वेद कोई किताब नहीं, जीवन का विस्तार है
वेद सिर्फ पढ़ने योग्य किताबें ही नहीं हैं, बल्कि वे तो हमारे अस्तित्व के तमाम पहलुओं की एक रूप रेखा हैं। वेदों में तमाम बातों के बारे में बताया गया है, मसलन खाया कैसे जाए, बैलगाड़ी कैसे बनाई जाए, ठोस ईंधन से चलने वाले हवाई जहाज की निर्माण प्रक्रिया क्या है, अपने पड़ोसी से कैसा व्यवहार रखें और अपनी परम प्रकृति को कैसे प्राप्त करें।
वेद सिर्फ पढ़ने योग्य किताबें ही नहीं हैं, बल्कि वे तो हमारे अस्तित्व के तमाम पहलुओं की एक रूप रेखा हैं। वेदों में तमाम बातों के बारे में बताया गया है, मसलन खाया कैसे जाए, बैलगाड़ी कैसे बनाई जाए, ठोस ईंधन से चलने वाले हवाई जहाज की निर्माण प्रक्रिया क्या है, अपने पड़ोसी से कैसा व्यवहार रखें और अपनी परम प्रकृति को कैसे प्राप्त करें।
वेद जीवन के हर पहलू का मार्गदर्शन करते हैं
सबसे प्राचीन धर्मग्रंथ माने जाने वाले वेद, महज धार्मिक किताबें नहीं है, बल्कि एक ऐसा लेखा-जोखा है जो मानव जीवन से जुड़े हर पहलू का मार्ग-दर्शन करता है। जाहिर है, मानव जीवन में इनकी बड़ी महत्ता है। वेदों की गिनती इस धरती के सबसे प्राचीन, फिर भी सबसे व्यापक धर्म ग्रंथों के रूप में की जाती है। वेद कोई किताब नहीं हैं और न ही इनकी विषय वस्तु मन गढ़ंत हैं।
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वेद के मन्त्रों का विज्ञान
वेदों के विभिन्न पहलुओं का संबंध एक आकार को ध्वनि में बदलने से है। अगर आप किसी ध्वनि को किसी दोलनदर्शी (आवाज मापने का एक यंत्र) में भेजें, तो दोलनदर्शी से एक खास तरह की आकृति पैदा होगी, हालांकि यह आकृति उसमें भेजी गई ध्वनि के कंपन, आवृत्ति और आयाम पर निर्भर करती है। आज यह पूरी तरह प्रमाणित तथ्य है कि हर ध्वनि के साथ एक आकृति भी जुड़ी होती है। इसी तरह से हर आकृति के साथ एक खास ध्वनि जुड़ी होती है। आकृति और ध्वनि के बीच के इस संबंध को हम मंत्र के नाम से जानते हैं। आकृति को यंत्र कहा जाता है और ध्वनि को मंत्र। यंत्र और मंत्र को एक साथ प्रयोग करने की तकनीक को तंत्र कहते हैं।
तमाम तरह के जीवों और ध्वनि के बीच के इस संबंध में महारत हासिल की गई। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद का ज्यादातर हिस्सा इसी संबंध के बारे में है। संबंध यानी जीवन को ध्वनि में परिवर्तित करना जिससे कुछ खास ध्वनियों का उच्चारण करके आप जीवन को अपने भीतर ही गुंजायमान कर सकें। ध्वनि में महारत हासिल करके आप आकृति के ऊपर भी महारत हासिल कर लेते हैं। यही है मंत्रों का विज्ञान, जिसकी दुर्भाग्यवश गलत तरीके से विवेचना की गई है और उस का दुरुपयोग भी किया जाता है।
वेद में सबसे अंतिम - अथर्व वेद
