योग से लेकर नृत्य तक में तरह-तरह की मुद्राएं सिखाई जाती हैं। आखिर क्या है इन मुद्राओं से लाभ और क्या है इनका राज - आइए जानते हैं सद्गुरु से:
किसी विशेष मुद्रा में होने पर आपकी ऊर्जा एक खास तरह से काम करने लगती है।
मुद्रा हाथों की एक खास स्थिति है। योग में मुद्राएं आपके शरीर को एक खास तरीके से व्यवस्थित करने के लिए होती हैं। आपने देखा होगा कि शास्त्रीय नृत्य में भी अनेक तरह की मुद्राएं होती हैं। आप सिर्फ अपनी हथेलियों की स्थिति बदल कर ही अपने सिस्टम के काम करने के तरीके को बदल सकते हैं। यह अपने आप में एक पूरा विज्ञान है, जो वास्तव में शरीर की ज्यामिति यानी ज्यॉमेट्री और सर्किट से जुड़ा होता है। किसी विशेष मुद्रा में होने पर आपकी ऊर्जा एक खास तरह से काम करने लगती है। योग में ऐसे प्रणालियां हैं जिसमें आप कुछ खास अनुपातों में गिनती करके अपनी सांस पर एक खास ढंग से काबू कर सकते हैं। ऐसा करके अगर आप चाहें तो अपनी ऊर्जा को शरीर की किसी भी खास कोशिका पर केंद्रित कर सकते हैं। हमारे हाथ खाना खाने और शारीरिक काम करने के अलावा और भी कई चीजों को करने के काबिल होते हैं। आप इन हाथों को इस तरह से बना सकते हैं कि इन्हें यहीं पर घुमाकर कहीं किसी दूसरी जगह पर किसी काम को अंजाम दिया जा सके। आप जहां चाहें वहां बिना किसी गलती के बिलकुल ठीक-ठीक अंजाम दे सकते हैं, क्योंकि ये हाथ हर काम को करने के लिए एक यंत्र हैं। ये एक तरह से आपकी ऊर्जा के कंट्रोल पैनल हैं।
इस मानव-तंत्र को आप या तो सिर्फ एक मामूली इंसान बना कर रख सकते हैं, या फिर एक जबरदस्त संभावना के रूप में इसका विस्तार कर सकते हैं।
भारतीय संस्कृति में हर चीज के लिए एक खास आसन, एक खास मुद्रा, सांस लेने का एक खास तरीका बताया गया है, ताकि इंसान अपनी बेहतरीन क्षमता को प्रकट कर सके।
आप चाहे जो करें, यह कंट्रोल पैनल तो आपके पास है ही। अगर आप इस सिस्टम के साथ ठीक से पेश आएंगे, तो आप अपनी जिंदगी के साथ अद्भुत चीजें कर सकते हैं। ऐसा करने के लिए बहुत अधिक खोजबीन और बहुत साधना करनी होगी। मुद्राएं सैकड़ों तरह की हैं, कुछ अच्छी सेहत के लिए, कुछ खुशहाली के लिए, और कुछ खास तरह की प्रक्रियाओं की शुरुआत के लिए। जिंदगी के अलग-अलग पहलुओं के लिए अलग-अलग मुद्राएं होती हैं। भारतीय संस्कृति में हर चीज के लिए एक खास आसन, एक खास मुद्रा, सांस लेने का एक खास तरीका बताया गया है, ताकि इंसान अपनी बेहतरीन क्षमता को प्रकट कर सके। यह अभी भी हमारी संस्कृति में हर कहीं पाया जाता है, लेकिन अफसोस, कि जरूरी समझ और जागरूकता के बिना ही लोग इसका अभ्यास करते हैं।
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