सद्‌गुरुकिसे कहते हैं प्रकृति के साथ लय में होना? क्या धरती, हवा, पानी के साथ लय में होना चाहिए? या फिर अपने मन या फिर ऊर्जा की प्रकृति के साथ? या फिर अपने भीतर मौजूद परम प्रकृति के साथ? जानते हैं अलग-अलग स्तरों पर मौजूद लय के बारे में

प्रश्न : सद्‌गुरु, प्रकृति के साथ लय में होने का क्या अर्थ है? क्या आप विस्तार से बता सकते हैं?

सद्‌गुरु : आप ताल या लय के बारे में थोड़ा बहुत जानते हैं। आपके जीवन में कई रूपों से लय को महसूस कर सकते हैं। अगर आप ध्यान से सुनें तो अस्तित्व की हर चीज में एक लय है। सुनने का जो बोध है, अगर आप बहुत गहराई में न भी जाएं, बस ध्यान से सुनें तो उसमें भी एक ताल है, एक लय है। कीड़े-मकोड़ों की भनभनाहट में भी एक ताल होती है – वे नाच-गा रहे हैं! ध्यान से सुनने पर आपको हाईवे के शोर में भी एक ताल सुनाई देगी। किसी भी चीज से उठने वाली ध्वनि में एक खास ताल होती है। अगर सभी ध्वनियों में एक ताल होता है, तो निश्चित तौर पर उन ध्वनियों को उत्पन्न करने वाले कंपन में भी एक ताल होगी। उस कंपन में ताल है, तो उसे पैदा करने वाले पदार्थ में भी ताल होगी और अगर उस पदार्थ में ताल है तो उस पदार्थ के स्रोत में भी ताल है। सवाल बस यह है कि आप किस ताल में हैं।

ध्रुपद संगीत की ताल स्थिरता देती है

संगीत के मामले में आप इसे देख सकते हैं। जब हम बड़े हो रहे थे, तो हमारे घर में कर्नाटक संगीत गूजंता रहता था। वह घर की हवा में समाया हुआ था, जिसमें हम सांस लेते थे। मेरे पिता को भी कर्नाटक संगीत बहुत पसंद था मगर हम पश्चिमी संगीत के साथ बड़े हो रहे थे जिसे वह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकते थे!

संगीत के कुछ दूसरे प्रकार होते हैं, जो आपके शरीर को स्थिर कर देते हैं। खास तौर पर ध्रुपद संगीत ऐसा ही है। ध्रुपद में आम तौर पर शब्द नहीं होते, उसमें सिर्फ एक आलाप अंतहीन चलता रह सकता है।
जिस समय वह बैठकर कोई अखबार या किताब पढ़ते, हम बहुत धीमी आवाज में पश्चिमी संगीत चालू कर देते। वह खबरों में पूरी तरह डूबे होते और हम धीरे-धीरे वॉल्यूम बढ़ाते जाते। हमें पता था कि उन्हें इस संगीत से चिढ़ है मगर उनके पैर अनजाने में थिरकने लगते। फिर हम उनसे कहते, ‘अपने पैर को देखिए, आपको यह संगीत अच्छा लगता है।’ उस ताल की प्रकृति ऐसी है कि शरीर हरकत में आ जाता है। संगीत के कुछ दूसरे प्रकार होते हैं, जो आपके शरीर को स्थिर कर देते हैं। खास तौर पर ध्रुपद संगीत ऐसा ही है। ध्रुपद में आम तौर पर शब्द नहीं होते, उसमें सिर्फ एक आलाप अंतहीन चलता रह सकता है। वे छह घंटों तक सिर्फ एक ‘आआ’, सिर्फ एक ध्वनि को निकाल सकते हैं। अगर आप उसे सुनते रहें, तो आप स्थिर होकर बैठ सकते हैं क्योंकि उस संगीत को इसी तरह तैयार किया गया है कि वह आपको स्थिर कर देता है।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

अनादी ताल – जिस ताल में स्थिरता है

ताल कई अलग-अलग स्तर पर हो सकते हैं। अगर यह शरीर की ताल है तो एक अलग स्तर पर होगी। अगर आप मन की ताल को छू लें, तो वह अलग तरह की होगी। आंतरिक ऊर्जा को छूने पर उसका स्तर अलग होता है।

हर ध्वनि का एक आरंभ और एक अंत होता है। मगर स्थिरता से उभरने वाली ध्वनि का कोई आरंभ और अंत नहीं होता।
अगर ताल अंतरतम को छू लेती है, अगर आप अस्तित्व के एक खास आयाम की ताल को पा लेते हैं, तो आप कुदरती तौर पर ध्यान में चले जाते हैं। एक तरह से तमाम क्रियाओं और ध्यान प्रक्रियाएं करके आप यही करने की कोशिश कर रहे हैं। यह सिर्फ उस ताल को पाने की एक कोशिश है, जो परम ताल यानी स्थिरता की ताल है। अगर वह स्थिर है, तो उसमें ताल कैसे होगी? यह एक अनादि ताल है। हर ध्वनि का एक आरंभ और एक अंत होता है। मगर स्थिरता से उभरने वाली ध्वनि का कोई आरंभ और अंत नहीं होता।

किस तरह की प्रकृति की पुकार सुनेंगे आप?

