प्रतिष्ठा : देवी देवता बनाने का विज्ञान
अगर आपके पास जरूरी तकनीक है तो आप अपने आसपास के पूरे वातावरण को ही ईश्वरीय बना सकते हैं। इसी प्रक्रिया को प्रतिष्ठा कहा जाता है ...
प्रतिष्ठा अपने आप में एक जीवंत प्रक्रिया है। जब आप मिट्टी को भोजन में रूपांतरित कर देते हैं तो इसे हम कृषि कहते हैं, अगर हम मानव देह को मिट्टी में मिला देते हैं तो इसे हम दाह संस्कार कहते हैं। इसी तरह अगर हम इस मानव शरीर या फिर किसी पत्थर या स्थान को ईश्वरीय संभावना में रूपांतरित कर देते हैं तो इसे प्रतिष्ठा या पवित्रीकरण कहा जाता है। आधुनिक विज्ञान कहता है कि हर चीज एक ही ऊर्जा है, जो खुद को लाखों अलग-अलग तरीकों से जाहिर कर रही है। अगर ऐसा है तो चाहे ईश्वर हो, चाहे पत्थर, चाहे इंसान हो या फिर राक्षस, सभी एक ही ऊर्जा है, जो अलग-अलग तरीकों से काम कर रही है। उदाहरण के तौर पर बिजली को ही ले लीजिए। बिजली वही है, लेकिन कभी वह प्रकाश बन जाती है, तो कभी आवाज। जैसी तकनीक का इस्तेमाल करेंगे, यह उसी तरह का काम करने लगेगी। यह पूरा मामला इस बात का है कि हम कैसी तकनीक इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर आपके पास जरूरी तकनीक है तो आप अपने आसपास के पूरे वातावरण को ही ईश्वरीय बना सकते हैं। बस पत्थर का एक टुकड़ा लीजिए और इसे ही आप ईश्वर बना सकते हैं। इसे ही प्रतिष्ठा प्रक्रिया कहा जाता है।
खासकर इस संस्कृति में जीवन के इस आयाम के बारे में प्रचुर ज्ञान को बनाए रखा गया है, क्योंकि इसे सबसे अधिक महत्व दिया गया। यह बात कोई मायने नहीं रखती कि आप क्या खा रहे हैं, आप कैसे हैं और आप कितने साल जिएंगे, जीवन में कभी न कभी ऐसा मोड़ अवश्य आएगा, जब आपको सृष्टि के स्रोत से जुडऩे की आवश्यकता महसूस होगी। अगर धरती पर ऐसी संभावनाएं पैदा नहीं की गईं तो इसका मतलब है कि समाज अपने लोगों को सच्ची खुशहाली उपलब्ध कराने में नाकाम रहा। इसी जागरूकता की वजह से आज स्थिति यह है कि हमारी हर गली में तीन मंदिर हैं क्योंकि बिना प्रतिष्ठित स्थान के, बिना ईश्वरीय तत्व के थोड़ी सी भी जगह क्यों बाकी रहने दी जाए। आप इतने सारे मंदिर देखते होंगे, लेकिन ये एक दूसरे को टक्कर देने या प्रतियोगिता करने के लिए नहीं बनाए गए हैं। इनका मकसद सिर्फ इतना है कि कोई भी ऐसी जगह न चले, कोई भी ऐसी जगह न रहे, जहां ईश्वरीय तत्व न हों। मंदिर हमेशा पहले बनाए गए और घर बाद में।
भारत के कई राज्य इसी तरह से बसे हैं। तमिलनाडु के जितने भी बड़े और महत्वपूर्ण शहर हैं, उनमें एक बड़ा सा मंदिर बनाया गया है और पूरा शहर इसके चारों तरफ बसा है। आप किस तरह के घर में रहते हैं, इससे कोई खास अंतर नहीं पड़ता है। आप चाहे दस हजार स्क्वेयर फुट के घर में रह लें या फिर एक हजार स्क्वेयर फुट के, आपके जीवन पर इसका कोई असर नहीं होने वाला। लेकिन अगर आप ईश्वरीय तत्व से युक्त ऐसी जगह के पास रहते हैं जहां प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है तो आपकी जिंदगी में बड़ा परिवर्तन आ सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इन लोगों ने इंसान के रहने योग्य जगहें इसी तरह से विकसित कीं। अगर कहीं 25 घर बनाए जा रहे हैं तो वहां एक मंदिर भी होना चाहिए। आप भले ही इस मंदिर में जाएं या न जाएं, भले ही आप प्रार्थना करें या न करें, आपको मंत्र आते हों या नहीं, इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। बस यही अपने आप में बहुत बड़ी बात है कि आप ऐसी जगह के आस पास अपनी जिंदगी के ज्यादातर पल गुजार रहे हैं, जिसकी प्रतिष्ठा की गई है।
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