मधुर मुस्कान बिखेरते कृष्ण
बाल्यकाल से ही कृष्ण इतने आकर्षक थे, कि सभी उनके ओर खिचे चले आते थे। उनकी मुस्कराहट इस खूबसूरती को अलौकिक बना देती थी। चाहे युद्ध का माहौल हो या आनंद का वातावरण या फिर कोई गंभीर परिस्थिति – वे हमेशा मुस्कुराते रहते। सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि सदा मुस्कुराना एक मानवीय गुण है और इसे दैवीय गुण मानना एक बड़ी भूल है।
बाल्यकाल से ही कृष्ण इतने आकर्षक थे, कि सभी उनके ओर खिचे चले आते । उनकी मुस्कान इस खूबसूरती को अलौकिक बना देती । चाहे युद्ध का माहौल हो या आनंद का वातावरण या फिर कोई गंभीर परिस्थिति – वे हमेशा मुस्कुराते रहते। सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि सदा मुस्कुराना एक मानवीय गुण है और इसे दैवीय गुण मानना एक बड़ी भूल है।
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आज की एक दुखद वास्तविकता यह है कि दुनिया में रहने वाले कितने ही लोग ऐसे हैं, जो दस मिनट के लिए भी खुश नहीं रह सकते। न जाने कितने ही लोग ऐसे हैं, जो अपने पूरे जीवन में किसी ऐसे व्यक्ति के पास एक पल के लिए नहीं बैठ पाए जो उससे प्यार करता हो। उनका सारा जीवन ऐसे ही चलता रहता है। ऐसे लोगों को गोकुल नगरी में आने की अनुमति नहीं हैं, क्योंकि गोकुल ऐसी जगह थी, जहां लोग काम करते हुए भी आनंद में झूमते रहते थे। वे नाचते, गाते और प्रेम करते थे।
आनंद के पलों को न जानना मानवता के खिलाफ एक अपराध है। 24 घंटे खुश रहना मानव जाति के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। हमारे देश की संस्कृति में कृष्ण एक महान शख्स के रूप में जाने जाते हैं, क्योंकि वह आजीवन मस्ती में झूमते रहे। जबकि बाल्यकाल से ही उन्होंने गंभीर परिस्थितियों का सामना किया था। जैसा कि हम जानते हैं कि उनके जन्म से ही लोग उन्हें मारने का प्रयत्न कर रहे थे, फिर भी उन्होने कभी इन सब की परवाह नहीं की।
बाल्यकाल में कितने ही हत्यारों ने उन्हें मारने की कोशिश की, लेकिन तमाम चीजों के चलते, जिनमें कई बार उनकी अलौकिक क्षमताएं भी होती थीं, ऐसे हत्यारे नाकाम हो जाते थे। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह था कि उन्होंने अपना पूरा जीवन आनंद, सुख और प्रेम से परिपूर्ण नृत्य की भांति व्यतीत किया। वे जहां भी होते थे, चाहे किसी युद्ध में या किसी विरोधी का सिर काटते हुए अथवा आनंदमय वातावरण या गंभीर परिस्थिति में, उनके मुख पर सदा एक मुस्कान रहती थी। आवश्यकता पडऩे पर ही वह कठोर होते थे और जैसे ही वह परिस्थिति गुजरी कि उनके चेहरे पर फिर मुस्कान आ जाती थी। दुर्भाग्यवश लोग इसे उनका दैवीय गुण मानते हैं, जबकि यह मानवीय गुण है। जो लोग अपने इस गुण को खो चुके हैं, वे इसे स्वर्गलोक में ही पाने की संभावना रखते हैं।
यह उनके दैवीय शक्ति का पहला प्रदर्शन था, जिसे वह आवश्यकता पडऩे पर ही इस्तेमाल में लाते थे, नहीं तो वह एक साधारण मनुष्य की भांति ही जीवन के संघर्ष से गुजरते थे। बस कुछ खास मौकों पर वह अपनी अलौकिक शक्तियों का प्रदर्शन करते थे। तो बैलगाड़ी के टूटने से लोग घबरा गए कि कहीं बालक को चोट तो नहीं लग गई, लेकिन उसे कुछ नहीं हुआ था। कुछ बच्चों ने कहा कि कृष्ण ने गाड़ी को लात मारी और वह गिर गई, परन्तु किसी ने भी इस बात पर विश्वास नहीं किया कि तीन माह का बालक गाड़ी को लात भी मार सकता है। सभी बड़ों ने इसे बच्चों की कोरी कल्पना समझकर नकार दिया, लेकिन कृष्ण ने दिव्य शक्तियों का प्रदर्शन करना जारी रखा।
आनंद के पलों को न जानना मानवता के खिलाफ एक अपराध है। 24 घंटे खुश रहना मानव जाति के लिए पूरी तरह संभव है। कृष्ण आजीवन मस्ती में झूमते रहे। वे जहां भी होते थे, चाहे किसी युद्ध में या किसी विरोधी का सिर काटते हुए अथवा आनंदमय वातावरण या गंभीर परिस्थिति में, उनके मुख पर सदा एक मुस्कान रहती थी। दुर्भाग्यवश लोग इसे उनका दैवीय गुण मानते हैं, जबकि यह मानवीय गुण है।
आगे जारी ...