ग्रामीण जीवन और कायाकल्प का एक उत्सव - ईशा ग्रामोत्सवम - 4 सितंबर को कोयंबटूर में मनाया जा रहा है। यह उत्सव ग्रामीण कला, नाटक, नृत्य, संगीत और व्यंजनों की एक व्यापक प्रदर्शनी के जरिये ग्रामीण तमिलनाडु के मूल तत्व को प्रदर्शित करता है। यह कार्यक्रम गांवों के बीच होने वाले खेल टूर्नामेंट के आखिरी दौर के द्वारा ग्रामीण जीवन में खेलों की भूमिका को भी सामने लाएगा।

इस लेख में सद्‌गुरु ईशा फाउंडेशन के कई सामाजिक पहलों की शुरुआत, और उनके लक्ष्यों के बारे में बता रहे हैं।

ग्रामीण इलाकों में ईशा योग

सचिन तेंदुलकर, ईशा ग्रामोत्सवम – 4 सितंबर - कोयंबटूर सचिन तेंदुलकर, ईशा ग्रामोत्सवम – 4 सितंबर - कोयंबटूर

सद्‌गुरु  का ट्वीट : "ईशा ग्रामोत्सवं में सचिन की उपस्थिति ने तमिल नाडू के लाखों ग्रामीण लोगों को अपना जीवन उत्साहपूर्वक जीने के लिए प्रेरित किया है।" - सद्‌गुरु 

सद्‌गुरु:

हम कई अलग-अलग स्तरों पर ईशा योग कार्यक्रम कर रहे हैं। हमारा 70 फीसदी काम ग्रामीण भारत में – गांवों में होता है। 70 फीसदी कार्यक्रमों के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता। मगर हम आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक नेतृत्व को मजबूत बनाने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। हमारे अनुसार, दुनिया में जिम्मेदार और शक्तिशाली पदों पर बैठे लोगों का बहुत महत्व है, क्योंकि हमारे पास जिस तरह के नेता हैं, उससे यह तय होगा कि दुनिया कैसे चलती और काम करती है।

ग्रामीण कायाकल्प कार्य
आंकड़े
70 लाख लाभार्थी
4200 गांव शामिल
20 लाख स्वयंसेवक
150 से अधिक ग्रामीण हर्बल गार्डन विकसित किए गए

सद्‌गुरु:

जहां तक मेरा सवाल है, मैं बस लोगों के लिए एक आध्यात्मिक स्रोत बन कर रहना चाहूंगा क्योंकि मैं यही काम सबसे बेहतर जानता हूं, मगर सामाजिक हकीकतों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। अगर आप आध्यात्मिकता की बात करना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि लोग कम से कम अच्छी तरह खा रहे हैं और उनका बुनियादी जीवन थोड़ा ठीक-ठाक है। अगर समाज इस बुनियादी काम का जिम्मा उठा लेता, तो गुरु को बस आध्यात्मिक काम करने का आनंद मिलता। मगर जब वह बुनियादी काम नहीं किया गया है, तो दुर्भाग्यवश, हमें वह काम भी करना पड़ रहा है। मैं किसी तरह का समाज सुधारक या और कुछ नहीं हूं, मगर जब आपके आस-पास इतनी स्पष्ट इंसानी जरूरतें हों, तो आप उन्हें अनदेखा नहीं कर सकते।

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ग्रामीण कायाकल्प कार्य, खराब हो चुकी सामाजिक स्थितियों को फिर से ठीक करने का एक प्रयास है ताकि इंसान को फलने-फूलने के लिए एक उपयुक्त माहौल मिल सके। इस कार्यक्रम का मूल क्षेत्र और लक्ष्य लोगों की जीवन स्थितियों को लाभकारी बनाना है ताकि वे जो भी करें, उसे अपनी पूरी क्षमता से कर सकें। इस परियोजना का मकसद सिर्फ लोगों की आर्थिक स्थिति को सुधारना नहीं है, हालांकि वह एक प्रमुख मुद्दा है जिस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। यह मानव भावना को ऊंचा उठाने और एक इंसान को अपने लिए खड़े होने के लिए प्रेरित करने का एक तरीका है।

