कृष्ण और चाणूर के बीच दिलचस्प कुश्ती
चाणूर एक बड़ा पहलवान था जो अच्छे-अच्छों को मौत के घाट उतार सकता था। कंस ने योजना बनाकर कृष्ण को उसके साथ कुश्ती लड़ने के लिए मजबूर कर दिया। तो फिर क्या हुआ है उस कुश्ती का परिणाम
चाणूर एक बड़ा पहलवान था जो अच्छे-अच्छों को मौत के घाट उतार सकता था। कंस ने योजना बनाकर कृष्ण को उसके साथ कुश्ती लड़ने के लिए मजबूर कर दिया। तो फिर क्या हुआ है उस कुश्ती का परिणाम
कृष्ण ने जब उस अहिंसक हाथी को शांत कर दिया तो लोगों ने उनकी प्रशंसा करनी शुरू कर दी। वे कहते - कृष्ण ने तो चमत्कार कर दिया। उन्होंने उस हाथी को केवल छूकर ही सुला दिया। यह सब सुनकर कंस बहुुत निराश हो गया। उसने अपने बहुत पुराने सलाहकार को बुलाया और कहा कि कैसे भी कृष्ण को चाणूर के साथ कुश्ती के लिए अखाड़े में बुलाओ। चाणूर और मुष्टिक, दो बड़े पहलवान थे जो कई सालों से किसी से भी नहीं हारे थे। उन्हें बताया गया कि उन्हें कृष्ण और बलराम को अखाड़े में आने का लालच देकर मार देना है। कंस के सलाहकार और मंत्री ने कहा कि आप ऐसा कैसे कर सकते हैं ? चाणूर महान पहलवान है और वह एक सोलह साल के बालक के साथ नहीं लड़ सकता क्योंकि यह धर्म और खेल के नियम दोनों के खिलाफ है। कंस ने कहा - भाड़ में जाएं नियम। मुझे यह काम पूरा चाहिए वरना इस समारोह के अंत तक तुम जिंदा नहीं बचोगे। खैर, मंत्री को कंस की बात माननी पड़ी और पूरी योजना बना ली गई।
बाहुयुद्ध के नियमानुसार अखाड़े में कोई भी किसी को जान से नहीं मार सकता था। अगर एक पहलवान ने दूसरे पहलवान को जमीन पर पटक दिया और उसका सिर दस से पंद्रह सेकंड तक जमीन से छुआ रहा तो इसे खेल का अंत मान लिया जाता था। इसे चित करना कहते थे। खेल के ये नियम होने के बावजूद चाणूर लोगों को बहुत बुरे तरीके से घायल करता था और उसके बेहद भारी शरीर की वजह से कई बार तो लोग मर भी जाते थे। वह बहुत भारी मांसपेशियों वाला ही नहीं था, बल्कि सूमो पहलवान की तरह उसके शरीर पर बहुत ज्यादा चर्बी थी और उसकी कमर का घेरा भी बहुत बड़ा था। जब उसका मन अपने दुश्मन को मारने का करता तो वह उसे जमीन पर पटककर अपना सारा वजन उसके ऊपर रख देता था, जिससे उसकी हड्डियां टूट जाती थीं और इस वजह से कुछ लोग मर भी जाते थे। नियम के अनुसार वह सही था, क्योकि वह उन्हें जानबूझकर नहीं मारता था, बल्कि वे खुद ही मर जाते थे।
पूरे जोश के साथ खेल शुरू हुआ। कई लोग एकत्र हुए जिनमें कृष्ण का पालन पोषण करने वाले उनके पिता नंद, जन्म देने वाले पिता वासुदेव और उनका पूरा परिवार था। वे सब यह मानते थे कि कृष्ण कंस और उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने आए हैं, लेकिन इसके साथ ही इस बात से परेशान भी थे कि इन बालकों का क्या होगा! पहले भी कई बार उनकी जिंदगियों पर वार हो चुके हैं।
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तभी लोगों ने चिल्लाना शुरू कर दिया - नहीं-नहीं, एक छोटा सा बालक तुम्हारे साथ कैसे लड़ सकता है?
