विवाह – रोज के झगड़ों और मुसीबतों से कैसे निपटें
आज पति-पत्नी संबंध झगड़े का पर्याय बनते जा रहे हैं। अगर उनमें झगड़ा न हो तो लोग आश्चर्य करते हैं। आख़िर क्यों होता है पति-पत्नी में झगड़ा, और कैसे जाएं इनसे परे?
प्रश्न: ऐसा क्यों है कि प्रेम और विवाह अक्सर लोगों के बीच झगड़े का सबसे बड़ा कारण बनते हैं?
सद्गुरु: स्त्री और पुरुष शारीरिक तौर पर एक तरह से आपस में विपरीत हैं। प्रकृति ने हमें ऐसा ही बनाया है ताकि प्रजनन हो सके और अगली पीढ़ी की संभावना बनी रहे। यदि ऐसा होना ज़रूरी न होता - आकाश से ही बच्चे नीचे भेजे जाते, तो अगली पीढ़ी के लिए स्त्री और पुरुष को एक साथ काम करने की जरूरत नहीं होती।
शरीर के रसायन विवशता पैदा करते हैं
अगर प्रजनन प्रक्रिया अपने आप में ऐसी गहरी मजबूरी न होती, तो लोग प्रजनन नहीं करते।
जब आप दस या ग्यारह साल के थे, तब आपने इस बारे में सोचा तक नहीं था। दूसरे लोग जो भी करते थे, आपको मजाकिया लगता था। पर अचानक, शरीर में नए रसायन ने असर किया और अब यह सब हकीकत लगने लगा।
प्रकृति ने आपको एक ड्रग देकर बिगाड़ा ताकि आप उसका मक़सद पूरा कर सकें, प्रजनन के ज़रिए अपनी प्रजाति को बनाए रख सकें। जब एक बार यह हो जाता है तो उसके बाद स्त्री और पुरुष साथ आने के लिए विवश हो जाते हैं। या दूसरे शब्दों में, जब यह विवशता आती है तो दिमाग अपने-आप काम करता है कि इसे बेहतरीन रूप कैसे दिया जा सकता है।
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लेने को भूलकर सिर्फ देना होगा
बुनियादी तौर पर, दुर्भाग्य से, एक संबंध, एक-दूसरे का इस्तेमाल करने की नीयत के साथ पनप रहे हैं। यह लेने और देने का संबंध होता है।
समाज ने आपको हमेशा यही सिखाया कि चतुर बनते हुए कम दो और ज्यादा लो। चाहे बाजार हो या विवाह, गणित यही रहता है। यही वजह है कि प्रेम की इतनी बात होती है, ताकि आप इस गणित से उबर सकें। जब आप किसी के साथ भावुकता में खोए हों तो आप इस गणित से आगे निकल जाते हैं। तब आपके मन में यह बात होती है, ‘मैंने क्या पाया, यह मायने नहीं रखता। यह बात ज्यादा मायने रखती है कि मैंने क्या दिया।’
भावनाओं की गहराई के बिना ये सम्बन्ध बंधन लगता है
संबंध तब खूबसूरती से चलता है जब वो उस भावनात्मक गहराई के स्तर पर हो।
आपको ऐसा लगने लगता है कि आपका इस्तेमाल किया जा रहा है। जब आपके मन में यह बात आ जाती है तो केवल झगड़ा, झगड़ा और झगड़ा ही बचा रह जाता है। केवल प्रेम के पलों में आप साथ होते हैं। जब प्रेम नहीं रहता तो साथ रहना भी कठिन हो जाता है। भावनात्मक और शारीरिक पहलू, और साथ रहने और चीज़ें बांटने में भी झगड़ा ही रह जाता है।
अगर यह सब झगड़ा केवल पैसे को लेकर, मकान के लिए, या ऐसे ही किसी और बात के लिए होता तो समझौता हो जाता कि चलो ठीक है, घर का वह हिस्सा तुम्हारा और मैं इस हिस्से का इस्तेमाल करूँगा।’ ‘तुम पकाओ, मैं पैसा कमाऊँगा।’ पर यहाँ शरीर भी शामिल है इसलिए बहुत आसानी से कोई एक ऐसा समझ सकता है कि उसका इस्तेमाल हो रहा है और फिर उनके बीच झगड़ा होने लगता है।
प्रश्न: तो समाधान क्या है?
सद्गुरु: आपको हर समय स्त्री और पुरुष बनना छोड़ना होगा।
पर समाज ने आपको हमेशा इसी तरह रहना सिखाया है। आप जो भी पहनते हैं और अपने काम करते हैं, हर चीज में आपको एक खास तरह से ट्रेंड किया गया है, ताकि आप एक निश्चित मक़सद को पूरा कर सकें। जब आप एक बार ऐसे हो जाते हैं - चौबीसों घंटे औरत या चौबीसों घंटे आदमी - तो आप परेशानी में पड़ते हैं।
लेकिन अगर आपको पता हो कि बस जीवन का एक हिस्सा कैसे बनना है, तो आप ठीक रहेंगे। और जब आपके सामने स्त्री या पुरुष बनने की जरूरत आएगी तो आप अपनी भूमिका बखूबी निभा लेंगे। तो जीवन का एक हिस्सा बन कर रहें। अगर आप ऐसे रहेंगे तो कोई संघर्ष नहीं होगा। दो इंसान कहीं बेहतर तरीके से साथ रह सकते हैं।
सिर्फ जीवन का एक अंश बन जाएं
स्त्री और पुरुष दो विवशताएं हैं। दो विवशता एक साथ नहीं रह सकतीं। आप ख़ुद को अपनी लैंगिकता से जितना ज्यादा जोड़ेंगे, उतना ही विवश होंगे। जब आप विवश होंगे तो दूसरों के साथ उलझेंगे और यही उलझन आपके लिए समस्या की वजह होगी।
अगर आप ख़ुद को औरत या मर्द होने से बहुत ज्यादा न जोड़ें और जीवन का अंश बन कर रहें तो आप देखेंगे कि आपका औरत या मर्द होना आपके जीवन की मामूली सी बात होगी। आपको अपने जीवन का ढांचा इसके आसपास बनाने की ज़रूरत नहीं है।
अगर आप अपनी लैंगिकता के साथ अपनी पहचान नहीं जोड़ते तो आपकी बहुत सारी क्षमता सामने आ सकती है। लोग इतने ज्यादा रचनात्मक हो सकते हैं और ऐसे कई तरह के काम कर सकते हैं जिनके बारे में उन्होंने कभी कल्पना तक नहीं की होगी।