प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स आंकड़े

2.2 करोड़ पौधे
40 नर्सरी
इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार प्राप्त हुआ

सद्‌गुरु:

प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स इसलिए शुरू हुआ क्योंकि साल 1998 में, कुछ विशेषज्ञों ने यह भविष्यवाणी की कि 2025 तक, 60 फीसदी तमिलनाडु एक मरुस्थल बन जाएगा। मुझे यह बात पसंद नहीं आई। इस भूमि ने हजारों सालों तक हमारा पोषण किया है। इसलिए मैंने 1998 से 2004 तक पहले छह साल लोगों के दिमाग में पेड़ लगाए। यह पेड़ लगाने के लिए सबसे मुश्किल इलाका है।

फिर 2004 से हमने इन पौधों को लोगों के दिमाग से जमीन पर रोपना शुरू किया। यह एक आनंदपूर्ण प्रक्रिया रही है। इस परियोजना प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स में कुछ लाख लोगों ने हिस्सा लिया, जो तमिलनाडु का एक बड़ा आंदोलन बन चुका है। इसमें प्रशासन और मीडिया सहित हर कोई हिस्सा ले रहा है। सबसे बढ़कर, आम तमिल लोग इसके साथ खड़े हुए हैं और उन्होंने अविश्वसनीय काम किया है।

ईशा विद्या आंकड़े:

9 ग्रामीण स्कूल
5820 विद्यार्थी
3300 से ज्यादा बच्चे पूर्ण छात्रवृत्ति पर
कंप्यूटर युक्त अंग्रेजी माध्यम शिक्षा
सूक्ष्म पोषक तत्वों से युक्त नि:शुल्क दोपहर का भोजन

सद्‌गुरु:

ईशा विद्या स्कूल ग्रामीण स्कूल हैं। ग्रामीण भारत में 90 फीसदी स्कूली शिक्षा अब भी राज्य सरकार द्वारा स्थानीय भाषा में दी जाती है। आजकल दुनिया की आर्थिक गतिविधियों में हिस्सा लेने का मूल माध्यम अंग्रेजी बन गया है। दुनिया की गतिविधियों मं भाग लेने की आपकी क्षमता मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करती है कि आपको अंग्रेजी भाषा आती है या नहीं। हमारा लक्ष्य अंग्रेजी माध्यम के कंप्यूटर वाले स्कूलों को शुरू करना है, जहां किंडरगार्टन से ही बच्चे कंप्यूटर सीखने लगें। ये स्कूल ऐसे बच्चों के लिए हैं, जिनके माता-पिता अब भी दैनिक मजदूरी करते हैं। इन बच्चों के लिए हमारा एकमात्र लक्ष्य उन्हें एक अकुशल मजदूर बनाने की बजाय उच्च स्तर के आर्थिक कार्यकलाप में हिस्सा लेने के काबिल बनाना है।

अगर आप एक राष्ट्र के रूप में भारत को देखें, तो हमारे पास 1.25 अरब लोगों के लिए न तो जमीन है, न पहाड़, न जंगल, न नदियां और न ही आकाश का एक टुकड़ा। हमारे पास सिर्फ लोग हैं। अगर हम इस जनसमूह को अशिक्षित, अस्पष्ट, उदासीन और अकुशल छोड़ देंगे, तो हम बहुत बड़ी विपत्ति में पड़ सकते हैं। लेकिन यदि ये 1.25 अरब लोग शिक्षित, केंद्रित, संतुलित और प्रेरित हों, तो हम एक चमत्कार बन सकते हैं।

हम चाहते हैं कि ईशा विद्या स्कूल मॉडल स्कूलों के रूप में भी काम करें और फिर शिक्षक पैदा करें तथा सरकारी स्कूलों को गोद लें। अब तक हमने लगभग 34,000 बच्चों के साथ 56 सरकारी स्कूलों को गोद लिया है। मगर तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों में करीब 1 करोड़ बच्चे पढ़ते हैं। उन्हें प्रेरित, शिक्षित और कुशल बनाने के लिए बस थोड़े से हस्तक्षेप की जरूरत है। थोड़ी सी भागीदारी के साथ काफी कुछ किया जा सकता है।

