कॉरपोरेट जगत के रिश्ते, तनाव और चुनौतियां
इस ब्लॉग में सद्गुरु भारत में कारोबार करने पर सामने आने वाली बड़ी चुनौतियों की चर्चा कर रहे हैं और कारोबार में उन अवसरों के बारे में बता रहे हैं, जिनका अब तक लाभ नहीं उठाया गया है...
बिजनेस टुडे पत्रिका के साथ अपने साक्षात्कार के पहले भाग में मौजूदा राजनीतिक मुद्दों और भारत के नेताओं पर बात करने के बाद, इसके दूसरे भाग में सद्गुरु भारत में कारोबार करने पर सामने आने वाली बड़ी चुनौतियों की चर्चा कर रहे हैं और कारोबार में उन अवसरों के बारे में बता रहे हैं, जिनका अब तक लाभ नहीं उठाया गया है। अंत में भारत और चीन की तुलना करते हुए वह बताते हैं कि कारोबार के लिए अपने पड़ोसी देश के मुकाबले भारत एक बेहतर स्थान क्यों है।
बिजनेस टुडे: ऐसा लगता है कि भारत के कॉरपोरेट जगत में, एक्जीक्यूटिव काफी तनाव में रहते हैं...
सद्गुरु:
समस्या यह है कि आप सड़क पर चलते चपरासी से पूछते हैं तो पता चलता है कि वह अपने काम को लेकर तनाव में है। आप दो बच्चों वाली गृहिणी से पूछते हैं तो वह कहती है वह एक पति और दो बच्चों को लेकर तनाव में है। तनाव आपकी मानसिक स्थिति को दिखाता है।
आपने इन शानदार तंत्रों – मानव शरीर और मन का इस्तेमाल करना नहीं सीखा है। आपने दरअसल इन तंत्रों के इस्तेमाल का ‘यूसर मैन्युल’ पढ़ा ही नहीं है।
बिजनेस टुडे: गिरावट के इस दौर में मालिक-कर्मचारी के बेहतर रिश्तों के लिए कॉरपोरेट भारत क्या कर सकता है?
सद्गुरु:
हाल में, दक्षिणी भारत की एक बड़ी कंपनी अपनी समस्या लेकर मेरे पास आई। कंपनी अपने कर्मचारियों की संख्या में 10 फीसदी की कटौती करना चाहते थे। मैंने उनसे कहा, बाकी के 90 फीसदी कर्मचारियों से जाकर बात कीजिए कि क्या वे एक खास अवधि के लिए 10 फीसदी कम वेतन ले सकते हैं। आप उस समय का उपयोग उन 10 फीसदी लोगों को एक अलग क्षमता के लिए फिर से ट्रेनिंग देकर तैयार करने के लिए कर सकते हैं। आपको बता दूं कि जब उन्होंने ऐसा किया तो उनके कर्मचारियों ने कम वेतन लेने से इनकार नहीं किया। ये तथाकथिक ‘हायर एंड फायर’ का जो तरीका है, वो पश्चिम का है। भारत में जो हमारे लिए काम करता है, वह कहीं नहीं जाता। हमारा उसके साथ एक लगाव हो जाता है। अगर आप अपने दफ्तर में काम करते हुए किसी तरह की मानवता का अनुभव नहीं करते, तो आप ये समझिए कि आप एक रोबोट की तरह काम कर रहे हैं। अपने काम को अपने जीवन के साथ जोड़ना बहुत ही स्वाभाविक है।
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बिजनेस टुडे: कारपोरेट भारत में, कारोबारी परिवारों के अंदर गहरे मतभेद हैं। आपके ख्याल से इन्हें कैसे सुलझाया जा सकता है?
सद्गुरु:
एक समय था, जब हम परिवार में किसी एक सदस्य को, जो सबसे बड़ा हो, अभिभावक के रूप में देखते थे। वह जो कह देता था, वह कानून बन जाता था। वह परंपरा किसी हद तक हम खो चुके हैं। मुझे लगता है कि आजकल सभी नई कंपनियों ने संपत्ति प्रबंधन और उत्तराधिकार आदि को लेकर बकायदा एक सिस्टम बना रखा है। लेकिन परिवार के स्वामित्व वाले कारोबार कभी-कभार ऐसा करने से चूक जाते हैं।
बिजनेस टुडे: आपके विचार में कॉरपोरेट और सरकार का रिश्ता कैसे सुधर सकता है? इस समय सरकार कॉरपोरेट पर कर चोरी और बाकी चीजों का आरोप लगाते हुए उन पर दबाव डाल रही है...
