क्या आत्म ज्ञान मिलने के बाद भी काम करने पड़ते हैं?
एक इंसान को जब आत्मज्ञान मिल जाता है फिर क्या उसकी यात्रा खत्म हो जानी चाहिए? अगर नहीं तो उसे जरुरत क्या है दुनिया में इतने तरह के काम करने की?
प्रश्न: सद्गुरु, आप ईशा में होने वाली इतनी सारी गतिविधियों को मैनेज करते हैं, साथ ही इतना घूमना-फिरना, इतने टॉक्स, आपको कितने लोगों से मिलना-जुलना पड़ता है और एक ही तरह के सवाल का बार-बार जवाब देना पड़ता है। इन सब से आपको क्या मिलता है? मुझे यह सब बहुत तनावपूर्ण लगता है। अगर मैं आत्मज्ञानी होता, तो मैं बस बैठकर उसका आनंद लेता। आप ये सब जो कर रहे हैं, वह क्यों कर रहे हैं?
हर काम परमानंद देता है
सद्गुरु : काम करने का असली आनंद वही जान सकता है, जिसे काम करने की कोई जरूरत न हो। जब आपको मजबूरी में काम करना पड़ता है, तो आप नहीं जान पाते कि काम करना क्या होता है।
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मेरे जीवन का सबसे सुंदर समय वह होता है, जब मैं कुछ नहीं कर रहा होता हूं। सिर्फ शारीरिक तौर पर नहीं, बल्कि किसी भी तरह से कुछ भी नहीं। मगर आप काम इसलिए करते हैं क्योंकि अपने आस-पास देखते हुए आपको लगता है कि दुनिया में उस काम की जरूरत है। जब आपके साथ कुछ सुंदर होता है, तो आपके अंदर उसे साझा करने की कुदरती इच्छा होती है। जब आप कोई अच्छा चुटकुला भी सुनते हैं, तो क्या आप घर जाकर रजाई में घुसकर खुद को वह सुनाते हैं? या आप अपने दोस्त को ढूंढकर उसे वह चुटकुला सुनाना चाहते हैं? कहीं न कहीं आप क्या हैं और दूसरा क्या है, यह अलग-अलग नहीं होता, आप उसे अनदेखा नहीं कर सकते।
क्या इसका मतलब है कि हमें किसी न किसी तरह कुछ करना है? नहीं। जैसा कि मैंने कहा, अगर मैं आंखें बंद करूं तो मुझे उन्हें फिर से खोलने की जरूरत नहीं है। मैं बस बैठकर अपना जीवन बिता सकता हूं। मगर लोग अलग-अलग रूप में जीवन जी रहे हैं।
खुद अपना दुःख पैदा करना
मैं नहीं जानता कि आप इंसानी दुखों के बारे में कितना जानते हैं। मैं रोजाना सैंकड़ों लोगों से मिलता हूं और जिस पल वे मेरे सामने बैठते हैं, मैं उनके आर-पार देख पाता हूं, उनका एक-एक हिस्सा देख सकता हूं।
एक समय ऐसा था, जब यह सारी चीज मेरे अंदर नई-नई थी और हमेशा, कहीं भी लोगों को देखकर मेरी आंखों से आंसू बहने लगते थे। क्योंकि मैं परमानंद में डूब रहा था और वे बेवजह दुखी होते थे। जो कुछ मेरे अंदर है, उनके अंदर भी है, मगर वे दुखी चेहरे के साथ घूम रहे हैं। फिर मैं लंबे समय तक मिलना-जुलना छोड़ देता था ताकि उन्हें देखने से बच सकूं। अब मैंने हंसना सीख लिया है क्योंकि आप आंसुओं के साथ काम नहीं कर सकते। अब मैं हंसता हूं। इसलिए नहीं कि आप दुखी हैं और मैं नहीं हूं, बल्कि इसलिए कि आप खुद के लिए दुखों को पैदा कर रहे हैं जबकि उसकी कोई जरूरत ही नहीं है।
किस चीज़ की जरूरत सबसे अधिक है
आपको लगेगा कि आपके पास दुखी होने के लिए बहुत सी वजहें हैं, मगर ईमानदारी से इसे देखें तो लगेगा कि वास्तव में कोई वजह ही नहीं है। आप कहीं न कहीं जीवन के साथ अपना बुनियादी संतुलन खो बैठे हैं।
ध्यानलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद, मैंने जाने की पूरी तैयारी कर ली थी, मगर किसी वजह से मैं रुक गया। मैं लोगों के बीच हूं, इसलिए मैं कुछ कर सकता हूं। जब काम करने की कोई बाध्यता नहीं होती, तो आप कुदरती तौर पर वह करेंगे जो सबसे ज्यादा जरूरी होता है। फिलहाल मुझे दुनिया में सबसे जरूरी यह लगता है कि लोग जीवन का अनुभव जिस तरह करते हैं, उसमें कम से कम एक स्तर आगे बढ़ सकें। यह उनके लिए भी और दुनिया के लिए भी एक बड़ी राहत की बात होगी।