अपने जीवन के अच्छे मैनेजर कैसे बनें?
यहाँ सद्गुरु कह रहे हैं कि जो अपने शरीर और मन, अपनी भावनाओं और ऊर्जाओं को संभालना नहीं जानता, तो वह अगर अपने आसपास की परिस्थितियों को संभाल रहा है तो वह उन्हें अपनी कुशलता से नहीं, बस संयोग से ही संभाल रहा है।
यहाँ सद्गुरु कह रहे हैं कि जो अपने शरीर और मन, अपनी भावनाओं और ऊर्जाओं को संभालना नहीं जानता, तो वह अगर अपने आसपास की परिस्थितियों को संभाल रहा है तो वह उन्हें अपनी कुशलता से नहीं, बस संयोग से ही संभाल रहा है।
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आप पढ़ाई करते हैं, काम-क़ाज करते हैं, परिवार बनाते हैं या अपनी महत्वाकांक्षायें पूरी करने के पीछे भागते हैं, आप ये सब करते हैं क्योंकि आप मानते हैं कि ये चीजें करने से आपको खुशी मिलेगी। अब ये सब करने के बाद भी, अगर आपकी खुशियाँ बढ़ने की बजाय कम हो रहीं हैं तो इसका मतलब बस यही है कि आप अपने ही लिये एक खराब मैनेजर हैं।
जो अपने शरीर और मन, अपनी भावनाओं और ऊर्जाओं को संभालना नहीं जानता, वो अगर अपने आसपास की परिस्थितियाँ संभाल रहा है तो वो उन्हें जानते-समझते हुये नहीं, बस संयोग से ही संभाल रहा है। जब आप परिस्थितियों को संयोगवश संभालते हैं तो आप स्वयं एक संभावित मुसीबत हैं। चिंता, फिक्र आपके जीवन का एक स्वाभाविक अंग बन जाती है।
मूल रूप से प्रबंधन का मतलब है कि हम अपने भाग्य की दिशा तय करना चाहते हैं। आप अपने अंदर और बाहर, दोनों ओर कुछ खास तरह की परिस्थितियाँ चाहते हैं। आज एक परिस्थिति को संभालने के लिये हम मनुष्यों का ही नाश कर रहे हैं। इस तरह का प्रबंधन अच्छा नहीं है क्योंकि आखिर तो हर प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य मनुष्य की खुशहाली है।
अगर प्रबंधन मनुष्य की खुशहाली के लिये है तो ये सिर्फ कुछ बनाने या लाभ कमाने के लिये नहीं हो सकता। लोगों को अपनी पूरी क्षमता तक बढ़ना चाहिये, सिर्फ अपने पेशे में ही नहीं, बल्कि एक मनुष्य के रूप में।
अगर लोग साथ-साथ काम करते हैं तो उन्हें अपने अंदर प्रेम, शांति और करुणा के शिखर तक पहुँचना चाहिये। अगर इस तरह का प्रबंधन होना है जहाँ आप और आपके आसपास के लोग अपनी मनुष्यता की पूरी क्षमता तक पहुँच सकें, तो आपको अपना कुछ समय अपने अंदरूनी प्रबंधन की ओर ध्यान देने में लगाना होगा। अगर ऐसा नहीं होगा तो आप परिस्थितियों को सिर्फ संयोग से ही संभालेंगे।