करिश्माई कृष्ण और क्रोधी सांड
कृष्ण के जीवन से जुड़ी ऐसी अनेक घटनाएं और लीलाएं हैं जिनसे उन्होंने लोगों को जबर्दस्त तरीके से प्रभावित किया। उन्होंने एक बार जो ठान लिया, उसे पूरा करके ही दम लिया। अपने प्रेम से भरे आचरण के जरिये उस क्रोधी सांड हस्तिन को काबू करने की कहानी भी कुछ ऐसी हीः
कृष्ण के जीवन से जुड़ी ऐसी अनेक घटनाएं और लीलाएं हैं जिनसे उन्होंने लोगों को जबर्दस्त तरीके से प्रभावित किया। उन्होंने एक बार जो ठान लिया, उसे पूरा करके ही दम लिया। अपने प्रेम से भरे आचरण के जरिये उस क्रोधी सांड हस्तिन को काबू करने की कहानी भी कुछ ऐसी हीः
चलिए एक बार फिर हम कृष्ण और वृंदावन में बड़े उत्साह के साथ बनाए जा रहे एक नए समाज की चर्चा करते हैं। पुराने समाज के बंधन अब टूट चुके थे इसलिए ऐसी तमाम घटनाएं हुईं और ऐसी स्थितियां बनीं जिन्होंने कृष्ण को एक सहज व स्वाभाविक नेता के तौर पर स्थापित कर दिया, हालांकि वे अभी छोटी उम्र के ही थे। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि उन्होंने कई विषम परिस्थितियों में अभूतपूर्व साहस और बुद्धिमानी का परिचय दिया। हालांकि धीरे-धीरे समय बीतने के साथ कई बार लोगों ने कृष्ण के चमत्कारिक कामों को खूब बढ़ाचढ़ाकर हास्यासपद तरीके से पेश किया। लेकिन अगर आप कृष्ण के जीवन को देखें, तो कुछ खास घटनाओं से यह तो साबित होता ही है कि वह चीजों को विवेकपूर्ण ढंग से करते थे और परिस्थतियों को बड़ी समझदारी से संभालते थे।
कृष्ण के बड़े भाई बलराम अपनी आयु के तमाम बच्चों से कहीं ज्यादा शक्तिशाली थे। वे विशाल शरीर वाले असाधारण मानव थे। उनके जीवन में आई कई परिस्थितियों से यह पता चलता है कि वह एक साधारण इंसान की तुलना में कहीं ज्यादा बलवान और शक्तिशाली थे। बलराम हमेशा कुछ करना चाहते थे। वैसे भी जिन लोगों के पास शारीरिक ताकत ज्यादा होती है, वे कुछ न कुछ करना चाहते हैं। बलराम के पास भी शारीरिक शक्ति थी तो वह भी कुछ करना चाहते थे। वह कसकर व्यायाम करते थे और जमकर खाना खाते थे। वह और ज्यादा शक्तिशाली होना चाहते थे। एक दिन ऐसे ही उन्होंने कह दिया कि मैं इतना शक्तिशाली बनना चाहता हूं कि एक ही मुक्के में हस्तिन को मार डालूं।
यह कोई ऐसा सपना नहीं था जिसे पूरा न किया जा सके। बहुत से युवक इस तरह का सपना देखते हैं कि एक ही मुक्के में वे सामने वाले को धूल चटा दें। इसी तरह बलराम भी सोचते थे कि एक ही मुक्के में वह उस हिंसक और आक्रामक सांड हस्तिन को मार गिराएं। कृष्ण ने मुस्कराकर बलराम से कहा, ‘आप उसे एक ही मुक्के में मार डालना चाहते हैं। वैसे भी आप ऐसा नहीं कर सकते और अगर आपने ऐसा कर भी दिया तो भी इसका कोई लाभ नहीं है। मैं हस्तिन की सवारी करूंगा।' कृष्ण की इस बात पर लोग हंसने लगे। तमाम युवक कहने लगे, ‘ये कुछ नहीं, बस डींगें मारता है। हस्तिन की सवारी कोई नहीं कर सकता। वह बहुत खूंखार है। ‘कृष्ण ने कहा, ‘मैं उसकी सवारी करने जा रहा हूं।'
Subscribe
