सद्गुरु से प्रश्न पूछा गया कि नशे और भक्ति में क्या अंतर है। सद्गुरु बता रहे हैं कि दोनों ही सुखद अवथाएं हैं, लेकिन भक्ति आपके मन का विकास करती है, जबकि नशा उसे बर्बाद कर देता है।
भक्त अपने नशे को छिपा नहीं पाता
नशा आमतौर पर किसी चीज का होता है, लेकिन भक्ति आप केवल उसी के प्रति रख सकते हैं, जिसे आप अपने से बेहतर मानते हैं। भक्ति का अभ्यास नहीं किया जा सकता।
नशीली दवाएं लेने के आदी किसी इंसान का अगर अपने पर थोड़ा भी नियंत्रण है तो वह सामान्य नजर आ सकता है और दुनिया को धोखा दे सकता है, लेकिन भक्त ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं है।
इसे न तो पैदा किया जा सकता है, न उगाया जा सकता है। जब आप किसी को अपने से बेहतर और ऊंचा पाते हैं और उससे जबर्दस्त तरीके से अभिभूत हो जाते हैं, तो भक्ति स्वाभाविक रूप से सामने आती है। नशा इसलिए होता है, क्योंकि आपने किसी चीज का स्वाद चखा और वह आपको बेहद पसंद आ गई। आप इसे थोड़ा ज्यादा करना चाहते हैं, थोड़ा और ज्यादा। इसी तरह इसकी मात्रा बढ़ती जाती है और एक दिन आप खुद को इसके जाल में फंसा पाते हैं। अगर देखें तो किसी भक्त को आप किसी नशेड़ी से ज्यादा नशे में पाएंगे। नशेड़ी अपने नशे को छिपा सकता है, लेकिन भक्त अपने नशे को नहीं छिपा सकता। यही उसकी समस्या है। नशीली दवाएं लेने के आदी किसी इंसान का अगर अपने पर थोड़ा भी नियंत्रण है तो वह सामान्य नजर आ सकता है और दुनिया को धोखा दे सकता है, लेकिन भक्त ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं है। उसका व्यसन तो जगजाहिर होता है। वह उसे छिपा नहीं पाता।
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सुख की अनुभूति कराते हैं दोनों
नशे और भक्ति का यह सवाल साथ-साथ आता है। ये दोनों एक दूसरे के विपरीत नहीं हैं। अगर ये प्रश्न साथ-साथ आते हैं तो इसके पीछे वजह यह है कि ये दोनों ही इंसान को अनोखे सुख की अनुभूति कराते हैं।
कहने का मतलब यह हुआ कि अगर कोई किसी चीज का आदी हो रहा है तो उसे जरूर ही कोई शानदार अनुभव हुआ होगा।
कोई इंसान किसी चीज का आदी इसलिए हो जाता है, क्योंकि उसका अनुभव जबर्दस्त होता है। क्या आपने किसी को नीम की गोली का आदी होते देखा है? आपको इसे पूरी जागरूकता से लेना होगा। आप रोज सोचेंगे कि इसे खाऊं या नहीं। हर दिन सोचेंगे कि चलो एक दिन और खा लेता हूं। ऐसे में आप नीम की गोली के आदी कभी होंगे ही नहीं इसलिए यह सुरक्षित है। अगर आपको नीम के बाकी फायदों के बारे में नहीं पता है तो इतना तो आप जानते ही हैं कि यह सुरक्षित है, यह आपको फंसाएगा नहीं। कहने का मतलब यह हुआ कि अगर कोई किसी चीज का आदी हो रहा है तो उसे जरूर ही कोई शानदार अनुभव हुआ होगा। लोग तंबाकू के आदी हो जाते हैं, कॉफी, शराब, या दूसरे तरह के ड्रग्स के आदी हो जाते हैं, क्योंकि इन चीजों से उन्हें अच्छा महसूस होता है। अगर इनसे उन्हें दर्द हो, अगर ये चीजें उनका मन खराब करें तो वे इनके प्रति कभी आकर्षित नहीं होंगे।
भक्ति और नशा - सिर्फ अनुभव एक से हैं
भक्ति और व्यसन अनुभव के स्तर पर आपस में जुड़े हुए हैं, और कहीं नहीं। अनुभव के मामले में आप इन दोनों को एक साथ देख सकते हैं। दोनों ही जबर्दस्त आनंद की अनुभूति कराते हैं। भक्ति का मतलब है, आपके भाव बहुत मीठे और खूबसूरत हो गए हैं। किसी शख्स को भक्त पागल जैसा नजर आ सकता है। किसी तार्किक बुद्धि इंसान को उसके तौर-तरीके बेवकूूफी भरे, अतार्किक दिखाई दे सकते हैं। आपके पास जीवन में दो विकल्प हैं - पहला, आप दिन के चौबीसों घंटे जबर्दस्त आनंद में बिता रहे हैं और दूसरा, आपके दिमाग में तमाम तरह की परेशानियां भरी हैं, जो आपको हरदम तंग कर रही हैं और जिनका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है। दूसरे विकल्प को क्या आप बुद्धिमानी का काम कह सकते हैं?
