धार्मिक आतंकवाद – कैसे निपटें पेरिस जैसे हमलों से?
पेरिस में हाल ही में हुए आतंकवादी हमलों में कई लोगों की जानें गई। खुद को धार्मिक कहने वाले इन आतंकवादियों से हम कैसे निपट सकते हैं? क्या नीति अपनानी होगी?
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पेरिस में हाल ही में हुए आतंकवादी हमलों में कई लोगों की जानें गई। खुद को धार्मिक कहने वाले इन आतंकवादियों से हम कैसे निपट सकते हैं? क्या नीति अपनानी होगी?
विश्व में फ़ैल रहे आतंक का एक बड़ा हिस्सा धार्मिक आतंकवाद है। आतंकवाद का लक्ष्य युद्ध करना नहीं बल्कि समाज को डर से अपंग बना देना है। उनका लक्ष्य - लोगों में भय पैदा करना, समाज को विभाजित करना, देश के आर्थिक विकास को रोकना, हर स्तर पर संघर्ष, हिंसा और अराजकता पैदा करना – या ऐसा कह सकते हैं कि पूरे देश को एक असफल राज्य बना देना है।
ऐसी धार्मिक सोच जिसमें विश्व-विजय का लक्ष्य हो, वह पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा ख़तरा पैदा करने की क्षमता रखती है। हर तरह की हिंसा में से, धर्म-प्रेरित आतंकवाद सबसे खतरनाक होता है। किसी भी दूसरी वजह से लड़ रहे व्यक्ति से आप तर्क कर सकते हैं, लेकिन जब किसी को यह विश्वास ही है कि वह भगवान के लिए लड़ रहा है, तो उससे तर्क नहीं किया जा सकता।
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पिछले दो हज़ार सालों में, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लोगों के ऊपर बिना किसी उकसावे के धार्मिक गुटों द्वारा हिंसा की गयी है। शांति, प्रेम और करुणा की बातें करते हुए जो हिंसा के चित्र उन्होंने रचे हैं, वे घृणा के काबिल हैं, और उनमें डरावनी संभावनाएं छुपी हैं।
अब समय आ गया है कि धर्म के नाम पर होने वाली इस हिंसा को प्रेरित करने वाले मूल कारणों पर ध्यान दिया जाए। सार्वजनिक भाषणों को राजनीति से जुड़ा न होकर आज के दौर की परेशानियों को सुलझाने के बारे में होना चाहिए। उन्हीं धार्मिक ग्रंथों में, जिन्हें ‘भगवान के शब्द’ कहा जाता है - उन ग्रंथों में विश्वास न करने वालों के खिलाफ हिंसा के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
चाहे किसी भी वजह से उकसावे के ये शब्द इन पवित्र ग्रंथों में आए हों, अब वक़्त आ गया है कि जो कुछ भी उचित नहीं है मिटा दिया जाए - यही भगवान की मर्जी है। हम भगवान से पूछ सकते हैं, और अगर जवाब में भगवान कुछ नहीं कहते तो इसे उनकी मर्जी मान लेना कोई गुनाह नहीं होगा।