इस पूरे माह के दौरान कृष्ण ने एक काम किया। वह हर रोज उस स्थान पर जाते जहां हस्तिन को एक पेड़ से बांधकर रखा गया था। केवल दो लोग जो उसके बचपन के साथी थे, उस सांड के पास तक जा पाते थे। दरअसल, इन दो लोगों को ही हस्तिन अपने समीप आने देता था। इन दो लोगों के अलावा जब भी कोई और हस्तिन के पास जाता, तो वह हिंसक हो उठता था। कृष्ण वहां गए और उन्होंने कहा कि 'मैं हस्तिन के पास जाना चाहता हूं।' उन दोनों ने कहा, ‘हम तुम्हें उसके पास नहीं जाने देंगे। अगर तुम्हारे पिताजी को पता चल गया और तुम्हें कुछ हो गया तो वह हमें मार डालेंगे।' कृष्ण ने जिद की, ‘नहीं, मुझे उसके पास जाना है।' वह वहां गए और उससे थोड़ी दूर बैठ गए। कृष्ण को देखते ही हस्तिन अपने पैरों से जमीन खोदने लगा और गुस्से से भर गया। किसी भी नए आदमी को वह बर्दाश्त नहीं कर सकता था। वह फौरन उस पर हमला करना चाहता था। बलराम के सपने की तरह उसका भी सपना था कि एक ही वार से वह हर किसी को धूल चटा दे। वह भी किसी योद्धा से कम थोड़े ही न था। खैर, कृष्ण आराम से वहां बैठ गए। उन्होंने अपनी बांसुरी निकाली और बजाने लगे। वह रोज वहां जाते और घंटों बांसुरी बजाते। धीरे-धीरे सांड विनम्र होने लगा। इस बात से उत्साहित होकर एक दिन कृष्ण ने चारे में गुड़ मिलाकर उसे दूर से ही खिलाया। इस तरह धीरे-धीरे वह बैल के और करीब आते गए और एक दिन ऐसा आया, जब उन्होंने उस सांड के समीप जाकर बांसुरी बजाई और उसे अपने हाथों से स्पर्श किया। एक माह में उन्होंने हस्तिन के साथ दोस्ती कर ली। इस उद्देश्य के लिए वह रोजाना कोशिश कर रहे थे, लेकिन इसके बारे में किसी को पता नहीं था।
कृष्ण ने भरपूर कोशिश कर ली लेकिन राधे ने उन्हें जाने नहीं दिया। कृष्ण ने कहा, ‘ठीक है, तुम इंतजार करो। पहले मुझे उसके समीप जाने दो। कुछेक लोगों के साथ कृष्ण हस्तिन के समीप गए। जैसे ही हस्तिन ने इतने सारे लोगों को देखा, वह अंदर ही अंदर गुस्से से उबल पड़ा और हिंसक हो उठा। कृष्ण ने अपने साथियों से दूर रहने को कहा, खुद उसके समीप गए और बांसुरी बजाने लगे। इसके बाद उन्होंने सांड को खाने के लिए मीठी चीजें दीं। धीरे-धीरे वह उसके और निकट पहुंच गए। फिर उन्होंने राधे को इशारा करके कहा कि मेरे पीछे आ जाओ और ठीक ऐसे खड़ी रहो जैसे मैं खड़ा हूं। अपने पैरों को ठीक मेरे पैरों के पीछे रखना और अपने शरीर को भी ठीक मेरे शरीर के पीछे, जिससे कि हस्तिन तुम्हें न देख पाए। शिकारी हमेशा ऐसा करते हैं। आमतौर पर होता क्या है कि जानवर पैरों को देखकर पहचान जाते हैं कि उसके पीछे कितने लोग हैं।
यह कोई एक घटना नहीं है। कृष्ण के जीवन से जुड़ी ऐसी तमाम घटनाएं हैं, जिन्होंने उन्हें उस समाज का एक स्वाभाविक नेता बना दिया। जब वह 15-16 साल के हुए, उस समाज के बुजुर्गों ने भी उनसे सलाह लेना शुरू कर दिया, क्योंकि उन्होंने समाज में खुद को एक नई शक्ति, प्रखर बुद्धि तथा स्पष्ट दृष्टि वाले शक्स के रूप में स्थापित कर लिया था।
आगे जारी ...