एक मशीन के तौर पर और साथ ही जीवन के प्लेटफार्म के तौर पर मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जिसके शरीर में कोई कमी नहीं है। केवल समस्या यह है कि यह शरीर आपको कहीं नहीं ले जाता, यह धरती से पैदा होता है और इसमें ही मिल कर समाप्त हो जाता है।

क्या यही काफी नहीं है? एक स्तर पर, इतना ही बहुत है। पर किसी तरह, भौतिकता से परे का एक आयाम ख़ुद इस अद्भुत तंत्र में शामिल हो गया है। यही आयाम, जीवन का स्रोत है। यही हमें सही मायनों में वह बनाता है, जो हम हैं। वैसे तो हर जीव, हर पौधे और हर बीज में, यह स्रोत काम करता है, लेकिन एक मनुष्य में, जीवन का यह स्रोत कहीं अधिक भव्यता से दिखता है।

यही वजह है कि मनुष्य हमेशा भौतिक और उससे परे के आयाम के बीच संघर्ष में घिरा दिखता है। हालांकि आपमें भौतिकता की एक अपनी विवशता है, लेकिन आपके पास उस भौतिकता से आगे जाने की चेतना भी है।

दो तरह के बुनियादी बल होते हैं। अधिकतर लोगों को, वे एक-दूसरे से टकराते हुए दिखते हैं। इनमें से एक आत्म-संरक्षण से जुड़ा है जो आपको अपने आसपास दीवारें बनाने के लिए मजबूर करता है। दूसरा लगातार विस्तार की इच्छा में, असीम होना चाहता है।

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ये विपरीत बल नहीं हैं

ये दोनों इच्छाएँ - अपना संरक्षण और विस्तार करना, ये विपरीत बल नहीं हैं। ये दोनों ही आपके जीवन के दो अलग पहलुओं से जुड़े हैं।

सीमाओं में बंधी देह से सृष्टि के स्रोत की ओर यात्रा - यह किसी भी आध्यात्मिक सिलसिले की बुनियाद है।
एक बल आपके इस ग्रह से जुड़े रहने में सहायक होता है और दूसरा आपको उसके परे ले जाता हे। अगर आपके पास इन दोनों को अलग रखने लायक जागरुकता है तो इनमें कोई टकराव नहीं होगा। पर अगर आप पूरी तरह से भौतिकता से अपनी पहचान रखते हैं तो एक साथ मिल कर काम करने की बजाए, ये दो बुनियादी बल तनाव का कारण बनेंगे।

‘भौतिक बनाम आध्यात्मिकता’ का जो संघर्ष मानवता में फैला हुआ है, वह इसी अज्ञानता की देन है। जब आप आध्यात्मिकता की बात करते हैं, तो आप एक ऐसे पहलू की बात कर रहे हैं जो भौतिकता से परे है। भौतिक सीमा से परे जाने की मानवीय इच्छा सहज है। सीमाओं में बंधी देह से सृष्टि के स्रोत की ओर यात्रा - यह किसी भी आध्यात्मिक सिलसिले की बुनियाद है।

आप खुद को दीवारों में कैद करते हैं

आज आपने अपने सुरक्षा के लिए जो दीवारें खड़ी की हैं, वही आने वाले कल में आपके लिए कैद का काम करेंगी। यह एक अंतहीन चक्र है।

आपको अस्तित्व से कुछ लेना-देना नहीं है। आपको केवल उस अस्तित्व पर काम करना है, जिसे ख़ुद आपने गढ़ा है।
लेकिन सृष्टि आपके लिए सबके परे जाने वाले द्वार खोलने से मना नहीं करती। आप अपने आसपास खड़ी दीवारों से उलझ रहे हैं । रॉबर्ट फ़्रॉस्ट ने एक गहरे सत्य को पकड़ा था, जब उन्होंने यह लिखा, ‘कहीं कुछ ऐसा है, जो दीवारें पसंद नहीं करता।’

यही वजह है कि यौगिक सिस्टम में ईश्वर, आत्मा या स्वर्ग के बारे में बात नहीं की जाती। योग केवल उन बाधाओं की बात करता है, जो आपने बनाई हैं, क्योंकि हमें केवल इस बाधा को ही पार करना है। आपको जिन दीवारों ने रोक रखा है, वे सौ प्रतिशत आपकी अपनी बनाई हुई हैं। और इन्हें तोड़ा जा सकता है। आपको अस्तित्व से कुछ लेना-देना नहीं है। आपको केवल उस अस्तित्व पर काम करना है, जिसे ख़ुद आपने गढ़ा है।

गुरुत्वाकर्षण व कृपा

अगर मुझे कोई मिसाल देनी हो, तो मैं गुरुत्वाकर्षण व कृपा को बिल्कुल विपरीत अर्थ में लूँगा।

गुरुत्वाकर्षण की तरह कृपा भी लगातार सक्रिय रहने वाला बल है। केवल आपको इसे ग्रहण करने के लिए तैयार होना होगा।
गुरुत्वाकर्षण किसी भी इंसान में, आत्म-संरक्षण की बुनियादी प्रवृत्ति है। हम इसी गुरुत्वाकर्षण की वजह से इस ग्रह से जुड़े हुए हैं। यह आपको नीचे की ओर खिंचती है, जबकि कृपा आपको ऊपर की ओर उठाने का काम करती है। अगर आप अस्तित्व के भौतिक बलों से मुक्त हो जाते हैं, तो आपके जीवन में कृपा का विस्फोट होता है।

गुरुत्वाकर्षण की तरह कृपा भी लगातार सक्रिय रहने वाला बल है। केवल आपको इसे ग्रहण करने के लिए तैयार होना होगा। जब आप ऐसा करते हैं, तो अचानक आप जादू की तरह काम करने लगते हैं। मान लीजिए कि केवल आप ही साइकिल चलाने की क़ाबिलियत रखते हैं, तो आप दूसरों को किसी जादू जैसे दिखने लगेंगे। कृपा के साथ भी ऐसा ही है। दूसरों को लगता है कि आप एक जादू हैं, लेकिन आप जानते हैं कि यह तो जीवन के किसी नए आयाम के प्रति ग्रहणशील होने की शुरूआत भर है। यह एक संभावना है जिसका एहसास सबको होना चाहिए।