हम इन पहलों को एक साथ जोड़ते हुए ये मुश्किल काम करने और उन्हें कामयाब बनाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि बहुत से दूसरे लोग ऐसा ही करने के लिए प्रेरित हों। हम उन्हें तकनीक बता सकते हैं और अपना अनुभव बांट सकते हैं। इसे देश भर में किए जाने की जरूरत है। मैं आशा करता हूं कि बहुत से संगठन और खासकर कारपोरेट क्षेत्र इस पर काम करेगा और इसे सफल बनाएगा।

ईशा होम स्कूल

ईशा होम स्कूल कोयंबटूर के निकट वेलंगिरि पहाड़ियों की तराई में ईशा योग केंद्र के परिसर में स्थित एक आवासीय स्कूल है। 2005 में सद्गुरु द्वारा स्थापित ईशा होम स्कूल का पाठ्यक्रम प्रेरणादायी है जो एक बच्चे की कुदरती जिज्ञासा और सीखने की उत्सुकता को बढ़ावा देता है। यह स्कूल दसवीं कक्षा के लिए आईसीएसई बोर्ड और ग्यारहवीं तथा बारहवीं कक्षाओं के लिए आईएससी बोर्ड से संबद्ध है।

सद्‌गुरु:

किसी भी इंसान के लिए शिक्षा का मतलब मुख्य रूप से अपने क्षितिज का विस्तार करना है। इसका अर्थ है कि आप अपने जीवन को और व्यापक बना रहे हैं। आप जब भी खुद को विस्तृत करते हैं, तो वह एक आनंददायक अनुभव होता है। मगर फिर ऐसा क्यों है कि परीक्षा का तनाव न झेल पाने पर दर्जनों बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं? इसकी वजह हमारी शिक्षा व्यवस्था है। आजकल शिक्षा बहुत नकारात्मक हो गई है। शिक्षा व्यवस्था का जो वर्तमान रूप है, वह एक इंसान के लिए पूरी तरह विनाशकारी हो सकता है। इसका मतलब यह नहीं है कि आपको शिक्षा को समाप्त करने की जरूरत है। बस उसे थोड़े अधिक मानवीय मूल्यों के साथ प्रदान किए जाने की जरूरत है। कहीं न कहीं प्रेरणा देने की आवश्यकता है, सिर्फ जानकारी देने की नहीं।

बच्चे कुछ भी ऐसा नहीं पढ़ रहे हैं, जो जीवन न हो – यह सब जीवन है। मगर आज की शिक्षा इस रूप में दी जाती है कि वह जीवन के लिए प्रासंगिक नहीं है। मुझे नहीं पता कि कितने विद्यार्थी कैमिस्ट्री को एक जीवन के लिए प्रासंगिक विषय के रूप में पढ़ते हैं। वे ऐसा नहीं करते जबकि कैमिस्ट्री हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हमें शिक्षा को जीवन के लिए प्रासंगिक बनाना चाहिए। इसे एक खोज की प्रक्रिया होना चाहिए जहां बच्चे को महसूस हो कि वह चीजों का पता लगा रहा है। इस तरह नहीं मानो हर समय उसे कोई चीज थमाई जा रही है, जिसे उसे याद करना है और परीक्षा में लिखना है।

इसलिए हमने ईशा होम स्कूल शुरू किए। इसे होम स्कूल इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसे एक परिवार की तरह चलाया जाता है। अलग-अलग उम्र के बच्चे एक साथ पढ़ते हैं, सीखते हैं और एक परिवार की तरह साथ-साथ विकास करते हैं। इसमें बहुत समर्पित और योग्य शिक्षक हैं, जो दिल से भी सोचते हैं और ऐसा माहौल उत्पन्न करते हैं जहां बच्चे अच्छी तरह जीना सीखते हुए बड़े होते हैं।

बच्चों को पढ़ाना कोई बड़ी चीज नहीं है। अगर आप ज्यादा दबाव डाले बिना, उनकी बुद्धि को मांजते हैं और उनके अंदर ज्ञान की प्यास पैदा करते हैं, तो आप देखेंगे कि वे सहज रूप से परीक्षाओं में पास हो जाएंगे।