सद्गुरु:
कारोबार को एक बाधा दौड़ नहीं बनाना चाहिए। आप उस एक चीज को ठीक कर दीजिए, फिर आप हर कानून लागू कर सकते हैं। उन कंपनियों से कर अदा करने के लिए कहना ठीक नहीं है जो अपना बुनियादी ढांचा खुद तैयार करते हैं, अपने इस्तेमाल के लिए बिजली खुद पैदा करते हैं। आप यह नहीं कह सकते कि ‘बस मैं कर लूंगा।’ आप हमलावरों की तरह बंदूक की नोक पर कर वसूल नहीं कर सकते।
बिजनेस टुडे: पोलीटिकल फंडिंग के बारे में आपका क्या कहना है? कई नेता अपने पार्टियों के लिए चंदे के नाम पर पैसे वसूलते हैं। क्या यह कॉरपोरेट पर दबाव डालने का तरीका नहीं है?
सद्गुरु:
ये चीजें होंगी क्योंकि इस देश में आप कोई कारोबार सिर्फ कानून से नहीं चला सकते। आपको किसी न किसी को खुश करना होता है। जब कर्ज उतारने का समय आता है, तो आपको पैसे देने पड़ते हैं। हमें इस देश में अपने मंत्री या प्रधानमंत्री के पास जाए बिना कारोबार चलाने में समर्थ होना चाहिए। कुछ राज्य अब स्पष्ट कानून बना रहे हैं।
बिजनेस टुडे: क्या भारत, अमेरिका जैसे विकसित देश की बराबरी करने का सपना देख सकता है?
सद्गुरु:
संयुक्त राज्य अमेरिका, आकार में भारत से लगभग तीन गुना बड़ा है, जबकि उसकी जनसंख्या हमारी एक चौथाई है। वहां प्राकृतिक संसाधन बहुतायत में हैं। दुनिया में मौजूद मीठे जल का लगभग 21 फीसदी अमेरिका में है। आप अमेरिका के साथ अपनी तुलना नहीं कर सकते।
बिजनेस टुडे: आपके ख्याल से विकास के क्षेत्र में चीन जैसे दूसरे उभरते देशों के मुकाबले भारत की स्थिति कैसी है? क्या आपको लगता है कि हमने बहुत कुछ हासिल कर लिया है?
सद्गुरु:
निश्चित रूप से हमने बहुत हासिल नहीं किया है, इसका कोई सवाल ही नहीं है। चीन हमसे काफी आगे है। दोनों की बराबरी नहीं हो सकती। लेकिन एक अरब लोगों को घोर गरीबी से उठाकर विकसित देशों के बराबर उन्हें रखना और ऐसा सिर्फ 35 साल में करना, जिसमें 200 साल से ज्यादा लग सकते हैं, यह भी कोई मामूली उपलब्धि नहीं है।
लेकिन हमारे पास अभी भी जो क्षमता है, व्यक्तिगत स्तर पर जो उद्यमशीलता है, उसे पूरी तरह उभरने का मौका नहीं मिला है। कल अगर भारत में कारोबार करने के लिए राह में आने वाली चुनौतियां खत्म हो जाएं, सभी कानूनों को सरल बना दिया जाए, भ्रष्टाचार खत्म कर दिया जाए और लोगों को खुली छूट दी जाए, तो आप भारत को तेजी से आगे बढ़ते देखेंगे। अलग-अलग वजहों से हर कोई भारत के साथ कारोबार करना चाहेगा, चीन के साथ नहीं। जब चीन के साथ कारोबार करते हैं तो आपको पता भी नहीं होता कि आप किसके साथ पेश आ रहे हैं। भले ही आप सोचें कि प्लास्टिक के खिलौने बनाने वाले किसी व्यक्ति के साथ आप व्यापार कर रहे हैं, मगर असल में आप कम्युनिस्ट पार्टी के साथ व्यापार कर रहे होंगे। भारत में ऐसा नहीं है, लेकिन फिर भी मामला कुछ ऐसा है मानो उन्हें तो सर्दी-जुकाम और बुखार है लेकिन हमें कैंसर है। हमें उसे ठीक करना होगा।