कैसे करें अपने आध्यात्मिक विकास को तेज़?
विकास जीवन की बुनियादी प्रकृति है, लेकिन प्राकृतिक रूप से जो विकास होता है, उसकी एक अपनी रफ्तार है। तो क्या आप उसी रफ्तार से बढ़ना चाहते हैं? या फिर बढ़ाना चाहते हैं अपनी रफ्तार? लेकिन कैसे?
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सदगुरु:
क्रमिक-विकास का मतलब होता है कि कोई चीज अपने आप को ऊंची संभावनाओं के लिए धीरे-धीरे रुपांतरित करे। चाल्र्स डार्विन ने आपको बताया है कि आप सब बंदर थे। फिर आपकी पूंछ गायब हो गई और आप इंसान बन गये। आप डार्विन के इस सिद्धांत को बखूबी जानते हैं। जब आप बंदर थे तो आपने इंसान बनने का चयन नहीं किया था। प्रकृति ने बस आपको आगे धक्का दे दिया। जब आप पशु योनि में होते हैं तो क्रमिक विकास की यह घटना अपने आप होती है। आपको इसमें अपना सहयोग नहीं देना पड़ता। लेकिन एक बार जब आप इंसान बन जाते हैं, एक बार चेतना एक निश्चित स्तर पर आ जाती है तो आपके लिए अचेतन विकास की गुंजाइश खत्म हो जाती है। जब आप सचेतन रूप से क्रमिक विकास चाहते हैं, तभी यह होता है।
इंसान की दशा
अगर आप आवश्यक जागरुकता के साथ जीवन को देखें, तो आप पाएंगे कि जिसे हम जीवन-प्रक्रिया कहते हैं, वह एक खास तरह की चाह है, अपने में शामिल करने की एक कोशिश है, अपने परम स्वाभाव तक विकास करने की चाह है, वहां तक बढ़ने की तड़प है। प्राणी की प्रकृति अपने परम आयाम तक जाना चाहती है। वह आयाम चाहे जो भी हो। यह आयाम ‘यह और वह’ के बारे में है। अगला आयाम सिर्फ यह और यह है। जब ऐसा कहा जाता है तो बात मजेदार नहीं लगती। ‘यह और वह’ और ‘वह और वह’ आपकी अभी की मन की स्थिति के अनुसार मजेदार लगता है। ‘यह, यह और केवल यह’ रुचिकर नहीं लगता है क्योंकि अभी आप इसे वर्तमान संदर्भ में देख रहे हैं। लेकिन यह वैसा नहीं है। आप कभी भी इसे दूसरे संदर्भो में नहीं देख सकते क्योंकि आप उसी आयाम में सोचते हैं, महसूस करते हैं, समझते और व्यक्त करते हैं जिस आयाम में आप रह रहे होते हैं। आप जो भी करें, आप दूसरे आयाम का अनुभव नहीं कर सकते। आप जितनी ज्यादा कोशिश करेंगे उतना ही असफल होंगे। आपकी चाह और मजबूत होती चली जाएगी। आप इस सिलसिले को तोड़ना चाहते हैं और आगे जाना चाहते हैं। यह ऐसा ही है। यह इंसान की स्थिति है। यह मेरी खोज नहीं है। प्रकृति इस बात का ध्यान रख रही है कि एक चिम्पैंजी इंसान कैसे बने। मैं बस इस बात की व्यवस्था कर रहा हूं कि इंसान की विकास की चाह पूरी हो और विकासक्रम में वह कुछ और बन पाए। यह जीवन का सिद्धांत है कि हर चीज का क्रमिक विकास हो। हम इस सिद्धांत में सहायक बनने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि अगर आप जीवन प्रक्रिया में सहायक नहीं बनते हैं तो आप इसके द्वारा कुचल दिए जाएंगे। आप इसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे क्योंकि यह जगन्नाथ है। जीवन प्रक्रिया ऐसी चीज नहीं है जिससे आप लडाई करें, इसके साथ और इसके अनुकूल चलने में ही भलाई है। आप नहीं जानते कि यह कहां से शुरू होती है और कहां खत्म होती है, आप बस इतना जानते है कि यह चल रही है। यह लगातार इस कोशिश में है कि यह अभी जैसी है, उससे कुछ ज्यादा हो जाए।
जीवन प्रक्रिया की यही वो नस है जिसे डार्विन ने महसूस किया। हर चीज की यही इच्छा है कि वो आगे बढ़े, इस बात को डार्विन ने बखूबी समझा। कई तरह से यह इच्छा आपके ऊपर आकर खत्म होती है। लंगूर से इंसान तक की यात्रा, यह एक बहुत बड़ा बदलाव है। डार्विन ने अपने तरीके से इसे बताया जो कि विकासवाद का सिद्धांत बन गया। लेकिन उसकी बातों का सार क्या है। सार यह है कि एक कोशिका वाले जीव से इंसान बनने तक का सफर, एक बहुत बड़ी जीवन प्रक्रिया है। यह चाहत ही है जो किसी चीज को यहां से वहां ले जाती है, जो किसी चीज को ऊपर उठाती है। करोड़ों साल से यह इच्छा लगातार कोशिश कर रही है। अब यह उस बिंदु पर पहुंच गई है जहां आप सतह पर तैर रहे हैं। यह चाहत अभी भी गतिमान है लेकिन इतनी समझ आपके अंदर आ गई है कि अगर आप चाहें तो आप इसे पीछे लौटा सकते हैं। आप एक बंदर की तरह बर्ताव कर सकते हैं। एक बंदर आपकी तरह नहीं हो सकता है लेकिन आप चाहें तो उसकी तरह हो सकते हैं।
तेज हो विकास की रफ्तार
तो जैसा मैंने कहा कि एक बार जब आप इंसान बन जाते हैं तो विकास केवल चेतनतापूर्वक ही हो सकता है। एक बार जब यह चेतनतापूर्वक होने लगता है तब आप विकास करना क्यों चाहेंगे, तब तो आप रूपांतरित होना चाहेंगे। क्रमिक विकास का अर्थ होता है धीरे-धीरे सकारात्मक परिवर्तन, यह एक धीमी प्रक्रिया है। विकास का विलोम शब्द क्रांति है। क्रांति का मतलब होता है तुरंत परिवर्तन। आप विकास और क्रांति से भी ज्यादा वजनदार शब्द का प्रयोग अपने लिए करना चाहेंगे, और इसके लिए आप रुपांतरित शब्द चुनेंगे। आप रूपांतरित होना चाहेंगे। अगर आप इसी जीवन में मुक्त होना चाहते हैं तो आपको निश्चित रूप से रुपांतरित होने की जरूरत है क्योंकि विकास एक लम्बी प्रक्रिया है, जिसमें बहुत ज्यादा समय लगेगा।