भारत में, जब लोग मंदिर जाते हैं, तो वे वहां प्रार्थना करने नहीं जाते। आपको ऐसे लोगों की भारी भीड़ दिखाई देगी, जो पल भर के लिए अपने ईष्ट को देखना चाहते हैं, वे दर्शन करना चाहते हैं। आखिर क्या लाभ है दर्शन का ?

यदि आप प्रेम को जानना चाहते हैं, तो आपको प्रेम बन जाना चाहिए। यदि आपको सत्य जानना है, तो आपको वही बन जाना चाहिए। सिर्फ यही एक तरीका है। यह ऐसी चीज है जो आप बन सकते हैं।
जब लोग कहते हैं,‘मैं देखना चाहता हूं’ तो क्या उनका मतलब किसी मॉल में सजी-धजी चीजों को देखने से होता है? नहीं। अधिकतर लोग यह नहीं समझते कि जब मैं कहता हूं ‘मैं तुम्हें देखता हूं’, ‘मैं तुम्हें निहारता हूं’, तो इसका मतलब सामने वाले का अनुभव, उसकी छवि मेरे अंदर उतर रही है। अगर आप अपने आप में कुछ ज्यादा डूबे हुए हैं, खुद से कुछ ज्यादा भरे हुए हैं, तो आपके अंदर कुछ नहीं जाता, वह छवि बस आपकी आंखों की पुतलियों से टकराकर वापस लौट जाती है। लेकिन यदि आप अपने अंदर खुद से बहुत भरे हुए नहीं हैं, तो वह अपनी छाप छोड़ जाती है, आपके अंदर बढ़ने लगती है।

यदि आप पूरी उत्सुकता के साथ इस इच्छा से किसी चीज को देखते हैं कि वह छवि आपके अंदर समा जाए, और आप अपने आप को कम कर लेते हैं, तो आप देखेंगे कि वह छवि बढ़ने लगती है और एक जीवंत प्रक्रिया बन जाती है।

यदि आप कुछ जानना चाहते हैं, तो आपको वही चीज बन जाना चाहिए। यदि आप प्रेम को जानना चाहते हैं, तो आपको प्रेम बन जाना चाहिए। यदि आपको सत्य जानना है, तो आपको वही बन जाना चाहिए। सिर्फ यही एक तरीका है। यह कोई ऐसी चीज नहीं है जो आप कर सकते हैं, यह ऐसी चीज है जो आप बन सकते हैं। यह कोई चाल नहीं है कि किसी भी तरीके से कुछ पाया जा सके, आपको वही बनना पड़ेगा।

अगर दर्शन करना है, तो आपको अपने अंदर अधिकतम प्रभाव ग्रहण करना होगा। यदि आप इतना ध्यान करते हैं कि आप पूरी तरह शून्य में चले जाते हैं, तो यह दर्शन करने का बहुत अच्छा तरीका है।
जब आप किसी चीज को देखते हैं, तो वह आपका एक हिस्सा बन जाता है। उसका पूरी तरह से 'आप' बनना इस बात पर निर्भर करता है कि आप कब अपने आप को खाली करेंगे, खुद को शून्य कर लेंगे। यह जोड़ने की क्रिया नहीं है। यह तो पूरी तरह छा जाना है। उसे अपने अंदर ग्रहण करना होगा, वरना आप सिर्फ उसकी खुशबू ले पाएंगे। ‘मुझे यह अच्छा लगता है’- यह खुशी है। आप यहां बैठ कर चर्चा का आनंद उठाते हैं, या मौजूदगी का आनंद लेते हैं, दोनों खुशी है, खुशी के अलग-अलग प्रकार – लेकिन जब तक आप खुद को उसमें बदल नहीं लेते, आपको ज्ञान कभी नहीं मिलेगा।

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अगर दर्शन करना है, तो आपको अपने अंदर अधिकतम प्रभाव ग्रहण करना होगा। यदि आप इतना ध्यान करते हैं कि आप पूरी तरह शून्य में चले जाते हैं, अगर आप एक खाली घर की तरह हैं, तो यह दर्शन करने का बहुत अच्छा तरीका है। अगर आप पूरी तरह भरी हुई स्थिति में हैं, तो बेहतर होगा कि आप पूरे प्रेम और कोलमता से दर्शन करें क्योंकि जब आपकी भावनाएं कोमल होती हैं तभी आप जो देखते हैं, उसकी सबसे गहरी छाप पड़ती है।यह कोमलता आपके अंदर इसलिए नहीं आती कि आप किसी से प्रेम करने की कोशिश करते हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि आप प्रेम बन जाते हैं।

सद्‌गुरु दर्शन

18 से 24 जून

ईशा योग केंद्र, कोयंबटूर

 

आपको सूचित करते हुए हमें बेहद खुशी हो रही है कि 18 से 24 जून तक सद्‌गुरु आश्रम में होंगे और हर रोज शाम 5.30 - 8.30 के दौरान दर्शन के लिए उपलब्ध होंगे। दर्शन में आप सभी आमंत्रित हैं।  सद्‌गुरु के प्रवचन का हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध होगा।

 

दर्शन के दौरान जो साधक आश्रम में ठहरना चाहें वे रजिस्ट्रेशन के लिए अपने स्थानीय केंद्रों पर संपर्क करें।

अहमदाबाद: हर्षद पटेल  -  9099054029, harshaum@hotmail.com

जयपुर:  रणवीर सोलंकी  -  9414073788, ranvirs928@gmail.com

चंडीगढ: हरीश मिंगलानी  -  9316132495, hcminglani@gmail.com

विदिशा: प्रीति अरोडा  -  9827248924, ishapreetiarora@gmail.com

मुजफ्फरनगर: अजय अग्रवाल  -  9837050871, ajayagarwal381@gmail.com

संबलपुर:  मुरली केडिया  -   9437419658, muralidharkedia@gmail.com