सद्‌गुरुहालांकि भारत में नदियों को पूजने की लंबी परंपरा रही है, लेकिन अब ये नदियां खतरे में हैं। सद्‌गुरु बता रहे हैं कि अगर हम तत्काल कदम नहीं उठाते, तो हम अपना कीमती जल और अपने देश के लिए भोजन पैदा करने की क्षमता खो देंगे।

 इस सभ्यता के निर्माण के दौरान प्राचीन भारत को हमेशा सात नदियों की धरती कहा गया। नदियां हमारे लिए इतनी महत्वपूर्ण रही हैं कि लोग उनकी पूजा करते हैं। हमने उनकी पूजा जरूर की मगर उनका ध्यान नहीं रखा।

नदियाँ 20 सालों में मौसमी हो सकती हैं

नदियां इस देश में लाखों सालों से बहती रही हैं। लेकिन अब हम उस स्थिति में पहुंच गए हैं, जहां नदियां गंभीर खतरे से जूझ रही हैं।

आज हमारी नदियां इस दर से घट रही हैं कि वे 20 सालों में मौसमी हो जाएंगी। जो नदियां लाखों सालों से जल की बारहमासी स्रोत रही हैं, वे दो पीढ़ियों में मौसमी बन जाएंगी।
हम इस पर कुछ ज्यादा ही ध्यान देते रहे हैं कि नदियों से लाभ कैसे उठाएं, बांध कैसे बनाएं, नहरें कैसे बनाएं, नदियों से और भोजन कैसे उगाएं, हमने ये सारी चीजें की हैं। इसमें हमारा अद्भुत रिकार्ड रहा है कि हम एक अरब लोगों के लिए भोजन पैदा करते हैं। यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं है। लेकिन इस प्रक्रिया में हम यह भी पक्का कर रहे हैं कि भावी पीढ़ी के पास कुछ भी खाने-पीने को नहीं होगा।

आज हमारी नदियां इस दर से घट रही हैं कि वे 20 सालों में मौसमी हो जाएंगी। जो नदियां लाखों सालों से जल की बारहमासी स्रोत रही हैं, वे दो पीढ़ियों में मौसमी बन जाएंगी। कावेरी अभी से साल में लगभग तीन महीने समुद्र तक नहीं पहुंच पाती और इस घटती नदी के लिए दो राज्यों में झगड़ा चल रहा है। कृष्णा नदी लगभग चार से पांच महीने समुद्र तक नहीं पहुंच पाती और यही हाल हर जगह है। हम बाकी सभी अनिश्चितताओं को झेल सकते हैं, लेकिन अगर हमारे पास पानी और अपनी आबादी के लिए भोजन पैदा करने की क्षमता नहीं रही, तो हमाने सामने एक भारी आपदा होगी।

हमारी ऊपरी मिट्टी नष्ट हो रही है

हम हर साल लगभग 5.3 अरब टन ऊपरी मिट्टी खो दे रहे हैं। यह लगभग सालाना मिट्टी के एक मिलीमीटर ऊपरी परत के बराबर है।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.
प्राचीन काल से ऐसा चलता आ रहा है कि जब हम फसलें उगाते थे तो सिर्फ फसल काटते थे, पौधे का बाकी हिस्सा और पशुओं का अपशिष्ट हमेशा वापस मिट्टी में चला जाता था। 
अगर हम उसकी भरपाई किए बिना इसी गति से आगे बढ़ते रहे, तो लगभग पैंतीस से चालीस सालों में देश की मिट्टी की सारी ऊपरी परत, जो फसल उगाने के लिए जरूरी है, पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। पिछले तीस से पैंतीस सालों में पहले ही लगभग पच्चीस फीसदी ऊपरी मिट्टी नष्ट हो चुकी है। अगर ऐसा चलता रहा, तो हम इस धरती को रेगिस्तान में बदल देंगे।

प्राचीन काल से ऐसा चलता आ रहा है कि जब हम फसलें उगाते थे तो सिर्फ फसल काटते थे, पौधे का बाकी हिस्सा और पशुओं का अपशिष्ट हमेशा वापस मिट्टी में चला जाता था। मगर आज हम लोग सब कुछ निकाल ले रहे हैं और कुछ भी वापस नहीं डाल रहे हैं। हमें लगता है कि सिर्फ खाद डाल देने से सब हो जाएगा। मगर ऐसा नहीं होता। हमारे भोजन की गुणवत्ता और पोषक मूल्य तेजी से कम हो रहे हैं। और भोजन उगाने की हमारी क्षमता जल्दी ही खत्म हो सकती है, क्योंकि हम इस जमीन को रेगिस्तान में बदल रहे हैं।

सरकारी नीति के बिना हल नहीं निकलेगा

आपके लिए यह कल्पना करना बहुत मुश्किल होगा कि यह हरी-भरी धरती रेगिस्तान कैसे हो जाएगी।

लोगों को लगता है कि पानी के कारण पेड़ हैं, नहीं, पेड़ों के कारण पानी है। अगर जंगल नहीं होंगे तो कुछ समय बाद कोई नदी नहीं बचेगी। 
अफ्रीका का कालाहारी रेगिस्तान जो आज दुनिया के सबसे कठोर रेगिस्तानों में से एक है, कभी बहुत हरा-भरा इलाका था जहां नदियां बहती थीं। आज वह बहुत कठोर रेगिस्तान है। ऐसा हो सकता है और अतीत में कई वजहों से ऐसा हुआ भी है। वे कुदरती वजहें थीं मगर आज हम खुद वजह बन रहे हैं।

