क्या योग सिर्फ हिन्दुओं के लिए है?
हाल ही में, अमेरिका में एक नया विवाद चारों ओर फैला है कि स्कूलों में योग पर प्रतिबंध लगना चाहिये, क्योंकि यह धार्मिकता और हिंदुत्व से जुड़ा है। यहाँ सद्गुरु समझा रहे हैं कि योग एक तकनीक है और इसका धर्म से कोई लेना देना नहीं है।
हाल ही में, अमेरिका में एक नया विवाद चारों ओर फैला है कि स्कूलों में योग पर प्रतिबंध लगना चाहिये, क्योंकि यह धार्मिकता और हिंदुत्व से जुड़ा है। यहाँ सद्गुरु समझा रहे हैं कि योग एक तकनीक है और इसका धर्म से कोई लेना देना नहीं है।
सद्गुरु:
आप किस धर्म से हैं, इसका आपके यौगिक प्रणाली का उपयोग करने की योग्यता से कुछ भी लेना देना नहीं है, क्योंकि योग सिर्फ एक तकनीक है। तकनीक इसमें भेद नहीं करती कि आप किस चीज़ में यकीन करते हैं और किस चीज़ में नहीं करते? आप किस पर यकीन करते हैं और किस पर नहीं, ये पूरी तरह से एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है - इसका तकनीक का उपयोग करने से कोई लेना- देना नहीं है।
योग सिर्फ उसी तरह से हिंदू है जिस तरह गुरुत्वाकर्षण ईसाई है। गुरुत्वाकर्षण के नियमों की व्याख्या आइज़क न्यूटन ने की थी, जो ईसाई संस्कृति में रहते थे, तो क्या सिर्फ इसीलिये ये गुरुत्वाकर्षण को ईसाई बना देता है? योग एक तकनीक है। कोई भी, जो इसका उपयोग करना चाहता है, कर सकता है। यह सोचना भी मूर्खतापूर्ण है कि योग धर्म से जुड़ा है।
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आध्यात्मिक प्रक्रिया और योग की तकनीक, किसी भी धर्म के अस्तित्व में आने से पहले के हैं। जब मनुष्य ने धार्मिक समूह बनाना शुरू किया था, जिन्होंने मानवता को ऐसे तोड़ना शुरू किया कि जिसे आप कभी ठीक भी न कर सकें, उससे कहीं पहले आदियोगी शिव ने यह विचार दिया था कि एक मनुष्य अपने आपको विकसित कर सकता है।
हिंदु कोई 'वाद' नहीं है
यौगिक विज्ञान पर हिंदु का लेबल इसलिये लग गया है क्योंकि यह विज्ञान और तकनीक इस संस्कृति में विकसित हुए हैं। और, चूंकि ये संस्कृति द्वन्द्वात्मक है, तर्कात्मक है, तो स्वाभाविक ढंग से उन्होंने इस विज्ञान को भी द्वन्द्वात्मक रूप में ही लिया, जिससे इस जमीन की सांस्कृतिक ताकतें भी इसमें जुड़ गयीं जो हिंदु जीवन पद्धतियों से सम्बंधित थीं। 'हिंदु', ये शब्द 'सिंधु' में से आया है, जो एक नदी है। चूंकि ये संस्कृति सिंधु नदी के किनारे पनपी, तो इस संस्कृति को हिंदु कहा गया। जो भी सिंधु नदी की ज़मीन में पैदा हुआ है, वो हिंदु है। ये एक भौगोलिक पहचान है जो धीरे-धीरे सांस्कृतिक पहचान बन गयी है। और फिर बाद में, जब हमलावर इस जमीन पर आये तो एक बड़ी प्रतिस्पर्धा शुरू हुई और यहाँ के लोगों ने अपने आपको एक धर्म के रूप में संगठित करने का प्रयास किया, जो अभी तक भी पूरी तरह से नहीं हो पाया है। आप आज भी उनको एक साथ, एक समान नहीं रख सकते क्योंकि उनके पास कोई एक विश्वास प्रणाली नहीं है।
भगवान बनाने वाले
लेकिन साथ ही, एक बात है जो सामान्य रूप से सभी में है। इस संस्कृति में, मानव जीवन का बस एक ही उद्देश्य है - जीवन प्रक्रिया से मुक्ति। आप जिस चीज़ को भी बंधन, सीमाओं के तौर पर जानते हैं, उन सब से मुक्ति, और उन सब से परे जाना। इस संस्कृति में ईश्वर कोई अंतिम लक्ष्य नहीं है। आगे बढ़ने के लिये ईश्वर को एक पहले कदम की तरह देखा जाता है। इस पूरी धरती पर यही एक संस्कृति है जिसमें कोई भगवान नहीं है, यानि भगवान की कोई ठोस परिभाषा नहीं है कि भगवान ऐसा ही होना चाहिये। आप किसी पत्थर की पूजा कर सकते हैं, एक गाय की भी और अपनी माँ की भी। आप चाहे जिसकी पूजा कर सकते हैं, क्योंकि इस संस्कृति में हमने हमेशा से जाना है कि भगवान हमारा बनाया हुआ है। बाकी सब जगह लोगों का यकीन है कि ईश्वर ने हमें बनाया है। यहाँ हम जानते हैं कि हमने ईश्वर को बनाया है। इसीलिये, हमारे पास पूरी स्वतंत्रता है कि हम जिस किसी तरह के भगवान के साथ जुड़ सकें, उसे भगवान बना लें। मनुष्य को उसकी आखरी संभावना तक ले जाने का ये विज्ञान है।
हमने भगवान बनाने की पूरी तकनीक विकसित की है। न सिर्फ आकार बनाने की बल्कि उन्हें इस तरह से ऊर्जावान करने की, जो आपको अपने उस आयाम को छूने में मदद करे, जो सृष्टि का आधार है, मूल है। और ऐसा नहीं है कि किसी के विश्वास की वजह से वह जीवंत हो जाता है। ये प्राणप्रतिष्ठापन का विज्ञान है, जिसमें हम जानते हैं कि एक पत्थर को कैसे दिव्य बनाया जाता है।
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