भावी परियोजनाएं

सद्‌गुरु:

हम अगले कुछ सालों में एक ऐसा आंदोलन खड़ा करना चाहते हैं जिससे तमिलनाडु में ऐसा कोई इंसान न हो जिसके पास कम से कम कोई सरल आध्यात्मिक प्रक्रिया न हो। मैं हमेशा से ऐसा चाहता रहा हूं मगर पिछले कुछ सालों में मेरे अंदर यह चाह बहुत मजबूत हो गई है क्योंकि मैंने अपने कुछ रिश्तेदारों को मरते देखा। उन्होंने किसी सामान्य भी मापदंड से अच्छा जीवन बिताया। उनकी शादी हुई और सब कुछ ठीक रहा। बच्चे हुए, उनकी पढ़ाई पूरी हुई और वे अच्छी नौकरी पर लग गए। उनकी भी शादी हुई और बच्चे हुए, सब कुछ सही चलता रहा। वे 70-80 की उम्र में हैं और वे अपने जीवन में जो कुछ भी चाहते थे, वह सब हुआ। मगर वे एक-एक करके ऐसी तन्हा मौत मर रहे हैं। उन्होंने अपने जीवन में जिन चीजों की इच्छा की, वे पूरी हुईं, फिर भी जीवन इतना नीरस है कि जब भी वह पल आता है, तो उनकी मृत्यु बहुत बुरी तरह होती है।

अगर आपकी मृत्यु अच्छी नहीं होती, तो इसका मतलब आप अपने अंदर कहीं न कहीं जीवन के हर पल में खाली रहे हैं। आप जीवन के हर पल में दुखी रहे हैं क्योंकि आपको पता नहीं था कि आपको अपने साथ क्या करना है और जब मृत्यु का पल आता है तो परिवार, कारोबार और आपका सारा सामाजिक कद ढह जाता है और आप एक दयनीय और तकलीफदेह मृत्यु को प्राप्त होते हैं। तकलीफदेह मौत यूं ही नहीं आ जाती, आप अपने पूरे जीवन उसे अर्जित करते हैं, आप एक तकलीफदेह जीवन जीते हैं। हो सकता है कि दुनिया के लिए आपका जीवन बहुत बढ़िया रहा हो मगर इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपने एक दयनीय जीवन जिया है।

जब मैंने यह देखा तो मुझे एक ही चीज की कमी लगी, उनके जीवन में कोई सरल आध्यात्मिक प्रक्रिया भी नहीं थी। हर इंसान के जीवन में कम से कम एक सरल आध्यात्मिक प्रक्रिया होनी चाहिए। अगर वह होगा, तो वह हर दिन अच्छा जीवन जिएगा और अच्छी तरह मरेगा। अगर उसे पता होगा कि रोजाना अपने अंदर इसे आगे कैसे लाना है, तो वह अपने अंदर अलग तरीके से जिएगा। चाहे उसकी नौकरी या उसके परिवार में कुछ भी गड़बड़ हो रही हो, उन चीजों को व्यक्तिगत कुशलता से संभाला जाना चाहिए मगर कोई अपने भीतर किस तरह जीता है, जीवन का उसका अनुभव कैसा है, इसे हम एक अलग स्तर पर ले जा सकते हैं। इसलिए हम यह आध्यात्मिक आंदोलन खड़ा करना चाहते हैं, जहां बहुत सरल प्रक्रिया होगी। वहां कोई भी दिन-रात किसी भी समय आकर आधे घंटे में दीक्षा ले सकता है। वह अपने जीवन में एक सरल प्रक्रिया से जुड़ा रहेगा जिससे वह अच्छी तरह जी सकता है और अच्छी तरह मर सकता है।

संपादक की टिप्पणी: ईशा ग्रामोत्सवम 2015 पर ताजा जानकारी के लिए हमसे जुड़े रहें। अधिक जानकारी के लिए http://isha.sadhguru.org/gramotsavam पर जाएं।