क्या हमारा भीतरी धर्म, बाहरी धर्म से अलग है?
हम अकसर धर्म को पूजा-पाठ और रीति रिवाजों से जोड़कर देखते हैं। लेकिन महाभारत काल में धर्म शब्द का उपयोग बिलकुल अलग अर्थ में होता था, आइये जानते हैं, धर्म का अर्थ महाभारत काल के सन्दर्भ में...
प्रश्न : सद्गुरु, आपने कहा कि हर इंसान का अपना जीवन, अपना धर्म हो सकता है और वह भी किसी दूसरे के धर्म से टकराए बिना ही। क्या आपको नहीं लगता कि आजकल इसका उल्टा हो रहा है? हम अपना धर्म अपने व्यक्तित्व के आधार पर बनाते हैं और फिर एक-दूसरे से भिड़ते रहते हैं।
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सद्गुरु : इसी कारण मैंने कहा कि धर्म बहुत ही गहन विचार है। अगर हमारी बहुत मामूली जरूरतें हैं और हम उन्हीं के इर्द-गिर्द अपना धर्म बना लेते हैं, तो निश्चय ही हम किसी न किसी से भिड़ ही जाएंगे। इसीलिए लोगों ने अपने धर्म इस तरह से बनाए कि उनकी जो परम यानी सर्वोच्च अभिलाषा है, वह किसी और की अभिलाषा से न टकराए। लेकिन सड़कों पर, घरों में, बाजारों में जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए एक सामूहिक धर्म होता है, जिसे हर किसी को मानना होता है।
अगर देखें तो धर्म की कई परतें होती हैं। परिवार में रहने के लिए एक अलग तरह का धर्म होता है। तपस्वी जीवन बिताने के लिए एक अलग धर्म होता है। राजा का एक अलग धर्म होता है। इसी तरह अगर आप व्यापारी हैं तो आपका अलग तरह का धर्म होगा। लेकिन एक प्राणी के रूप में आपके पास अपनी तरह का धर्म चुनने और उसे मानने की आजादी है। परम मुक्ति कोई खास काम करने से नहीं मिलती, बल्कि यह मिलती है अडिग तरीके से किसी काम में लगे रहने से। इसे कहते हैं ‘निश्चल तत्वम, जीवन मुक्ति’। अगर आप रोज अपनी दिशा बदल लेंगे, तो जाहिर है आप गोल-गोल घूमते रहे जाएंगे।
प्रश्नः सद्गुरु जब आप परम प्रकृति और धर्म के बारे में बात करते हैं, तो मुझे लगता है कि धर्म कानूनों की एक सूची है, एक नियमावली है। एक नियमावली बनाने के बजाय क्या यह अच्छा नहीं होगा कि हम जीवन के साथ वैसे पेश आएं, जिस तरह से वह हमारे सामने आए?
सद्गुरु : जीवन बस आता नहीं है, जीवन को लगातार बनाया जाता है। या तो इसे आपने कल बनाया और आज यह आपके सामने है या आप इसे सक्रिय रूप से आज बना रहे हैं। अपने आप तो कुछ नहीं आता। देखिए, दो पहलू होते हैं - एक धर्म और दूसरा कर्म। सही कर्म करने के लिए आपको धर्म की जरूरत है, नहीं तो हर दिन, हर पल आपके कर्म भ्रमों से भरे होंगे।
सबसे पहले तो आपको यह पता ही नहीं कि जीवन कहां है। आप गलत दरवाजों पर दस्तक दे रहे हैं और इससे काम नहीं बनने वाला। अपने धर्म की स्थापना करने से यह सुनिश्चित हो जाता है कि आपके कर्म मौलिक जीवन प्रक्रिया से न भटकें। ये आपको हमेशा याद दिलाते रहें कि आपका धर्म यह है कि आप एक खास तरह से रहें। जब आप ईशा योग आए तो हमने तीन अलग-अलग आयामों में आपके लिए धर्म तय किया। पहला कि आप अपने भीतर कैसे रहेंगे, दूसरा कि आप दुनिया के साथ कैसे रहेंगे और तीसरा कि इस दुनिया के छोड़ने के बाद आप कैसे रहेंगे। या तो आप भूल गए होंगे या समझे नहीं होंगे। लेकिन यह तब भी काम करेगा, क्योंकि यह इसलिए काम नहीं करता है कि आपको समझ आ गया है, बल्कि यह इसलिए काम करता है कि आप इसे प्रयोग में लाते हैं।