े हुए हैं।
तर्क से परे
मुख्य रूप से 'लूना' शब्द का मतलब चंद्रमा होता है, लेकिन इसका यह भी मतलब है कि आप तर्क से दूर हो गए हैं। अगर आपका सिस्टम सुव्यवस्थित नहीं है और अगर आप तर्क से दूर हो गए हैं तो आप पागलपन की ओर बढ़ जाएंगे। लेकिन अगर आप सुव्यवस्थित हैं, तो आप अंतर्ज्ञान की ओर बढ़ेंगे। चंद्रमा एक परावर्तन है। आप चंद्रमा को देख सकते हैं क्योंकि वह सूर्य की रोशनी को परावर्तित करता है। मनुष्य का बोध भी एक तरह का परावर्तन है। अगर आप परावर्तन के अलावा कोई और चीज देखते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप सच नहीं देख रहे हैं। कोई भी बोध वास्तव में एक प्रतिबिंब होता है। चूंकि प्रतिबिंब चंद्रमा की प्रकृति है, इसलिए चंद्रमा को हमेशा से जीवन के गहरे अनुभवों या ज्ञान का प्रतीक माना जाता रहा है। इसलिए दुनिया में हर जगह चंद्रमा की रोशनी का रहस्यवाद या आध्यात्मिकता से गहरा संबंध रहा है। इस संबंध को दर्शाने के लिए ही आदियोगी शिव ने चंद्रमा के एक हिस्से को अपने सिर पर आभूषण के रूप में धारण किया था।
सृष्टि का रूप
विज्ञान भी केवल इसी तरह से घटित हो सकता है। यदि आप आधुनिक विज्ञान को देखें जो असल में अब भी अपनी शुरुआती अवस्था में है, तो यही चीज हो रही है। वे शुरुआत में सौ फीसदी तार्किक थे। कुछ कदम चलने के बाद, अब वे धीरे-धीरे अतार्किक हो रहे हैं। भौतिकशास्त्री तो लगभग रहस्यवादियों की तरह बात करने लगे हैं। वे भी वही भाषा बोलने लगे हैं क्योंकि सिर्फ यही एक तरीका है, सृष्टि ऐसी ही है। अगर आप सृष्टि का पता लगाएं, तो वह ऐसी ही होगी।