निश्चल तत्वं - आध्यात्मिक मार्ग पर एक दृढ़ संकल्प की जरूरत है
आदि शंकारचार्य ने अपनी प्रसिद्द रचना भज गोविन्दम में कहा है - निश्चल तत्वे जीवन मुक्तिः। कैसे अपना सकते हैं, हम इस मन्त्र के सार को अपने जीवन में? सद्गुरु हमें बता रहे हैं - कि एक बार मार्ग चुनने के बाद बार-बार कुछ और चुनने से हम मुक्ति के करीब नहीं पहुँच सकते
एक आध्यात्मिक प्रक्रिया आपके भीतर से सारी पाशविक प्रवृत्तियों को नष्ट करने के लिए होती है, ताकि आपके भीतर दिव्यता के खिलने के लायक परिस्थितियां बन सकें। हो सकता है कि किसी इंसान को आध्यात्मिक प्रक्रिया की बीज का और उसकी अपनी कोशिशों का फल तत्काल दिखाई न दे। आपने देखा होगा कि बिना किसी कोशिश के उगे एक खर-पतवार में तो कुछ ही दिनों में फूल खिल जाता है, लेकिन यदि आप एक नारियल का पेड़ लगाते हैं तो आपको फल के लिए छह वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
आध्यात्मिकता क्या है?
‘आध्यात्मिकता’ शब्द का अर्थ बहुत ही ज्यादा विकृत या कहें भ्रष्ट हो चुका है। इसका लाखों तरह से उपयोग व दुरुप्रयोग किया गया है, जो कि अधिकतर अज्ञानता तथा कई बार अनैतिकता के कारण होता है। इसी दुरुपयोग के चलते, लोगों के मन में इसे ले कर इतनी उलझन और शंका पैदा हो गई है कि लोग अब यहां तक सोचने लगे हैं कि आध्यात्मिकता वास्तव में किसी काम की है भी या नहीं? इसने अनिश्चितता का अजीब सा माहौल बना दिया है। अनेक सालों तक इस पथ पर चलने के बाद भी लोगों के मन में संदेह बने रहते हैं क्योंकि इससे बहुत सी भ्रांतियां और गलतफ़हमियां जुड़ गई हैं।
हम अपने मन में जो भी सोचते हैं, वह सोच आध्यात्मिक नहीं हो सकती। आप कोई आध्यात्मिक सोच नहीं रख सकते। आप ईश्वर, स्वर्ग या मुक्ति के बारे में जो भी सोचते हैं, आप उसे आध्यात्मिक सोच नहीं कह सकते। सोच तो मनोवैज्ञानिक होते हैं, इसे आध्यात्मिक नहीं माना जा सकता।
भौतिक अस्तित्व, आध्यात्मिकता का आधार है
भौतिकता, आध्यात्मिकता के विरुद्ध नहीं है। हमारे पास एक भौतिक शरीर है, तभी हम दूसरे आयाम के बारे में सोच रहे हैं। अन्यथा यह सोच कभी पैदा ही नहीं होती। तो आप भौतिकता को आध्यात्मिकता का आधार तो कह सकते हैं पर यह किसी भी हाल में आध्यात्मिक नहीं हो सकती। ठीक इसी तरह, विचार और भावनाएं भी आध्यात्मिक नहीं हो सकतीं। वे जीवन के अलग आयाम हैं। उनमें कुछ भी सही या गलत जैसा नहीं है। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि आप इनका इस्तेमाल कैसे करते हैं।
जब हम अध्यात्मिकता की बात करते हैं, तो हम ऐसे आयाम की बात कर रहे हैं, जो कि भौतिक नहीं है, जो कि इस आयाम का नहीं है। अगर हमारी चाहत सिर्फ मानसिक शांति को पाना है, तो यह आध्यात्मिकता नहीं है। लोग आध्यात्मिक शांति की बात करते हैं। ऐसा कुछ नहीं होता। शांति शारीरिक या मानसिक होती है। आपकी भौतिकता या मानसिकता अस्थिर और परेशान हो सकती है, लेकिन जो चीज़ इनसे परे है, आप उसे परेशान नहीं कर सकते। आध्यात्मिकता न तो शांति की तलाश में है और न ही इसे शांति की जरुरत है।
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मानव शरीर और बाकी की सृष्टि के बीच छलपूर्ण दीवार
शरीर, मन, भावना तथा भौतिक ऊर्जा ने मिल कर एक ऐसे तंत्र की रचना कर दी है, जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं। हालांकि यह तंत्र और शेष अस्तित्व एक ही सामग्री से बना है, पर यह अपनी संरचना के कारण इस समय ऐसा लगता है मानो ये पूरी तरह व्यक्तिगत हो। यह एक व्यक्ति के रूप में इतना परिपूर्ण है कि आप यकीन तक नहीं कर सकते कि यह व्यक्ति और बाकी सब एक ही हो सकता है।
यह अपने-आप में इतना संपूर्ण है कि हम सृष्टा के अस्तित्व पर ही संदेह करने लगे हैं। इसका मतलब है कि यह सही मायने में संपूर्ण है। अगर यह हर रोज़, सुबह और शाम ईश्वर की प्रार्थना किए बिना काम नहीं करता, यानी अगर यह अपने रचयिता पर हमेशा निर्भर रहता तो यह एक संपूर्ण रचना नहीं होता। यह इतना संपूर्ण है कि आप अपने बनाने वाले को ही भूल सकते हैं। सृष्टा को भूल जाना, सृष्टि की अद्भुत रचना की जबरदस्त प्रशंसा ही है।