इसे सिर्फ व्यक्तिगत जोश से ठीक नहीं किया जा सकता। अगर हममें से कुछ लोग जाकर नदी के किनारे कुछ पेड़ लगा कर यह सोचें कि हमने काम कर दिया, तो इससे कुछ नहीं होगा। इससे सिर्फ निजी संतुष्टि मिलेगी, यह कोई हल नहीं है। इसके लिए एक सरकारी नीति लागू किए जाने की जरूरत है। नदियों को पोषित करने के लिए उनके आस-पास की मिट्टी नम होनी चाहिए। हमारी अधिकांश नदियां वन पेाषित हैं। जब यह जमीन वर्षावनों से ढकी हुई थी, तो वर्षा का पानी मिट्टी में जमा होता था और धाराओं और नदियों को पोषित करता था। उस समय नदियां लबालब भरी रहती थीं। लोगों को लगता है कि पानी के कारण पेड़ हैं, नहीं, पेड़ों के कारण पानी है। अगर जंगल नहीं होंगे तो कुछ समय बाद कोई नदी नहीं बचेगी। लेकिन अभी भारत का एक बड़ा हिस्सा खेतों का है जिसे हम जंगल में नहीं बदल सकते। इसका समाधान यह है कि नदी के दोनों तटों पर कम से कम एक किलोमीटर के चौड़ाई तक और छोटी नदियों में आधा किलोमीटर तक, अगर सरकारी जमीन है तो हम वहां जंगल उगाएं। जहां वह जमीन निजी हो, वहां हम मिट्टी को नष्ट करने वाली फसलों के बदले बागवानी कर सकते हैं।

किसानों को सब्सिडी देनी होगी

किसान सिर्फ अपनी जीविका के लिए काम करता है। उसे पर्यावरण संबंधी आपदा की कोई जानकारी नहीं है।

यह समाधान सिर्फ सरकारी नीति से ही हो सकता है। अगर हम महत्वपूर्ण बदलाव लाना चाहते हैं तो हमें देश भर में लागू होने वाली नीति की जरूरत होगी। 
लेकिन अगर आप इस कदम के फायदे किसान को बताएंगे कि फलों के पेड़ लगाने पर वह जमीन जोतने से अधिक कमा सकता है, तो वह स्वाभाविक रूप से आपकी बात समझेगा। लेकिन जब तक बागवानी नतीजे न देने लगे, तब तक पहले कुछ सालों के लिए आपको सब्सिडी देनी होगी। एक बार उपज आने के बाद आपको निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना होगा कि वह इन हजारों स्क्वायर किलोमीटर में होने वाले बागवानी के उत्पादों को खरीदने के लिए उससे जुड़े उद्योग लगाएं। अगर आप पेड़ों की इस न्यूनतम संख्या को पक्का करें तो पंद्रह सालों में हमारी नदियों में कम से कम बीस फीसदी अधिक पानी होगा।

यह समाधान सिर्फ सरकारी नीति से ही हो सकता है। अगर हम महत्वपूर्ण बदलाव लाना चाहते हैं तो हमें देश भर में लागू होने वाली नीति की जरूरत होगी। हमें तुरंत अपनी नदियों का दोहन करने की बजाय उन्हें पुनर्जीवित करने के तरीके सोचने की जरूरत है। हमें देश में हर किसी को इस बारे में जागरूक करना चाहिए कि हमारी नदियों को बचाने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है।

नदी अभियान गुजरेगा 16 राज्यों और 23 बड़े शहरों से

इस दिशा में एक कोशिश के तौर पर हम 3 सितंबर से 2 अक्टूबर तक 30 दिनों के लिए एक ‘रैली फॉर रिवर्स’ या नदी अभियान शुरु कर रहे हैं, जिसमें मैं खुद 7000 किलोमीटर से अधिक गाड़ी चलाते हुए 16 राज्यों से गुजरूंगा और 23 बड़े शहरों में कार्यक्रम होंगे ताकि हमारी नदियों को बचाने के लिए एक मजबूत आधार तैयार हो सके। इस कार्यक्रम का समापन दिल्ली में होगा, जहां हम सरकार को एक ‘नदी पुनर्जीवन नीति’ की सिफारिश पेश करेंगे। अब तक हर राज्य एक अलग-अलग इकाई के रूप में काम कर रहा था, जैसे कि वो अपने आप में एक अलग अस्तित्व हो। अब सभी राज्यों को एक साथ आकर एक समान नीति पर काम करने की जरूरत है।

समीकरण बहुत आसान है। नदियों के आस-पास पेड़ होने चाहिए। अगर हम पेड़-पौधे लगाएंगे, तो वह पानी को रोक कर रखेंगे और नदियों में फिर से पानी भरेगा। अगर हम यह जागरूकता देश में हर किसी में ले आएं, एक समान नीति बनाएं और उसे लागू करना शुरू कर दें तो यह हमारे देश के भविष्य और आने वाली पीढ़ियों की खुशहाली के लिए एक बड़ा और कामयाब कदम साबित होगा।

संपादक की टिप्पणी: शहरों में सद्‌गुरु के कार्यक्रम के बारे में जानकारी के लिए RallyForRivers.org पर जाएं और यह जानें कि आप किस तरह इस राष्ट्रव्यापी अभियान में भाग ले सकते हैं और इसमें शामिल हो सकते हैं।