तार्किक लोगों को भक्त मूर्ख नज़र आते हैं
भक्त बहुत बुद्धिमान होता है। इसमें जीवन का भाव बहुत गहराई तक होता है। उसे यह बात समझ आ गई होती है कि सबसे महत्वपूर्ण चीज आनंद में रहना है।
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि किसी और तरीके के मुकाबले भक्ति के मार्ग से लोगों ने परम तत्व को ज्यादा हासिल किया है। भक्ति इसके लिए सबसे तेज और कामयाब तरीका है।
अगर आप जीवन के इस अनुभव को खूबसूरत बना लें, आप दिन के 24 घंटे खुश रह सकें, जीवन भर आनंद में रह सकें तो कोई भी चीज आपको फंसा नहीं सकती। हर चीज आपको मुक्त ही करेगी। ऐसे लोगों को यह बात अच्छी तरह समझ आ जाती है। उनके भीतर जबर्दस्त बुद्धिमानी होती है। हो सकता है यह किसी समझदार शख्स को अतार्किक और बेवकूफी भरी बात लगे, लेकिन सचाई यही है कि ऐसे लोगों की समझ बड़ी गहरी होती है। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि किसी और तरीके के मुकाबले भक्ति के मार्ग से लोगों ने परम तत्व को ज्यादा हासिल किया है। भक्ति इसके लिए सबसे तेज और कामयाब तरीका है। समस्या यही है कि ऐसे लोग समाज के बाकी लोगों को सनकी नजर आते हैं। अगर आपको सनकी नजर आने में कोई दिक्कत नहीं है या आपको यह अहसास हो गया है कि आप सनकी ही हैं तो फिर भक्त बनने में कोई दिक्कत नहीं आएगी।
भक्ति आपका विकास करती है
नशीले पदार्थों के साथ बस यही दिक्कत है कि इन्हें लेने से मन और शरीर दोनों पर ही बुरा असर होता है। आपकी शारीरिक क्षमताएं कम हो जाएंगी, आपकी मानसिक क्षमताएं भी कम हो जाएंगी।
भक्ति के साथ सबसे अहम बात यह है कि यह आपका विकास करती है, आपका विस्तार करती है और आपको ऐसा बना देती है कि आप सभी को साथ लेकर चल सकें। व्यसन आपको एक कोने की ओर धकेलता है, आपको अकेलेपन की ओर ले जाता है।
एक इंसान के तौर पर आपका विकास नहीं होता, बल्कि आप बर्बाद हो जाते हैं। दूसरी तरफ भक्ति आपका विकास करती है। जो आपने सोचा भी न था, आप उन चीजों को भी कर पाते हैं क्योंकि अब आपकी सीमाएं खत्म हो गई हैं। भक्त भी भक्ति में पागल रहता है, लेकिन वह कभी किसी इमारत से नहीं कूदेगा। 60 के
दशक में अमेरिका में कई लोगों के साथ ऐसा हुआ। लोगों ने ऊंची-ऊंची इमारतों से छलांग लगा दीं, क्योंकि उन्होंने एलएसडी लिया हुआ था और उन्हें ऐसा लगता था कि वे उड़ सकते हैं। एक भक्त को भी ऐसा अहसास होता है, लेकिन वह कभी भी इमारतों से छलांग नहीं लगाता। क्योंकि उसका शरीर और मन दोनों ही ठीक से काम कर रहे होते हैं। वह भीतर से वैसा आनंद महसूस कर रहा होता है। इस तरह व्यसन आपको कमजोर बनाता है, भक्ति आपका विकास करती है। दोनों के ही अनुभव बड़े सुखद होते हैं। व्यसन आपको आनंद के कुछ पल दे सकता है, लेकिन भक्ति आपको लगातार आनंद में डुबोए रख सकती है। भक्ति के साथ सबसे अहम बात यह है कि यह आपका विकास करती है, आपका विस्तार करती है और आपको ऐसा बना देती है कि आप सभी को साथ लेकर चल सकें। व्यसन आपको एक कोने की ओर धकेलता है, आपको अकेलेपन की ओर ले जाता है। धीरे-धीरे यह अकेलापन इतना बढ़ जाता है कि इंसान को बेचैनी और
अवसाद की खाई में धकेल देता है – क्योंकि आपका शरीर और मन दोनों बर्बाद हो जाते हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि एक आपका विस्तार करता है और दूसरा आपको बर्बाद करता है। दोनों के बीच यही सबसे बड़ा फर्क है।