व्यक्ति का अस्तित्व एक बुलबुले की तरह है
जैसे हवा में उड़ता हुआ बुलबुला है - उस बुलबुले के बाहर और भीतर एक ही चीज है - एक ही वायु है, फिर भी वह अपनी एक अलग पहचान रखता है। एक व्यक्ति की प्रकृति भी ऐसी ही है। बाहर और भीतर एक ही पदार्थ है, लेकिन दोनों के बीच एक दीवार, एक बाधा मौजूद है, जो इतना छलपूर्ण है कि वह आपको दिखाई तक नहीं देता।
अविचल ध्यान : सत्य को जानने के लिए जरुरी है
अगर हम मानव-तंत्र की जटिलताओं और सूक्ष्मताओं को जानना चाहते हैं, तो उसके लिए एक तरीका है। अगर हम बस व्यक्ति और सृष्टि के बीच की बाधा को पार करना चाहते हैं, तो वह दूसरी बात है। लेकिन जो कभी इसे पार नहीं करता, वह कभी इस मेल को जान नहीं पाएगा। यदि कोई व्यक्ति इन दीवारों को नहीं तोड़ता, तो उसके लिए जानने की कोई संभावना ही नहीं है।
एक साथ बहुत सारे काम करने वाले यानी ‘मल्टी-टास्कर’, एक ही समय में पांच अलग दिशाओं में जा रहे हैं। जो व्यक्ति एक साथ पांच दिशाओं में जा रहा हो, वह सचमुच कहीं भी नहीं पहुंच पाएगा। वह बहुत सारे काम कर लेगा, समाज में लोग भले ही उसे सराहें, परंतु वह अपने भीतर एक इंच भी आगे नहीं बढ़ेगा। मैं कॉर्पोरेट जगत में होने वाली मल्टी-टास्किंग की बात नहीं कर रहा। मेरे कहने का मतलब है कि लोग लगातार और जल्दी-जल्दी अपने ध्यान को एक से दूसरे काम पर लगा रहे हैं। जैसे कोई जानवर घास चरते वक्त करता है, पल में इधर, पल में उधर। ध्यान रखिए कि चरने वाले जानवर कहीं आगे नहीं जा पाते। पेट भले ही भर जाए पर आप कहीं नहीं जा सकेंगे। चरने की यही खूबी होती है।
सत्य को जानने के लिए दिशा निश्चित करनी होगी
अगर आप लक्ष्य तक पहुंचना चाहते हैं, तो आपको एक दिशा निश्चित करनी होगी। सत्य या दिव्यता को आपकी मदद नहीं चाहिए। यह आपके बिना भी मौजूद है। बस आप इससे अपना मुंह मोड़ सकते हैं। लोग अक्सर अपने जीवन में बहुत सारे कष्ट, दुख और दंड को न्यौता दे देते हैं, ऐसा नहीं कि उन्होंने कोई बुरा काम किया होता है।
कुछ ही घंटों में प्रवाह संतुलित हो जाएगा
जब भी आप किसी चीज़ को चुनते हैं और छोड़ते हैं, आप अपने भाग्य की दिशा से खिलवाड़ करते हैं। हो सकता है किसी परेशानी के कारण आप अपने पथ से कुछ घंटे दूर हो जाएं, और फिर वापस उस पथ पर आ जाएं – तो उन चंद घंटों में ही आप अपने भाग्य के प्रवाह को असंतुलित कर देंगे।
एक दृढ़ संकल्प वाला मन, जिसका चुनाव स्थाई रहता है, वह भाग्य को अपने ही द्वारा निर्धारित की गयी दिशा में बहने देता है। अगर आपको कोई चुनाव सार्थक लग रहा हो, तो उसे चुनने के बाद पीछे मुड़ कर न देखें। अगर आपको लगता है कि आपके चयन की कुछ भी कीमत है, तो उसे बदलने की न सोचें। राह में अनेक चुनौतियां आएंगी, अगर आप उन्हें सफलतापूर्वक पार करना चाहते हैं, तो बस आपको अपने इस चुनाव पर टिके रहना होगा।
आदि शंकराचार्य के मंत्र के अनुसार जीवन रचें
आदि शंकराचार्य जब कहते हैं, ‘निश्चल तत्वे जीवनमुक्ति’ तो उनके कहने का यही तात्पर्य है, ‘जो व्यक्ति अपने निश्चय या संकल्प के साथ अडिग रहता है, उसे मोक्ष से दूर नहीं रखा जा सकता। अगर निश्चलता नहीं होगी तो मुक्ति भी संभव नहीं है। तब केवल कोलाहल ही रह जाएगा। हमें निश्चल तत्व चाहिए। इसके अभाव में आप अपनी सीमाओं और बाधाओं से परे नहीं जा सकते - तब आपको अपनी हर बाधा विशाल पर्वत के समान दिखने लगेगी। अगर लक्ष्य निश्चित हो और मार्ग भी उसके सिवा कोई और न हो, तो लोग कभी यह नहीं सोचेंगे कि कुछ असंभव है। वे हमेश संभावनाओं को साकार करने की कोशिश में लगे रहेंगे।
सम्पादक की टिप्पणी:
चित शक्ति ध्यान करके आप अपने भाग्य की दिशा खुद तय कर सकते हैं। इसे आप ईशा डाउनलोड से प्राप्त कर सकते हैं।