मिट्टी की अवनति
हमारे समय की सबसे ज्यादा चिंताजनक और महत्वपूर्ण पर्यावरण संबंधी चुनौती है मिट्टी की अवनति। यहाँ, इस समस्या के 3 मूलभूत कारण और इससे होने वाले 4 तरह के खराब असर क्या हैं, ये सदगुरु हमें बता रहे हैं।
#1.मिट्टी की अवनति के 3 मुख्य कारण ये हैं:
#1.1खेती काम का औद्योगिकीकरण
सदगुरु : जब से हमने खेती के काम का औद्योगिकीकरण और मशीनीकरण कर दिया है, सारी दुनिया के खेतों की मिट्टी के जैविक (ऑर्गेनिक) अंश भारी मात्रा में कम हो गये हैं। खेती काम के लिये जरूरी शक्ति वाली किसी भी ज़मीन की मिट्टी में जैविक (ऑर्गेनिक) अंश कम से कम 3 से 6% होना चाहिये पर, आज दुनिया के कई भागों में ये 1% से भी काफी कम है। भारत की 62% मिट्टी में जैविक (ऑर्गेनिक) अंश 0.5% से भी कम हो गया है! ये बहुत ही चिंताजनक है। पर, ऐसा क्यों हुआ है? जब हम 1 टन फसल उगाते हैं, तो मिट्टी की उपजाऊ ऊपरी सतह में से 1टन मिट्टी कम हो जाती है। तो इसको वापस डालने के क्या उपाय हैं? जब खेतों में जानवर और पेड़ हुआ करते थे तो ये काम प्राकृतिक रूप से होता था क्योंकि मिट्टी में जैविक (ऑर्गेनिक) अंश भरने का एकमात्र उपाय जानवरों और पेड़ों का हरा कचरा ही था। लोगों को लगता है कि ट्रेक्टर बेहतर काम करता है पर ऐसा नहीं है। ट्रेक्टर जुताई तो कर देगा पर वो मिट्टी को समृद्ध नहीं करेगा जो काम जानवर और पेड़ प्राकृतिक रूप से करते हैं।Subscribe
#1.2 दुनिया में ज्यादा माँसाहार और पशुओं के चारागाह
आजकल दुनिया की 5.10 करोड़ वर्ग किमी जमीन पर खेतीबाड़ी संबंधी काम होता है पर इसमें से 4 करोड़ वर्ग किमी जमीन पशुओं को पालने पोसने और उनके चारे के लिये इस्तेमाल होती है जो लगभग 78% है। साफ है कि खाद्यान्न उगाने के लिये जमीन कम है। बड़ी मात्रा में माँस खाने वाले लोग अगर अपने माँसाहार की मात्रा 50% कम कर दें, तो 2 करोड़ वर्ग किमी जमीन की मिट्टी उपजाऊ बना कर फसलें उगाने के काम आ सकती हैं, पर उपजाऊ बनाने के इस काम में भी 8 - 10 साल का समय लगेगा।
#2.मिट्टी की अवनति के 4 मुख्य असर ये हैं:
#2.1मनुष्य का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है :
भारत के खेतों की मिट्टी की दशा इतनी खराब है कि उगाये गये अन्न, सब्जियों, फलों में पोषक तत्वों का स्तर बहुत तेजी से और नुकसानदेह तरीकों से नीचे जा रहा है। पिछले 25 सालों में खास तौर पर, भारत की सब्जियों के पोषक तत्वों में 30% की गिरावट आयी है। दुनिया भर में डॉक्टर लोगों को माँसाहार छोड़ कर शाकाहारी होने की सलाह दे रहे हैं, पर भारत के डॉक्टर लोगों को माँस ज्यादा खाने के लिये कह रहे हैं। जब सारी दुनिया माँसाहार से शाकाहार की ओर बढ़ने की कोशिश कर रही है तब लंबे समय से, मूल रूप से, ज्यादातर शाकाहारी रहने वाले भारतीय ज्यादा माँस खाने की ओर जाने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि हमारे अन्न, फलों और सब्जियों में पर्याप्त पोषक तत्व नहीं हैं। ये बस इसलिये हुआ है क्योंकि हमने अपनी मिट्टी की परवाह नहीं की है। मिट्टी के पोषक अंश में नाटकीय रूप से इतनी कमी आयी है कि भारत में 3 साल से कम उम्र के बच्चों में 70% से ज्यादा बच्चे एनिमिक हैं यानि वे खून की कमी से पीड़ित हैं।
#2.2मिट्टी का जैविक (ऑर्गेनिक) अंश कम होता जा रहा है
शहरी जनसंख्या का नज़रिया कुछ ऐसा है, "ठीक है, अगर कीड़े मर भी जाते हैं तो समस्या क्या है? आखिर तो हम वैसे भी कीड़ों को पसंद नहीं करते"! उन्हें ये पता ही नहीं है कि अगर सभी इंसेक्ट्स (कीड़े) मर जायें तो पृथ्वी का सारा जीवन कुछ ही वर्षों में खत्म हो जायेगा, सारे वर्म्स मर जायें तो सब कुछ खत्म होने में बस कुछ ही महीने लगेंगे और, अगर सारे मैक्रोएब्स(सूक्ष्म जीवाणु) मर जायें तो सब कुछ कल ही खत्म हो जायेगा। हमें ज़िंदा रखने का काम छोटे कीड़ों और सूक्ष्म जीवाणुओं का ही है। मिट्टी का जैविक (ऑर्गेनिक) अंश बहुत तेजी से इसीलिये कम होता जा रहा है क्योंकि हमारी समझ के हिसाब से ये धरती एक करीने से बना हुआ बगीचा है, जिसमें