जब कृष्ण का सामना हुआ खूंखार हाथी से
मथुरा में पहुंचने के बाद कृष्ण के शौर्य की चर्चा इतनी बढ़ती गई कि कंस परेशान होने लगा, उसने कृष्ण को एक पागल हाथी से मरवाने का फैसला किया। फिर क्या हुआ, आइए जानते हैं
मथुरा में पहुंचने के बाद कृष्ण के शौर्य की चर्चा इतनी बढ़ती गई कि कंस परेशान होने लगा, उसने कृष्ण को एक पागल हाथी से मरवाने का फैसला किया। फिर क्या हुआ, आइए जानते हैं –
त्रिवक्रा की घटना सुन कर कंस को डर लगने लगा था। क्या वाकई भविष्यवाणी सच होने वाली है? एक लडक़ा आकर चमत्कार करने लगता है और पूरे नगर का लाडला बन जाता है। हर कोई बस कृष्ण के ही नाम का राग अलाप रहा है। कृष्ण को मारने की अभी तक की तमाम कोशिशें असफल हो चुकी थीं इसलिये कंस ने फिर एक नई योजना बनाई। मथुरा में कुबलयापीड़ नाम का एक बड़ा हाथी था, जो काफी खूंखार और हिंसक प्रकृति का था। लोग उससे डरते थे। कई बार राजा ने उसका इस्तेमाल युद्ध में किया था। युद्ध में यह हाथी विध्वंस मचा देता था। कंस ने मुख्य महावत अंगारक को बुलाया और कहा कि जैसे ही जुलूस शुरू हो और ये लडक़े महल के द्वार की ओर आएं, तुम कुछ ऐसा करना कि कुबलयापीड़ उस लडक़े को कुचलकर मार डाले। उसे भागने का कोई मौका नहीं मिलना चाहिए। उसने एक संकरी गली चुनी जहां से कृष्ण और बलराम आने वाले थे, और कुबलयापीड़ को वहीं बांध दिया।
उस मौके पर महल में आए अतिथियों में रुक्मणि नाम की एक सुंदर राजकुमारी भी थी। वह राजा भीष्मक की पुत्री थी। उसका भाई रुक्मी बहुत महत्वाकांक्षी था। वह कंस और जरासंध का अच्छा मित्र था। उसके पिता बूढ़े हो चले थे और उनका राज्य पर बहुत कम नियंत्रण रह गया था। जबकि रुक्मि एक जवान बैल की तरह तेज तर्रार था और इन कुटिल राजाओं से संधि करके ताकतवर शासक बनना चाहता था। इसीलिए वह अपनी बहन रुक्मणि की शादी शिशुपाल नाम के राजा से करना चाहता था, जो जरासंध का भी दोस्त था।
साम्राज्यों का यह ऐसा समूह था, जो बहुत बर्बरता से सारी धरती को हथियाने के लिए आपस में संधियां करता था। ये अपने मैत्री संबंध हमेशा शादी विवाह से बनाते थे, जो एक तरह की जमानत होती थी। अगर आप किसी से समझौता करते हैं तो भी इस बात की कोई गारंटी नहीं कि वह आपके खिलाफ नहीं जाएगा। लेकिन अगर आपकी बेटी उसके घर में है तो वह कभी आपको हानि पहुंचाने की नहीं सोचेगा। इसीलिए रुक्मि शिशुपाल से अपने संबंधों को मजबूत बनाने के लिए रुक्मणि का विवाह उससे करना चाहता था। उधर रुक्मणि बचपन से ही कृष्ण से प्रेम करने लगी थी, जबकि उसने उन्हें कभी नहीं देखा था। ऐसी बहुत सी युवतियां थीं जिन्होंने कृष्ण को नहीं देखा था, सिर्फ कृष्ण के किस्से ही उन्हें दीवाना बना देते थे और वे उन्हें प्यार करने लगती थीं।
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महल में बातें हो रही थीं कि कैसे राजा ने उस ग्वाले को, जिसे लोग भगवान मानते हैं, कुबलयापीड़ हाथी से कुचलने का आदेश दिया है। जब रुक्मणि ने यह सुना तो वह खुद को संभाल नहीं पाई और जाकर त्रिवक्रा को इस बारे में बताया। त्रिवक्रा ने रुक्मणि से कहा - वह भगवान हैं। तुमने देखा नहीं कि कैसे उन्होंने मुझे ठीक कर दिया। चौबीस घंटे पहले मैं कैसी थी और अब मैं बिल्कुल ठीक हूं। वे उन्हें मार नहीं सकते, लेकिन फिर भी तुम इस चाल के बारे में और पता करो। रुक्मणि ने वैसा ही किया।
