भगवान की प्राप्ति : क्या बहुत समय लगता है इसमें?
अकसर यह प्रश्न पूछा जाता है कि अगर हम साधना शुरू करते हैं तो भगवान की प्राप्ति कितने समय में कर सकते हैं। क्या चैतन्य की प्राप्ति समय पर निर्भर है?
साधक अपनी साधना से भगवत तत्व को या भगवान को अनुभव करना चाहते हैं। सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि सिर्फ ऐसी चाहत करना काफी नहीं है, जरुरत है एक आग की। कैसी आग? कैसे जलेगी यह आग?
प्रश्न:
सद्गुरु, आपने कहा था कि आप जल्दी में हैं। लेकिन साथ ही आप लोगों के साथ अलग-अलग संभावनाओं पर काम करना चाहते हैं। इस मामले में हम क्या कर सकते हैं?
सद्गुरु:
इस दिशा में जो सबसे महत्वपूर्ण और पहला काम है, वह है इच्छा। इच्छा यानी किसी काम को करने की तीव्र चाहत। अगर आप में दृढ़ इच्छा नहीं होगी तो आपके रास्ते में जब भी कोई छोटी सी भी दिक्कत आएगी, आप उससे बच कर किनारे से निकलने की कोशिश करेंगे। ऐसा तब अकसर होता है, जब आप पहाड़ों में या पहाड़ी रास्तों पर ट्रेकिंग करते हैं। अपनी पिछली कैलाश यात्रा में हम थोरोंगे ला दर्रे से होते हुए मनंग घाटी से थोरोंग ला तक गए थे। यह चढ़ाई तकरीबन 18000 फीट और 60 डिग्री ढलान वाली थी। जब आप इस रास्ते पर चलना शुरू करते हैं तो आपका मन कहता है, ‘वैसे तो मनांग घाटी बेहद सुंदर है, लेकिन क्या वाकई हमें इस दर्रे से जाने की जरूरत है? वहां सबकुछ वीरान और निर्जन नजर आता है। वहां सब कुछ पथरीला है, हरियाली का नामोनिशान नजर नहीं आता। जबकि यहां मनांग घाटी कितनी सुंदर है। फूलों से भरी हुई।’ आपके जीवन में मन हमेशा ऐसी चाल चलता रहेगा। दुनिया में जो लोग मन के इस छलावे या चाल से उपर उठ जाते है, वह अपना एक मुकाम बनाते हैं, बाकी लोग खाने या सोने में अपना वक्त निकाल देते हैं। फिर चाहे वो आध्यात्मिकता हो, कारोबार हो, संगीत हो, कला हो या कुछ और - आप तभी अपनी जगह बनाते हैं, जब आप अपनी सीमाओं से उपर उठकर काम करते हैं। हालांकि आपका दिमाग कहता है, ‘क्या ऐसा करना वाकई जरूरी है? जब यहां सचमुच अच्छा है तो फिर पहाड़ों पर जाने की क्या जरूरत है?’
किसी भी इच्छा या आकांक्षा को जगाने के लिए सबसे पहली चीज है - ‘मैं जानना चाहता हूं, मैं जानना चाहता हूं, मैं जानना चाहता हूं,।’ यह विचार आपको भीतर से परेशान कर दे। अगर आपकी आकांक्षाएं आपको भीतर से परेशान नहीं करेंगी तो आपकी चाहत या तलाश आपको अपनी सीमाओं से परे ले जाने के लिए नहीं धकेलेंगी। दरअसल, इस तरह की सीमाएं हर इंसान में होती हैं।
जीवन के हर क्षेत्र में इंसान कोशिश करता रहा है। कुछ लोगों द्वारा की गई कोशिशों का ही नतीजा है कि आप जीवन का आज इस तरह से आनंद उठा रहे हैं। चाहे विज्ञान हो या तकनीक, भूगोल हो या आध्यात्मिकता- सबके लिए कोशिशें की गईं। न जाने कितने लोग इन कोशिशों में अपनी जान तक गंवा बैठे, लेकिन कुछ लोग सफल भी हुए। सिर्फ उन्ही चंद लोगों की वजह से धरती पर सहूलियत की इतनी चीजें संभव हो पाईं।
आध्यात्मिक प्रक्रिया भी इसी तरह है - क्या यह मुश्किल है? यह मुश्किल नहीं हैं, लेकिन हां अगर आप खुद एक मुश्किल व्यक्ति हैं तो फिर यह जरूर मुश्किल है। दर असल यह कठोरता आध्यात्मिक प्रक्रिया में नही है, बल्कि आपमें हैं। अगर आपके भीतर की इच्छा तीव्र हो जाए, ज्वलंत हो जाए तो फिर बाकी सब कुछ आप मुझ पर छोड़ दीजिए। मैं कदम दर कदम बताउंगा कि आपको क्या करना है। लेकिन अगर आपकी इच्छा ही हर दिन डगमगाती रहती है तो फिर काम कैसे होगा? अगर हमें लोगों को 15-20 मिनट के ध्यान के लिए दीक्षित करना होता तो हम वो कर सकते थे, वो बहुत आसान है।
जरा वृद्ध लोगों पर नजर डालिए, अपने जीवन में उन्होंने जो कुछ हासिल किया है, क्या वे उससे संतुष्ट और परितृप्त नजर आते हैं? मैं उन लोगों की बात कर रहा हूं, जो अपनी जिंदगी पूरी जी चुके हैं। क्या वे हर कदम पर पीड़ा से भरे नजर नहीं आते? ज्यादातर लोगों के संतोष का पैमाना यह होता है कि जीवन में उन्हें उतनी तकलीफें नहीं झेलनी पड़ीं, जितनी पड़ोसियों या औरों को झेलनी पड़ीं। लोग अकसर कहते हुए सुने जाते हैं, ‘शुक्र है कि हमें वैसी दिक्कतें नहीं हुईं, जैसी ‘उनको’ हुई।’ अगर आप इस धरती पर आबादी की एक इकाई बन कर रहना चाहते हैं तो आप रह सकते हैं। लेकिन अगर आप अपने भीतर छुपे चैतन्य को प्रकट करना चाहते हैं तो यहां रहने का दूसरा तरीका है। इसका सबसे पहला और महत्वपूर्ण तरीका है कि इच्छा होना और इच्छा आपके भीतर ज्वलंत रूप में होनी चाहिए। अगर आपके भीतर ज्वलंत इच्छा नहीं है, अगर आपके भीतर आग नहीं है तो फिर क्या किया जा सकता है? अगर आपमें आग ही नहीं होगी तो आपको सही दिशा कैसे दी जा सकती है? अपने भीतर आग उत्पन्न होने दीजिए। इस आग को जलने में पैंतीस साल मत लगाइए।
तो कितनी वक्त और लगेगा आपको?
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