मिट्टी की कोई कीमत नहीं है। हम ये नहीं समझते कि अगर इस मिट्टी को समृद्ध रखना है तो इसमें जैविक (ऑर्गेनिक) अंश खूब होना चाहिये जो तभी संभव है, जब हमारे खेतों पर जानवर और पेड़ हों - जिससे लगातार जानवरों और पेड़ों का हरा कचरा खेतों को मिलता रहे। अगर सभी मनुष्य कल ही गायब हो जायें तो दस साल में, ये धरती पर्यावरण की दृष्टि से अति समृद्ध हो जायेगी। पृथ्वी पर मनुष्य सबसे ज्यादा बुद्धिमान और विकसित प्राणी माना जाता है पर वही पृथ्वी के लिये सबसे खतरनाक प्राणी बन गया है। ऐसी बात नहीं है कि ये धरती खतरे में है, ये तो टिकी रहेगी। बस, हम जो कुछ किये जा रहे हैं, उससे मनुष्यों के लिये मुसीबत बढ़ जायेगी।
#2.3 बाढ़ और अकाल के खराब चक्र का चलते रहना
भारत में अगर आप पिछले कुछ सालों का इतिहास देखें तो जहाँ भी बाढ़ आती है, वहाँ तीन महीनों में ही अकाल पड़ता है। इसकी वजह ये है कि हमारे पास मानसून की बरसात ही पानी का एकमात्र स्रोत है। सारी नदियाँ, झीलें, तालाब और कुँए पानी के स्रोत नहीं हैं। इनमें सिर्फ बरसात का पानी इकट्ठा होता है। भारत की नदियों में ग्लेशियर्स से आया हुआ पानी सिर्फ 4% है, बाकी सब बरसात का ही पानी है। पिछले 100 सालों में बरसात के रूप में आने वाले पानी की मात्रा बदली नहीं है। बात बस ये है कि 50 साल पहले मानसून की बरसात 70 से 140 दिनों तक होती रहती थी। आजकल ये बस 40 से 75 दिनों तक होती है। मतलब ये है कि अब बरसात बहुत भारी होती है, तेजी से ज्यादा पानी आता है। जब पानी जमीन पर गिरता है तो ये मिट्टी में गहरा उतरना चाहिये और जमीन के अंदर, नीचे बहने वाली पानी की नदियों में पहुँचना चाहिये। पर, हमनें ज्यादातर पेड़ काट डाले हैं, तो पानी जमीन की ऊपरी सतह पर ही बह जाता है। इससे मिट्टी कटती है, बह जाती है और बाढ़ आ जाती है। ये इसलिये हो रहा है क्योंकि चारों तरफ खुली जमीन है, पेड़ नहीं है तो मिट्टी रुकती नहीं। मिट्टी में पर्याप्त जैविक (ऑर्गेनिक) गतिविधि न होने से पानी सोखा नहीं जाता। अगर पानी गहरे तक अंदर उतरता तो नदियों, तालाबों, कुओं में पानी भरा रहता। बरसात का पानी टिकता नहीं, तो कुछ समय बाद हर हाल में अकाल पड़ता है। धरती पर मिट्टी ही सबसे बड़ा बांध है। अगर ये सही दशा में हो तो सारी नदियों में जितना पानी हो सकता है, उससे 800 गुना ज्यादा पानी मिट्टी में रुक सकता है। पर, जैसे जैसे मिट्टी का जैविक (ऑर्गेनिक) मूल्य कम होता जा रहा है, उसकी पानी रोकने की काबिलियत भी कम हो रही है।
#2.4 खाद्यान्न की कमी से लोगों के झगड़े बढ़ना
भारत के पास 16 लाख हेक्टेयर खेती लायक जमीन है पर इसकी 40% मिट्टी खराब हो गयी है। इसका मतलब ये है कि अगले 25 से 30 सालों में हम देश के लिये जरूरी अन्न पैदा नहीं कर पायेंगे। जब पर्याप्त खाना और पानी नहीं होगा, तो देश में लोगों के बीच इतना झगड़ा होगा कि ये देश को कई तरह से नष्ट कर देगा। जिन ग्रामीण इलाकों में से पानी पूरी तरह से खत्म हो जायेगा, वहाँ से लोग बड़ी संख्या में शहरी इलाकों की ओर ही भागेंगे। अब तो इसमें कोई बहुत ज्यादा समय भी नहीं बचा है। और, उनके लिये शहरी इलाकों में कोई व्यवस्था नहीं होगी तो वे गलियों, रास्तों पर ही बैठेंगे। पर, कितनी देर? जब उन्हें खाना, पानी नहीं मिलेगा, तो वे लोगों के घरों में घुसेंगे। मैं सिर्फ खराब वक्त, मुसीबतों की भविष्यवाणी करने वाला इन्सान नहीं हूँ पर, अगर, हम तुरंत ही जरूरी काम करना शुरू नहीं करते अगले 8 से 10 सालों में ऐसी स्थिति दिखनी शुरू हो सकती है।
सम्पादकीय टिप्पणी : सद्गुरु का एक वैश्विक अभियान है 'कॉन्शियस प्लैनेट' जो जल्दी ही शुरू होने जा रहा है। ये लोगों में मिट्टी और धरती के लिये एक जागरूक रवैया बनाने के बारे में है। मिट्टी को बचाने और एक जागरूक दुनिया बनाने में आपका समय, कौशल और प्रयास बेशकीमती होगा। आप जैसे भी कर सकें, सहयोग करें - एक 'अर्थ बडी' (पृथ्वी मित्र) बन कर या 'प्लेनेट चैंपियन' (धरती वीर) के रूप में अथवा 'कॉन्शस प्लेनेट टीम' के सदस्य की तरह काम करके।