क्या संगीत योग बन सकता है?
संगीत सुनने वाले लोग विचारों और भावनाओं पर संगीत के असर की पुष्टि कर सकते हैं। लेकिन क्या संगीत व्यक्ति पर अधिक गहरा असर डालने में सक्षम है? यहां सद्गुरु संगीत के गणितीय और रहस्यमय ढांचों और व्यक्ति के अंतरतम तत्व पर उसके असर की खोजबीन करते हैं।
प्रश्नः नमस्कारम। चूंकि ध्वनि और ऊर्जा का आपस में संबंध है, तो विभिन्न रागों को सुनने या बजाने से, क्या हम अपनी ऊर्जा के बर्ताव के तरीके को, और उसके फलस्वरूप अपने विचारों और भावनाओं को बदल सकते हैं? क्या संगीत एक तरह का क्रिया योग ही है?
सदगुरु: ‘क्रिया’ शब्द का अर्थ है ‘आंतरिक कार्य।’ ध्वनि या नाद मुख्यतया बाहरी कार्य है। ज्यादातर लोगों के लिए मुख्यतया ध्वनि या ध्वनि की अभिव्यक्ति एक कर्म है, क्रिया नहीं। यह एक बाहरी कार्य है, आंतरिक कार्य नहीं है। दक्षिण भारत में कन्नड़ भाषा में एक बहुत अच्छी कहावत है जिसके अनुसार, कोई दूसरा जो भी कर्म करता है, उसके बारे में बस बात करने से, वो तुम्हारा कर्म हो जाएगा। मान लीजिए किसी ने एक खून किया। ऐसे हिंसक कार्य का जो भी कर्मगत असर है, उसके बारे में बात करने से, ये आपका बन सकता है।इस संदर्भ में, समाज की संस्कृति ऐसी बनाई गई थी कि आपको उसके बारे में बात करनी चाहिए जो आपके लिए और आपके आस-पास हर किसी के लिए सुखद हो। हम अप्रिय चीजों को छुपाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। हम उनके बारे में जागरूक हैं, लेकिन जीवन को इन चीजों से बचने का कार्य होना जरूरी नहीं है। जीवन को सुखद की तलाश होना चाहिए। अप्रिय से बचने का काम जीवन नहीं है। चेतना और नैतिकता के बीच यही बुनियादी अंतर है। नैतिकता का मतलब है, ‘आपको यह नहीं करना है,’ या अप्रिय से कैसे बचें। चेतना का मतलब है सुखद का निर्माण करना। अगर आप कुछ खास चीजें करते हैं, तो आपके चारों ओर और आपके अंदर एक सुखद संरचना तैयार होती है। अगर आप कुछ दूसरी चीजें करते हैं तो अप्रिय संरचनाएं और स्वरूप आपके अंदर और आपके आस-पास जाहिर होंगे। क्रिया का मतलब है भौतिकता और आप जो हैं, उसकी मनोवैज्ञानिक संरचना से परे को अभिव्यक्त करने के लिए कुछ करना।
अंतरतम तत्व पर असर डालना
क्रिया का मतलब है अपने अस्तित्व की आंतरिक संरचना का सचेतन रूप से निर्माण करना - जो आप वाकई हैं, वो नहीं जो आपने जमा किया है, उस पर असर डालने वाला कार्य करना। मनोवैज्ञानिक और शारीरिक ढांचा उस चीज से बना है जो आपने बाहर से इकट्ठी की है। लेकिन अंतरतम तत्व पर, स्वयं जीवन पर सही किस्म की संरचना से असर डालना क्रिया है। चरम संरचना क्या होगी? उस किस्म की संरचना जो चरम आजादी और मुक्ति की ओर ले जाती है, वही एकमात्र संरचना अंतरतम तत्व के लिए मायने रखती है। अभी, जीवन की सारी विकृतियां जो हमारे अंदर हुई हैं, वो हमारी इकट्ठा की हुई बारही परत के कारण है, न कि हम जो हैं उसके आंतरिक तत्व के कारण।
अस्तित्व का खाका
