सद्गुरुः भारत में एक बड़ी समस्या यह है कि हर कोई सोचता है कि वह पर्यावरण विशेषज्ञ है, सिर्फ इसलिए क्योंकि वे समाचर पत्र में एक लेख पढ़ लेते हैं या उन्होंने टेलिविज़न पर दो मिनट के लिए कुछदेखा है। अभी, हम प्रदूषण के बारे में चिंतित हैं क्योंकि अमेरिका और यूरोप प्रदूषण के बारे में बात कर रहे हैं। हमें यह बीमारी है कि जो कुछ भी अमेरिका या यूरोप में कहा जाता है, भारतीय उसे दोहराना चाहते हैं। यह फैशन हो गया है। इस देश में अंग्रेजी बोलने वाले लोगों के साथ यही एक बड़ी समस्या है। चाहे वह एक पत्रकार हो या एक तथाकथित पर्यावरण वैज्ञानिक हो, उन्हें एक सीधी बात समझाने में भी बहुत कठिनाई होती है, क्योंकि उनके दिमाग में हर समय यूरोप और अमेरिका नाचता है।

बुनियादी रूप से, हमें यह गलतफहमी है कि नदियां पानी का स्रोत हैं। नहीं। इस देश में नदी, तालाब, या झील पानी का स्रोत नहीं है। पानी का स्रोत सिर्फ एक है; यह बरसात की बारिश है। नदियां, तालाब, झील और कुएं पानी का गंतव्य स्थान हैं, स्रोत नहीं।

असली समस्या प्रदूषण नहीं है। हमें यह समझना चाहिए कि अगर नालों का पानी नदियों में जाना बंद हो जाता है, तो ज्यादातर नदियां नहीं बहेंगी। उदाहरण के लिए यमुना को ही लें। उसमें 90 प्रतिशत पानी नालों का है। अगर आप सारे नालों के पानी को रोक दें, तो कोई यमुना नहीं रहेगी।

एक उष्णकटिबंध देश की वास्तविकताएं उस देश से बहुत अलग होती हैं, जिसकी जलवायु समशीतोष्ण है। हम जिस अक्षांश पर हैं, और हमारी जिस किस्म की जमीन है, यह बहुत अलग है। बुनियादी रूप से, हमें यह गलतफहमी है कि नदियां पानी का स्रोत हैं। नहीं। इस देश में नदी, तालाब, या झील पानी का स्रोत नहीं है। पानी का स्रोत सिर्फ एक है; यह मानसून की बारिश है। नदियां, तालाब, झील और कुएं पानी का गंतव्य स्थान हैं, स्रोत नहीं।

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हर साल मानसून की बारिश लगभग 3.6 से 4 लाख करोड़ टन पानी बादलों से गिराती है। जब यह एक हराभरा वर्षावन या उष्णकटिबंध वन था, तो हमने इस पानी के ज्यादातर हिस्से को भूजल के रूप में थामे रखा और इसे नदियों, तालाबों, झीलों में धीरे-धीरे रिसकर जाने दिया। तो नदियां बहती रहीं। पिछले सौ सालों में, इस उपमहाद्वीप पर मानसून में गिरने वाले पानी में कोई बहुत महत्वपूर्ण कमी नहीं आई है। लेकिन ज्यादातर नदियों में पानी औसतन 40 प्रतिशत कम हो गया है। कृष्णा 60 प्रतिशत से ज्यादा कम हो गई है। नर्मदा 55 प्रतिशत से ज्यादा कम हो गई है। गंगा 40 प्रतिशत से ज्यादा कम हो गई है।

हमें यह समझने की जरूरत है कि यूरोप की नदियां अधिकतर ग्लेश्यिर से निकलती हैं या उससे पोषित हैं, जबकि भारत की नदियां जंगलों से पोषित हैं। भारत की सिर्फ चार प्रतिशत नदियां ग्लेश्यिर से पोषित हैं, यह सिर्फ ऊपर उत्तर में है। उन ग्लेश्यिर से पोषित नदियों में से ज्यादातर पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती हैं। गंगा में सिर्फ थोड़ा सा पानी ग्लेशियर से आता है, बाकी सारी नदियां वन-पोषित हैं।