एक महान संत थे जिनका नाम था महाथरवन। चार वेदों में सबसे अंतिम है अथर्व वेद। दुनिया में अपने कामों को पूरा करने के लिए ऊर्जाओं को कुशलतापूर्वक इस्तेमाल करने का विज्ञान अथर्व वेद के नाम से जाना जाता है। इस विज्ञान को तंत्र – मंत्र विद्या भी कहा जाता है। वैदिक परंपराओं ने शुरुआत में अथर्व वेद को खारिज कर दिया था और इसे वेदों में शामिल नहीं किया गया था। ब्राह्मणों के एक बड़े समाज द्वारा अथर्व वेद को खारिज करने की वजह से तीन ही वेद थे। बाद में महाथरवन ने अथर्व वेद को वेदों में शामिल कराने और उतना ही महत्व दिलाने के लिए पहले पाराशर और फिर कृष्ण द्वैपायन के साथ मिलकर काम किया। उनकी कोशिशों की वजह से ही अब वेदों की संख्या चार है।
अथर्व वेद में यही बताया गया है कि ऊर्जाओं का अपने फायदे और दूसरों का नुकसान करने के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाए। लेकिन आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले लोगों को कभी इन चीज़ों के बारे में नहीं सोचना चाहिए, क्योंकि यह सब आपको उलझाता है, फंसाता है। इससे आपका जीवन विकसित नहीं होता, बल्कि कई तरह से उलझ जाता है।
कहानियों के माध्यम से विज्ञान की सीख
छोटी-छोटी सुंदर कहानियों के रूप में लिखा गया शिव पुराण जैसा शानदार ग्रंथ भी शिक्षा सबंधी विज्ञान ही था। आज आधुनिक शिक्षा विज्ञानी हमें बता रहे हैं कि अगर एक बच्चा किंडरगार्टन में प्रवेश करता है और 20 साल की औपचारिक शिक्षा की प्रक्रिया से गुजरता है मसलन वह पीएचडी या शोध कर लेता है, तो उसकी 70 फीसदी बुद्धिमत्ता नष्ट हो जाती है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि इतनी लंबी चौड़ी शिक्षा हासिल करने के बाद वह शिक्षित मूर्ख बन जाता है। जीवन की मूल समझ उस के अंदर से खत्म हो जाती है। हालांकि कई शिक्षा विज्ञानी ऐसा भी मानते हैं कि शिक्षा खेल, गाने और कहानियों के तौर पर दी जानी चाहिए। आज से हजारों साल पहले शिक्षा इसी तरह से दी जाती थी। विज्ञान के महत्वपूर्ण पहलुओं को भी कहानी के रूप में समझाया जाता था। दुर्भाग्यवश बाद में आकर लोग इस प्रक्रिया को जारी नहीं रख पाए। उन्होंने विज्ञान को छोड़ दिया और कहानियों को आगे बढ़ाने लगे। जाहिर है जब एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक कहानियां आगे बढ़ती जाएंगी तो उनमें कहीं न कहीं थोड़ा बहुत फेरबदल भी होगा। कई बार यह फेरबदल इतना भी हो सकता है कि कहानी में कही बात को बहुत ज्यादा बढ़ाकर पेश कर दिया जाए, जैसा कि अब हो चुका है।
योग में ऐसे अनगिनत तरीके हैं, जिनके माध्यम से कोई शख्स अपनी पांचों ज्ञानेंद्रियों से परे जा सकता है जिससे उसकी सोच शारीरिक स्तर से ऊपर उठ सके। सच्ची आध्यात्मिक प्रक्रिया की शुरुआत तभी होती है जब आपकी सोच का दायरा शारीरिक स्तर से परे चला जाता है। आध्यात्मिकता की प्रक्रिया महज इस वजह से कभी नहीं होती कि आप इसके बारे में पढ़ते हैं और इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा सूचनाएं इकट्ठी करते हैं। आपने जो भी आध्यात्मिकता हासिल की है, अगर वह सूचनाओं के तौर पर बस आपके दिमाग में ही है तो वास्तव में इसके कोई मायने नहीं हैं, क्योंकि आध्यात्मिकता एक अंदरूनी प्रक्रिया है।