एक ही मकसद है जिंदगी का
किेसी जिज्ञासु ने सद्गुरु से जीवन का मकसद जानना चाहा, आईए देखते हैं कि सद्गुरु का इस विषय पर क्या कहना है ...
यदि इस क्षण आप बहुत आनंद से भरे और आह्लादित महसूस कर रहे हैं तो क्या आपके मन में यह सवाल उठेगा कि “मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है?” – बिलकुल नहीं। ऐसे सवाल तभी मन में आते हैं जब जिंदगी किसी-न-किसी तरह से बोझ लगने लगती है। “क्या मेरे इस जिंदगी का वाकई में कोई मकसद है?” आपकी जिंदगी का अनुभव बढ़िया नहीं रहा है, उसकी कोई अहमियत नहीं लग रही है, इसीलिए आप उसके मायने ढूंढ़ रहे हैं। है न?
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सिर्फ यहां बैठ कर सांस लेते रहना ही अगर आपको भाव विभोर कर देता तो आप यह नहीं पूछते कि जीवन का अर्थ क्या है? इसलिए यह सवाल करने से पहले जो सबसे महत्वपूर्ण काम आपको करना है वह सिर्फ यह है कि आप यह सीखें कि इस जीवन को इसकी परम क्षमता तक कैसे ले जाया जाय। मैं जब “जीवन” कहता हूं तो शायद आप यह भी नहीं जानते कि जीवन है क्या... फिलहाल जो आपके पास है, वह सिर्फ तन और मन है। इनको जितना हो सके उतना आनंद से रखना सीखें। जब आपका भौतिक शरीर और मन आनंदपूर्ण अवस्था में होंगे तभी आपके अंदर की हर चीज अपने चरम पर काम करेगी। आपके आनंदपूर्ण होने पर ही आपका विवेक अपने चरम पर कार्य करता है। कोई मनुष्य यदि हरदम परमानंद की स्थिति में रह पाता है, मान लीजिए लगातार 24 घंटे तक, तो उसका विवेक दोगुना हो जायेगा। आज इसको साबित करने के लिए काफी वैज्ञानिक प्रमाण उप्लब्ध हैं।
क्या आपने अपने जीवन का एक भी दिन अशांति, चिड़चिड़ाहट, गुस्सा, घबराहट या ऐसी किसी चीज के बिना जिया है? अपने जीवन के बीते सालों में क्या 24 घंटे भी पूरे आनंद में बिताये हैं? नहीं? आप ही नहीं पूरी मानव जाति इस प्रश्न के उत्तर में “नहीं” कहेगी, अगर आप किसी एक दिन आनंदित नहीं हैं तो समझ सकते हैं कुछ हुआ होगा। लेकिन एक भी दिन आनंदित न रहने का मतलब है कि कोई भारी बुनियादी गड़बड़ी है। है न? इसका मतलब है: मानवीय प्रक्रिया की बुनियाद को समझे बगैर आप उसको चलाने की कोशिश कर रहे हैं। यह ऐसा ही है जैसे आप किसी कार में यह बिना जाने ड्राइवर की जगह पर बैठ जायें कि नीचे के तीन पेडल कैसे काम करते हैं और इनमें से किसी को भी जब चाहें जैसे चाहें दबाते जायें। फिर आप समझ सकते हैं कि आपकी गाड़ी के साथ क्या होने वाला है?
फिलहाल आपकी खुशहाली कितनी नजुक है ? आपने अपने जीवन में खुशी के पल देखे हैं, प्रेम के लमहों का अनुभव किया है, परमानंद के क्षण पाये हैं और भाव विभोर होने की ऊंचाइयों को भी छुआ है – लेकिन इनको आप निरंतर बनाये रखने में समर्थ नहीं हैं। यह सब इसलिए डावांडोल-सा है, क्योंकि आप चलायी जा रही चीजों की प्रक्रिया की बारीकियों को समझे बगैर अपना जीवन चला रहे हैं।
तो फिर उद्देश्य क्या है? यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि आपने अस्तित्व की विराटता का अनुभव नहीं किया है; आपने अपने अस्तित्व के भव्य स्वरूप का अनुभव नहीं किया है। यही कारण है कि आप पूछ रहे हैं, “उद्देश्य क्या है? इस जीवन को सार्थक बनाने के लिए मैं क्या करूं?” आपको कुछ नहीं करना है। अगर आप यहां एक पल के लिए बैठ कर इसका अनुभव करें तो आप समझ जायेंगे कि आपको कुछ नहीं करना है; केवल जीवित रहना ही अपने-आप में भव्य है। इसका अहसास आपको तब होगा जब कोई आपके सिर पर बंदूक का निशाना लगायेगा। अचानक आप यह समझ जायेंगे कि सिर्फ जिंदा रहना कितना सुंदर होता है। बजाय यह सब पूछने के आप अपने अंदर में आनंद को ढूढ़ लें, फिर यह सब प्रश्न मन में उठेंगे ही नहीं।