जीवन सफर को सुहाना बनाता है ओजस
सद्गुरु चर्चा करते हैं ओजस की – अगर आप अपने चारों ओर खूब ओजस पैदा कर लें तो आपका जीवन सहज हो जाता है। आपके चारों ओर भले ही उथल-पुथल मची रहे, आप निर्बाध चलते रहते हैं। हर राह अपके लिए सुगम हो जाती है।
कभी-कभी किसी गुणवान व्यक्ति को "ओजस्वी "कहा जाता है। ऐसा कौन सा गुण है , जिसे ओजस कहा जाता है? किस चीज़ से बनकर तैयार होता है ओजस?
सद्गुरु:
भौतिक शरीर को सक्रिय रखने के लिए तीन मुख्य क्रियाएं आवश्यक हैं- श्वसन, भोजन और उत्सर्जन। बिना किसी विचार या भावना के भी आप सक्रिय रह सकते हैं लेकिन इस शरीर को सक्रिय रखने के लिए इन तीनो क्रियायों का होते रहना जरूरी है। ये तीनों क्रियाएं दरअसल भौतिक पदार्थ को एक रूप से दूसरे में बदलने का काम करती हैं। उदाहरण के लिए खेती क्या है- बस मिट्टी को भोजन में बदलना। उसी तरह पाचन का अर्थ है भोजन को मांस और मल में बदलना।
इन सब अलग-अलग क्रियाओं के माध्यम से आप दरअसल भौतिक अस्तित्व का रूप बदल रहे हैं। आप एक गाजर खाकर उसको मनुष्य में रूपांतरित कर देते हैं। कितना जबरदस्त काम है! है ना? भोजन करना कोई मामूली काम नहीं है। बस एक मामूली-सी सब्जी खा कर आप उसको एक मनुष्य में रूपांतरित कर देते हैं।
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यदि आप इसका मर्म समझ कर इस चमत्कार को सचमुच अनुभव करें कि आप पानी और भोजन जैसी मामूली चीजों को मानव देह का रूप दे रहे हैं तो आप जान पायेंगे कि आप कितना बड़ा काम कर रहे हैं। मतलब यह कि भौतिक अस्तित्व का स्वरूप बदलना एक प्राकृतिक घटना है जो हरदम आपके अंदर घटित होती रहती है। यही प्रकृति है।
यदि आप प्रकृति के नियमों पर गौर करें तो पायेंगे कि अपनी सुरक्षा करना हर जीव का मुख्य स्वभाव और एक मुख्य प्रक्रिया है। श्वसन, भोजन और उत्सर्जन की तीनों प्रक्रियाएं भी आत्मसंरक्षण से हीं जुड़ी हुई हैं। यदि आत्मसंरक्षण सही ढंग से हो रहा हो तो भौतिक अस्तित्व को ठीक अगली जरूरत महसूस होती है प्रजनन की। यानी संतान पैदा करने की। वैसे प्रजनन भी अपने संरक्षण की ही एक कोशिश है – अपनी प्रजाति के संरक्षण की। इसलिए प्रजनन को आत्मसंरक्षण का दूसरा स्तर कहा जा सकता है। यानी शरीर यदि कुछ जानता है तो वह केवल आत्मसंरक्षण है – और यह अच्छी बात है। यदि शरीर को आत्मसंरक्षण का ज्ञान नहीं होता तो आपका अस्तित्व ही नहीं होता।
सीमाओं के पार
आप अपने भीतर एक ऊंचे आयाम तक पहुंचने की ललक को पूरा करना चाहते हैं। यह आपकी प्रकृति का एक और पहलू है जो विस्तार चाहता है, जो कोई नया रूप लेना चाहता है। वह सीमाओं में कैद नहीं रहना चाहता बल्कि वह असीम होना चाहता है। सीमाएं तो केवल शरीर की होती हैं।
यदि आप अपने चारों ओर खूब ओजस पैदा कर लेते हैं तो इस अस्तित्व में आपकी जीवनयात्रा आसान हो जाएगी। आप पाएँगे कि आपका जीवन बिना किसी कष्ट के चल रहा है। आप जहां कहीं भी जायेंगे बड़ी आसानी से जायेंगे। हर तरफ खलबली मची होगी, आपके आस-पास लोग तकलीफों से जूझ रहे होंगे लेकिन किसी तरहा से आपका मार्ग हमेशा साफ होगा। आप आगे बढ़ते जायेंगे। एक बार ऐसे हो जाने के बाद आप जीवन में खतरनाक जोखिम भी उठा सकते हैं। आप किसी चीज की परवाह किये बिना अपना जीवन जी सकते हैं। कम से कम आपको देखने वाले यही समझेंगे कि आप लापरवाह हैं लेकिन चूंकि आप अपनी मंजिल जानते हैं इसलिए कोई दिक्कत नहीं है। आप इस तरह से जी सकते हैं कि लोग आपको अतिमानव समझें, केवल इसलिए कि आपके चारों ओर शक्तिदायी ओजस का प्रभामंडल है। इस अस्तित्व में आपकी जीवनयात्रा सहज और आसान होगी।
सुदूर-पूर्वी संस्कृतियों में किसी अंतर्ज्ञानी को “अंसो” कहा जाता है। अंसो का अर्थ होता है एक वृत्त। उसकी तुलना वे एक वृत्त से इसलिए करते हैं क्योंकि वृत्त के आकार में गतिरोध सबसे कम होता है। आपकी कार या मोटरसाइकिल के पहिये गोल क्यों होते हैं, तिकोने या चौकोर क्यों नहीं? क्या आप वर्गाकार पहियों पर गाड़ी चलाने की कल्पना कर सकते हैं? पहिये गोल क्यों होते हैं - क्योंकि इस आकार में गतिरोध नहीं के बराबर होता है। कहीं भी कोई भी घूमने वाला भाग गोल ही होता है क्योंकि इसमें गतिरोध नहीं के बराबर होता है। इसलिए यदि आप अपने हर ओर खूब ओजस पैदा कर लेते हैं तो इस अस्तित्व में आप वृत्ताकार हो जाते हैं, गोल हो जाते हैं ताकि इस अस्तित्व में आपकी यात्रा में कम-से-कम बाधा आए। ओजस आपके लिए ऐसी संभावना बना देता है।
ओजस के बारे में अगले लेख में सद्गुरु बताएंगे कि हम ओजस पैदा कैसे करते हैं और हम ओजस को खो कैसे देते हैं।