गंगा की घाटी भारत के 26 प्रतिशत क्षेत्र में फैली हुई है और उसमें भारत की एक तिहाई खेती होती है। भारतीय रेल को बनाने में हमने उस पूरे क्षेत्र में वनस्पतियों को तहस-नहस कर दिया है। सत्तर सालों में हमने गंगा घाटी में 78 प्रतिशत वृक्ष-आच्छादन को गिरा दिया है, और आप उस नदी के बहने की आशा करते हैं? आप अब भी प्रदूषण की बात कर रहे हैं? अगर हम अपने मन में तय कर लें, तो हम दो-तीन साल में प्रदूषण को ठीक कर सकते हैं। यह कोई बड़ी बात नहीं है। अगर हम पैसों का निवेश करने को तैयार हैं, तो हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि पानी साफ हो। लेकिन जब एक नदी सूख जाती है तो इसे पुनर्जीवित करने में कई दशकों का प्रयास लगेगा। इसे इतनी आसानी से पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता। सिर्फ इसलिए कि हमने आज कुछ विचित्र करना तय किया है, तो नदी कल ही फिर से नहीं बहने लगेगी।

लेकिन आप चाहे जिस भी तरह से इस बारे में बात करने की कोशिश करें, हर कोई प्रदूषण के बारे में बात करना चाहता है, क्योंकि शहरों के लोग प्रदूषण से पीड़ित हैं और सारे निवेश, बिजली, और गपशप की ताकत भी शहरी लोगों के हाथों में है। वैसे, अब, उन्होंने पानी की कमी के बारे में बात करना शुरू कर दिया है क्योंकि शहरों में पीने का पानी नहीं बचा है। हाल में नीति आयोग के द्वारा जारी की गई संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक (CWMI) रिपोर्ट के अनुसार कई बड़े शहरों में 2020 तक कोई भूजल नहीं रहेगा, जिसमें दिल्ली, बैंगलूरु, चेन्नई, हैदराबाद शामिल हैं; इससे लगभग दस करोड़ लोग प्रभावित होंगे।

इस धरती पर कोई दूसरी आबादी पानी के लिए इतनी परेशान नहीं है जितनी भारत की आबादी। यहां पर दुनिया की आबादी के 17 प्रतिशत लोग हैं, जबकि दुनिया का लगभग सिर्फ 3.5 प्रतिशत जल संसाधन यहां उपलब्ध है। किसी भी समय पर, किसी भी आबादी को अपने भूजल संसाधन के 15 से 20 प्रतिशत से अधिक को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। लेकिन आज, हमारे इस्तेमाल का 80 प्रतिशत से अधिक पानी भूजल स्रोतों से आता है।

 

 

उसके बावजूद, ज्यादातर शहर बारिश से डरते हैं और वे पुराना गाना ‘रेन रेन गो अवे’ गा रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि बाढ़ आ जाएगी। वे नहीं जानते कि शहर में बाढ़ से कैसे निपटें, क्योंकि शहरों की संरचना बाढ़ से निपटने के लिए नहीं बनी है। अगर पानी बरसता है, और अगर पर्याप्त वनस्पति और पेड़-पौधे मौजूद हों, तो कोई जल भराव नहीं होगा। अगर हम 10,000 पेड़ लगाते हैं, तो लगभग 3.6 करोड़ लिटर भूजल जमा हो जाएगा। तो अब, कावेरी घाटी में, हमने कावेरी कॉलिंग के हिस्से के रूप में 242 करोड़ पेड़ लगाने का लक्ष्य बनाया है। अंततः नदी के बहने के लिए विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों का लगाना जरूरी है। इससे पहले कि हम मर जाएं, हमें इसे कर दिखाना चाहिए।

 

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