चाणूर चाहता था कि कैसे भी कृष्ण को गुस्सा दिलाकर अखाड़े में बुला ले, लेकिन उन्हें गुस्सा नहीं आया और वह हमेशा की तरह शांत रहे। दरअसल, उन्हें गुस्सा तभी आता था, जब वह चाहते थे। उनकी सजगता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उनके लिए यह पूरा जीवन और पूरी धरती एक रंगमंच की तरह थी। अखाड़े में कूदकर अपनी मर्दानगी या किसी और चीज को साबित करना उनके लिए कोई मजबूरी नहीं थी, इसलिए चाणूर के हर ताने का जवाब उन्होंने केवल अपनी मुस्कुराहट से दिया। यह देखकर चाणूर को गुस्सा आ गया। उसने कहा - ‘तुम मेरे साथ कुश्ती लड़ने क्यों नहीं आते? क्या तुम मर्द नहीं हो?’ यह एक तरह की प्रथा थी कि अगर कोई क्षत्रिय किसी को ललकारता था तो उसे आकर लड़ना पड़ता था। आपको पता है कि पश्चिम में अगर कोई किसी को द्वंद्व युद्ध के लिए उकसाता था तो वह पीछे नहीं हट सकता था क्योंकि ऐसा करने से उसकी प्रतिष्ठा को ठेस लगती थी।
चाणूर के उकसाने पर सोलह साल के कृष्ण ने कहा - ‘मुझे मेरे पिता की आज्ञा नहीं है इसीलिए मैं तुम्हारे साथ नहीं लड़ सकता।’ चाणूर बोला - ‘तुम्हारे पिता तुम्हें लड़ने की अनुमति कैसे देंगे, क्योंकि वह जानते हैं कि तुम ग्वालों के साथ सिर्फ नाच ही सकते हो।’ कृष्ण मुस्कुराकर बोले - ‘हां, मैं सारी रात रास कर सकता हूं।’ चाणूर ने कृष्ण के पिता को गाली देते हुए कहा - ‘तुम सही नस्ल के नहीं लगते, इसीलिए मेरे साथ आकर नहीं लड़ पा रहे हो।’ कृष्ण ने अपने पिता को देखा और कहा - ‘पिताजी, मुझे आज्ञा दीजिए क्योंकि अब यह अपनी सीमा को लांघ चुका है।’ यह कहकर कृष्ण ने अपने राजसी कपड़े उतारे और लंगोटी को बांधकर अखाड़े में उतर आए।
इसी बीच दूसरे चैंपियन पहलवान मुष्टिक ने बलराम पर ताना कसने की कोशिश की। बलराम को ताना मारकर क्रोधित करना आसान था। जैसे ही कृष्ण अखाड़े में उतरे, बलराम भी इसे अपने लिए आज्ञा मानते हुए तुरंत अखाड़े में उतर आए। इससे पहले कि मुष्टिक कुछ कर पाता, बलराम उस पर झपट पड़े और कुछ ही सैकंडों में उसकी गर्दन मरोड़कर उसे मौत के घाट उतार दिया। लोग यह विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि अठारह-उन्नीस साल के एक लड़के ने जिसका अखाड़े जीतने का कोई पुराना रिकॉर्ड भी नहीं है, एक धुरंधर पहलवान की गर्दन मरोड़ दी।
अब पहाड़ की तरह दिखने वाले चाणूर और सोलह साल के फुर्तीले और चुस्त कृष्ण के बीच पहलवानी की प्रतियोगिता शुरू होने वाली थी। लोग चाणूर को कोस रहे थे और कृष्ण की जय-जयकार कर रहे थे। चाणूर कृष्ण को पकड़कर मरोड़ने की कोशिश कर रहा था। इस भागदौड़ की वजह से कृष्ण इतने फुर्तीले हो गए कि चाणूर उन पर अपना हाथ भी नहीं रख पा रहा था। कृष्ण ने चाणूर की एक ऐसी बात पर गौर किया जो अभी तक किसी ने नहीं देखी थी और वह यह कि चाणुर अपने बाएं पैर का इस्तेमाल थोड़ा संभलकर कर रहा था, मानो उसके उस पैर में दर्द हो
जब - जब कृष्ण चाणूर के बाएं पैर में मारते तो उसे बहुत ज्यादा दर्द महसूस होता। कई बार तो वह गिर भी गया। भीड़ यह भरोसा नहीं कर पा रही थी कि एक बालक के मारने से इतना बड़ा पहलवान चाणूर गिर रहा है। कृष्ण ने उसे थका दिया। चाणूर की सारी ताकत उसका भारी शरीर ही था, लेकिन कृष्ण ने उसे इतना दौड़ाया कि वह हांफने लगा।
जब कंस ने देखा कि चाणूर उस बालक को नहीं संभाल पा रहा है तो उसे बहुत गुस्सा आया। वह यह सोचकर भी डर गया कि अगर कृष्ण ने चाणूर को मार दिया तो अगला नंबर उसका होगा। थोड़ी देर बाद कृष्ण ने चाणूर के कंधों पर चढ़कर उसकी गर्दन तोड़ दी। इसी के साथ कुश्ती खत्म हो गई और एक बड़ा जश्न शुरू हो गया।
आगे जारी ...