त्रिवक्रा की शादी अंगारक से हुई थी, जो सारे महावतों का मुखिया था। कंस ने उसे ही हाथी से कृष्ण को कुचलने का आदेश दिया था। बीस साल पहले त्रिवक्रा के अपंग होने पर अंगारक ने उसे छोड़ दिया था। अब उसकी दो पत्नियां थीं। उसके पास जाना त्रिवक्रा के लिए थोड़ा मुश्किल था, लेकिन कृष्ण के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी।
वह अंगारक के पास गई। उसने देखा कि वह काफी परेशान है, क्योंकि वह ऐसा काम नहीं करना चाहता था। दूसरी ओर वह राजा का आदेश ठुकरा भी नहीं सकता। जब उसने त्रिवक्रा को इतने सालों बाद चलते हुए देखा तो उसे लगा जैसे कि वह कोई खूबसूरत परी हो। इससे पहले उसने उसे एकदम टेढ़ा ही देखा था। उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि वह इतनी सुंदर स्त्री बन गई है।
त्रिवक्रा ने अंगारक का उसके प्रति आकर्षण का फायदा उठाया और बोली - देखो, वह भगवान हैं और वह हमें कंस के अत्याचार से बचाने आए हैं, इसलिए तुम्हारे लिए कुछ करने का यही समय है। अंगारक बोला - ‘मैं क्या करूं? अगर मैं आदेश ठुकराता हूं तो मैं सुबह तक मारा जाऊंगा। कंस मुझ पर बिल्कुल दया नहीं करेंगे। और एक बार अगर मैं कुबलयापीड़ को उस संकरी गली में ले गया और वह पागल हो गया तो कोई कुछ नहीं कर सकेगा। वह बहुत हिंसक है और अपने रास्ते में आने वाले किसी भी व्यक्ति को नहीं छोड़ेगा।’ त्रिवक्रा जड़ी-बूटियों से भली भांति परिचित थी। वह अपने साथ कुछ जड़ी बूटियां लाई थी। वह अंगारक के साथ बैठकर रात भर कुबलयापीड़ को जड़ी बूटियां खिलाती रही।
अगले दिन सुबह तय समय पर ढोलों की आवाज और शंखनाद के साथ समारोह शुरू हुआ। कृष्ण और बलराम राजा के कपड़ों की दुकान से लिए अपने शाही कपड़े पहनकर गलियों से हो कर महल की ओर चल पड़े। कंस अपनी मूंछों पर ताव देते हुए महल के छज्जे पर खड़ा था। वह जानता था कि संकरी गली में खड़ा हाथी उन लडक़ों की खूब खातिरदारी करेगा, लेकिन आज हाथी दूसरे दिनों की तरह हिंसक और आक्रामक नहीं लग रहा था। उसका बर्ताव लोगों के साथ दोस्ताना सा हो गया था। जो कोई भी उस रास्ते से गुजरता वह सहलाने के लिए अपनी सूंड उसके आगे कर देता था। उसे नींद आ रही थी। त्रिवक्रा और अंगारक ने हाथी को जो जड़ी-बूटियां खिलायी थीं उससे उसे थोड़ा नशा हो गया था। क्या आप जानते हैं कि बहुत से लोग, जिन्हें प्यार और दोस्ती करना नहीं आता, वे जब पी लेते हैं तो बड़े प्यारे और अच्छे बन जाते हैं। इस हालत में वे हर किसी के लिए गाना गाते हैं। शराब से उनका स्वभाव अच्छा हो जाता है। ऐसा जानवरों के साथ भी होता है। यह हाथी भी नशे में धुत्त था।
कृष्ण के चाचा अक्रूर को जैसे ही इस चाल के बारे में पता चला, वह डर गए और कृष्ण के गली में घुसते समय चिल्लाए - कृष्ण वहां मत जाओ। लेकिन कृष्ण सीधे हाथी के पास गए और प्यार से उसकी आंखों में देखने लगे। हाथी उनको सूंड़ से सूंघने लगा और कृष्ण ने उसकी सूंड को प्यार से थपथपाया। हाथी का अपने ऊपर से नियंत्रण खत्म हो गया। वह वहीं गली में लेट गया और गहरी नींद में सो गया।
आगे जारी ...