आपका सवाल था, ‘क्या हम ध्वनियों का उच्चारण करके या ध्वनियों को सुनने से क्रिया योग कर सकते हैं?’ - संगीत के बजाय मैं ध्वनि शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूँ, क्योंकि संगीत ध्वनियों की बस एक विशेष व्यवस्था है।
जो सात सुर हम सामान्य रूप से जानते हैं, जिनका संबंध सात रंगों से और हमारे सिस्टम में सात चक्रों से है, उनमें बाईस ‘श्रुति’ यानी सूक्ष्म सुर होते हैं - ये सुरों के बीच में सुर हैं! वाद्ययंत्र के तारों पर संख्याएं जिस अनुपात में बनी हैं, वो रूढ़ संख्याओं - एक, दो, तीन, पांच - की गुणज हैं और ये चार तत्वों का प्रतीक भी है, जिसमें आकाश शामिल नहीं है।
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ये बाईस श्रुतियां, ये एकीकरण की रूढ़ संख्याएं, इनसे जो पैटर्न बनता है, वह अपने आप में एक किला है। आपको यह समझने की जरूरत है, भारतीय शास्त्रीय संगीतकार एक तय रचना को नहीं गाता है। वो एक राग से शुरू करते हैं, जो एक बुनियादी पैटर्न होता है। उसके ऊपर, संगीतकार अपनी दक्षता के आधार पर, एक पूरा किला बना लेता है, और इस किले का एक गणितीय आधार होता है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार आज हम जानते हैं कि जगत में हर संरचना को एक गणितीय संरचना में ढाला जा सकता है। वही अस्तित्व का खाका या आधार है।
यही कारण है कि जब भारतीय शास्त्रीय संगीत बजाया जा रहा हो, तो लोग अपनी उंगलियों पर गिनतियां कर रहे होंगे और उस संरचना को समझने की कोशिश करेंगे जिसे संगीतकार खड़ी करने की कोशिश कर रहा है। यह सिर्फ इसके सौंदर्यबोध की बात नहीं है, जिन अस्तित्वगत संरचनाओं को बनाया जा रहा है, यह उसकी गणित है। या दूसरे शब्दों में, संगीत को एक खास तरह से इस्तेमाल करके, आप जो हैं, उसकी संरचना को ही बदल सकते हैं। मनोवैज्ञानिक और शारीरिक ढांचे को ही रूपांतरित किया जा सकता है।
रंग से परे जाना
मान लीजिए हम सही ध्वनियों का उच्चारण करके करुणा की एक गणितीय संरचना बनाते हैं, या हम प्रेम की एक गणितीय संरचना बनाते हैं। अगर आप यहां बैठते हैं, तो कोई शब्द या भावुक चीजें कहना जरूरी नहीं है। बस ध्वनियों के इस्तेमाल से, आप प्रेम के आंसू, करुणा के आंसू, पीड़ा के आंसू देखेंगे - ये सारी चीजें एक ही व्यक्ति के अंदर घटित होंगी।
इस देश के साधुओं और संतों की अद्भुत कहानियां मौजूद हैं। उदाहरण के लिए, तिरुनावुक्करसार ने कुछ ऐसे विशेष मंत्रोच्चार किए जिससे उन्होंने एक मंदिर के दरवाजे का ताला खोल दिया। उन दिनों ताले एक लीवर के बनते थे। सही ध्वनियों के उच्चारण से, उन्होंने ताला खोल दिया।
तानसेन और उनके गुरु हरिदास के बारे में भी जबरदस्त चीजें कही जाती हैं - एक खास राग को गाकर वो दीया जला देते थे और वो अपने सिस्टम में गर्मी पैदा कर सकते थे। हम जानते हैं कि योग-अभ्यास से, बस एक ध्वनि के उच्चारण से आप सिस्टम में कितनी गर्मी पैदा कर सकते हैं। मौसम चाहे कोई भी हो, आपको पसीना आने लगेगा। पसीना बस एक शारीरिक अभिव्यक्ति है, लेकिन अनुभव से आप साफ तौर पर जानते हैं कि आप या तो उष्मा या शीत पैदा कर सकते हैं। जो उष्मा और शीत हैं उनके लिए ‘गर्मी’ और ‘ढंडक’ सही अर्थ नहीं देते हैं। लेकिन अंग्रजी शब्दावली में कमी के कारण हम उष्मा और शीत के लिए गर्मी और ठंडक के रूप में बात करेंगे। दोनों को सिस्टम में पैदा किया जा सकता है।