प्रकृति के ताल की बात करें तो प्रकृति का अर्थ मुख्य रूप से धरती, पेड़-पौधे जैसी चीजें लगया जाता है। मगर वास्तविकता यह है कि प्रकृति कई अलग-अलग स्तरों पर होती है। आप ‘प्रकृति’ शब्द का प्रयोग पशु प्रकृति, मानव प्रकृति, अलग-अलग तरह की प्रकृति, के लिए भी करते हैं। शरीर, मन, भावना, ऊर्जा और स्रष्टा की भी प्रकृति होती है।

जब वह चाहते हैं, जीव बन जाते हैं और जब चाहते हैं, अस्तित्वहीन हो जाते हैं। इसलिए वह स्वयंभू हैं। वह स्वयं प्रकट होते हैं, स्वयं विलीन हो जाते हैं।
आप प्रकृति की किस पुकार का जवाब देंगे? अगर आप शरीर को जवाब देंगे, तो आप एक दिशा में जाएंगे, अगर मन की सुनेंगे, तो दूसरी दिशा में जाएंगे। इसी तरह ऊर्जा, धरती या अंतरतम के साथ आप अलग-अलग दिशाओं में जाएंगे। ये सब अलग-अलग कंपन की ताल हैं, मगर सबसे बड़ा कंपन स्थिरता का होता है, जिसे पारंपरिक तौर पर शिव कहा गया है। शिव यानी स्थिरता का कंपन, जिसका कोई आरंभ नहीं है। इसीलिए उन्हें स्वयंभू कहा गया क्योंकि वह खुद से प्रकट हैं, जन्म से परे हैं। वह एक अस्तित्वहीन अवस्था में हमेशा से रहे हैं। जब वह चाहते हैं, जीव बन जाते हैं और जब चाहते हैं, अस्तित्वहीन हो जाते हैं। इसलिए वह स्वयंभू हैं। वह स्वयं प्रकट होते हैं, स्वयं विलीन हो जाते हैं।

निर्माणकाया योगी - चेतनता में शरीर का पुनर्निर्माण

आप अपने आप उत्पन्न नहीं हुए, मगर आप अपने आप विलीन हो सकते हैं। अगर आपको पता है कि स्वयं विलीन कैसे होना है, तो आप यह भी जान जाएंगे कि खुद से उत्पन्न कैसे होना है।

आप अपने आप उत्पन्न नहीं हुए, मगर आप अपने आप विलीन हो सकते हैं।
जो व्यवस्थित तरीके से इस सिस्टम को तोड़ने का तरीका जानता है, वह उसे वापस जोड़ना भी सीख लेता है। अगर कोई व्यक्ति अपने अस्तित्व की क्रियाप्रणाली को जाने बिना तीव्रता या जागरूकता की एक खास स्थिति में शरीर छोड़ता है, तो वह सदा के लिए शरीर छोड़ देता है। मगर जो व्यक्ति खुद अपने सिस्टम को खोलते हुए, जिस ताल से वह बना है, उसकी जटिल परतों को समझते हुए पूरी चेतनता में शरीर छोड़ता है, वह चाहे तो खुद को वापस जीवित भी कर सकता है।

भगवान शिव निर्माणकाया योगी हैं

जब कोई योगी इस अवस्था को प्राप्त कर लेता है, तो उसे निर्माणकाया कहा जाता है, यानी जो अपने शरीर का फिर से निर्माण कर सके। वह मां के गर्भ से शिशु रूप में वापस नहीं आता, वह जिस रूप में चाहे उस रूप में वापस आता है।

जब कोई योगी इस अवस्था को प्राप्त कर लेता है, तो उसे निर्माणकाया कहा जाता है, यानी जो अपने शरीर का फिर से निर्माण कर सके।
शिव गए और फिर बार-बार वापस आए। उन्होंने खुद को नष्ट किया और फिर बनाया। उन्होंने कई तरह से ऐसा किया। कई बार जब उन्हें अपनी पत्नी से मिलने की इच्छा हुई तो उन्होंने खुद को सुंदर बना लिया। कई बार दूसरे लोगों से मिलने के लिए उन्होंने खुद को उग्र बना लिया। उन्होंने अपनी त्वचा का रंग बदल लिया, अपना सब कुछ बदल दिया क्योंकि अनुपस्थिति से उपस्थिति तक, वह खुद को नष्ट कर के फिर बना रहे थे।

अंतरतम की ताल जानकार सभी तालें जान सकते हैं

प्रकृति की ताल से हमारा मतलब सिर्फ धरती की ताल से नहीं है। धरती एक महत्वपूर्ण तत्व है, मगर वह, सब कुछ नहीं है, वह अस्तित्व में एक छोटा सा बिंदु भर है।

अगर आप इतनी आजादी पा लेते हैं कि अंतरतम तक जाकर वर्तमान अवस्था तक वापस आ सकते हैं, तो आप जिस तरह से चाहें, इन दोनों के बीच की सभी तालों को छू सकते हैं।
यहां रहने और अपने जीवन के कुछ पहलुओं को संचालित करने के लिए, धरती के ताल में होना महत्वपूर्ण है। मगर साथ ही, परे जाने के लिए, अस्तित्व के दूसरे आयामों को जानने के लिए - अगर आप जागरूकता से स्थिरता की ताल में जाना और उससे बाहर आना जानते हैं - तो आप जब चाहें, वहां जा सकते हैं और जब चाहें, बाहर आ सकते हैं। अगर आप इतनी आजादी पा लेते हैं कि अंतरतम तक जाकर वर्तमान अवस्था तक वापस आ सकते हैं, तो आप जिस तरह से चाहें, इन दोनों के बीच की सभी तालों को छू सकते हैं।