अलग-अलग ध्वानियों के उपयोग से, हम अलग-अलग मौसम को दर्शाते हैं। तमिल केलेंडर में छह महीने हैं। हर दो महीनों को एक अलग मौसम माना जाता है। उनमें से हरेक के लिए एक राग है।
तो, क्या ध्वनियों का उच्चारण या संगीत सुनना या एक खास तरीके से संगीत बजाना क्रिया योग है? अभी आप ध्वनियों को कर्म की तरह बोल रहे हैं, जिसका मतलब है बाहरी अभिव्यक्ति। वही चीज एक आंतरिक अभिव्यक्ति बन सकती है और आपकी अपनी मुक्ति के लिए एक आंतरिक तरीका पैदा कर सकती है। जब मैंने आपसे ‘वैराग्य’ के इन पांच मंत्रों को सुनने को कहा था तो मैं यही कह रहा था। रंग के परे जाने का अर्थ कर्म से परे जाना भी है, क्योंकि कर्म एक तरह का रंग है।
अभी, खिड़की पर कांच को सिर्फ इसलिए लगाया जाता है क्योंकि यह रंगहीन है। बाहर का जो भी रंग है, उसे आप देख सकते हैं क्योंकि कांच पारदर्शी और रंगहीन है। उसी तरह, अगर आप खुद को एक ऐसी अवस्था में ले आते है जहां आपकी दृष्टि में कोई रंग नहीं हो, तो आपकी आंखें रंगहीन बन जाती हैं - वो पिछली याद्दाश्त से एक खास रंग लेकर उससे प्रभावित नहीं होतीं। अगर आपका मन रंगहीन है, अगर आपकी बुद्धिमत्ता एक वैराग्य की अवस्था में है - उसका मतलब है कि वो पारदर्शी है - सिर्फ तभी आपकी बुद्धिमत्ता आपको मुक्ति की ओर ले जाएगी। अगर आपकी बुद्धिमत्ता रंगदार है, आप चाहे जो करें, ये बंधन की ओर ले जाएगी।
एक पैना कान
‘वैराग्य’ के यही मायने हैं। ‘वैराग’ का शब्दिक अर्थ रंगहीन है लेकिन ये असल में पारदर्शी को संकेत करता है। अगर आपका मन पारदर्शी हो जाता है, आपने जो भी कर्मगत रंग इकट्ठा किए हैं, उनसे मन प्रभावित नहीं है, तो आप स्वाभाविक रूप से मुक्ति की ओर बढ़ते हैं क्योंकि आपकी बुद्धिमत्ता दिव्य के लिए द्वार खोल देगी।
तो क्या संगीत क्रिया योग है? इसे निश्चित रूप से क्रिया योग में रूपांतरित किया जा सकता है अगर श्रोता में एक खास गुण है। संगीत की गुणवत्ता बस संगीतकार के साथ ही नहीं होती। ये मुख्य रूप से श्रोता में होती है - व्यक्ति कितनी गहराई से सुन सकता है। आपको यह समझना चाहिए - अगर आपका सुनना बहुत पैना हो जाता है, तब सुनना बस आपके कान से ही नहीं होता। कान में गूंज ही पूरी चीज नहीं रहती - आपके शरीर में हर कोशिका स्पंदित होगी।
इसी कारण नाग को सर्वोच्च बोध वाला माना जाता है क्योंकि उसके कान जमीन से लगे होते हैं। सांप बिलकुल बहरा होता है - उसके पास सुनने का कोई साधन नहीं होता, लेकिन वह हर चीज सुन लेता है क्योंकि वह अपने पूरे शरीर को जमीन पर रखता है और शरीर से सुनता है। उस हद तक जो उसके लिए जरूरी है, वह धरती पर होने वाली हर चीज जानता है क्योंकि उसके कान जमीन पर रखे हैं - पूरा शरीर सुन रहा है। अगर आपका पूरा शरीर सुन सके, तो जो चीज बस मनोरंजन है, वह निश्चित रूप से क्रिया योग बन सकती है।